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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Saturday 22 October 2011

पानी के लिए राजेंद्र सिंह तो ज़मीन के लिए राजगोपाल करते रहे हैं संघर्ष

नई दिल्ली. टीम अन्ना से मतभेदों के चलते अलग हुए दो मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं राजेंद्र सिंह और पीवी राजगोपाल ने समाजसेवा के काम से लंबे समय से जुड़े हुए हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह को ‘जल पुरुष’ भी कहा जाता है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले राजेंद्र सिंह राजस्थान के अलवर जिले में काम करते हैं। राजेंद्र सिंह तरुण भारत संघ के नाम से एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। राजेंद्र सिंह ने जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। अफसरशाही और भ्रष्टाचार से लड़ने में भी उनके प्रयास सराहनीय रहे हैं। उन्हें साल 2001 में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

वहीं, केरल में जन्मे पी. वी. राजगोपाल ने सेवा ग्राम में अध्ययन किया और 70 के दशक में मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में डकैतो के पुनर्वास का काम किया था। बाद के वर्षों में वे देश के कई राज्यों का दौरा करते रहे और आदिवासी लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश की। 1991 में राजगोपाल ने एकता परिषद नाम के संगठन की स्थापना की थी। उनकी संस्था मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से संचालित है, जिसके वे अध्यक्ष हैं। इसके अलावा राजगोपाल गांधी पीस फाउंडेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। उनका संगठन ज़मीन और जंगल पर आम आदमी के अधिकार के लिए काम करता है। राजगोपाल का दावा है कि एकता परिषद भूमि सुधार पर काम कर रहा देश का सबसे बड़ा आंदोलन है। एकता परिषद ने 2007 में ‘जनादेश’ नाम की मुहिम चलाई थी। एकता परिषद का दावा है कि यह बड़ा अहिंसक आंदोलन था, जिसमें भूमिहीन लोगों ने दिल्ली तक मार्च किया था।

इसको मीडिया में तवज्जो नहीं मिली


 

 

 

 

 

 

 

 


 


बेशक, इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्र है। होगी भी क्यों नहीं, आडवाणीजी को जन-समर्थन भी खूब मिल रहा है। चर्चा में उत्तरप्रदेश के भाजपा नेताओं की यात्रएं भी हैं, तो देश में और जहां-जहां यात्रएं हो रही हैं या होने वाली हैं, उनकी भी पर्याप्त चर्चा हो रही है, पर मानना यह भी पड़ेगा कि इन सभी यात्रओं का मकसद राजनीतिक है। फिर भी, इन यात्रओं का चर्चा में रहना या इन्हें जन-समर्थन मिलना कोई गलत बात नहीं है। हां, गलत यह जरूर है कि इन यात्रओं के बीच एक और यात्र कहीं गुम हो गई है, हालांकि यह यात्र जारी है।

तीन अक्टूबर को केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से शुरू हुई यह यात्र 30 सितंबर-2012 को यानी लगभग एक वर्ष बाद ग्वालियर पहुंचेगी और वहां से एक लाख लोगों को लेकर पैदल दिल्ली के लिए कूच करेगी, जिसमें भागीदार के तौर पर ज्यादातर वे लोग शामिल होंगे, जो हकीकत में इस देश और उसकी माटी, जल, जमीन, जंगल के असली वारिस हैं, लेकिन वे शहरी सभ्यता की तरह सुसंस्कृत नहीं हुए हैं, इसलिए उन्हें आदिवासी कहा जाता है। आदिवासी का एक और मतलब यह तो होता ही है कि वे लोग, जो सदियों से इस देश में रहते आए हैं।

इस जन-सत्याग्रह यात्र में वे किसान भी शामिल होंगे, जिनकी जमीनों को गैर-कृषि कार्यो के लिए पूरे देश में अधिग्रहीत किया जा रहा है और अपना वाजिब हक मांगने पर पुलिस की लाठियों और गोलियों से उनका स्वागत किया जा रहा है। प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता और भारतीय एकता परिषद के अध्यक्ष पीवी राजगोपाल एक साल की इस कठिन यात्र पर नागरिकों को जगाने और देशभर से समर्थन हासिल करने के लिए निकल चुके हैं। दो अक्टूबर को गांधीजी की समाधि से विदाई के बाद दिल्ली में उनकी वापसी अगले साल एक लाख लोगों के साथ होगी।

