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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Monday 18 April 2011

एकता परिषद के महिला विंग की स्व. रामकुमा को श्रद्धांजलि

रायगढ़ । स्व. रामकुमार जी सर्वहारा वर्ग के नेता ही नहीं एक महामानव थे। जिनके मन में हमेशा समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति समुदाय के संसाधन, आजीविका तथा उनका जीवन स्तर उठाने को लेकर अंर्तसंघर्ष चलता रहता था। वे एकता परिषद, संघर्ष मोर्चा, प्रयोग समाजसेवी संस्था जैसे विभिन्न दिशाओं में काम करने वाले जन संगठनों के प्रेरणा स्त्रोत रहे। हम उनके काम को मिलजुल कर आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराते हैं।

एकता परिषद के महिला विंग की सबसे सक्रिय सदस्य और एकता महिला मंच की राष्ट्रीय संयोजक जिल बहन ने आज इस आशय के विचार स्व. रामकुमार जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए व्यक्त किये।

मूलत: कनाड़ा निवासी जिल बहन, एकता परिषद मध्य प्रदेश की संयोजिका प्रीति तिवारी, एकता परिषद छत्तीसगढ़ के प्रांतीय संयोजक प्रशांत कुमार तथा प्रयोग समाज सेवी संस्था तिल्दा-भाटापारा की ग्लोरिया बहन के साथ आज अपरान्ह सड़क मार्ग से यहां पहुंची। रायगढ़ में स्व. रामकुमार जी के निवास पर उनके छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद हमारे संवाददाता से विशेष चर्चा के दौरान जिल बहन ने बताया कि वे कई कार्यक्रमों में स्व. रामकुमार जी के साथ सहभागी रही हैं। वे थिंक टैंक थे और सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए प्रयासरत संगठनों को प्रेरणा देते रहते थे। वे हमारे काम करने के जज्बे के लिए प्राणवायु के समान थे।

स्व.रामकुमार जी से प्रारंभिक परिचय के संबंध में जिल बहन ने बताया कि वर्ष 1998 में सत्यभामा प्रकरण के दौरान स्व.रामकुमार जी तथा एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी.वी.राजगोपाल जी निकट आए थे और उसके बाद से उनका साथ जीवन पर्यन्त बना रहा। यहां तक कि राजगोपाल जी देश के किसी भी कार्यक्रम या सभा में रामकुमार जी की जीवटता तथा संघर्ष की क्षमता का लोगों से आंकलन करने और उनका अनुशरण करने की बात कहते थे।

रामकुमार जी से उनका साक्षात वर्ष 2000 में अविभाजित मध्य प्रदेश के समय भू-अधिकार पदयात्रा के दौरान हुआ और तब से वे इस चमत्कारिक व्यक्तित्व से सबसे अधिक प्रभावित रहीं। जून 2000 में भू अधिकार पदयात्रा के दौरान रायगढ़ में महापंचायत का आयोजन किया गया था जिसमें रामकुमार जी की प्रेरणा से आसपास तथा दूर दराज के गांवों से पांच हजार से अधिक ग्रामीण महिलाएं पुरूष इकट्ठे हुए थे। इस महापंचायत में उन्हें रामकुमार जी को निकट से जानने का अवसर मिला।

वर्ष 2002 में रामकुमार जी की प्रेरणा से ही उन्होंने तथा राजा जी ने ह्यूमन राईट कमीशन की लीगल एडवाइजर स्वीस महिला लियोना को केलो नदी के प्रदूषण का अध्ययन तथा उद्योगों से होने वाले प्रदूषण का आंकलन करने के लिए रायगढ़ भेजा। मैडम लियोना ने यहां केलो नदी सहित शहर के आसपास के विभिन्न भू-भागों का माह भर तक गहन अध्ययन किया। इस दौरान रामकुमार जी ने केलो नदी के पानी का उद्योगों द्वारा दोहन तथा पानी के गंदा होने पर गहरी चिंता जाहिर की थी।

वर्ष 2005 में उन्होंने राबो से रायपुर तक होने वाली छत्तीसगढ़ बचाओ पदयात्रा तथा महापल्ली में आयोजित विशाल सभा के आयोजन में रामकुमार जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया वे सही मायनों में विचारों से महामना थे। रायगढ़ की वर्तमान पृष्ठभूमि को छत्तीसगढ़ तथा दिल्ली में ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फोकस में लाने का श्रेय वे स्व. रामकुमार जी को ही देंगी।

राष्ट्रीय एकता परिषद उनकी सोच, उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए उनके जैसे विचारों से अनुप्राणिक होने वाले लोगों को जोड़कर एक ट्रस्ट का गठन करेगा जो रायगढ़ की अस्मिता के लिए आगे भी मिल जुलकर संघर्ष जारी रखेगा और एकता परिषद सहित समस्त जनसेवी संगठनों की इसमें सहभागिता होगी।

महिलाओं के नाम से हो जमीन का पट्टा: सुधा

रांची । एकता परिषद की ओर से आयोजित 'वंचितों की संसद' में ग्यारह जिलों के ग्रामीणों ने जमीन और आजीविका ले अपनी समस्याएं सुनाई। इस मौके पर मुख्य अतिथि समाज कल्याण, महिला व बाल विकास व पर्यटन मंत्री सुधा चौधरी ने कहा कि झारखंडी अस्मिता सुरक्षित तभी रहेगी, जब जल, जंगल, जमीन सुरक्षित रहेगा। उन्होंने पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि महिलाओं के नाम से जमीन का पट्टा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि झारखंड का सपना तभी साकार होगा, जब यहां की 70 प्रतिशत जनता सचेत होगी। वे सोमवार को पटेल धर्मशाला, लालपुर में एकता मंच द्वारा आयोजित जमीन, जंगल और आजीविका विषय पर दो दिवसीय सेमिनार में उद्घाटन के मौके पर बोल रही थीं। इस मौके पर एकता महिला मंच की राष्ट्रीय अध्यक्ष जिलकार हेरिस भी उपस्थित थी। इस मौके पर दयामनी बरला ने कहा कि सरकार कंपनियों को जमीन दे रही है। यहां की एक-एक इंच हम लोगों की है। यदि सरकार जबरन जमीन लेगी तो हम संघर्ष को बाध्य होंगे। संजय बसु मलिक ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जिस तरह अपनी जमीन बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया, आज हमें उसी रास्ते पर चलना होगा। जल, जंगल हम लोगों के लिए जरूरी है, यूरेनियम नहीं। वहीं हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रश्मि कात्यायन ने भूमि अधिकार के कानूनी पहलुओं की जानकारी दी। मौके पर बलराम व डा. हरिश्वर दयाल ने नरेगा पर अपने विचार रखे। विषय प्रवेश विरेंद्र कुमार ने किया। उन्होंने गांवों में जमीन की जटिलता के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम के बाद एकता मंच के सदस्यों ने सूबे के मुख्यमंत्री को चार सूत्रीय मांगों का एक ज्ञापन सौंपा। इस कार्यक्रम में पलामू से ललिता देवी, धनबाद से सुषमा, बुधवा मांझी ने अपनी समस्याएं रखीं। कार्यक्रम में सात सौ से ऊपर ग्रामीण उपस्थित थे।

गरीबों के विकास से देश का विकास

वनवासियों और आदिवासियों को वन अधिकार कानून के तहत दिए जाने वाले पट्टों के महज कागज सत्तारूढ़ पार्टियों के कार्यक्रमों में दिए जाते हैं। लेकिन, हकीकत में उन्हें जमीन मिल ही नहीं पाती है। वनवासियों का यह दर्द कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी ने रविवार को व्यक्त किया। वे एकता परिषद की ओर से अप्सरा रेस्टोरेंट में आयोजित "जनसत्याग्रह 2012 : रणनीतिक संवाद" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि देश में खेती-किसानी संकट में है। किसानों को उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, ऎसे में परिवर्तन की बात प्रासंगिक है। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीवी ने कहा कि विकास के नाम पर कुछ लोगों की जेब भरी जा रही हैं। गरीब भूखे पेट सोने को मजबूर है। गरीबों को न्याय दिलाए बिना देश का विकास संभव नहीं है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने आदिवासियों की जमीन को दूसरे हाथों में जाने से बचाने की बात पर जोर दिया। प्रो. एसएन चौधरी ने कहा कि वैश्वीकरण के बाद मध्यम वर्ग का विकास तेजी से हुआ है। पूर्व विधायक केके सिंह ने कहा कि गांव की आवाज नीति निर्माताओं तक नहीं पहुंच रही है। पूर्व विधायक मुकेश नायक ने आदिवासियों के प्रति चिंता व्यक्त की और दलितों को भूमि नहीं मिलने की बात कही। पूर्व डीजीपी सुभाषचंद्र त्रिपाठी ने स्थानीय स्तर पर आंदोलन करने की जरूरत बताई। एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार ने बताया कि 2 अक्टूबर 2012 में होने वाले जनसत्याग्रह में अन्याय से त्रस्त लोग न्याय की आस में दिल्ली कूच करेंगे। इस दौरान कार्यक्रम में मौजूद अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

50 गांव के जत्था नायक व दस्ता नायकों का प्रशिक्षण शिविर आयोजित

शिवपुरी। एकता परिषद जिला इकाई शिवपुरी द्वारा ग्राम सतनबाड़ा में 50 गांव के जत्था नायक व दस्ता नायकों का प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। शिविर का मुख्य उद्देश्य जनसत्याग्रह 2012 को सफल बनाना है। एकता परिषद के संयोजक रामप्रकाश शर्मा ने कहा कि जन सत्याग्रह 2012 आदिवासियों के जीवन जीने के प्राकृतिक संसाधन जल, जंगल, जमीन के लिए एक अहिंसात्मक आंदोलन है। इस आंदोलन के लिए तैयारी प्रत्येक गांव में बैठक प्रतिमाह की जाएगी। शिविर को संबोधित करते हुए सहरिया विकास अभिकरण के जिला संयोजक आरएस परिहार ने कहा कि सहरिया आदिवासी समाज के लिए शासन-प्रशासन आवास योजना ला रहा है, जिसमें झोंपड़ी में निवास करने वाले आदिवासियों को पक्का आवास उपलब्ध हो सकेगा। इस प्रशिक्षण शिविर में अशोक, बिंदा बाई, काशीबाई, कमलाबाई, मीरा, रबूदी, गुलाब, बुद्धू, बिंदू, खैरू, मुन्ना आदि लोगों के साथ 60 गांवों के 125 ग्रामीणों ने भाग लिया।

जनसत्याग्रह सफल बनाने का संकल्प

विश्रामपुर (पलामू): एकता परिषद प्रखंड इकाई की ओर से जनसत्याग्रह 2012 की तैयारी एवं रणनीति पर दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर स्थानीय डाक बंगला परिसर में संपन्न हो गया। जनसत्याग्रह आगामी दो अक्टूबर, 2012 की गांधी जयंती के अवसर पर ग्वालियर मेला मैदान से संगठन का जत्था दिल्ली कूच करेगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपालजी इसका नेतृत्व करेगें। अधिकारों से वंचित एक लाख परिवार दिल्ली के लिए कूच करेंगे। दस सत्याग्रही का नेतृत्व करने वाले एक दस्ता नायक व पांच दस्तानायक के ऊपर एक जत्था नायक दल नायक का खाका संगठन के द्वारा तैयार किया गया। विश्रामपुर प्रखंड के 100 दस्ता नायकों को अरूण कुमार श्रीवास्तव, ब्रहमदेव राम, नारायण दास, कृष्णा मेहता, सूर्यदेव चौधरी, तपानी राम, विमली देवी, प्रमिला बक्सराय, राजकुमार पांडेय, प्रकाश शुक्ला, हरिप्रसाद उरांव, रामेश्वर पासवान, कल्पनाथ सिंह, जत्थानायकों के नेतृत्व में शामिल होंगे। प्रशिक्षण शिविर में एकता परिषद, नई दिल्ली के जगतभूषण व प्रदेश संयोजक रामस्वरूप जनसत्याग्रह 12 के बारे में विस्तार से सदस्यों को जानकारी दी।

चेतावनी सभा :भूमि सुधार कानून बनाने के पक्ष में हुई

नई दिल्ली.भूमि सुधार कानून बनाने के लिए सरकार द्वारा उचित कदम न उठाने के विरोध में गांधीवादी संगठन एकता परिषद ने रविवार को रामलीला मैदान में एक चेतावनी सभा का आयोजन किया। सभा में बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, केरल, तामिलनाडु सहित विभिन्न राज्यों के दस हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया

इस अवसर पर पुलिस द्वारा संसद कूच की अनुमति न दिए जाने के खिलाफ अपने 12 साथियों के साथ रविवार से उपवास पर बैठे राजगोपाल ने साल 2012 में एक लाख लोगों के साथ मिलकर जनसत्याग्रह शुरू करने की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ें। राजगोपाल ने कहा कि प्रशासन दिल्ली में होने वाले क्रिकेट मैच के कारण उनके संगठन को संसद कूच की अनुमति नहीं दे रही है, जो इस देश के गरीब और भूमिहीन लोगों का अपमान है।

इस मौके पर एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि सरकार ने देश की जनता से किए गए अपने वादे पूरे न करके उन्हें धोखा दिया है।

गौरतलब है कि साल 2007 में 25 हजार से अधिक गरीब और भूमिहीन लोगों के साथ राजधानी में पहुंचे राजगोपाल से सरकार ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाने का वादा किया था, ताकि भूमिहीनों और वनवासियों को उनके प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार मिल सके। उनका आरोप है कि इस बात के तीन साल बीत जाने के बाद भी सरकार उस दिशा में समुचित कदम नहीं उठा पाई है।

Sunday 17 April 2011

जनादेश सत्याग्रह से आयेगा बहुत बड़ा बदलाव- सुब्बाराव,


  • म.क.पा सांसद अंजान सहित कई गांधीवादियो ने किया आमसभा को सम्बोधित।
  • राजगोपाल ने दी सरकार को वन कानून तोड़ने की चेतावनी। 

