About Me
- Global Action 2012
- एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.
Tuesday 30 August 2011
अभी भी है मौका सुधरने का
वर्ष 2007 में 25 हजार आदिवासियों, दलित एवं भूमिहीन लोग लम्बी पदयात्रा करके भारत सरकार को चुनौती देने के लिए दिल्ली पहुंचे. आजादी के 60 साल बाद भी जीवन जीने के संसाधनो से वंचित इन आंदोलनकारियों के सामने सरकार को झुकना पड़ा. भूमिहीनता मिटाने की दृष्टि से और भूमि सुधार की अधूरे कार्यक्रम पूरा करने की उद्देश्य से भूमि सुधार परिषद का गठन किया गया.
इससे पूर्व वर्ष 2003 से ही भूमि सुधार के एजेण्डे को लेकर केन्द्रीय सरकार के साथ वार्ता आंरभ हो चुका था. एकता परिषद जैसे जन संगठन पदयात्राओं के माध्यम से अलग-अलग प्रांतीय सरकारों को भी भूमि सुधार के विषय में काम करने के लिए निरंतर बाध्य करते रहे हैं. लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी भूमि एवं जीवन जीने के अन्य संसाधनों के बारे में सरकार का रवैया वही बना रहा जो पहले था. उनकी मान्यता है कि जल, जंगल, जमीन का दोहन कंपनियों के मार्फत होनी चाहिए. यह भी मान्यता है कि देश के हित में ओद्यौगिकरण जरूरी है और ओद्यौगिकरण के लिए संसाधनो के दोहन भी जरूरी है. इसलिए आदिवासी, दलित एवं गरीबो को जमीन देने के विषय में सरकार की कभी रुचि रही नहीं.
आज देश के अलग-अलग हिस्से में चाहे सिंगूर में हो, पलाचीमाड़ा में हो, जैतापुर मे हो या भट्टा-परसौल हो हर जगह भूमि बचाने के लिए किसान आंदोलित है. दुसरी तरफ आदिवासी एवं दलित एक-एक इंच भूमि के लिए संघर्षरत है. केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के व्यवहार से यह साफ है कि वह गरीबों, भूमिहीनों को जमीन देना तो दूर भू-स्वमियो को भी अब किसान नहीं रहने देगी. तमाम जमीन किसानों से लेकर बडी़-बड़ी कम्पनियो को देने की दिशा में पूरी व्यवस्था एकजुट होकर लगी हुई है. इस प्रक्रिया में किसानों को झूठे मुकदमों में फंसाना, कम्पनियों के गुडों से किसानो को पिटवाना, जबरन भूमि हथियाना ऐसी कई प्रक्रियाएं चल रही हैं. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. ऐसे मौके पर सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक क्यों नहीं बुलाई जा रही?
देश भर के कई विद्वानों ने पूरा एक साल अध्ययन करने के बाद करीब 300 सुझाव सरकार के सामने रखे हैं जिस पर अगर ईमानदारी से काम किया जाए तो भूमि से जुड़े कई सवालों को हल किया जा सकता है. आज जब किसानो का आंदोलन हिंसक होने लगा तब सरकार भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर पुर्नःविचार करने को तैयार हो गई है. जब नक्सलवाद सिर चढ़कर बोलने लगा तब आदिवासियों के हित में वन-अधिकार कानून बनाने के लिए तैयार हो गए. किसी भी देश के सरकार के लिए यह हास्यास्पद बात है कि वह तभी काम करेगी जब उन पर दबाव पड़ेगा. स्वाभाविक रूप से गांव के हित में, किसानो के हित में और गरीबों के हित में काम करने का संस्कार जिन लोगो में नहीं है उन्हे न सरकार बनानी चाहिए और न ही सरकार में रहना चाहिए. सामंती व्यवस्था से पीडि़त इस देश की मानसिकता इतनी खराब हो गई है कि जब तक कहीं से दबाव न पड़े तब तक आम जनता के हित में कुछ भी काम करने को तैयार नहीं है. जब अन्ना हजारे एवं रामदेव का दबाव बढ़ा तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पर काम करने के लिए तैयार हो गये. बिना दबाव के या बिना डंडे के काम नहीं करना है, ऐसा सोचने वाले राजनेता एवं सरकारी कर्मचारियों से यह देश पीडि़त है और इस पीड़ा को लेकर जनता चारों ओर आक्रोशित है.