इस जन-सत्याग्रह यात्र के साथ जब वे दिल्ली की ओर कूच करेंगे, तब जाकर शायद देश भी जागेगा। पीवी राजगोपाल वर्ष-2007 में भी 25 हजार आदिवासियों और किसानों को लेकर ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल कूच कर चुके हैं। इस यात्र के दौरान हालांकि दुर्घटना और बीमारी की वजह से कुछ लोगों की मौत जरूर हो गई थी, लेकिन रास्ते में पड़ने वाला प्रशासन भी मानता है कि हाल के दिनों में ऐसा अनुशासित मार्च पहले कभी नहीं देखा गया। इस यात्र के दौरान एक भी खोमचे नहीं लूटे गए, सड़कों के किनारे के खेतों से एक भी गन्ना नहीं तोड़ा गया। यहां तक कि पौधों को नुकसान तक नहीं पहुंचाया गया और यह जनादेश यात्र 2007 में जब गांधी जयंती के दिन दिल्ली में गांधी समाधि पहुंची, तो देश की सरकार को लगा कि अब इन किसानों और आदिवासियों की आवाज अनसुनी नहीं की जा सकती और तब के ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को इन सत्याग्रहियों के पास जाना पड़ा। तब रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक सुचारू भूमि वितरण प्रणाली विकसित करने व लोगों को जमीनों का अधिकार देने की मांग को मंजूर किया था।

इसके साथ ही जल, जंगल और जमीन पर उनके असली हकदारों को अधिकार देने का सरकार ने वादा तो किया था, लेकिन सरकार इनमें से एक भी वादे को अभी तक पूरा नहीं कर पाई है। चार साल के लंबे इंतजार के बाद जब पीवी राजगोपाल को लगने लगा कि सरकार ऐसे नहीं सुनने वाली है, तो उन्होंने एक बार फिर वही गांधीवादी रास्ता अख्तियार किया और अलख जगाने के लिए देशव्यापी यात्र पर निकल पड़े। राष्ट्रीय एकता परिषद ने इस यात्र को जन-सत्याग्रह यात्र का नाम दिया है। राष्ट्रीय एकता परिषद जिन मांगों को लेकर देशव्यापी अलख जगाओ अभियान में जुटी हुई है, उनमें कई प्रमुख मांगों को देशभर में भूमिहीनों और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे संगठन भी स्वीकार कर चुके हैं। दरअसल, आज शहरीकरण और औद्योगीकरण के नाम पर खेती योग्य जमीनों का भी जबरिया अधिग्रहण बढ़ता जा रहा है। इससे खेती के साथ ही उस जमीन पर आधारित जनसंख्या के जीवन-यापन की समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं।

पूरे देश, खासतौर पर ग्रामीण और आदिवासी भारत में इसे लेकर आम सहमति है कि भूमिहीनों और गरीबों को जोत का अधिकार दिया जाना चाहिए, ताकि कोई उनसे जमीन खाली नहीं करा सके। जन-सत्याग्रह यात्र में लोगों को जागरूक बनाने के लिए यह अहम मांग ही रखी गई है। इसके साथ ही साथ तथाकथित विकास योजनाओं, जैसे राष्ट्रीय अभयारण्य, बड़े बांध, खनिज उद्योग, स्पेशल इकोनॉमिक जोन और पावर प्लांट आदि के नाम पर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण तो किया ही जा रहा है, आदिवासियों को विस्थापित करने का काम भी पूरे देश में तेजी से हो रहा है। जन-सत्याग्रह यात्र का एक मकसद इस परिपाटी को रोकना, इसको बदलना भी है।

वैसे तो विस्थापन आज के दौर की नियति है, लेकिन इस विस्थापन में मानवीय पहलुओं को शासन-प्रशासन कम ही तरजीह देता है। विस्थापन के बाद संस्कृति से लेकर जीवन-यापन तक की राह में कई कठिनाइयां आती हैं। अध्ययनों से साबित हो चुका है कि 1947 से लेकर 2000 तक ही पूरे देश में करीब छह करोड़ लोग अपनी जमीन और जीविका से विस्थापित हो चुके हैं। जाहिर है कि इस दौर में पीढ़ियां तक गुजर गई हैं, लेकिन विस्थापितों की हालत नहीं सुधरी। इसे लेकर पूरी दुनिया में बहस और वैकल्पिक उपायों को सुझाने की कवायद भी चल रही है, लेकिन जन-सत्याग्रह यात्र में एक अहम मकसद इस समस्या को मानवीय तरीके से हल करना भी है।

देश में विस्थापितों की एक जायज शिकायत यह है कि उन्हें उचित मुआवजे नहीं मिल पाए हैं। नोएडा के भट्टा पारसौल जैसी घटनाएं ऐसी ही शिकायतों की वजह से होती हैं। जन-सत्याग्रह यात्र में भी यह मांग उठ रही है कि जो लोग पहले से ही विस्थापित हो चुके हैं, उन्हें निष्पक्ष और तत्काल मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही उन्हें ठीक से पुनस्र्थापित करने की मांग भी उठ रही है। इस देश में गरीबों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि उन्हें रोजगार और जीवन-यापन के सही मौके नहीं मिल रहे हैं। यह शिकायत गलत नहीं है, सही ही है। जन-सत्याग्रह यात्र का एक मकसद इसे भी सुनिश्चित कराना है।