आगरा/ 11 अक्टूबर / आजीविका के अधिकार एवं भूमि सुधार की माग को लेकर चलाई जा रही सत्याग्रह पदयात्रा अपने उददेष्यों को पाने में पूरी तरह सफल होगी। देष की आजादी के 60 बर्ष बाद यदि आम गरीब एवं वंचित आदमी पेट के लिये रोटी की मांग करता है तो यह उसका वाजिव अधिकार है तथा सरकार को इसे गंभीरता से लेकर इसके समाधान के प्रयास करना चाहिये। उपरोक्त उदगार ख्याति प्राप्त गांधीवादी विचारक डॉ.एस.एन. सुब्बाराव के है वे आज शाम आगरा के गोपालपुरा से शक्तिमैदान में एकता परिषद के सत्याग्रह पदयात्रियों को सम्बोधित कर रहे थे। डॉ. राव ने कहा कि एकता परिषद एवं उसके अध्यक्ष पी.व्ही. राजगोपाल गरीब एवं बंचित समुदाय के अधिकारों के लिये अहिसंक तरीके से संघर्ष कर रहे है। अब की बार गांधी जयंती के दिन ग्वालियर चंबल की धरती से उन्होने देष और दुनिया के बहुत बड़े सत्याग्रह की शुरूआत की है। जिसमें पी.व्ही. राजगोपाल के नेतृत्व में 25 हजार लोग हमारी राजनैतिक दूषित व्यवस्थाओं को चुनौती देने के लिये दिल्ली तक की पदयात्रा पर निकल पड़े है। उन्होने पदयात्रियों के अनुषासन एवं संकल्प शीलता की सराहना करते हुये कहा कि आप लोगों ने अहिसंक सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान एवं व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई शुरू की है इसे जरूर सफलता मिलेगी।
बैठक को जनादेष सत्याग्रह के नायक पी.व्ही. राजगोपाल ने संबोधित करते हुये कहा कि उन्हे गरीब एवं वंचित वर्ग के हकों की लड़ाई में भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है। जगह जगह गणमान्य नागरिक समाज सेवी, महिला एवं छात्र छात्रायें सत्याग्रहियों को भरपूर सम्मान एवं सहयोग दे रहे है गरीब वर्ग के लोगों के सम्मान मिलने का यह पहला उदाहरण है यहां तक कि सभी राजनैतिक दलों के नेता भी सत्याग्रहियों से हमदर्दी दिखाने आ रहे है। राजगोपाल ने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेताओं और मंत्रियों के आने एवं न आने से कोई फर्क नही पड़ता अपितु महत्वपूर्ण यह है कि नेताओं को अपनी साठ साल में बंचित एवं गरीब वर्ग क साथ की गई गलतियों का अहसास होना जरूरी है। पी.व्ही राजगोपाल ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार हमें तोड़ने के लिये मजबूर नही करे। यदि सरकार ने गरीब भूमिहीन एवं आदिवासियों को आजीविका के लिये जरूरी वन एवं जमीनों पर अधिकार नही दिये तो वे वन कानून तोड़ने को मजबूर होगें। राजगोपाल की इस बात का सभा स्ािल पर मौजूद हजारों सत्याग्रहियों ने हाथ उठाकर एवं झंडे लहराकर समर्थन किया।
इससे पूर्व आम सभा को मा.क.पा. के सासद अतुल अनजान ने कहा कि देष नेताओं से नही नीतियों से चलता है। उन्होने कहा कि 110 करोड़ जनसंख्या वाले देष में 82 करोड़ गांव में रहते है देष के 66 प्रतिषत लोग गरीबी रेखा से नीचे है। ऐसे में गांव एवं गरीबों की उपेक्षा कर उनके हितों की नीति बनाये बगैर देष तरक्की कैसे कर सकता है। अंजान ने अपने  संबोधन में कहा कि योजना आयोग गरीबों का विरोधी  है। जल बिरादरी के राजेन्द्र भाई ने कहा कि जो लोग अपनी नदियों की हत्याकर उनके पानी को पीने लायक भी नही छोड़ते वह देखें कि एक टेंकर से एक हजार सत्याग्रही अपनी जरूरत पूरी करते है। एक दिन साथ में यात्रा करने से पता चलेगा कि सत्याग्रही प्रकृति से कम लेते हे।, मेहनत और पसीने से उससे ज्यादा लौटते है। आम सभा में विनोवा जी के अनुयायी बाल विजे भाइ्र ने कहा कि गांधी के अहिसात्मक आन्दोलन को जनादेष सत्याग्रह आगे बढ़ायेगा क्यों कि गांधी जी के बाद यह आन्दोलन कुछ थम सा गया था जिसे राजगोपाल ने फिर से सक्रिय कर दिया हैं आम सभा को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन, एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार, फ्र्रान्स के जॉन विर एवं जनादेष समन्वयन समिति आगरा की अध्यक्ष श्रीमती मनोरमा शर्मा ने भी सम्बोधित किया।
अखिल विश्‍व गायत्री परिवार ने लगाया सेवा शिविर
आगरा – सत्याग्रह पदयात्रियों के लिये आज पड़ाव स्ािल पर अखिल विष्व गायत्री परिवार ने सभा स्ािल पर सेवा षिविर लगाया। सेवा षिविर में गायत्री परिवार के कार्यकर्ताओं ने बीमार सत्याग्रहियों को चिकित्सा षिविर तक पहुचाने वृध्द पदयात्रियों का सहारा देने एवं उन्हे पानी पिलाने तक का कार्य किया। सभा स्ािल के पास लगे केम्प में पदयात्रियों की मांगो का खुला समर्थन एवं सहयोग करने की बात गायत्री परिवार के सदस्यो ने कही।

अधिकारों के लिये सत्याग्रहियों का दिल्ली की ओर कूच

·                     स्थानीय नागरिक एवं संगठनों ने किया पदयात्रियों का स्वागत
·                     स्कूली छात्र छात्राओं ने भी किया समर्थन

मथुरा/15 अक्टूबर / एकता परिषद की सत्याग्रह पदयात्रा का काफिला आज सुबह अपने पिछले पड़ाव सलेमपुर फरेह से आगामी पड़ाव बरारी के लिये रवाना हुआ। पदयात्री इस दौरान उत्साह पूर्वक, नारे लगाते, गाते बजाते चल रहे थे। पदयात्रियों िका आज हाइवे के आस पास के गांव के ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया वहीं पदयात्रियों के स्वागत एवं समर्थन के लिये उतरे स्कूली छात्र छात्राओं ने पदयात्रियों के लिये टिफिन एवं आर्थिक सहयोग देकर आन्दोलन का समर्थन किया।

झलकियां
  • स्वागत के दौरान स्कूली छात्र छात्राओं ने पदयात्रियों को खाने के पैकिट भी सौपे।
  • पदयात्रा के दौरान सड़क पर नजारा एक दम अदभुत तथा दूर दूर तक लंबी कतार में चलते पदयात्री
  • बृज भूमि पर अनूठा था स्वागत का अंदाज उत्तरीय एवं पीताम्बर पहनाकर किया स्वागत
  • पदयात्रा शुरू करने से पहले उड़ीसा की कलाकार डॉली बहन ने जनादेश जिन्दाबाद गीत गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
  • पदयात्रा में सबसे आगे कावेरी ग्रुप के कलाकार अपनी पांरपरिक वेशभूषा में पारंपरिक वादय यंत्र बजाते चल रहे थे।
  • पदयात्रा के दौरान चंबल नदी समूह में लंगुरिया लोकगीत पर आधारित जनादेश गीत उत्साह पूर्वक गाया जा रहा था।
  • पदयात्रा में चल रहे महात्मा रामसिया सरकार बाली बाबा नंगे पांव व्रत करते हुए चल रहे है।

उल्लेखनीय है कि भूमि सुधार एवं आजीविका के अधिकारों को लेकर एकता परिषद के नेतृत्व में देशभर के 25 हजार लोगों ने ग्वालियर से दिल्ली तक की पदयात्रा गांधी जयंती  के दिन ग्वालियर से शुरू की है। सभी पदयात्री पदयात्रा के चौदहवे दिन आज सोमवार को सलेमपुर फरेह से सुबह आठ बजे अगले पड़ाव बरारी के लिये रवाना हुए। पदयात्री दल जैसे ही प्रेमसुख दास इंटर कॉलेज फरेह के पास से गुजरा मुरारी लाल शर्मा, रामकुमार शर्मा, लक्ष्मण पवार, संग्राम भाई , हेमा एक्का के नेतृत्व में  सैकड़ो छात्र छात्राओं ने नारे लगाकर एवं फूल वरसा कर पदयात्रियों का स्वागत किया। इसी प्रकार पं.दीनदयाल उपाध्याय कन्या इंटर कॉलेज की छात्राओं ने पदयात्रियों का स्वागत कर जनादेश सत्याग्रह की सफलता की कामना की।
पदयात्रा के महुअन गांव पहुचने पर ग्राम प्रधान खेमसिह के नेतृत्व में सोवरन सिंह, पं. कृष्णस्वरूप शास्त्री, प्रताप सिंह, विजय, कम्मोदी बाई आदि ने पदयात्रियों पर पुष्पा बर्षा की एवं यात्रा में चल रहे मेहमानों का माल्यार्पण किया इसी प्रकार ग्राम मकदूम फरेह में ग्राम प्रधान मोतीराम हाकिम सिंह आदि ने पदयात्रियों को स्वागत कर तीन बोरी अनाज भेंज किया। इससे आगे पदयात्री दल जब बरारी गांव पहुंचा तो व्ही.पी.एस. पब्लिक स्कूल के पास लगभग 800 छात्र छात्राओं ने पंक्तिबध्द खड़े होकर पदयात्रियों पर पुष्प बर्षा कर एवं उन्हे तिलक लगाकर स्वागत किया।

खूबियों से भरा है उड़ीसा कलामंच
मथुरा/15 अक्टूबर - जनादेश के साथ अपनी कला विखेरना उड़ीसा का कला मंच अनेको खूबियों भरा है। कला मंच के साथी जनादेश के उददेश्यों को नाटय एवं नृत्य नाटिका द्वारा लोगों को जागरूक भी करते है और सत्याग्रहियों का मनोरजन भी करते है। जनादेश की तैयारी के समय भी एक बर्ष तक उड़ीसा कला मंच के साथियों ने कई जिले के गांव में जाकर सत्याग्रहियों को जागरूक किया है। कलामंच सामाजिक ढंग से प्रस्तुत करता  है।
कला मंच द्वारा गाये गीतो में आदिवासी व समाज के गरीब तबके पर हुए अत्याचारों की मार्मिक गाथा होती है। जो सभी को सोचने पर मजबूर कर देती है। कला मंच के साथी जिरूइया, प्रमोद, मुण्डा, आलोक नेहरा, प्रजन्ना पटनायक, एवं डौली। अनीता ने बताया कि उनका समूह वंचितों के हक की लड़ाई में समर्पित है। कला समूह की समन्वयक डॉली बहन ने बताया कि कलामंच ने सत्याग्रही की भावनाओं का समझा है हम उनकी लड़ाई में साथ है। जनादेश में हम ग्वालियर से दिल्ली तक पदयात्रा करते हुए जाऐगें। डॉली बहन ने बताया कि उनके दल में बारह सदस्य है सभी सदस्य सत्याग्रहियों का मनोरंजन करते हुए वंचितों को अधिकार दिलाने के लिये संकल्पित है।

आदिवासियों के साथ मारपीट

शिवपुरी। जनपद शिवपुरी की ग्राम पंचायत ठाटी के ग्राम मजरा मिलनपुरा में वन अमले ने आदिवासियों के साथ मारपीट कर दी। यही नहीं वन कर्मचारियों ने झोपड़ियों से सामान बाहर फेंक दिया। इसके बाद से आदिवासी भयभीत हैं। इस मामले में एकता परिषद ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। एकता परिषद के राजेश ने बताया कि मजरा मिलनपुरा में 150 आदिवासी निवासरत हैं। वनकर्मी गोकुल, अंगद और उनके साथियों ने गांव के आदिवासियों को झोपड़ी हटाने को कहा। जब आदिवासियों ने झोपड़ियां नहीं हटाईं तो तैश में आकर वनकर्मियों ने मिलनपुरा के ज्ञानी आदिवासी, अमर आदिवासी , भारत आदिवासी, लक्ष्छी आदिवासी, लक्ष्मण आदिवासी और मातादीन आदिवासी सहित करीब एक दर्जन आदिवासियों की मारपीट कर दी। इसके बाद वनकर्मियों ने झोपड़ी से सामान बाहर फेंक दिया। साथ ही झोपड़ी खाली नहीं करने पर आग लगाने की धमकी दी।
कट्टा के साथ पकड़ा
शिवपुरी। खनियाधाना थाना क्षेत्र में पुलिस ने एक युवक को 315 बोर के कट्टा और दो राउण्ड के साथ गिरफ्तार किया है। युवक किसी वारदात की नीयत से सिनावली रोड पर घूम रहा था। जानकारी के अनुसार पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि एक युवक सिनावली रोड पर वारदात की नीयत से 315 बोर का कट्टा और कारतूस के साथ घूम रहा है। पुलिस ने मुखबिर के बताए स्थान पर दबिश देकर अजय पुत्र अमरत लोधी(22)निवासी कंचनपुर को कट्टा और दो कारतूस के साथ गिरफ्तार कर लिया।

ताज की नगरी में कदम कदम स्वागत से अभिभूत हुए पदयात्री

  • एकता परिषद के सत्याग्रह पदयात्रा का हुआ आत्मीय स्वागत
  • स्कूली छात्रों ने सत्याग्रहियों को दिये ब्रेड के पैकिट, पानी पाउच एवं आर्थिक मदद

आगरा/12 अक्टूबर/ – शहर में होकर आज निकली एकता परिषद की सत्याग्रह पदयात्रा का आज शहर में कदम कदम पर स्वागत किया गया। सत्याग्रह के स्वागत के लिये उमड़े नागरिक जन प्रतिनिधि समाज सेवी एवं छात्र छात्राओं ने पदयात्रियों को खाने के पैकिट, विस्कुट, ब्रेड एवं पानी के पाउच दिये वही सेन्ट पॉल एवं स्वीन विक्टोरिया सेन्ट कॉनरेड इन्टर कॉलेज के नन्हे छात्र छात्राओं ने झण्डे हिलाकर पदयात्रियों का अभिनन्दन कर उन्हे आर्थिक सहायता भी प्रदान की। शहर में सत्याग्रह को मिले व्यापक सहयोग एवं समर्थन से पदयात्री जहां अभिभूत थे। वही मंजिल की ओर बढ़ते इन मुसाफिरों के हौसले काफी बुलंद थे।
वंचितों के आजीविका के अधिकारों के लिये गांधी जंयती के दिन ग्वालियर से दिल्ली तक शुरू हुई एकता परिषद की सत्याग्रह पदयात्रा के दसवे दिन आज सुबह सभी 25 हजार यात्री पूरे हौसले के साथ अपने गोपालपुरा के पड़ाव से अगले पड़ाव सिकंदरा के लये रवाना हुआ। शहर के भीतर प्रवेश कर सभी पदयात्री उत्साह के साथ नारे लगाते हुए पंक्तिबंध्द होकर चल रहे थे। यात्रा में सबसे आगे बौध्द भिक्षु एवं कलामंच का जत्था पूर्ववत चल रहा था। सत्याग्रहियों के लंबे काफिले को अनुशासित ढंग से चलते देख सभी चमत्कृत हुए बगैर नही रह सके। सड़क पर अनुशासित ढंग से चलते पदयात्रियों के लंबे काफिले को देख सड़क पर चलते राहगीर एवं वाहनो के पहिये ठिठक कर रूक गये। सत्याग्रहियों की यात्रा जैसे ही आर्मी चौराहे पर पहुचीं तो बेघरवार समिति नौलखा की गुंजन चौहान, सतीश मिश्रा रज्जो, ऊषा, रमेश, प्रकाश, डॉ. कौशल आदि ने पदयात्रियों पुष्प बर्षा कर स्वागत किया तथा सत्याग्रह को समर्थन देने की घोषणा की। यात्रा का सदर थाना के सामने कांता देवी, रसूलन बेगम, इस्माइल खां, संजय, सोनम खिरवार, जितेन्द्र शर्मा, बौ सुरेन्द्र शर्मा, हरिओम, मुन्नालाल जैन आदि ने पदयात्रियों का तिलक कर सत्याग्रह की सफलता की कामना की । इसी प्रकार शहीद भवन पर डॉ. आर.एन. शर्मा, प्रो, जगदीश दीक्षित, डाू. योगेन्द्र शर्मा, सुशीला ओमवती, डॉ. अजय शर्मा एवं प्रताप पुरा चौराहे पर चर्च ऑॅफ नॉर्थ इंडिया तथा सोशल सर्विस डायोसिस ऑफ आगरा की ओर से दीपक सिंह, आर्सल लूथर, बी. एस, ऊदल सिंह, इला सिंह, सोमवीर, शुक्ला, राम ढकेली, आदि ने सत्याग्रहियों पर पुष्प बर्षा कर स्वागत किया। इससे पूर्व प्रताप पुरा चौराहे पर सत्याग्रह के नेता पी.व्ही. राजगोपाल ने महत्मा गांधी प्रतिमा की सफाई कर, माल्यार्पण किया। यहीं जनादेश समन्वयक समिति की अध्यक्ष श्रीमती मनोरमा , गिरिजा शंकर, एस.आर, हॉस्पीटल के संचालक डॉ, योगेन्द्र शर्मा एवं प्रबंध संचालक राजेन्द्र बंसल ने सत्याग्रह के नेता राजगोपाल एवं विदेशी मेहमानो को पुष्पाहार पहनाकर तथा पदयात्रियों पर पुष्पवर्षा स्वागत किया। सत्याग्रह पदयात्रियों के लिये कलेक्टरी चौराहे  पर समाज वादी पार्टी के शहर अध्यक्ष शहसुददीन ने अपने साथी नाहर सिंह, दिनेश कुमार,  गुहार, अरविन्द गुहार, अभिनेन्द्र यादव, नीलम गुप्ता, विमी सक्सैना, प्रमोद जादौन, सुरेश प्रजापति, उसमान आगाई, विजयरानी योगेन्द्र चौहान आदि ने स्वागत कर आन्दोलन के  मुददों का हर संभव समर्थन करने का भरोषा सत्याग्रह के नेताओं की दिलाया।
इसी प्रकार डाकरान चौराहे पर होटल एवं रेस्टोरेन्ट एसोशिसन की आरे से सत्याग्रहियों को जलपान कराया। एसोशियेशन के अध्यक्ष राकेश चौहान सचिव संजीव जैन, राजीव तिवारी, नंदू गुप्ता, भरत अग्रवाल, श्रीमती सुमित्रा अग्रवाल ने अपने सैकड़ो साथियों सहित पदयात्रियों का पुष्पाहार पहनाकर एवं फूल बरसा कर स्वागत किया। यहां आयोजित स्वागत समारोह के जबाब में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी. व्ही. राजगोपाल ने कहा कि अपने अधिकारों की मांग के लेकर पदयात्रा पर निकले लोगों का सम्मान गरीब एवं वंचित वर्ग क सम्मान है। गरीबों के सम्मान की यह पहली घटना है। उन्होने वंचित वर्ग को सम्मान देकर सत्याग्रहियों का हौसला बढ़ाने के लिये सभी को धन्यवाद दिया। स्वागत समारोह में प्रसिध्द गांधीवादी चिंतंक डॉ.एस.एन.सुब्बाराव ने कहा कि एकता परिषद द्वारा शुरू किये गये अहिसंक सत्याग्रह को निश्चित तौर पर सफलत मिलेगी। देश की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिये राजगोपाल ने देश की सरकारो ंको गांधीवाद की राहा दिखाई है। उससे सभी समस्याओं का हल सम्भव है। उन्होने कहा कि यदि देश में गरीब एवं वंचितों को उनके अधिकार नही दिये गये तथा बढ़ते हुये अन्यायो नही रोका गया तो देश में हिंसा एवं नक्शलबाद जैसी समस्यायें सर उठायेंगी। इसलिये सरकार को चाहिये कि वह सत्याग्रह के मुददो पर गम्भीरता से विचार कर उनका तेजी से समाधान करे।
श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी ने दिया सत्याग्रहियो को स्वल्पाहार।
आगरा/ धाकरान चौराहे से आगे बढ़ने पर सत्याग्रहियो को श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी की ओर से स्वल्पाहार के रूप में पैंठा एवं नमकीन के पैकिट वितरित किये गये। सत्याग्रहियों ने कमेटी द्वारा वितरित आगरे की प्रसिध्द मिठाई का जमकर स्वाद लिया कमेटी की ओर से सत्याग्रहियों के जलपान की व्यवस्था भी की गई। बजाजा कमेटी के सुरेश चन्द्र अग्रवाल महामंत्री अशोक गोयल राकेश एवं अशोक बंसल ने अपने सैकड़ो साथियों के साथ सभी का पुष्प बर्षा कर स्वागत किया।
सत्याग्रहियो के स्वागत के लिये पहुचें गोपालदास नीरज
आगरा/ सत्याग्रहियों के स्वागत में जहां सारा आगरा पलके विछाये रहा वही सत्याग्रहियों के स्वागत व हौसला बढ़ाने के लिए हिन्दी के प्रसिध्द गीतकार गोपालदास नीरज भी उपस्थित रहे। सत्याग्रहियों का काफिला जब आगरा के शहर के बीचो बीच पहुंचा तब गोपालदास नीरज अस्वस्थ होने के बावजूद पदयात्रियों, डॉ. सुब्बाराव एवं पी.व्ही. राजगोपाल से मिलने पहुचे। उन्होने कहा कि उनकी सहानुभूति वंचितों के प्रति है इस हक की लड़ाई में हम सब साथ है
अधिकारी की टिप्पणी गुजरी नागवार
आगरा/ एकता परिषद के अहिसंक सत्याग्रह जनादेश 2007 की जहां देश भर में लगभग एक बर्ष से अधिक समय से तैयारियां चल रही थी तथा इसके मुददों पर अब केन्द्र सरकार भी गम्भीरता से विचार करने को मजबूर है वहीं दुनियाभर की विशालतम पदयात्रा एवं उसके उददेश्यो से आज स्थानीय प्रशासन अनजान नजर आया। यही बजह रही कि हजारों की संख्या में निकले पदयात्रियों को शहर के भीतर ट्रेफिक पार करने में काफी दिक्कत आई। हालांकि पुलिस ने इस सम्बन्ध में सहयोग करने के प्रयास किये। लेकिन ये प्रयास रैली की विशालता को देखते हुये ना काफी थे। इस कारण ट्रेफिक व्यवस्था बनाने में एकता परिषद के कार्यकर्ताओं को भी जुटना पड़ा। तब कही सत्याग्रही सुरक्षित ढंग से अपने पड़ाव पर पहुचं सका। शहर से रैली निकलते समय वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी की अशोभनीय टिप्पणी तथा सत्याग्रह के सम्बन्ध में किये जा रहे बेतुके प्रश्नो से सत्याग्रही काफी आहत नजर आये। जानकारी के मुताविक शहर के ए.डी.एम राजीव रोहतेला  ने रैली निकलते समय सत्याग्रहियो को जाहिल तक करार दिया जो वहां उपस्थित एकता परिषद कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरा ं। कार्यकर्ताओं ने उन्हे समझाने की कोशिश भी की लेकिन वे अपने तथ्यहीन तर्को पर अन्त तक अडिग रहे। एकता परिषद कार्यकर्ता बाद में वहां से गांधीवाद के उसूलो का पालन करते हुये वहां से आगे बढ़ गये। 
सत्याग्रहियों को बांटे कम्बल
रात के समय सर्दी बढ़ने से परेशान सत्याग्रहियों को आज डिफेंन्स स्टेट युवा ऐसोसियेसन की ओर से दो सौ कम्बल उपलब्ध कराये। डिफेन्स स्टेट यूथ ऐसो. के संजय सचदेव, पंकज बंसल, एवं विनोद सत्याग्रहियों को कम्बल देते हुये कहा कि यह उनका फर्ज है कि वे अपने शहर में आये सत्याग्रहियो की परेशानियों का ख्याल रखे।