गांधी की राह पर चल रही इस जन-सत्याग्रह यात्र के ढेर सारे आयाम हैं। इसमें जिंदगी गुजारने के लिए बेहतर उपाय सुझाना भी शामिल है, तो लोगों के अंदर जिंदगी को लेकर अनुशासनबोध भरना भी। इस यात्र में आंदोलन की आंच भी है, तो समाज को बदलने का सपना भी, लेकिन रचनात्मक आधार वाली इस जन-सत्याग्रह यात्र पर इन दिनों न तो राजनीति का ध्यान है और न ही मीडिया का। पता नहीं, इसे तवज्जो क्यों नहीं दी जा रही है? 30 सितंबर -2012 को जब एक लाख लोगों का अनुशासित कारवां दिल्ली की तरफ कूच करेगा, तब शायद लोगों का ध्यान इस यात्र पर जाए। तब शायद सरकार भी जागे।

-- उमेश चतुर्वेदी

Monday 17 October 2011

श्रम विभाग नहीं करता मजदूरी से संबंधित मामलों का निराकरण

मप्र सरकार की मंशा अनुसार मजदूरी से संबंधित मामले में जब भी कोई गरीब आदिवासी, हरिजन या बेसहारा को प्रताडि़त करके उसे मजदूरी नहीं दी जाती तो ऐसे प्रकरण में श्रम विभाग के द्वारा मामले की जांच करके संबंधित मजदूर परिवार को तत्काल की गई मजदूरी के भुगतान करने का प्रावधान है। एकता परिषद के जिला समन्वयक रामप्रकाश ने शिवपुरी जिले के श्रम विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि मजदूरी से जुड़े प्रकरणों की न तो श्रम विभाग सुनवाई करता और न ही गरीब परिवारों को मजदूरी का समय पर भुगतान करता है। जबकि ऐसे प्रकरणों में सरकार की व्यवस्था तत्काल भुगतान की की गई है लेकिन श्रम विभाग की उदासीनता के चलते गरीब और बेसहारा लोग चक्कर लगाते रहते हैं।

Saturday 8 October 2011

सरकार नहीं मानेगी तो एक लाख सत्याग्रही ग्वालियर से पैदल चल कर दिल्ली आएंगे-राजगोपाल

नई दिल्ली, 26 सितंबर (जनसत्ता)। एकता परिषद की जन संवाद यात्रा इस साल 2 अक्तूबर को कन्याकुमारी से शुरू होगी। इस यात्रा के तहत परिषद के अध्यक्ष राजगोपाल पीवी के नेतृत्व में आदिवासियों, दलितों और वंचितों का एक बड़ा समूह देश के विभिन्न राज्यों का दौरा करते हुए अगले साल ग्वालियर पहुंचेगा और वहां 2 अक्तूबर 2012 को शुरू होने वाले जन सत्याग्रह में समाहित हो जाएगा। इस जन सत्याग्रह में एक लाख सत्याग्रही ग्वालियर से पैदल चल कर दिल्ली आएंगे और अपनी मांगों को लेकर बेमियादी घरना देंगे।
यह जानकारी देते हुए परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीवी ने कहा कि हम इस यात्रा को अंजाम देने के लिए इसलिए हम विवश हुए हैं कि केंद्र सरकार ने चार साल पहले जनादेश यात्रियों से जो वादे किए थे उसे उसने अमल में नहीं लाया। उन्होंने कहा कि 2007 में जब जनादेश यात्री ग्वालियर से पैदल चल कर रामलीला मैदान पहुंचे थे तब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भू सुधार परिषद और राष्ट्रीय भू सुधार समिति का गठन किया था, लेकिन चार साल के दौरान दर्जनों पत्र लिखने और कई प्रदर्शन करने के बावजूद परिषद और समिति के जरिए केंद्र सरकार ने भू सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया। सरकार ने यह वायदा जनादेश यात्रा में शामिल उन वंचितों से किया था, जिनके पास आज भी कोई जमीन नहीं है और उनकी आजीविका के साधन तेजी से छीने जा रहे हैं।
सोमवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में राजगोपाल ने कहा कि अब समग्र भूमि नीति के लिए एकता परिषद जन सत्याग्रह छेड़ेगी, क्योंकि किश्तों और टुकड़ों में समाधान के उपायों से मूल मसले हल नहीं होंगे और गरीबों, भूमिहीनों, दलितों और आदिवासियों को कोई फायदा नहीं होने वाला है। उन्होंने समग्र भू सुधार नीति की जरूरत बताते हुए कहा कि खनन, वन्यजीव और भू अघिग्रहण और सेज जैसे कानूनों में देश के