मर नहीं सकती भारतीय संविधान की आत्‍मा- आरसी लोहाटी

राष्‍ट्र का निर्माण संकल्‍प और श्रद्धा से संभव है - भय्यू जी महाराज : भारतीय ज्ञानपीठ, उज्‍जैन का वार्षिक प्रतिष्‍ठा शुरू : भारतीय ज्ञानपीठ उज्जैन द्वारा पदमभूषण डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन की स्मृति में आयोजित आठवीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला का शुभारंभ 24 नवम्बर 2010 बुधवार को भारतीय ज्ञानपीठ माधवनगर रेलवे स्टेशन के सामने उज्जैन में राष्ट्रीय संत पूज्यश्री भय्यू जी महाराज संस्थापक श्री सद्गुरू आश्रम धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट इंदौर के ‘भारत के विकास पर भ्रष्टाचार का प्रभाव’ विषय उद्बोधन से हुआ। दिनांक 25 नवम्बर को देश के ख्यात न्यायविद् देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति माननीय श्री आर.सी. लाहेटी का व्याख्यान हुआ। श्री लाहोटी ने नगर के प्रबुद्ध वर्ग को भारतीय संविधान की आत्मा और आम आदमी विषय पर संबोधित किया। यह आयोजन 30 नवम्बर तक चलेगा। उज्जैन के भारतीय ज्ञानपीठ परिसर में आठ वर्षों से हो रहे सद्भावना व्याख्यानमाला में देश के प्रबुद्ध और बुद्धिजीवी वक्ताओं ने अपने ज्ञान और विचारों से श्रोताओं को बोद्धिक रूप से तृप्त किया है और उनके मन में उठ रहे सवालों, उलझनों को सुलझाने का प्रयास किया है। इस व्याख्यानमाला में देश के श्रेष्ठ विचारकों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रीयों, न्यायविदों, गांधीवादियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के विचारों का लाभ सुधि श्रोतोओं को प्राप्त होता है। व्याख्यानमाला में आये प्रबुद्ध वक्ताओं के विचारों को समेट कर एक स्मारिका के रूप में भी प्रकाशन किया जाता है। उज्जैन शहर में व्याख्यानमाला की हलचल दिखाई दे रही हैं।
30 नवम्बर तक चलने वाली व्याख्यानमाला में देश के विभिन्न क्षेत्रों के ख्यातनाम लोगों के उदबोधन होंगे, जिसमें स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, संस्थापक हिन्दू-मुस्लिम एकता समिति, लखनऊ (उ.प्र.) विषय- धार्मिक कट्टरता एवं आतंकवाद, अब्दुल रशीद शाहीन, पूर्व सांसद बारामूला (जम्मू कश्मीर) विषय- धार्मिक सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सौहार्द, श्रीमती शाहिस्ता अम्बर, लखनऊ (उ.प्र.) अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन्स पर्सनल लॉ बोर्ड, विषय- 'महिलाओं के विकास में जनआन्दोलनों की भूमिका',  डॉ. आर्यभूषण भारद्वाज, अध्यक्ष गांधी इन एक्शन (दिल्ली), विषय- 'गांधी की जरूरत क्यों?', श्री पी.वी. राजगोपाल, अध्यक्ष, एकता परिषद (दिल्ली), विषय- 'भारत के विकास में जनआंदोलनों की भूमिका', राजेश बादल, कार्यकारी निर्देशक राज्य सभा चैनल, नई दिल्ली, विषय- 'एशिया के विकास में मीडिया की भूमिका', श्री सुनील गुप्ता, उपाध्यक्ष समाजवादी जनपरिषद होशंगाबाद (म.प्र.), विषय- '21 वीं सदी का भारत' , प्रो. श्री सुदर्शन आयंगर, कुलपति, गुजरात विद्यापीठ, (अहमदाबाद), विषय - 'जनप्रतिनिधियों का आचरण एवं भारतीय लोकतंत्र का भविष्य', प्रो. धन्नजय वर्मा, पूर्व कुलपति, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, विषय- 'राजनीति का अपराधीकरण' शामिल है.
विगत 8 वर्षों में इस व्याख्यानमाला में देश भर से कई ख्यात व्यक्तित्व शामिल हुए है। जिन्होंने अपने अनुभवों को इस व्याख्यानमाला में बांटा है। इस व्याख्यान माला में कई राज्यों के महामहिम राज्यपाल, ख्यात न्यायविद्, प्रसिद्ध समाजसेवी, गांधीवादी विचारक, विश्वविद्यालयों के कुलपति, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी शामिल हो चुके हैं। जिनमें प्रमुख रूप से न्यामूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे (राज्यपाल हिमाचल प्रदेश ), न्यायमूर्ति निसार अहमद  (म.प्र. एवं छ.ग. के विद्या लोकपाल), न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला (अध्यक्ष, मानव अधिकार आयोग, मध्यप्रदेश ), न्यायमूर्ति डी.एम. धर्माधिकारी (अध्यक्ष, मानव अधिकार आयोग, मध्यप्रदेश ), न्यायमूर्ति नारायणसिंह आजाद, न्यायमूर्ति शशिमोहन श्रीवास्तव, प्रसिद्ध एडवोकेट आनन्दमोहन माथुर, सतीश चंद्र अग्रवाल (आयकर आयुक्त उज्जैन), गांधीवादी स्व. डॉ. निर्मला देशपाण्डे, एस.एन.सुब्बाराव, तुषार गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा, समाजसेवी मेघा पाटकर, राजेन्द्र सिंह जी, जयपुर (जल क्रांति मेगासेसे पुरूस्कृत), स्वामी अग्निवेश, पी.वी. राजगोपाल, नई दिल्ली, शोभना रानाडे, पुणे, सुश्री सुभदा जहांगीरदार, मुम्बई, डॉ. सईदा हमीद ( सदस्य योजना आयोग, भारत सरकार ), डॉ. सुरेश खेरनार, मुम्बई, गोविंदाचार्य जी, रघु ठाकुर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री महावीर प्रसाद, पूर्व केन्द्रीय श्रम मंत्री डॉ. सत्यनारायण जटिया, कैलाशनारायण जी सारंग, बालकवि बैरागी, सनत भाई मेहता (पूर्व वित्त मंत्री गुजराज), पारस जैन, खाद्य मंत्री मध्यप्रदेश, एल.वी. सप्त़ऋषि (पूर्व महानिदेशक कपार्ट), साहित्यकार डॉ. महीपसिंह, प्रो. सरोजकुमार, डॉ. कमलेश दत्त त्रिपाठी, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, प्रो. चन्द्रकान्त देवताले, ध्रुव शुक्ल, प्रो. रजिया पटेल,  प्रो. इम्तिहाज एहमद, जे.एन.यू. दिल्ली, डॉ. जेड.ए. निजामी, दिल्ली, डॉ. मधुपूर्णिमा कीश्वर, हरिदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार इण्डियन एक्सप्रेस, पत्रकार रोमेश जोशी, विश्वविद्यालयों के कुलपति में डॉ. शिवकुमार श्रीवास्तव (पूर्व कुलपति सागर), डॉ. भरत छपरवाल (पूर्व कुलपति इंदौर), मोहन गुप्त (कुलपति पाणिनी विश्वविद्यालय, उज्जैन), ए.ए. अब्बासी (पूर्व कुलपति, इंदौर), वरिष्ठ पत्रकार अच्चुतानन्द मिश्र (पूर्व कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल), प्रो. रामराजेश मिश्र ( पूर्व कुलपति, उज्जैन) शामिल हैं.
इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए भय्यूजी महाराज ने कहा कि राष्ट्र का निर्माण सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं से ही संभव नहीं है, बल्कि लोहाटीराष्ट्र का वास्तविक निर्माण संकल्प और श्रद्धा के माध्यम से ही होता है। संकल्प को चुनौतियों से आगे ले जाकर संघर्षों से जीत कर उन्हें साकार करना ही सच्चा जीवन है। भारत के विकास का मार्ग भ्रष्टाचार से न होकर संवेदना से गुजरता है। भ्रष्टाचार एक आदत है जिसे छोड़ा जा सकता है, किन्तु स्वभाव को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। इस देश का स्वभाव संवेदना है। संस्कृति संस्कारों से उत्पन्न होती है। अन्न के अभाव में तो मानव की मृत्यु होती है किन्तु संस्कारों के अभाव से मानवता की ही मृत्यु हो जाती है। आज संबन्धों का आधार भी “अर्थ” हो गया है। जब समाज में ऐसा दौर आता है तो यह अनर्थ का प्रतीक होता है। समाज में वृद्धाश्रमों और अनाथालयों की बढ़ती संख्या उस छूरे को प्रदर्शित कर रही है, जो हमारे समाज की पीठ में घुसा हुआ है।
श्री भय्यूजी महाराज ने कहा कि विकास का जनक आदर्श होता है, आदर्श हमें संस्कारों से मिलते है और संस्कार माता से प्राप्त होते है। आज दोहरे चरित्र के व्यक्ति समाज को दूषित कर रहे है। हम लोग कॉमनवेल्थ घोटाले पर घंटों चर्चा कर लेते हैं, किन्तु उस घटना के प्रति हमारा ध्यान नहीं जाता जब 157 लोगों को बंधकों से छुड़वाने के लिये राष्ट्र का स्वाभिमान गिरवी रख दिया गया हो। एक दर्जन व्यक्ति को समाप्त करने के लिये भगवान जन्म लेते हैं, किन्तु कई कुरीतियों को समाप्त करने के लिये सिर्फ और सिर्फ संस्कार ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। जिस देश में महात्मा गांधी ने बेरिस्टर का कोट त्याग कर सिर्फ धोती के बल पर सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया, उसी देश में अब हम लोगों को प्रभावित करने के लिये सूट-बूट और अंग्रेजी का सहयोग लेते है।
समारोह की विशिष्ट वक्ता प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक सुश्री वेदेही पाण्डा ने 'स्त्री शक्ति जागरण- देश की महती आवश्यकता' विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि पिता आचार्य से 100 गुना अधिक बड़ा होता है एवं माता, पिता से भी 1000 गुना बड़ी होती है। नारी का अलंकार ममता, त्याग, वात्सल्य में समाहित होता है। आज यदि विवाह में पढ़े जाने वाले श्लोकों के अर्थों को भी जीवन में उतारा जाये तो जीवन सफल और सार्थक हो जाता है क्योंकि इन श्लोकों के अर्थ बहुत व्यापक होते हैं। आज समाज से अतिथि देवो भवः की भावना का लोप हो रहा है। यदि हम सच्‍चे, सफल और सुदृढ राष्ट्र का निर्माण करना चाहते है तो नारी सशक्तिकरण होना अत्यंत आवश्यक है। जिस देश की नारी शिक्षित और समाज में सम्मानित होती है वह देश निरन्तर प्रगति के पथ पर गतिमान रहता है।
इस अवसर पर देवास की महापौर रेखा वर्मा विशेष रूप से उपस्थित थी। संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल जी कुलश्रेष्ठ एवं समिति के सदस्यों द्वारा अतिथियों का शॉल व श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया। विद्यालयीन शिक्षिकाओं श्रीमती अपर्णा निरगुडकर, प्रो. नम्रता भवालकर, श्रीमती प्रिया आचार्य, श्रीमती चौरसिया ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। सद्भावना व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष भी अवंतिलाल जैन, अमृत लाल जी जैन, डॉ. पुष्पा चौरसिया, प्राचार्या श्रीमती सुनीता खोलकुटे, प्रदीप जी जैन, के.पी. सेठिया, ब्रजेन्द्र द्विवेदी, बी.के. शर्मा आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर रामचन्द्र भार्गव, पूर्व महापौर मदनलाल ललावत, आनन्दमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ, अशोक वक्त सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। प्रारंभ में इस शुभ अवसर पर सभी धर्माचार्य, शहर काजी खलिलुर्रहमान, ज्ञानी चरणसिंह गिल, पण्डित राजेन्द्र जैन, महन्त पारसनाथ, श्रीमती रोजमेरी जोसफ आदि ने सद्भावना दीप प्रज्वलित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. नीलम महाडिक ने किया तथा आभार अवन्तिलाल जी जैन ने किया।
दूसरे दिन लोगों को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधिपति न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी ने कहा कि भारतीय संविधान की आधारशिला आम व्यक्ति पर आधारित है और उसी के प्रति समर्पित है। अतः इसके अजर और अमर रहने में कोई संदेह नही हैं, यह बात अलग है उज्‍जैनकि जिस प्रकार सभी क्षेत्रों में गिरावट आई है, इसी तरह कुछ गिरावट न्याय पालिका में भी आई है फिर भी आज की न्यायपालिका अपने कर्तव्‍य का उचित पालन कर रही है व देश की जनता न्यायपालिका के प्रति आशा भरी नजरों से देख रही है। अशिक्षा, अज्ञान और अभाव के चलते स्वतन्त्रता का मूल्य नहीं समझा जा सकता है। एक प्रकार से हमने अपने मूल्यों के साथ समझौता कर लिया है। समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आलम यह है कि भ्रष्ट देशों के सूची में 86 नम्बर पर हम पहुँच गये हैं। हमारा असीम धन स्वीस बैंकों में जमा है। अगर वह धन आता है तो हमारा देश वापस समृद्धि के शिखर पर पहुँच जाएगा। इधर इतनी बड़ी आबादी वाले इस देश में मताधिकार का प्रयोग भी 50 प्रतिशत तक ही हो पाता है। गांधीजी के द्वारा रचित मानव मूल्यों की शपथ लेकर देश के नेता उस गद्दी तक पहुँच गये है जहां जाने की चाह महात्मा गांधीजी ने कभी नही की। इस देश को सच्चे अर्थों में समझने के लिये इसके गाँवों का साक्षात्कार होना आवश्यक है। हमारा संविधान भले ही समता की चर्चा करता हो किन्तु हकीकत यह है कि गरीब और अमीर के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। यह देश के लिये घातक है ।
'भारतीयं संविधान की आत्मा एवं आम आदमी'  विषय पर श्री लाहोटी ने कहा कि एक राष्ट्र के निर्माण के लिये शताब्दियां गुजर जाती हैं, किन्तु उसका विध्वंस करने में एक क्षण ही लगता है। हमारे संविधान का प्रारूप तैयार करने में 2 वर्ष 11 माह व 17 दिन लगे थे, बहुत ही सूक्ष्मता से इसका सृजन किया गया है और इसीलिये यह विश्व का उत्कृष्ट संविधान है। भारतीय संविधान की आत्मा इस संविधान की उद्देश्यिका में बसती है, प्रत्येक व्यक्ति को इसका वाचन कर विश्लेषण करना चाहिए।
व्याख्यानमाला के विशिष्ट वक्ता मध्यप्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता आनन्द मोहन माथुर ने 'भारतीय संविधान और हमारे कर्तव्‍य' विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि कई ऐसे कर्त्तव्य हैं जिनका अनुपालन बहुत आवश्यक है। आज हमने समय का सम्मान करना छोड़ दिया है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। इसके भयावह परिणाम के बारे में हम बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहे हैं। एक माता का परम कर्तव्‍य है कि वे अपनी संतान को उचित संस्कार प्रदान करें। उसे उस योग्य बनाए कि वह अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सके। किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज शिक्षा इतनी अधिक मंहगी हो जाएगी। आवश्यकता इस बात की थी कि हम महात्मा गांधीजी के आदर्शो को जीवन में आत्मसात करें, किन्तु हमने महज उनके पुतलों पर पुष्पमाला पहनाने भर से इतिश्री कर ली।
समारोह को माननीय न्यायमूर्ति एन.के मोदी ने भी सम्बोधित किया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीश कुमार शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अतिथि स्वाग अमृतलालजी जैन, इन्टरनेशनल लॉ एसोसिएशन के सचिव सुरेश जैन, पुष्कर बाहेती, डॉ. पुष्पा चौरसिया, रशीदउद्दीन, अशोक जैन, रामकिशोर गुप्ता, आनन्द मुगल, विमल गर्ग, कवि आंनन्द,  हाजीशेख मोहम्मद ने किया। स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। इस अवसर पर सभी अतिथियों का शॉल व श्रीफल से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन एडवोकेट कैलाश विजयवर्गीय तथा आभार सद्भावना व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष अवंतिलालजी जैन ने व्‍यक्‍त किया।
उज्‍जैन से संदीप कुलश्रेष्‍ठ की रिपोर्ट

आदिवासी समाज के विकास के लिए शिक्षा के साथ कौशल विकास की जरूरत : श्री दत्त

आदिवासी समाज का विकास : अवसर और चुनौतियां' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन

रायपुर, 1 दिसम्बर 2010
 
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री शेखर दत्त आज यहां रायपुर जिले के तिल्दा में एकता परिषद तथा भारत शासन के योजना आयोग के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित 'आदिवासी समाज का विकास : अवसर और चुनौतियां' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों के विकास के लिए उन्हें शिक्षित करने के साथ-साथ उनमें कौशल बढ़ाने की जरूरत है, जिससे वे अपनी रचनात्मकता और सामर्थ्य को बढ़ाकर अपने संसाधनों को विस्तार दे सकें। इसके लिए आदिवासी क्षेत्रों में खनिज, वनोपज, वनौषधियों तथा कृषि जैसे संसाधनों के वैल्यू एडीशन बढ़ाने की जरूरत है, जिससे उत्पादित होने वाले उपजों का मूल्य बढ़ाया जा सकें, उनका बेहतर तरीके से उपयोग कर अधिक मूल्यवान उत्पाद बनाया जा सकें और उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सके। 
    इस अवसर पर योजना आयोग के सदस्यगण डॉ. सईदा हामिद और श्री नरेन्द्र जाधव के साथ-साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोग भी उपस्थित थे। राज्यपाल ने आगे कहा कि हमें ऐसे विकास की जरूरत है जिसमें सभी वर्गों का विकास हो और सभी का हित हो सके। किसी की हार और किसी की जीत की भावना नहीं हो तथा जो सभी के 'जीत-जीत' के परिणाम के रूप में सामने आये। उन्होंने कहा व्यक्तियों के हितों और स्वार्थों के बीच संघर्ष होता है, लेकिन सामान्य रूप से एक और सब काला और दूसरी ओर सब सफेद जैसी स्थिति नहीं होती। सच्चाई सामान्यत: इनके बीच में होती है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि कौन सी स्थिति या बात सभी के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
    राज्यपाल ने कहा कि जिस तरह पश्चिमी देशों ने 'बार्बी डाल' बनाकर पूरी दुनिया के बच्चों के बाजार में उसे प्रस्तुत किया है। उसी तरह हमारे क्षेत्रों में भी वनोपज और वनौषधियां अनेक विशिष्ट विशेषता लिए हुए हैं उन पर खोज करते हुए उनकी गुणों और विशेषताओं की जानकारी से सभी लोगों को अवगत कराने की जरूरत है जिससे यहां के उत्पाद को अच्छा मूल्य तथा बाजार मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि वातावरण और प्रकृति के अनुसार औषधीय पौधों के गुणों का विकास होता है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां उत्पादित होने वाली अनेक कृषि उपजों जैसे कट्हल, टमाटर, चिरौंजी, शहद को फूड प्रोसेसिंग आदि माध्यमों से उन्हें आदिवासियों और किसानों के हित में अधिक मूल्यवान बनाया जा सकता है। इस कार्य में जागरूकता लाने तथा लोगों को शिक्षित तथा कौशल बढ़ाने के लिए शासन के साथ-साथ स्वयंसेवी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    राज्यपाल ने यह भी कहा कि प्राथमिक क्षेत्र के बाद द्वितीयक क्षेत्र के रूप में औद्योगिक निर्माण और औद्योगिक सामग्रियों का स्थान आता है। अगर हम अपने जीवन और अपने समीप में उपयोग किए जा रहे सामग्रियों को देखें तो पाते हैं कि इनमें से अधिकांश सामग्री मशीनों से बनाई जाती है, लेकिन इनमें से अधिकांश ऐसी सामग्री हैं जो हमारे तिल्दा, रायपुर और छत्तीसगढ़ में भी आसानी से बनाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा जीवन में उद्योगों का भी अपना भी एक महत्व है और समग्र रूप से उद्योगों का विरोध करके पूरे समाज को अभिशाप नहीं दिया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने यहां लोगों को सामग्री उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित करें इससे क्षेत्र के विकास के साथ-साथ लोगों की आय भी बढ़ सकेंगे।
राज्यपाल ने कहा विकास के लिए अच्छे से अच्छे योजना बनाने, समस्याओं पर बेहतर तरीके से अपनी समझ बढ़ाने और समस्याओं को दूर करने की चाहत बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि वंचित लोगों के उत्थान और विकास को सोचकर जब कार्य किया जाता है तो उनके विकास के रास्ते अपने आप निकल आते हैं। उन्होंने कहा वंचितों और विकास की धारा में पीछे रहे लोगों को भाग्य भरोसे नहीं छोड़ जा सकता है बल्कि उनका भाग्य नये सिरे से लिखकर उनकी स्थिति को बेहतर बनाने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा देश के विकास के इस दौर में हर स्तर पर संवाद, संचार एवं सूचना को बनाए रखना भी जरूरी है। उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस सम्मेलन से जो निष्कर्ष आयेंगे, वे काफी सार्थक सिध्द होंगे।
इस अवसर पर श्री राजगोपाल ने कहा कि आदिवासी विकास के लिए उनके व्यापक हितों को ध्यान में रखकर योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हर समाज विशेष की अपनी-अपनी मुख्य धारा है। आदिवासी समाज को उनकी गरिमा एवं संस्कृति को ध्यान में रखकर उनके विकास की योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। एकता परिषद के श्री अमिताभ ने इस सम्मेलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके माध्यम से बारहवीं पंचवर्षीय योजना में जनजातीय लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप योजनाएं तैयार करने के सुझाव दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए आगामी पंचवर्षीय योजना के एप्रोज पेपर के लिए सम्मेलन में अनेक मुद्दे, विश्लेषण और सलाह पर चर्चा हुई है। उन्होंने विभिन्न विषयों पर हुई चर्चा का भी संक्षिप्त विवरण दिया। कार्यक्रम में झारखण्ड के प्रतिनिधि श्री घनश्याम ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास में शांतिपूर्ण वातावरण्ा का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए जरूरी है कि आदिवासियों के हितों एवं जरूरतों को ध्यान में रखकर राष्ट्र हित से जुड़े विकास के कार्यों से महत्व दें। उन्होंने समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति के विकास पर विशेष जोर दिया और कहा कि भारत सरकार के योजना आयोग द्वारा तैयार की जा रही योजनाओं के केन्द्र में आदिवासियों के विकास को विशेष तरजीह दी जानी चाहिए। इस अवसर पर श्री रमेश शर्मा ने भी अपनी बात रखी।

रूपम मामले में बिहार सरकार की धोखाधड़ी

रूपम पाठक के मामले में सीबीआई की जांच को  बिहार सरकार का रवैया यहां की जनता के साथ धोखाधड़ी पूर्ण है। महिला संगठनों के दबाव में बिहार सरकार ने इस केस को सीबीआई के हवाले कर दिया था लेकिन इसका संदर्भ सिर्फ विधायक की हत्या के रूप में सीबीआई को प्रस्तावित किया गया था। यानि सीबीआई सिर्फ इस बात की ही जांच करेगी कि विधायक की हत्या कैसे हुई, किन परिस्थितियों में हुई पत्रकार नवलेश पाठक की इस हत्या में क्या भूमिका है। सीबीआई रूपम पाठक के यौन शोषण की मामले की जांच नहीं करेगी। बिहार सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक यह सीबीआई के जांच के दायरे में नहीं होगा।
बिहार विमेंस नेटवर्क, बिहार लोक अधिकार मंच, एकता परिषद, लोक परिषद आओ बहना, इप्टा, बिहार दलित अधिकार मंच, समर, परिवर्तन जन आंदोलन द्वारा इस मामले में सरकारी चालबाजियों को उजागर करने के लिए 4 फरवरी 2011 पटना में प्रतिरोध मार्च का आयोजन किया गया है। इस मार्च के माध्यम से निम्नलिखित मांगे की जा रही हैं।
रुपम पाठक के प्रति लोगों की सहानुभूति को देखते हुये उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ही इसकी जांच सीबीआई से कराने की पेशकश की थी, हालांकि इसके पहले ही वे पूर्णिया के विधायक राजकिशोर केसरी को एक आदर्श पुरुष की उपाधि दे चुके थे।  बिहार के लोग उस समय उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार पर काफी भड़के हुये थे। दबाव में आकर उन्होंने रूपम मामले की सीबीआई जांच कराने की बात तो उन्होंने कर दी लेकिन टेक्निकल लोचा लगाकर एक शातिर खेल खेल गये।  फिलहाल बिहार में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के इस्तीफे की आवाज बुलंद हो रही है। और बिहार की जनता के साथ जिस तरह से उन्होंने धोखाधड़ी की है उसे लेकर रोष है। नवलेश पाठक अभी भी हिरासत में हैं।

जनसुनवाई कार्यक्रम का आयोजन

कोडरमा, स्वंयेवी संस्था एकता परिषद द्वारा समाहरणालय के समक्ष जमीन संबंधी मामलों को लेकर जनसुनवाई कार्यक्रम का आयोजन किया गया। हालांकि कार्यक्रम में जिलास्तर के एक भी सरकारी पदाधिकारी के भाग नहीं लेने से मामलों पर कोई पहल नहीं हो पाया। कार्यक्रम में फ्रांस से आये प्रतिनिधि जोसेफ एवं क्लिमेंस ग्रामीण क्षेत्रों से आये लोगों की समस्याओं से अवगत हुए। दोनों प्रतिनिधियों ने कहा कि मार्च 2012 में ग्वालियर से दिल्ली तक जन सत्याग्रह आंदोलन में फ्रांस से 500 प्रतिनिधि भाग लेंगे। उन्होंने कहा कि यह सत्याग्रह गरीबों को भूमि तथा पानी के अधिकार दिलाने को लेकर है। वहीं कार्यक्रम में उपस्थित एकता परिषद के दिवाकर तिवारी ने कहा कि कोडरमा में जमीन से संबंधित 2600 मामले आये हैं।
इसमें गरीबों को भू-दान की जमीन, वन अधिकार के तहत मिलने वाली भूमि, वासगीत पर्चा, दबंगों द्वारा गरीबों के जमीन पर कब्जा आदि मामले हैं। अब भी गरीब भूमिहीन हैं, जंगलों में बसने वाले लोगों को भी अधिकार से वंचित रखा गया है। ऐसे लोगों को हरहाल में अधिकार मिलना चाहिए। कार्यक्रम के उपरांत प्रतिनिधियों ने डीसी को मामलों से संबंधित आवेदन समर्पित कर अविलंब पहल की मांग रखी। इस मौके पर राजकुमार पांडेय, गीता देवी, सविता देवी, प्रमिला देवी, महादेव यादव, जमाल उद्दीन, रीना जायसवाल, संजय सिंह, रामेश्वर दास आदि उपस्थित थे।

लक्ष्‍मी नारायण को माजा कोयने पत्रकारिता पुरस्‍कार

: ललित शर्मा, ए विनोद, प्रो. पॉल, नान्‍हू सिंह भी पुरस्‍कृत : डिण्डौरी जिले के पत्रकार लक्ष्मी नारायण अवधिया को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के माजा कोयने पत्रकारिता पुरस्‍कार से सम्मानित किया गया। लक्ष्मी नारायण अवधिया को यह पुरूस्कार ग्रामीण क्षेत्र में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए दिया गया। अवधिया ने आदिवासियों के वनाधिकार तथा अन्‍य मसलों पर लेखन किया है। अवधिया को विकास संवाद संस्था व विभिन्न माध्यमों में वनाधिकार को लेकर लगातार कार्य करने के लिए सम्मानित किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिले को मिलने वाला यह पहला अवार्ड है।
इस सम्मान समारोह में तीन देशों कनाडा, फ्रांस व स्विटरजरलैण्ड के अतिथियों व देश के आठ राज्यों से सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। लक्ष्मी नारायण अवधिया के अतिरिक्त उत्‍तर प्रदेश के ललित शर्मा को असंगठित मजूदरों का संगठित करने के क्षेत्र में, ए विनोद को चेन्नई व तमिलनाड़ु में दलितों के लिए कार्य करने, कनाडा के प्रो पॉल को पूरी दुनिया में अहिंसात्मक कार्य में योगदान के लिये तथा नान्हू सिंह को बैगा समुदाय में संगठन तैयार करने के लिए यह पुरस्‍कार दिया गया।
पुरस्‍कार वितरण सरस्वती विद्यालय की आचार्य कुल की राष्ट्रीय अध्यक्षा प्रवीणा देशाई, कनाडा की गिल कार्ल हेरिस, एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीवी राजाजी, साउथ एशिया में शशि सपोर्ट ग्रुप के प्रमुख स्विटजरलैण्ड के प्रो. नियर कुडे द्वारा किया गया। सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र शाल व नगद राशि से पुरूस्कृत किया गया।
इस अवसर पर मानव जीवन विकास समिति के '10 वर्ष का पायदान'  पुस्तक का विमोचन मध्यवन नेटवर्क भोपाल के अध्यक्ष अवधेश कुमार द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन एकता परिषद के प्रदेश समन्‍वयक संतोष सिंह व मानव जीवन विकास समिति के सचिव निर्भय सिंह ने संयुक्‍त रूप से किया।

श्रमदान से बंजर भूमि में आई बहार


मगध प्रमंडल के गया ज़िले के अतरी प्रखंड में नरावट पंचायत के साठ दलित परिवारों ने दृढ़ इच्छाशक्ति, सामूहिकता एवं एकता की जो मिसाल क़ायम की है, वह समाज के सभी वर्गों के लिए प्रेरणाप्रद है. मुरली पहाड़ी की तलहटी में बसा है नरावट पंचायत का टोला वनवासी नगर.
इसके चारों ओर नक्सलियों का वर्चस्व और बसेरा है, लेकिन साठ घरों और एक सौ बीस दलित परिवारों का यह गांव नक्सलियों की सोच के ठीक विपरीत अहिंसा में विश्वास करके विकास के रास्ते पर चल रहा है. इस छोटे से टोले में कोई भी अंजान व्यक्ति पहुंचता है तो महिला हो या पुरुष,  बच्चा हो या सत्तर-अस्सी वर्ष का बुजुर्ग, हर कोई उसका स्वागत और अभिवादन जय जगत कहकर करता है. स़िर्फ कहने से ही नहीं, टोले के लोग कर्म से भी सारे जगत का भला करना चाहते हैं. अपने परिवारों के बीच शराब बंदी कराने के अलावा सौ एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर टोले के लोग सामूहिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने श्रमदान के ज़रिए तीन किलोमीटर सड़क, चार तालाबों-आहर और सामुदायिक भवन का निर्माण किया है. इन दलित परिवारों का एकमात्र दर्द यह है कि जिस भूमि पर वे क़रीब दो दशक से रह रहे हैं, खेती कर रहे हैं, उसका पर्चा पट्टा उनके नाम नहीं हुआ है. इसके लिए वे गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के माध्यम से संघर्षरत हैं.
इस छोटे से टोले में कोई भी अंजान व्यक्ति पहुंचता है तो महिला हो या पुरुष,  बच्चा हो या सत्तर-अस्सी वर्ष का बुजुर्ग, हर कोई उसका स्वागत और अभिवादन जय जगत कहकर करता है.
गांव के मुखिया पैंतालिस वर्षीय रामदहीन मांझी बताते हैं कि 1990 के पहले नरावट में हमारी बहुत खराब स्थिति थी. यहां स़िर्फ समस्याएं ही समस्याएं थीं, लेकिन लोक जागरण नामक संस्था ने हम लोगों को जगाया. गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के मार्गदर्शन और प्रयासों से हम लोग शांतिपूर्वक बेहतर जीवन जी रहे हैं. 1990 में हम सभी साठ परिवारों ने नरावट डीह गांव छोड़ दिया. एक ही दिन में अपनी झोपड़ी, कबाड़ और सामान लेकर गांव से कुछ दूर ख़ाली पड़ी बंजर भूमि पर आ बसे. यहां आकर हम लोगों ने बंजर पड़ी क़रीब सौ एकड़ भूमि को सामूहिक रूप से आबाद करने का निर्णय लिया. एकता परिषद ने इसके लिए पांच जोड़े बैल और दो हज़ार पेड़ दिए.
समय-समय पर अन्य सहयोग दिया और अधिकार के लिए अहिंसापूर्वक संघर्ष करने की प्रेरणा दी. आज वनवासी नगर के आसपास लहलहाती खेती और हरियाली नज़र आती है, जो दलित परिवारों की देन है. हालांकि इन दलितों को कई बार समाज और पुलिस का कोपभाजन भी बनना पड़ा, लेकिन अपने सही क़दम से यहां के दलित नहीं डिगे. नरावट गांव के किसानों ने इनके द्वारा उपजाऊ बनाई गई ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया, लेकिन वनवासी नगर की महिलाओं ने आगे आकर उन सभी को भागने पर मजबूर कर दिया. 2005 में नालंदा ज़िले के छबिलापुर एवं बैजनाथपुर गुमटी में नक्सलियों ने पुलिस पिकेट पर लूटपाट की. घटना से गुस्साई पुलिस ने दलितों के साथ मारपीट की और उनके प्रमुख रामदहीन को पकड़ कर अतरी थाने में बंद कर दिया. इस पर गांव के सभी लोगों ने अतरी थाने का घेराव कर पुलिस को बताया कि वे जल, जंगल और ज़मीन पर अपने अधिकार के लिए  संघर्षरत हैं, लेकिन नक्सली नहीं हैं. एकता परिषद ने भी पुलिस कार्रवाई का विरोध किया. सच्चाई जानने पर अतरी के थानेदार ने सभी से सामूहिक रूप से माफी मांगी.
आज इस गांव के दलित परिवार एक से लेकर डेढ़ एकड़ भूमि प्रति परिवार बांटकर सामूहिक खेती करते हैं. सामूहिक रूप से पत्थर तोड़ कर कुछ राशि जमा करते हैं. इससे रोजी-रोटी की व्यवस्था होती है. वे मज़दूरी भी करते हैं. गांव में शराब पीना बंद है. कभी कोई व्यक्ति शराब पीकर आ गया तो उससे जुर्माना वसूला जाता है. वनवासी नगर में स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और मतदान केंद्र न होने के कारण दलितों को का़फी परेशानी होती है. मतदाता पहचान पत्र बने हुए हैं. वनवासी नगर में स्कूल बनाने के लिए राशि का आवंटन हो चुका है, लेकिन वन भूमि होने के कारण स्कूल भवन का निर्माण नहीं किया जा रहा है.
कहीं भी कोई समस्या हो, यहां के दलित परिवार श्रमदान के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. 2006 में गर्मी के मौसम में जब गया शहर में भीषण पेयजल संकट उत्पन्न हुआ और जल जमात नामक संस्था ने शहर के प्राचीन तालाबों की खुदाई-सफाई शुरू की तो इस गांव के एक सौ आठ दलित क़रीब पचास किलोमीटर पैदल चलकर गया पहुंचे. और, उन्होंने सप्ताह भर वहां रहकर प्राचीन सरयू तालाब की खुदाई की. इस दौरान उन्होंने खाना-खुराकी की व्यवस्था भी स्वयं की. आज वनवासी नगर के दलित अपने कर्म, विचार, मेहनत और समाजसेवा के लिए पूरे ज़िले में चर्चित हैं. दलितों के सामूहिक प्रयास के कारण वनवासी नगर को सोशल एक्टिविटी के लिए 2005 का माजा कोईन अवार्ड मिल चुका है. गांव की एक और ख़ासियत है कि यहां किसी भी घर में ताला नहीं लगता. यहां के दलित अपने बच्चों को अधिकारों के लिए महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर चलकर संघर्ष करने की शिक्षा देते हैं