गरीब लोगों के पक्ष में बदलाव लाने की कोशिश करनी होगी। साथ ही पेशा, भूमि सीलिंग और वनाघिकार कानूनों के जरिए भूमिहीनों के बीच जमीन वितरण के काम को अंजाम देने के लिए सरकार पर दबाव बनाना होगा। तभी गांधी, विनोबा, जेपी के साथ डा आंबेडकर के स्वप्न पूरे हो सकेंगे। राजगोपाल ने कहा कि वे गांधी जी के उस कथन में यकीन करते हैं कि जब राज्य शक्ति का उपयोग देश के गरीब लोगों के हित में नहीं करे तो उसे नियंत्रित करने की क्षमता पैदा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूमि के मुद्दे पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ उनकी वार्ता लगातार चल रही है। उन्होंने फिर से सत्याग्रह छेड़ने के सवाल पर कहा कि सरकार उनकी मांगों पर अमल कर रही होती तो उन्हें सत्याग्रह छेड़ने की जरूरत नहीं होती।
उन्होंने बताया कि उनके नेतृत्व में कार्यकर्ताओं का एक बड़ा दल जन संवाद यात्रा के दौरान देश के विभिन्न राज्यों के करीब साढ़े तीन सौ जिलों में अस्सी हजार किलोमीटर क्षेत्रों का दौरा करेगा। दौरे के दौरान इन राज्यों में जमीन सहित खनन, जंगल, जल, खनन, मछली मारने के अधिकार, बांध निर्माण और विस्थापन आदि मुद्दों पर चल रहे पांच सौ से अधिक जन आंदोलनों को अगले साल ग्वालियर से शुरू होने वाले एक लाख लोगों के सत्याग्रह से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कन्याकुमारी से अगले महीने गांधी जयंती के दिन शुरू होने वाले जन संवाद यात्रा के पहले समग्र भूमि नीति को लागू करवाने के मुद्दे पर तीन दिन का सम्मेलन होगा। इस सम्मेलन में सर्व सेवा संघ की अध्यक्ष राधा भट्ट, राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक एसएन सुब्बाराव, जल बिरादरी के राजेंद्र सिंह, फोरेस्ट वर्कस फोरम के अशोक चौधरी और रोमा सहित संजय राय, स्वामी सच्चिदानंद, मंजुनाथ, सुभाष लोम्हटे, ललित बाबर, अमर सिंह चौधरी, प्रतिभा शिंदे,यशोदा, नाहित, विष्णु प्रिया, गुमान सिंह, हेम भाई और लालजी भाई जैसे समाजसेवियों के साथ अनेक लोग शामिल होंगे।

नौकरशाहों के हाथों में हिंडौला खाती राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति

Posted by अन्नपूर्णा मित्तल on September 27th, 2011

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पटना। जन संवाद यात्रा की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। सिर्फ 5 दिन शेष हैं। इस रविवार से जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा को लेकर जन संवाद यात्रा शुरू किया जा रहा है। इस यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया जाएगा। केरल प्रदेश के माटी के पुत्र विख्यात गांधीवादी व जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी व्ही राजगोपाल जन संवाद यात्रा पर निकलने वाले हैं।
सनद रहे कि ऐतिहासिक जनादेश 2007 के बाद दूसरी ऐतिहासिक जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा है। जन सत्याग्रह 2012 को लेकर जन संवाद यात्रा किया जा रहा है। जन संवाद यात्रा की शुरूआत केरल प्रदेश के कन्याकुमारी से हो रही है। उद्घाटन समारोह 2 अक्टूबर 2011 को कन्याकुमारी में होगा। इसके अगले दिन यात्रा 3 अक्टूबर को त्रिवेन्द्रम पहुंचेगी। 15 दिनों तक 15 जिलों का भ्रमण करके जन संवाद यात्रा 18 अक्टूबर को तमिलनाडू के कोयम्बाटूर पहुंचेगी। इसी तरह से आगे बढ़ते हुए 24 राज्य, 339 जिले और 358 दिन तय करके 24 सितंबर 2012 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में पहुंच जाएंगे।
राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य श्री राजगोपाल लगातार 358 दिनों तक यात्रा पर रहेंगे। इस दौरान आम आदमी से मुलकात करेंगे। उनकी समस्याओं का आकलन व उनके आवेदनों का संग्रह भी किया जाएगा। यात्रा के दौरान राह में जन सुनवाई, नुक्कड़ सभा, पत्रकारों से मुलाकात करते हुए 354 दिनों में 24 राज्यों के 339 जिलों में यात्रा कर सकेंगे। इस यात्रा का मकसद है कि केन्द्रीय सरकार ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप देने का वादा कर भूल गयी है। इसके अलावा जल, जंगल, जमीन और आजीविका की सुविधाओं से वंचित समुदाय को लाभान्वित कराना।
सर्वविदित है कि जन संगठन एकता परिषद और उसके समान विचारधारा रखने वाले जन संगठनों ने वर्ष 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा आयोजित की थी। मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 2 अक्टूबर को शुरू हुआ थी ऐतिहासिक सत्याग्रह पदयात्रा। किसी तरह की शिकायत किये बिना ही देश-प्रदेश-विदेश के 25 हजार वंचित समुदाय जल, जंगल, जमीन और आजीविका के सवाल पर पदयात्रा करने निकल पड़े थे। दो वक्त भोजन करने वाले राह में आने वाली मुसीबतों को सहते चले गये। सत्याग्रह के दौरान सात साथियों पर वाहन चढ़ा देने की दासता को सह लिया। इन शहीदों को नमन और भगवान इनकी आत्मा को स्वर्गलोक में जगह दें। सत्याग्रही 28 अक्टूबर को ठहराव के लिए रामलीला मैदान, नयी दिल्ली पहुंचे। अगले दिन 29 तारीख को संसद तक कूच करना था। मगर पुलिस प्रशासन ने ऐसा करने नहीं दिया और सत्याग्रहियों को रामलीला मैदान में फील्ड एरेस्ट कर लिया। पुलिस प्रशासन और सत्याग्रहियों के बीच का गतिरोध समाप्त करने हेतु प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने पहल की। उन्होंने तब के केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को राजदूत के रूप में रामलीला मैदान भेजा। डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह बिहारी अंदाज में सत्याग्रहियों का स्वागत करते हुए सभी मांगों को स्वीकार करने की बात करने लगे। उसके बाद प्रधानमंत्री की ओर से राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनाने की घोषणा की। परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और समिति के अध्यक्ष केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को बनाया गया। इसके बाद जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा इतिहास के पन्ने में समा गया।
वादे के अनुसार राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को सुपुर्द कर दिया। इसमें 300 अनुशंसाएं की गयी है। एक बार ही प्रधानमंत्री सह राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष डॉ मनमोहन सिंह ने परिषद की बैठक बुलाकर बैठक ही बुलाना भूल गये। जो चार साल के बाद भी राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप नहीं दिया जा सका। इससे लोगों में आक्रोश व्याप्त है।
इसको आधार बनाकर जन सत्याग्रह 2012 का शंखनाद किया गया है। जनादेश 2007 की संख्या 25 हजार में इसबार जन सत्याग्रह 2012 में चार गुणा इजाफा करके एक लाख कर दिया गया है। आम आदमी को जगाने के लिए जन संवाद यात्रा की जा रही है। गौरतलब है कि इसमें मीडिया का सहयोग नहीं मिल रहा है। जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश कुमार सिंह, भाजपाई लाल कृष्ण आडवाणी, जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सदृश्य राजनीतिज्ञों की यात्राओं को लेकर इलेक्ट्रोनिक्स व प्रिंट मीडिया वालों का फोकस मिल जाता है। वहीं महात्मा गांधी के अस्त्र से वार करने वाले गैर राजनीतिकज्ञ समाजसेवी अन्ना हजारे और रामदेव बाबा को आमरण अनशन करने पर मीडिया वालों ने जमकर उनके मुद्दों को उछाला। उस लिहाज से जन संगठन एकता परिषद के ऐतिहासिक सत्याग्रह पदयात्रा को मीडिया वाले तवज्जों नहीं देते और न ही फोकस ही डालते हैं। वहीं आमरण अनशन करने वाले एकता परिषद, बिहार के प्रांतीय संयोजक प्रदीप प्रियदर्शी के नेतृत्व में जन सत्याग्रह 2012 के शिविर नायकों का एक जत्था कन्याकुमारी जाने वाली है। इस जत्थे में मगध प्रक्षेत्र के शिविर नायक शत्रुध्न कुमार, उत्तरी प्रक्षेत्र के वशिष्ठ कुमार सिंह, कोसी प्रक्षेत्र के विजय गौरेया, पटना प्रक्षेत्र से उमेश कुमार, मंजू डुंगडुंग और सिंधु सिन्हा हैं।
उल्लेखनीय है कि चार साल से मसला केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास है। इसमें पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह औ पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास डॉ सीपी जोशी का सहयोग राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप देने में हिस्सादारी ना के बराबर ही रहा। इसी के कारण राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का परिणाम नौकरशाहों के हाथों में हिंडौला खा रहा है। अब समय आ गया है कि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश अपने मंत्रालय के नाकामयाब कारनामे पर पर्दा डालने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप प्रदान करें और शेष मांगों पर सकारात्मक पहल कर समस्याओं का समाधान निकाले।

एकता परिषद की जन संवाद यात्रा

Posted by अन्नपूर्णा मित्तल on October 1st, 2011

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ऐतिहासिक जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा के समापन सत्र के दौरान रामलीला मैदान, नई दिल्ली में उपस्तिथ 25 हजार आदिवासी व भूमिहीनों के सामने डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह, पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने ऐलान किया कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति गठन की गई है।
इस ऐलान के 71 दिनों के बाद 9 जनवरी 2008 को भारत के राजपत्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने असाधारण भाग एक और खंड एक प्रकाशित किया। प्रकाशित राजपत्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय (भूमि संसाधन विभाग) के संकल्प संख्या 231013/4/2007. एल. आर. डी. राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनाई गई। इसमें 20 सदस्य मनोनीत किए गए। इस समिति के प्रमुख सदस्य मिलाकर राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाई और 300 तक की सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दी।
इस पर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा के महानायक व जन संगठन एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी० व्ही० राजगोपाल कहते हैं कि राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने 2009 में अपनी सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दी। पर सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया है। तब तो यूपीए एक और यूपीए दो की सरकार पर असफल होने तथा अभूतपूर्व सत्याग्रह पदयात्रा जनादेश 2007 की अनदेखी करने का आरोप मजे से लगाया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर हाल के दिनों में जो सत्याग्रह का स्वरुप निकल कर सामने आया है उस पर भी चर्चा करनी जरुरी है। इन दिनों महात्मा गाँधी जी के बताए हुए राह पर चलकर आंदोलन करने वाले लोगों की मांग पूरी नहीं की जाती है। इस पर गांधीवादी राजगोपाल उर्फ़ राजा जी ने कहा कि ग्वालियर से नई दिल्ली तक 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन सत्याग्रियों ने पदयात्रा की। तब भी केंद्रीय सरकार सत्याग्रह पदयात्रा को तब्बजो नहीं दे रही है। वही समाजसेवी अन्ना हजारे ने आमरण अनशन किया तो उनकी मांगों को सरकार ने मान लिया। समाजसेवी अन्ना हजारे का 13 दिनों का यह आंदोलन भारत के इतिहास की एक अभूतपूर्व और युगांतरकारी घटना के रूप में रेखांकित किया जाएगा।
सनद रहे कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सदस्य पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह जनादेश 2007 के समय सत्ता में बैठे रहे। वे 2 साल तक यूनियन कैबिनेट मंत्री बने रहे। पर वे देश के 75 फीसदी लोग जो जमीन व जंगल से जुड़े हैं, उसके हक में न ही संसद ने सड़क पर कोई सवाल खड़ा किया। इस तरह एक बार फिर यह साबित हो गया कि यह चरित्र सत्ता का ही शोषक था। भले ही 2009 के लोकसभा का चुनाव जीत गए हैं। अब तो मंत्री भी नहीं रहे, अभी संसद में हैं और सड़क पर भी, केवल दिल्ली वालों की तरह दिल चाहिए।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर,
हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग,
लेकिन आग जलनी चाहिए।