एकता परिषदः इस चेतावनी को सिर्फ रैली न समझें

वर्ष 2007 में जब 25 हज़ार लोग ग्वालियर से पैदल चलकर दिल्ली आए, तब तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री ने इन्हें आश्वासन दिया. 2009 में जब एक बार फिर ये लोग दिल्ली आए, तब भी इन्हें आश्वासन ही मिला. हर बार स़िर्फ आश्वासन. नतीजतन, इस बार 15 हज़ार लोग जब दिल्ली आए, तब कोई मांग लेकर नहीं आए. आए तो स़िर्फ चेतावनी देने. चेतावनी इस बात की कि अगर नई भूमि सुधार नीतियों का पालन ठीक से नहीं किया गया, अगर नेशनल लैंड रिफॉर्म काउंसिल को सक्रिय नहीं किया गया तो हम लाखों की संख्या में दिल्ली आकर बैठ जाएंगे. और तो और, अब एकता परिषद ने, जिसे कल तक गांववालों का आंदोलन माना जाता था, ख़ुद को इंडिया अगेंस्ट करप्शन जैसी मुहिम से जोड़ कर भ्रष्टाचार के ख़िला़फ भी हल्ला बोल दिया है. कल तक स़िर्फ जंगल और ज़मीन पर ग़रीबों, भूमिहीनों एवं आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ाई लड़ने वाली एकता परिषद अब जन लोकपाल बिल लाने के लिए भी आवाज़ बुलंद कर रही है.
पहले पदयात्रा, फिर चेतावनी रैली और 2012 में एक लाख लोग दिल्ली में. आख़िर पिछले चार साल से इस देश की आम जनता को क्यों बार-बार दिल्ली आकर अपनी बात कहनी पड़ती है. आख़िर उसकी ऐसी कौन सी मांग है, जिसे सरकार पूरी नहीं कर रही या फिर करना नहीं चाहती?
बीते 6 से 8 मार्च यानी लगातार तीन दिनों तक दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों की संख्या में लोग एकत्र थे. ये लोग राष्ट्रीय भूमि नीति बनाने की दिशा में केंद्र सरकार के वादे के अनुसार क़दम न उठाने के विरोध में यहां आए थे. एकता परिषद के बैनर तले आए इन लोगों की बस एक ही मांग है, जो सीधे-सीधे इनके जीने के अधिकार से जुड़ी हुई है. ये सारे लोग भूमिहीन हैं. बहुत से लोगों को खनन, टाइगर रिज़र्व और अन्य विकास परियोजनाओं के नाम पर इनकी ज़मीन से बेदख़ल कर दिया गया है. एकता परिषद के राजगोपाल पी वी ने चौथी दुनिया को बताया कि नेशनल लैंड रिफॉर्म काउंसिल गठित हुए तीन साल से ज़्यादा बीत गए, लेकिन अब तक भूमि सुधार नीति के संबंध में कोई भी ठोस क़दम नहीं उठाया गया है. वह आगे कहते हैं कि इस मसले पर सरकार इतनी असंवेदनशील है कि इस काउंसिल की बैठक तक नहीं होती. इसलिए इस बार हम सरकार को चेतावनी देने आए हैं कि 2012 तक अगर नई भूमि सुधार नीति और राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति द्वारा सुझाए गए उपायों को लागू नहीं किया गया तो हम एक लाख लोगों के साथ आएंगे और फिर यहीं बैठकर तब तक शांतिपूर्ण धरना देते रहेंगे, जब तक हमारी मांगें नहीं मान ली जाएंगी.
भूमि एक ऐसी पूंजी है, जो जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तंत्र का मूल आधार है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन का आधार आज भी भूमि और प्राकृतिक संसाधन ही हैं. भूमि अधिकार और प्राकृतिक संसाधनों तक आम आदमी की पहुंच केवल आर्थिक अधिकार का ही प्रश्न नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाले सभी लोगों के आत्मविश्वास से जुड़ा अधिकार है.
इस पूरे आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं जंगल और आदिवासी. राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में सरकार को वन अधिकार क़ानून (फारेस्ट राइट एक्ट) को कारगर ढंग से लागू करने की भी सलाह दी थी. समिति ने अपनी स़िफारिश में कहा कि आदिम जनजाति समुदायों के भूमि क़ब्ज़े को मान्यता दे दी जाए. फारेस्ट राइट एक्ट भी आदिवासियों को जंगल एवं वन भूमि पर अधिकार देने की बात करता है. बावजूद उसके आज भी लाखों आदिवासियों को जंगल पर उनके पारंपरिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है. राजगोपाल कहते हैं कि जबसे यह एक्ट लागू हुआ है, तबसे ज़मीन के लिए लगभग 30 लाख आवेदन ग़रीब आदिवासियों की तऱफ से आए. इन 30 लाख आवेदनों में से 19 लाख आवेदनों को वन विभाग ने निरस्त कर दिया. वन विभाग के लोग खुलेआम दादागिरी कर रहे हैं, ग़रीबों से इनकी भूमि छीनी जा रही है.
हमें भ्रष्टाचार के ख़िला़फ भी संघर्ष करने की ज़रूरत है. हमारी लड़ाई केवल समुचित भूमि सुधार क़ानून बनवाना नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार जैसी बीमारी को भी ख़त्म करना है. जब तक भ्रष्टाचार है, तब तक कोई भी क़ानून ग़रीबों और वंचितों को उनका वाजिब हक़ नहीं दिला सकता. हम ग्रामीण आंदोलन को शहरी आंदोलन से भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
- राजगोपाल पी वी, एकता परिषद
वर्ष 2007 में 25 हज़ार से अधिक ग़रीब, भूमिहीन लोगों के साथ राजधानी पहुंचे राजगोपाल से सरकार ने शीघ्र ही राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाने का वादा किया था, जिससे भूमिहीनों और वनवासियों को प्राकृतिक संसाधनों पर इनके अधिकार मिल सकें, लेकिन सरकार तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद समुचित क़दम नहीं उठा पाई है. यहां तक कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की एक भी बैठक अब तक नहीं हो सकी है. इस चेतावनी रैली में आए लोगों से जब बात हुई तो सबका यही कहना था कि हम यहां अपनी रोटी-अपनी खेती के लिए आए हैं. मध्य प्रदेश के डुमरिया से आई दुअसिया देवी कहती हैं कि हम एकता परिषद से इसलिए जुड़े हैं, क्योंकि हमें ज़मीन चाहिए. कटनी की पुष्पा तो कहती हैं कि हम यहां एकता परिषद के लिए आए हैं. ज़ाहिर है, पेट के लिए रोटी और रोटी के लिए ज़मीन की यह लड़ाई एक आम आदमी की ख़ुद की पहचान से भी जुड़ी है. राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भूमि एक ऐसी पूंजी है, जो जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तंत्र का मूल आधार है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन का आधार आज भी भूमि और प्राकृतिक संसाधन ही हैं. भूमि अधिकार और प्राकृतिक संसाधनों तक आम आदमी की पहुंच केवल आर्थिक अधिकार का ही प्रश्न नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाले सभी लोगों के आत्मविश्वास से जुड़ा अधिकार है. यानी आम आदमी की पहचान और उसके आत्म विश्वास का रिश्ता ज़मीन के इस टुकड़े से भी है, जिसके लिए यह लड़ाई लड़ी जा रही है.
भ्रष्टाचार का सीधा ख़ामियाज़ा ग़रीब जनता को भुगतना पड़ता है. रोज़गार, राशन और ज़मीन पर हक़ जैसे मसले सामने हैं. भ्रष्टाचार के ख़िला़फ एकता परिषद भी इस लड़ाई में हमारे साथ है. हम जन लोकपाल बिल चाहते हैं, ताकि भ्रष्टाचार के ख़िला़फ कार्रवाई हो. हम लोग प्रधानमंत्री से मिले और उनसे कहा कि भ्रष्टाचार के ख़िला़फ कार्रवाई किए बिना विकास का कोई अर्थ नहीं है.
- अरविंद केजरीवाल, सामाजिक कार्यकर्ता
राजगोपाल पी वी के नेतृत्व में एकता परिषद के क़रीब 15 हज़ार कार्यकर्ताओं ने पहले 7 मार्च को राजधानी के रामलीला मैदान से संसद भवन तक रैली निकाली, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने राजगोपाल को शीघ्र ही राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक बुलाने और भूमि नीति में सुधार की बात कही. चेतावनी रैली के अंतिम दिन यानी 8 मार्च को 15 राज्यों से आए क़रीब 15 हज़ार भूमिहीन, आदिवासी और दलित महिला-पुरुषों ने जंगल और ज़मीन की मांग के साथ भ्रष्टाचार के ख़िला़फ भी संघर्ष करने का संकल्प लिया. एकता परिषद, महिला मंच और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाले अभियान इंडिया अगेंस्ट करप्शन के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राजधानी के रामलीला मैदान में आयोजित एक सभा में भूमि अधिकार के लिए संघर्ष कर सफलता हासिल करने वाली 26 महिलाओं को सम्मानित किया गया.
रैली में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, सीपीआई की अमरजीत कौर, जुझारू पुलिस अधिकारी सुरेंद्रजीत कौर, अनिता बस्सी, सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, तरुण भारत संघ के राजेंद्र सिंह, सर्व सेवा संघ की राधा भट्ट, पूर्व सांसद आऱिफ मोहम्मद ख़ान एवं सूचना अधिकार के लिए काम करने वाले अरविंद केजरीवाल ने भूमिहीन लोगों के आंदोलन का समर्थन करते हुए भ्रष्टाचार के ख़िला़फ एकजुट होने का आह्वान किया. रैली में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, हरियाणा, उड़ीसा, असम, मणिपुर एवं नागालैंड आदि 15 राज्यों से आए ग़रीब, भूमिहीन और आदिवासी लोग शामिल थे. बहरहाल, एकता परिषद की इस चेतावनी रैली ने इस बार कुछ नए संदेश दिए हैं. एक संदेश तो चेतावनी के रूप में सरकार को और दूसरा अलग-अलग दिशाओं में विभिन्न मांगों को लेकर चल रहे आंदोलनों के लिए है. राजगोपाल जब यह कहते हैं कि हम ज़मीन के साथ भ्रष्टाचार के ख़िला़फ भी लड़ाई करेंगे तो इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि अब व़क्त एक होने का है. यानी देश में जितने भी आंदोलन जनता की भलाई से जुड़े मुद्दों को लेकर चल रहे हैं, उन सभी को अब एक मंच पर आ जाना चाहिए, ताकि इस सरकार को, जो जानबूझ कर जनता की आवाज़ नहीं सुनना चाहती, नींद से जगाया जा सके

Saturday 16 April 2011

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पखवाड़ा में 20 महिलाएं सम्मानित

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पटना. एकता परिषद महिला मंच, बिहार के तत्वाधान में शुक्रवार को बेलीरोड में स्थित प्रगति ग्रामीण विकास समिति के परिसर में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पखवाडा़ के अवसर पर महिला अधिकार सम्मेलन में वंचित समुदाय की 20 महिलाओं को सम्मानित किया गया. इन सभी को शाल देकर विधायक आशा सिन्हा ने सम्मानित किया. इन सभी सम्मानित महिलाओं ने भूमि अधिकार, नशा बंदी, घरेलू हिंसा आदि के खिलाफ अपने गांव में जोरदार जंग कर फतह हासिल की हैं. इसके पहले सभी जुझारू ग्रामीण महिलाओं ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर सम्मेलन का उद्घाटन किया.
मौके पर विधायक आशा सिन्हा ने कहा कि एकता परिषद के द्वारा आयोजित महिला अधिकार सम्मेलन में शिरकत करने वाली महिलाओं के हौसले को देखकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ. इस असवर पर उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने ऐतिहासिक कदम उठाकर सूबे के पंचायत चुनाव में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देकर महिलाओं को सम्मान और उनके नेतृत्व निखारने का कार्य किये हैं. इसका अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी अनुशरण कर रहे हैं. उन्होंने महिलाओं का आह्वान किया कि आप आज ही उठें और समाज के किनारे रह गईं महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु सर्वस्व निछावर कर दें.
इस अवसर पर पद्मश्री बहन सुधा वर्गीस ने कहा कि कहीं न कहीं हम लोग वंचित हैं. इसी लिए हम लोग महिला दिवस मनाते हैं ताकि अपनी महिलाओं के द्वारा किये गये उपलब्धियों की चर्चा जोरदार ढंग से कर सके और आपस में मिलकर आसान समस्याओं का निराकरण मिलजुलकर एकजुटता के साथ कर सके. बहन सुधा ने कहा कि हम महिलाओं को अपना अधिकार लेना ही है. इसके लिए किसी तरह की जंग करने को मजबूर होना क्यों न पड़े. आज भी हम सामाजिक सुरक्षा पेंशन, शिक्षा, जमीन में पति के साथ पत्नी के नाम से संयुक्त पट्टा के अधिकारों से वंचित हैं. उन्होंने इस ओर ठोस पहल करने की जरूरत पर बल दिया.
इस अवसर पर एकता परिषद के राज्य समन्वयक प्रदीप प्रियदर्षी ने कहा संघर्ष करने के बाद ही महिलाएं इस मुकाम पर आ सकी है। महिलाओं ने एकजुटता का परिचय जन सत्याग्रह 1012 के जन आंदोलन करने के पूर्व केन्द्र सरकार को चेतावनी देने दिल्ली जा धमकी। चार हजार की संख्या में महिलाओं की भागीदारी अधिक थी। उन्होंने कहा कि आने वाले कल महिलाओं का ही है।

फर्जी मुकदमा वापस लो और वन भूमि का पट्टा दो

fore जमुई. बिहार सरकार के द्वारा वनाधिकार अधिनियम ठीक तरह से लागू नहीं किया जा रहा है. इस अधिनियम के लागू होने के बाद वनभूमि पर आदिवासी और गैर आदिवासी लोगों को स्वामित्व मिल जाता है. मगर सरकार ने अपने पूर्व कानून के तहत ही वन विभाग में वन अधिकारियों का शासन चलाने की छूट दे रखी है. वनाधिकारियों ने वर्ष 2005 में वनभूमि पर रहने वाले 113 एसटी परिवारों के ऊपर अवैध ढंग से जमीन कब्जाने के आरोप में मुकदमा ठोंक रखा है. वह मुकदमा छह साल के बाद भी सुलझाया नहीं गया और न ही उसका निपटारा किया गया. इस कारण से ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है.
इसके बावजूद भी वनवासी पूर्ण मुस्तैदी से डट कर आज भी सरकार से फर्जी मुकदमा वापस लो और वन भूमि का पट्टा दो, की मांग करते रहते हैं. इसको लेकर जमुई में एकता परिषद के बैनर तले बेमियादी धरना भी दिया गया. धरनार्थियों को प्रलोभन में देकर डीएफओ धरना तोड़वाने में सफल हो गये. मगर समस्याओं का समाधान नहीं कर सके.
वन विभाग के द्वारा 113 परिवारों पर मुकदमा किया गया है. इस मुकदमे को वापस करने की मांग को लेकर बेमियादी धरना दिया गया था. इस धरने से जमुई में हड़कंप मच गया गया था. पटना से लगातार जमुई के जिलाधिकारी और डीएफओ को तलब किया जा रहा था कि किसी तरह से धरना समाप्त कर दिया जाए. मगर धरने में बैठे लोगों ने लगातार मुख्य मंत्री नीतीश कुमार एवं उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी से आग्रह करते रहे कि पहले मुकदमा वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए तब जाकर हम लोग मुकदमा वापस करेंगे. इस बीच डीएफओ ने 113 परिवारों के ऊपर से कुल 284 ठोका गया मुकदमा वापस लेने की बात कर दी. इस प्रलोभन में पड़कर धरना समाप्त कर दिया.
एकता परिषद के खैरा प्रखंड के समन्वयक प्रदीप यादव ने कहा कि वन अधिकार कानून लागू होने के बाद भी आदिवासियों एवं गैर दलितों पर वन विभाग के अधिकारियों के द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. जमुई जिले के खैरा प्रखंड के दो पंचायत हडखार और गरही के भोले वाले 113 घर के आदिवासियों पर 284 मुकदमा वन विभाग ने ठोक दिया है. अकेले गड़ही पंचायत के 58 परिवारों पर कुल 229 केस ठोका गया है. हड़कार पंचायत के 55 घर के आदिवासियों पर 55 केस ठोंका गया है. वन विभाग के अधिकारी इतने तानाशाह बन गये कि मासूम बच्चों को भी नहीं बक्षा उन पर भी मुकदमा ठोक दिया है.
इस समस्या को लेकर एकता परिषद, जमुई के समन्वयक प्रदीप यादव के हस्ताक्षर से ग्रामीणों का आवेदन पत्रांक 06/05  दिनांक 22- 07-05 को जिलाधिकारी और वन प्रमण्डल पदाधिकारी को दिया गया. इसके बाद दिनांक 12 नवम्वर 09 को खैरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी को वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर अंधाधुध ठोके गये मुकदमे को वापस लेने के लिए आवेदन दिया गया है. अवैध ढंग से जंगल की कटाई को छोड़कर आदिवासियों ने कृषि योग्य जमीन पर भी फसल लगाने के कार्यों में ध्यान केन्द्रित किया है. वन अधिकार कानून के 13 दिसंबर, 2005 तक जिसके कब्जा में जमीन है उक्त जमीन का मालिकाना हक वन विभाग के द्वारा दिया जाएगा. ऐसा न करके वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है.