जनादेश 2007 से ही बापू के तीन बंदर की भूमिका में रहने वाले तीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सत्तामद में चूर रहे। यूपीए एक के समय में पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह और यूपीए दो के समय डॉ सीपी जोशी केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने। अब पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी हैं और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं।
जब तक केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी रहे तब तक राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति को अहमियत नहीं दी। इसके आलोक में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी व्ही राजगोपाल और बिहार के जन सत्याग्रह 2012 के लीडरशिप करने वाले प्रदीप जी सत्तामद में चूर हो गए। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी से मुलाकात कर जनादेश 2007 के बारे में जानकारी दी। यह भी बताया कि अभी भी सत्याग्रही उम्मीद में बैठे हैं कि सरकार कब 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन लोगों को जल, जंगल, जमीन और आजीविका मुद्दे पर क़ानून से राहत व लाभ दिला पाएगी? इसके साथ ही कब आम जनता को राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर उपहार देगी? और कब एक ऐसी काली रात की एक नयी सुबह होगी।
मगर आम जनता की आवाज सत्ता में टिकी रहे डॉ सीपी जोशी ने इसे अनसुनी कर दी। इस अनसुनी से गांधीवादी आहत हो गए। तब जाकर जन संगठन एकता परिषद और उसके समान संगठन ने मिल कर जन सत्याग्रह 2012 का शंखनाद कर दिया। जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 डॉ सीपी जोशी की ही देन है।
उल्लेखनीय है कि एक नेक मकसद के लिए जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 किया जा रहा है। इसलिए आम से खास तक के लोग जन संगठन एकता परिषद के साथ शामिल हैं। तब तो यह कहते हैं हम एकता परिषद के साथ हैं। तब यह भी कहते हैं, कि जनादेश 2007 में 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन पैदल आए थे, इस बार पूरे 1 लाख आम से खास लोग सत्याग्रह में साथ साथ आने को तैयार हैं। अब एक बार फिर जन सत्याग्रह 2012 के महानायक राजगोपाल के साथ चलने को तैयार हैं।
एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी०व्ही० राजगोपाल ने बापू की समाधि राजघाट में जाकर बापू को नमन कर कलश में मिट्टी भरकर कन्याकुमारी रवाना हो गए। बताते चलें कि पी०व्ही० राजगोपाल केरल के ही रहने वाले हैं। केरल के कन्याकुमारी से 2 अक्टूबर 2011 से जन संवाद यात्रा शुरू होगी। देश के 24 राज्यों, 339 जिले और 358 दिन में 80 हजार किलोमीटर का सफर पूरा करते हुए अगले साल 5 नवंबर 2012 को यात्रा दिल्ली में समाप्त होगी। इस यात्रा का नेतृत्व भूमिहीनों के अधिकारों के लिए संघर्षरत जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष पी०व्ही० राजगोपाल करेंगे।
बिहार में वर्ष 2008 में कोसी नदी के पूर्वी अफ़लक्स बांध के टूट जाने का करण राज्य के पांच जिलों सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और पूर्णिया महाप्रलय के शिकार हो गये थे। इसमें हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसमें हुई भारी जान-माल की क्षति को देखते हुए सुपौल से सहरसा तक राजगोपाल जी ने पदयात्रा की थी।
उल्लेखनीय है कि इसके पहले मंगलवार 27 सितम्बर को राजगोपाल बापू की समाधि राजघाट में जाकर कलश में मिट्टी को लेकर दोपहर में हिमगिरी एक्सप्रेस से कन्याकुमारी रवाना हुए थे। शुरुआत में पी०व्ही०राजगोपाल यह यात्रा वाहन से करेंगे। 2 अक्टूबर 2011 को कन्याकुमारी से शुरू होने के बाद चारों दक्षिणी राज्यों में होते हुए महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूवरेत्तर राज्यों से गुजरते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दोबारा से उत्तर प्रदेश होते हुए मध्य प्रदेश के ग्वालियर तक अगले साल 2 अक्टूबर, 2012 को पहुंचेगी। ग्वालियर से जन संगठन से जुड़े एक लाख आदिवासी व भूमिहीन किसानों का विशाल समूह करीब एक महीने की यात्रा करते हुए 5 नवंबर को दिल्ली पहुंचेगा।
जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी०व्ही०राजगोपाल ने बताया कि राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने 2009 में अपनी सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दीं पर सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया। बताते चलें कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गठन राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की केवल एक बार ही बैठक बुलाई गई। इसके बाद प्रधानमंत्री बैठक ही बुलाना भूल गए। राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पी०व्ही०राजगोपाल आदि हैं। तब भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। जब जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 का दबाव सरकार आ गया तब जाकर अब सरकार गंभीर हुई।
अब जब जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 का एलान किया गया है तो ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक बुलाई है और अब जाकर वे बता रहे हैं कि राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री भी की एक हफ्ते के भीतर ही बैठक बुलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “मैंने दोनों बैठकों का एजेंडा देखा है, सरकार ने कागजी तैयारी पूरी कर रखी है पर हमें इस बार अमल पर लाने वाली व्यवस्था चाहिए। हमें सरकारी खानापूरी नहीं चाहिए।” वे कहते हैं कि सरकार ने जनादेश यात्रा का आदेश नहीं माना इसलिए जन संवाद यात्रा 2011 की नौबत आई। इस यात्रा के जरिए वे देशभर में भूमि कानून व नीतियों पर जागरुकता व जनमत तैयार करेंगे और मुद्दे पर एक माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। लोगों को पता होना चाहिए कि इस देश में परमाणु नीति है, विदेश नीति है, उद्योग नीति है पर देश के 75 फीसदी लोग जो जमीन व जंगल से जुड़े हैं, उनके लिए कोई भूमि नीति नहीं है। उन्होंने कहा कि भूमि की समस्या हल किए बिना देश में भ्रष्टाचार का पूर्ण समाधान नहीं हो सकता। गरीबी, नक्सल समस्याए पलायन हर समस्या की जड़ तो जमीन है।
एक अक्टूबर को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कन्याकुमारी जाकर एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी०व्ही०राजगोपाल से मुलाकात करेंगे। सनद रहे कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक बुलाई थी। इस बैठक की जानकारी राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को जाकर दे दी गई है। राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कहने पर ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कन्याकुमारी जाकर एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी०व्ही०राजगोपाल से मुलाकात करेंगे। राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मुलाकात करने की जानकारी के बारे में अवगत कराएंगे।

जन संवाद यात्रा को लेकर लोगों में उत्साह

Posted by अन्नपूर्णा मित्तल on October 6th, 2011

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पटना। यूपीए-एक और यूपीए-दो की सरकार में अबतक तीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने हैं। वर्ष 2004 के आम चुनाव के बाद केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह बने। वर्ष 2009 के आम चुनाव में यूपीए और राजद के बीच पूर्व चुनाव समझौता नहीं होने के कारण ही डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह, पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये। उनके बदले में 2009 में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह बने। बेहतर रिजल्ट नहीं देने के कारण डॉ सीपी सिंह भी पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये। अब केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं। इस तरह जनादेश 2007 के बाद तीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये मगर इन मंत्रियों ने एकता परिषद का एक कार्य भी कार्य नहीं किया। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश पर भरोसा है कि शीतकालीन सत्र के दौरान अवश्य ही राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति निर्माण करा दें। इसके अलावा जन एकता परिषद की जितनी भी मांग है उसे पूरा कर दें नहीं तो एक लाख लोग दिल्ली में प्रवेश कर दिल्ली महानगर को जाम कर देंगे।
जन सत्याग्रह 2012 के मुद्दों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से एकता परिषद के द्वारा जन संवाद यात्रा 2011 का आयोजन किया है। इसके तहत 24 राज्यों का वाहन से भ्रमण किया जाएगा। गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्तूबर को कन्याकुमारी से जन संवाद यात्रा शुरू कर दी गयी है। इस अवसर पर देश के दो महान विभूति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भूदान आंदोलन के प्रार्णेता विनोबा भावे के साथ कार्य करने के परम अवसर प्राप्त बाल विजय भाई, युवातुर्क व्यक्तित्व के धनी एसएन सुब्बाराव, मैंग्नेसले अवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह, कई पदयात्राओं में शिरकत करने वालीं गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट, आशिफ मोहम्मद खान, बालकृष्ण रेन्के, एससी बेहर, डा केबी सक्सेना, स्वामी सच्चिदानंद, ईपी मेनन के अलावा भारी संख्या में एकता परिषद की जंग को समर्थन करने वाले उपस्थित थे।
बताते चले कि एकता परिषद ने वर्ष 2007 में 25 हजार की संख्या निर्धारित कर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा आयोजित की थी। एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष सह सत्याग्रह पदयात्रा के महानायक पीव्ही राजगोपाल के नेतृत्व में 2 अक्तूबर 2007 को ग्वालियर से आरंभ होकर 28 अक्तूबर को रामलीला मैदान में पहुंची थी। इसके अगले दिन 29 अक्तूबर को सत्याग्रहियों को संसद कूच करना था। मगर दिल्ली प्रशासन ने इजादत नहीं दी। दिल्ली प्रशासन और सत्याग्रहियों के नेतृत्वकर्ताओं के बीच में गतिरोध पैदा हो गया। इस गतिरोध को दूर करने के लिए यूपीए-एक की सरकार के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने उस समय के केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को रामलीला मैदान भेजा। बिहार के मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने आते ही महती जनसभा को संबोधित करते हुए बिहारी स्टाइल में कहा कि आप लोगों की सभी मांगों को माननीय प्रधानमंत्री ने एकसिरे मान ली है। इसके साथ आपलोगों को दो तोहफे भी दिये हैं। खुद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति निर्माण की जाएगी। दोनों के बन जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भूमि सुधार संबंधी कानून बन जाएगा। राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्य राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाएंगे। इस तरह की लुभावनी संभाषण से गदगद होकर एकता परिषद के सत्याग्रही रामलीला मैदान से राम-राम कहकर रवाना हो गये।
राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्यों ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का ड्राफ्टकोपी को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद को वर्ष 2009 में सौंप दिया है। इसमें करीब 300 अनुशंसाएं की गयी है।
इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में विजयी होने के बाद एकबार फिर यूपीए-दो की सरकार सत्तासीन हो गयी। यूपीए- दो की सरकार से राजद के साथ तालमेल नहीं होने के कारण डॉ सीपी सिंह को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के मंत्री बनाया गया। नवनियुक्त केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह से शिष्टाचार के नेता एकता परिषद के अध्यक्ष पी व्ही राजगोपल और एकता परिषद, बिहार के प्रांतीय संयोजक प्रदीप प्रियदर्शी ने मुलाकात की। दोनों ने जनादेश 2005 के बारे में जिक्र किया और आशा व्यक्त की कि यथाशीघ्र राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बना दी जाए। सारी जानकारी लेने के बाद केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह ने दो टूक जवाब दिया कि आपलोग 25 हजार लोगों के साथ जनादेश 2007 किए हैं। हम लोग एक करोड़ की संख्या वाले देश का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। पहले उनका ही हित और ख्याल किया जाएगा। इसको सुनने के बाद दोनों का होश फाख्ता हो गया।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह को चुनौती देने के लिए जन सत्याग्रह 2012 का एलान किया गया है। इसमें एक लाख लोग हिस्सा लेंगे। डाल दो चाहे सलाखों में अबकी बार लाखों में नारा गूंजने लगा है। प्रधानमंत्री और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की उदासीनता के कारण जन संवाद यात्रा 2012 शुरू की गयी है। इस यात्रा के माध्यम से एकता परिषद के अध्यक्ष पी व्ही राजगोपाल जनता से संपर्क करेंगे। एक साल तक यात्रा चलेगी। 24 राज्य और 339 जिलों का भ्रमण करेंगे। 80 हजार किलोमीटर की दूरी है।
यात्री कोडुनकुलम पहुंची। यहां के लोग न्यूकियर प्लांट से विस्थापित और परेशान हैं। इस प्लांट से भूमि और आजीविका पर सीधे हमला हो रहा है। इससे निपटने के लिए गांधीजी के मार्ग को अपना रखा है। उसी मार्ग पर लोगों का विश्वास है।