विधवा की जमीन पर कुंडली मार कर बैठ गये दबंग

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इस बुजुर्ग महिला के हाथ में पॉलिथिन है. इस पॉलिथिन में धरती के देवताओं के द्वारा की जा रही काली करतूत और उसके दबंगई का खुला चिट्ठा है. इनके कहर का प्रभाव महिला के मनोमस्तिष्क पर पड़ रहा है. इसके बावजूद भी महिला घबड़ा नहीं रही है. वह दबंगों के एक-एक वार को झेलने को तैयार है. दूसरी ओर भगवान भी सहायक नहीं हो रहे हैं. डूबते हुए को तिनका का सहारा कहावत फेल हो रहा है. महिला सशक्तिकरण के युग में भगवान सहायता नहीं कर रहे हैं. लगातार गम के बांउसर से आहत होने के बाद दिल से कमजोर हो गयी है. इसका परिणाम यह हुआ कि वह हृदय रोग से पीड़ित हो गयी.
दबंगों के हाथ से जार-जार होने वाली परेशान महिला का नाम चन्द्री देवी है, आयु 65 वर्ष है. वह बिहार राज्य के बांका जिले के ग्राम मोचनावरण गांव की रहने वाली है. उसके पति का नाम भुतरी दास हैं, जो तीन बच्चों को जन्म देने के बाद स्वर्ग लोक सिधार चुके हैं.
बांका जिले के ग्राम मोचनावरण गांव के रहने वाले भुतरी दास की विधवा चन्द्री देवी ने बताया कि बांका जिले के प्रखंड कटोरिया, पंचायत और गांव लकीपुर के निवासी जमुना प्रसाद ने भूदान के प्रार्णेता विनोबा भावे को जमीन दान दी थी. इसके बाद वर्ष 1970-71 में सरकार ने भुतरी दास को खेती योग्य 4 एकड़ 80 डिसमिल जमीन दी. उन्हीं के साथ बरिआती पंडित को 2 एकड़ 80 डिसमिल जमीन मिली थी.  भुतरी दास के परिवार वालों ने मिलकर खेती करना शुरू कर दिया. कभी कोदो, धान, कुर्थी आदि फसल लगाकर मजे से जिन्दगी चला रहे थे. भूदान यज्ञ कमेटी के द्वारा प्राप्त दस्तावेजों को सरकार के अंचल कार्यालय में जाकर आवश्यकतानुसार रसीद और दाखिल खारिज करा लिया जाता था. इस बीच भुतरी दास का निधन हो गया.
महादलित परिवार के लोगों को भूदान यज्ञ कमेटी के द्वारा 4 एकड़ 80 डिसमिल जमीन मिली थी. जो दबंगों ने कब्जा कर रखा है. इसके खिलाफ 17 वर्षों से फरियाद करते-करते थकहार गयी है. किसी से खबर मिलने के बाद पटना राजधानी में स्थित एकता परिषद कार्यालय में आकर आपबीती बयान की है.
वर्ष 1994 में बरिआती पंडित के पुत्र भोनो पंडित और पुत्रवधू सुमा देवी की नियत खराब होने लगी. इस संदर्भ में विधवा चन्द्री देवी का कहना है कि इन लोगों की 2 एकड़ 80 डिसमिल जमीन का प्लांट बाजू में ही है. इसके कारण बरिआती पंडित के पुत्र भोनो पंडित और पुत्रवधू सुमा देवी ने 4 एकड़ 80 डिसमिल जमीन पर दावा करने लगे. दावा को पुख्ता करने हेतु अंचल कार्यालय के कर्मचारी एवं अन्य पदाधिकारियों को काम के बदले दाम देकर गलत दस्तावेज तैयार करा दिया गया.
भोना पंडित ने 2 एकड़ 60 डिसमिल और उनकी धर्मपत्नी ने 2 एकड़ 20 डिसमिल का दस्तावेज तैयार करा लिया है. इस धोखाधड़ी से विधवा चन्द्री देवी टूट गयी हैं. न्याय के लिए जन शिकायत कोशांग, बांका में फरियाद दर्ज करायी है. इसकी जांच की गयी, कोशांग के अधिकारी ने लिखा है कि उक्त जमीन पर शांतिपूर्ण ढंग से कब्जा है किसी अन्य व्यक्ति का कब्जा नहीं है.

दिसंबर से अब तक विस्थापितों का सत्याग्रह

दिसंबर से अब तक विस्थापितों का सत्याग्रह

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बिहार में पूस (दिसंबर) की ठंडक की परवाह किये बिना अब चैत (मार्च- अप्रैल) की गरमी की दस्तक के बीच में भी रेल परियोजना से विस्थापित वंचित समुदाय के द्वारा सत्याग्रह किया गया जा रहा है. सनद रहे कि पूर्व-मध्य रेलवे परियोजना के तहत दीघा से सोनपुर तक रेल और सड़क सेतु निर्माण किया जा रहा है. इस परियोजना से रेल पटरी के किनारे रहने वाले विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं. विस्थापन के पहले पुनर्वास की मांग को लेकर टेसलाल वर्मा नगर के विस्थापित परिवार सत्याग्रह करने को मजबूर हो रहे हैं. मौके पर दानापुर के अंचलाधिकारी मदन कुमार सिन्हा ने विस्थापितों को जमीन देकर पुनर्वास कराने का भरोसा दिया. यह सत्याग्रह 25 दिसंबर 2010 से शुरू किया गया है. टेशलाल वर्मा के सुनीता देवी के झोपड़ी के सामने सत्याग्रह जारी है.
एकता परिषद बिहार के पटना सदर के प्रखंड समन्वयक सुनील कुमार ने बताया कि दानापुर प्रखंड के रूपसपुर थानान्तर्गत अन्तर्गत दीघा नहर के तटबंध पर वर्ष 1970 से यानी 40 वर्षों से झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले विस्थापन का दंश झेलने को बाध्य हैं. इस बीच पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा गंगा रेल-सह-सड़क सेतु निर्माण किया जा रहा है. अभी जो रेलवे परियोजना का कार्य चल रहा है, वहां पर ही टेसलाल वर्मा नगर के लोग रहते थे. उनको वहां से हटा दिया गया.
लोग अपने सुविधा के अनुसार दीघा नहर के किनारे आशियाना बनाकर रहने लगे. तब से ही भूमिहीन और गृह विहिन दलित/अति पिछड़ा/ पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब और लाचार लोग रहते आ रहे हैं. सभी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं. हम लोगों की परिस्थिति को देखते हुए बिहार सरकार ने 2002-2003 में बसाने के लिए जमीन अधिग्रहण करने की कार्रवाई शुरू की थी.
पूमरे के द्वारा गंगा रेल-सह-सड़क सेतु निर्माण किया जा रहा है. इस निर्माण से दीघा नहर के किनारे रहने वाले टेशलाल वर्मा नगर के 274, जलालपुर नहर पर के 78 और दीघा बिन्द टोली के 404 से यानी 756 से अधिक परिवारों के आशियाना उजरने की समस्या बन गयी है. इसके अलावा सड़क चौड़ीकरण परियोजना से 684 से अधिक परिवारों के आशियाना पर वज्रपात होने वाला है. इस तरह रेल सेतु और सड़क चौड़ीकरण की समस्या से 1440 परिवारों पर उजरने की तलवार लटक रही है.  सभी लोग खौफ के साये में जीने को बाध्य हैं.
रूपसपुर थाना क्षेत्र के टेसलाल वर्मा नगर, जलालपुर नहर पर, दीघा बिन्ट टोली, अभिमन्यु नगर, चुल्हाईचक, हरिदासपुर और प्रेमनगर(कुश्त  आश्रम) के हजारों की संख्या में नर-नारी और बच्चों ने चिलचिलाती धूप की परवाह किये बिना कतारबद्ध जुलूस में शिरकत किया. अपने हाथों में लिखित कार्ड लेकर नारा लगाते हुए चल रहे थे. ‘हर हाथ को काम चाहिए बंदुक नहीं कुदाल चाहिए‘ रेल विस्थापितों को पुनर्वासित करना होगा, एकता परिषद जिन्दाबाद, जिन्दाबाद, रेल और सड़क निर्माण के बदले गरीबों पर दमन बंद करों, जो वादा किए हैं निभाना पड़ेगा आदि था. इसी तरह का गगनभेदी नारा भी लगा रहे थे.
विस्थापित होने का दंश झेलने वाले प्रभावितों की मांग है कि गंगा रेल-सह-सड़क सेतु निर्माण से विस्थापित होने वाले टेश लाल वर्मा नगर के 274, जलालपुर नहर पर के 78 और दीघा बिन्ट टोली के 404 यानी 756 परिवारों से अधिक लोगों को शीघ्र पुनर्वास करें, सड़क चौड़ीकरण से प्रभावित अभिमन्यु नगर, चुल्हाईचक, हरिदासपुर और प्रेमनगर(कुश्ठ आश्रम) के 684 परिवारों से अधिक को भी शीघ्र पुनर्वासित करें, मुख्यमंत्री के द्वारा शोषित महादलित परिवारों को चार डिसमिल जमीन देने की प्रक्रिया शुरू करके जलालपुर बड़ी, शवरी नगर (नहर पर) और सादिकपुर रूकनपुरा के महादलित 408 परिवारों को सरकारी वादानुसार जमीन उपलब्ध कराएं.
दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से एपीएल में डाल दिये गए सभी महादलितों को ‘अन्त्योदय योजना‘ के तहत लाकर सभी महादलितों को पीला कार्ड निर्गत किया जाएं, राशन-किरासन में हो रहे कालाबाजारी पर अकुंश लगाकर कार्डधारियों को 35 किलोग्राम राशन उपलब्ध कराया जाएं और छुट गये बीपीएल श्रेणी के आहर्ताओं का सर्वेक्षण करके बीपीएल कार्ड इशु किया जाएं. इस बीच दानापुर अनुमंडल के डीसीएलआर आलोक कुमार ने विस्थापन के दंश झेलने वाले वंचित समुदाय को हरहाल में पुनर्वास करा देने की बात कर रहे हैं. सभी के निगाहे श्री कुमार के ऊपर केन्द्रित है.

वनाधिकार कानून को लेकर विधायक गंभीर

Sikandra Block, Jamui
वन अधिकार कानून 2006 के तहत एकधुर जमीन मात्र का वितरण नहीं बल्कि अपने नागरिकों को वेलफेयर स्टेट के द्वारा कई तरह के मौलिक अधिकार प्रदान किया  गया है. विभिन्न तरह के अधिकार आजादी के 63 साल के दरम्यान हासिल हुआ. वनभूमि पर रहने वालों को वन अधिकार दिया गया है. इसे वन अधिकार मान्यता कानून 2006 कहा जाता है. वन अधिकार मान्यता कानून 2006 को कानून का रूप देने हेतु विभिन्न जन संगठनों ने मिलकर कदमताल किया है. इस क्रम में सरकार से संवाद स्थापित करने के अलावा संघर्ष किया गया, लंबी लड़ाई लड़ी गयी. इतना करने के बाद भी इस कानून को जमीनी स्तर पर बेहतर ढंग से क्रियान्वयन करने के लिए बहुत सारे प्रयास करने की जरूरत है.
नवीनतम जानकारी के अनुसार अभी तक पूरे देश में वन अधिकार कानून के तहत 27.16 लाख दावे दाखिल किये गये, जिनमें से 7.95 लाख अधिकार पत्र वितरित किये गये और शेष 19.21 लाख दावे निरस्त कर दिये गयें. बहुत सारे क्षेत्र में सही दावों को भी खारिज कर दिया गया है. यह आदिवासी समुदाय के साथ बहुत बड़ा अन्याय और धोखा है.
इस संदर्भ में बांका विधान सभा के विधायक सोने लाल हेम्ब्रम ने कहा कि केन्द्र सरकार के द्वारा वनभूमि पर रहने वाले अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परपरागत वन निवासी को फायदा दिलवाने के लिए वन अधिकार कानून 2006 कानून बनाया गया है. इस अधिनियम के अन्तर्गत वन निवासी अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पंरपरागत वन निवासियों को वन अधिकारों की मान्यता और अधिकारों का प्रदान किया जाना है. जो अनुसूचित जनजाति के लोग 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व वनभूमि को कब्जा कर चुके हैं तथां अन्य पंरपरागत वन निवासी के सदस्य या समुदाय 13 दिसंबर, 2005 के पूर्व कम से कम तीन पीढ़ियों तक वन अथवा वनभूमि पर निवास कर रहे हैं और जीवन व्यापन के लिए प्राथमिक तौर पर आश्रित रहा है.
इसके तहत दोनों समुदाय के लोगों को वनभूमि पर अधिकार दिया गया है, मगर बिहार राज्य में कानून को बेहतर ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है. बिहार सरकार ने अपने 38 जिलों में से सिर्फ 13 जिलों को ही वनवासी जिला घोषित किया है. इसमें अव्व्ल जमुई ,बांका, कटिहार, पूर्णिया, मुंगेर, किशनगंज, अररिया, पश्चिम चम्पारण, कैमूर, रोहतास, भागलपुर, मधेपुरा और सहरसा को शामिल किया गया है.
वन अधिकार कानून 2006 में निहित है कि अनुमंडल स्तरीय समिति, जिला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय समिति गठन करके वनभूमि के भूमि का स्वामित्व प्रदान किया जाए. इसको लेकर सूबे में अभी तक केवल 8 जिलों में ही वन समिति गठित की गयी है. वह जमुई, बांका, पूर्णिया, मुंगेर, किशनगंज, पश्चिम चम्पारण, कैमूर और भागलपुर है. इनमें से केवल जमुई और बांका जिले से 17 सौ से ऊपर आवेदन पत्र जमा करने के बाद वन समिति ने आगे कार्रवाई के लिए अग्रसारित किया है. दुर्भाग्य से अभी तक किसी वनभूमि पर रहने वाले लोगों को एक धूर भी जमीन नहीं दी गयी है. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार उदासीन और अफसर लापरवाह हैं.
उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के अन्तर्गत ग्राम सभा प्राधिकार होगी, जो वन निवासी अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पंरपरागत वन निवासियों को व्यक्तिगत अथवा सामुदायिक अथवा दोनों वन अधिकार प्रदान करने के बारे में प्रक्रिया प्रारंभ करेगी कि किस प्रकृति का और किस हद तक अपनी सीमाओं के अंतर्गत अधिकार देगी, इस कार्य के संपादन हेतु ग्रामसभा दावे प्राप्त करेगी और प्रत्येक अनुशंसित दावे को मानचित्र में चिन्हित तैयार करेगी और उन दावों को मानचित्र में चिन्हित करते हुए अपनी बैठक में एक प्रस्ताव पारित करेगी और तदुपरांत उसकी एक प्रतिलिपि अनुमंडल स्तरीय समिति को अग्रसारित करेगी.
राज्य सरकार एक राज्यस्तरीय अनुश्रवण (मॉनिटरिंग) समिति गठित करेगा जो मान्यता प्रदान और वन अधिकार प्रदान की प्रक्रिया की मॉनिटरिंग करेगी और नोडल एजेंसी को उसके द्वारा वाछित प्रतिवेदन एवं विवरण उपस्थित करेगी.
अनुमंडल स्तरीय समिति, जिला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय समिति में प्रत्येक स्तर पर राज्य सरकार के राजस्व विभाग, वन विभाग तथा जनजातीय मामलों के विभाग के पदाधिकारी और पंचायती और पंचायती राज संस्थाओं द्वारा नियुक्त तीन सदस्य रहेंगे, जिनमें कम से कम तीन अनुसूचित जनजाति के और एक महिला सदस्य होंगे जैसा विहित हो. अनुमंडल स्तरीय समिति, जिला स्तरीय समिति और राज्यस्तरीय समिति की रचना, कृत्य एवं कर्तव्य और कृत्यों एवं कर्तव्यों के निर्वाह के लिए अपनायी जानेवाली विधि वही होगी जो विहित की जायेगी.
बिहार से झारखण्ड अलग होने के बाद बिहार में अनुसूचित जनजाति की आबादी 7 लाख 58 हजार 351 रह गई है. जिसमें पुरुष 3 लाख 93 हजार 114 और महिला 3 लाख 65 हजार 237 हैं. इस प्रकार बिहार में अनुसूचित जनजाति की आबादी का 1 प्रतिशत है. अभी भी बिहार में अनुसूचित जनजाति की 37 जातियां एवं उपजातियां हैं. बिहार में अनुसूचित जनजाति की आबादी कटिहार (140418) और पूर्णियाँ (111947) जिला में सबसे अधिक है.
बिहार में आदिवासी समुदाय आज भी समाज के मुख्यघारा से वंचित है. अनुसूचित जनजाति की जातियां एवं उपजातियाँ धीरे धीरे बिहार से विलुप्त होती जा रही है. आज भी आदिवासी क्षेत्र के पिछड़ेपन का मुख्य कारण सत्ता (सरकार) की उपेक्षा रही है. इन आदिवासी इलाको को आज भी वन भूमि के अधिकार से दूर रखा गया है. इनके पास जमींदारी के समय का (हुकूमनामा) एकरनामा है फिर भी उस भूमि पर सामान्य वर्ग के लोग तथा वन विभाग के द्वारा कब्जा किया जा रहा है. वन विभाग ने वनोपज वस्तुओ को भी आदिवासियो को जंगल से ले जाने पर पाबंदी लगा दिया है.
एकता परिषद, बिहार के द्वारा 20 जून 2009 को जमुई जिले मे ‘आदिवासी वन अधिकार सम्मेलन’ किया था. इसके बाद पटना में 23 जुलाई 2009 को ‘वन अधिकार कानून 2006’ के ऊपर कार्यशाला किया गया. दोनों आयोजनो के बाद जमुई जिले के खैरा प्रखंड के हड़खार पंचायत के आठ गाव यथा दीपाकरहर, सिरसिया, महेंग्रो, बरदौन, रजला, प्रतापपुर, भलुआही और झिलार से 740 आदिवासी परिवारों के द्वारा 916.11 एकड़ भूमि कब्जा का दावा पत्र 14 जून 2009 को हड़खार ग्राम पंचायत के मुखिया दीपक हेम्ब्रम ने बाजाप्ता ग्राम सभा से पारित करा कर 27 अग्रस्त 2009 को अनुमण्डलाधिकारी, जमुई को दिया।  इस पर युद्धस्तर कार्रवाई नहीं की जा रही है.
वन अधिकार कानून लागू होने के बाद भी आदिवासियों एवं गैर दलितों पर वन विभाग के अधिकारियों के द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. जमुई जिले के खैरा प्रखंड के दो पंचायत हडखार और गरही के भोले वाले 113 घर के आदिवासियों पर 284 मुकदमा वन विभाग ने ठोक दिया है. अकेले गड़ही पंचायत के 58 परिवारों पर कुल 229 केस ठोका गया है. हड़कार पंचायत के 55 घर के आदिवासियों पर 55 केस ठोंका गया है. वन विभाग के अधिकारी इतने तानाशाह बन गये कि मासूम बच्चों को भी नहीं बक्षा उन पर भी मुकदमा ठोक दिया है.
उक्त समस्या को लेकर एकता परिषद जमुई के समन्वयक प्रदीप यादव के हस्ताक्षर से ग्रामीणों का आवेदन पत्रांक 06/05  दिनांक 22.07.05 को जिलाधिकारी और वन प्रमण्डल पदाधिकारी को दिया गया. इसके बाद दिनांक 12 नवम्वर 09 को खैरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी को वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर अंधाधुध ठोके गये मुकदमा को वापस लेने के लिए आवेदन दिया गया है. अवैध ढंग से जंगल की कटाई को छोड़कर आदिवासियों ने कृषि योग्य जमीन पर भी फसल लगाने के कार्यों में ध्यान केन्द्रित किया है. वन अधिकार कानून के 13 दिसंबर, 2005 तक जिसके कब्जा में जमीन है उक्त जमीन का मालिकाना हक वन विभाग के द्वारा दिया जाएगा. ऐसा न करके वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर मुकदमा ठोंका गया है.

अवैध खनन के लिए नक्‍सली डर पैदा करने की कोशिश

कटनी ज़िले में नक्सलियों की उपस्थिति का दावा नहीं किया जा सकता है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में इस ज़िले में नक्सली अपनी धमक दे सकते हैं. हालांकि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा किए गए दावों पर भरोसा किया जाए तो कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. स्थानीय लोगों को शक़ है कि कटनी में खदानों के अवैध कारोबार से जुड़ी हुई गतिविधियों को संरक्षण देने के लिए नक्सलियों का डर पैदा किया जा रहा है और इसमें समूचा प्रशासन स्थानीय व्यापारी और कई अन्य लोग शामिल हैं. ढीमरखेड़ा, बहोरीबंद, बड़वारा और बरही जैसे ग्रामीण अंचलों में नक्सलियों की मौजूदगी की जांच के लिए जबलपुर रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक मधु कुमार ने पिछले दिनों दौरा किया. उन्होंने इस क्षेत्र में नक्सलियों की उपस्थिति को पूरी तरह नकार दिया, जबकि पिछले कई दिनों से ज़िले के कई खोजी तत्व इस बात का लगातार दावा कर रहे थे कि कटनी नक्सलवाद की चंगुल में आ चुका हैं. देश के नक्शे में मध्य प्रदेश का कटनी ज़िला एक महत्वपूर्ण खनिज उत्खनन केंद्र के रूप में उभरकर सामने आया है. यहां उपस्थित प्राकृतिक संपदा के अवैध दोहन से राज्य एवं केंद्र सरकार भलीभांति परिचित है. यह संगमरमर उद्योग व्यवसाय ज़िले के दो व्यवसायिक समूहों के मध्य आपसी खींचतान का केंद्र है. खनिज विवादों को हल करने के लिए इंडियन ब्यूरो ऑफ माईंस, कमिश्नर लैंड रिकॉर्ड, राज्य शासन के राजस्व खनिज एवं वन विभाग, लोकायुक्त आदि कई संस्थाओं ने कोशिश की परंतु विवाद हल होने का नाम ही नहीं ले रहा. करोड़ों रुपए के अवैध उत्खनन के मामले में लोकायुक्त द्वारा पूर्व कलेक्टर अंजू सिंह बघेल, खनिज निरीक्षक यू.ए. खान, नायब तहसीलदार, सी.एस. मिश्रा, राजस्व निरीक्षक, प्रभाश बागरी और पटवारी अशोक खरे के विरुद्ध जांच प्रकरण पंजीबद्ध है. ज़िले में सीमेंट कंपनी ए.सी.सी. और सरकारी क्षेत्र की स्टील अथॉर्टी ऑफ इंडिया लिमिटेड की चूना पत्थर (लाइम स्टोन) खदानों में भी कई अनियमितताओं की जांच लंबित है.
मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में असामाजिक घटनाओं के ब़ढते मामलों के मद्देनज़र मध्य प्रदेश पुलिस अब तक यह दावा करती आई है कि कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. लेकिन पुलिस का यह दावा कुछ ही व़क्त में बेपर्दा होता हुआ लग रहा है. ऐसी अप्रत्याशित घोषणा के तुरंत बाद ही दावा विवादास्पद लगने लगा है.
वर्तमान में कटनी बारूदी विस्फोटों के ज़रिए अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा केंद्र है. इस व्यवसाय के कारण ज़िले के आदिवासियों की भूमि पर अवैध क़ब्ज़े और अवैध उत्खनन की शिकायतें आम हो चुकी है. गत दिनों पुलिस प्रशासन ने ढीमरखेड़ा जंगल में नक्सली डर पैदा कर चार आदिवासियों हरवंश गौड़, सीताराम गौड़, इंद्रपाल गौड़ और बहादुर गौड़ को अवैध कटाई के एक मामले में जेल भेज दिया गया था. उपरोक्त काल्पनीक डर के कारण पैदा हो रहे अत्याचार के विरुद्ध एकता परिषद के पी. वी. राजगोपाल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को जानकारी प्रेषित की है, परंतु अभी तक इस संदर्भ में प्रशासन जागरूक नहीं हो पाया है.

बहरा है प्रशासन

यह घटना साल भर पुरानी है, जबकि इसी ढीमरखेड़ा अंचल के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में स्थित पूर्णतया गौंड़ आदिवासियों की आबादी वाले ग्राम मुखास एवं छीतापाल में एक के बाद एक आधा दर्जन से भी अधिक मासूम बच्चे मौत के शिकार हो चुके थे. इन बच्चों की कुपोषण के चलते दो बच्चों की मौतों को लेकर इस क्षेत्र में काम कर रही सामाजिक संस्था जय भारती शिक्षा केंद्र, मझगवां, तहसील सिहोरा के भरत नामदेव द्वारा ढीमरखेड़ा के बीएमओ तथा एसडीएम को इसकी जानकारी देते हुये इस विषय में आवश्यक कदम उठाये जाने कई-कई बार आग्रह किया जा चुका था. लेकिन इस दिशा में कोई प्रशासनिक पहल नहीं की गई. तत्पश्‍चात कई बच्चों की मौत के और उन पर उठी आवाज़ों के बाद जब अधिकारियों को होश आया भी तो उनकी ओर से राहत संबंधी कोई कदम उठाने के बजाये उनको समय रहते कार्यवाही करने की बात कहने वाले आक्रोशित ग्रामीणों तथा संस्था के भरत नामदेव सहित एक महिला कार्यकर्ता कीर्ति दुबे एवं अन्य आदिवासी ग्रामीणों को नक्सली समर्थक कहते हुए उन्हें विभिन्न धाराओं में जेल भेज दिया गया. इस मामले में कई और संस्थाओं तथा कुछ गिने-चुने पत्रकारों ने एक बार फिर न केवल प्रशासनिक कार्यवाही का विरोध किया, बल्कि जनसंगठन एकता परिषद प्रमुख पीव्ही राजगोपाल तक भी सारा वाकया पहुंचाते हुए उनसे सहयोग का आग्रह किया. राजगोपाल जी ने इसी क्रम में यह मामला 2009 में मुख्यमंत्री से अपनी मुलाकात के दौरान उठाया तब मुख्यमंत्री ने अगले दिनों में अपनी कटनी यात्रा के दौरान ग्राम मुखास के पीड़ितों की देखरेख हेतु नीरज वशिष्ठ तथा एक अन्य करीबी डॉ. अजय मेहता को नियक्त किया.  लेकिन अगले दिनों में मुख्यमंत्री जब कटनी पहुंचे तो मुखास के ग्रामीण, जय भारती शिक्षा केंद्र तथा एकता परिषद के कार्यकर्ता और पीडि़त उनसे मिलने की कोशिश करते मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल के आसपास भटकते रहे और वापस लौट गये. इसके बाद भी मामले पर एक स्थानीय नागरिक जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर एक बार पुन: राजगोपाल के मार्फत मुख्यमंत्री तक पहुंचाई जिसमें निर्दोष ग्रामीणों पर नाहक थोपे गए अपराधिक मुकदमों को वापस लिये जाने का अनुरोध किया गया था, लेकिन सब कुछ अभी भी उसी तरह अधर में लटका हुआ है और इस क्षेत्र में प्रशासन अनदेखियों के साथ बच्चों के मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. विधायक व पूर्वमंत्री मोती कश्यप द्वारा जिनके इस आदिवासी क्षेत्र का विधायक होने की योग्यता पर ही गंभीर प्रश्न चिंह लगा हुआ है, मामला न्यायालय में विवादित है. इस अंचल के अन्य गांवों बिचुआ, खैरानी, सिंघनपुरी, सलैया में अपनी पुश्तैती ज़मीन से की गई बेद़खली के खिला़फ पुन: अपनी ज़मीनों की वापसी व वहां खेती करने के अधिकार की मांग कर रहे आदिवासियों को कभी गोंडवाना मुक्ति सेना तो कभी नक्सली समर्थक बताकर उनके विरुद्ध कार्यवाही के लिये प्रशासन को उकसाया जा रहा है, चूंकि उनका मानना है कि क्षेत्र के आदिवासियों की यह एकजुटता और अपनी ज़मीनों के लिये किया जा रहा संघर्ष उनके पहले से ही कमज़ोर जनाधार को और अधिक कमज़ोर कर सकता है.