सही सोच रखने वाले देश के प्रधानमंत्री होते तो इस समय भूमि सुधार परिषद के माध्यम से भूमि से जुड़े तमाम मुद्दों को समझने एवं हल करने की कोशिश करते. सत्ता मे बैठे हुए दलों के पास आप जनता के पक्ष में काम करने की रुचि होती तो इस समय किसानों की आत्म-हत्या, किसानों का आंदोलन एवं आदिवासी क्षेत्रों के हिंसा आदि मुद्दों को लेकर एक व्यापक बहस चलाकर उन समस्याओं के निराकरण को लेकर सरकार एवं सामाजिक संगठनो का संयुक्त अभियान चला दिया होता.
मैने कई बार सरकार से निवेदन किया कि वो भूमि सुधार के संबंध मे क्रांतिकारी कदम न उठाना चाहे, तो भी छोटे-छोटे कदम तो उठाये. पहला कदम है भूमि अधिग्रहण को बंद करना और सार्वजनिक हित मेंयदि भूमि की जरूरत हो तो उसे जन भागीदारी के माध्यम से प्राप्त करना, दूसरा कदम है भूमि और कृषि पर बाजारीकरण को रोकना और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देना, तीसरा कदम है कि जिन गरीब लोगों के जमीन पर दबंग लोगों ने कब्जा किया है या कंपनियों ने मलबा डाला है या वन विभाग ने पेड़ लगाया है उसे इमानदारी से उन किसानों को वापस दिलाना और आक्रमणकारियों को सजा देना. अगला कदम है कि नाले एवं कूड़े के किनारे बसे शहर के झुग्गी झोपडि़यों में पशुवत जिदंगी जीने वाले को अपनी झोपड़ी तैयार करने के लिए पर्याप्त जमीन देना. ऐसा कोई न रहे जिनके पास आवासीय जमीन न हो. यह एक लम्बी सूची है लेकिन यह सूची उनके लिए काम आएगी जिनके अंदर कुछ करने की तमन्ना हो. राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष से यह हो पायेगा ऐसा लगता नहीं है. वे सिर्फ आम आदमी के हित में भाषण दे सकते हैं, लेकिन आम आदमी के हित में काम नहीं कर सकते.
इसी प्रकार किसानों की समस्या हल करने के लिए एकल खिड़की एवं त्वरित गति से काम करने वाले न्यायालय की बात हुई थी. पिछले कई वर्षों से इन सभी सुझावों को आम लोगों से दूर नौकरी करने वोले कुछ सरकारी कर्मचारियों से हाथ का खेल बन कर रह गया है. काम न करने के लिए सौ बहाने हैं. सरकारी अफसरो के चक्कर में न फंसकर आम जनता के हित में काम करना चाहे तो उनके पास अब भी मौका है अगर किसी सरकार ने ठान लिया हो कि हमें देश को बर्बाद कर ही छोड़ना है, चंद पूंजीपतियों के हित में आम जनता को बेकार एवं बेरोजगार रखना ही है तब ऐसे सरकार को समझाना कठिन है. धीरे-धीरे सभी लोग ऐसा महसूस करने लगे हैं कि व्यापक जन संगठन एवं जन आंदोलन के बिना इस देश के सरकार से कुछ भी उम्मीद करना बेमानी है.
इस धारणा को अगर बदलने की दिशा में ईमानदारी से कुछ करना चाहे तो केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के सामने अभी भी वक्त है. समय की पुकार सुनना ही सही समझदारी मानी जायेगी.
(लेखक गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य हैं.)
पूर्वोत्तर की त्रासदी: समाधान की संभावनाएं
असम और अरुणांचल प्रदेश की लम्बी यात्रा पूरा करके अभी-अभी उत्तर प्रदेश से वापस आया हूँ. पूर्वोत्तर के बारे में कहना हो तो, बहुत कुछ है मैं कोशिश कर रहा हूँ, कि कुछ बातें संक्षिप्त में कहूँ.
इस बार की यात्रा एक शांति-सम्मेलन के साथ प्रारम्भ हुई. हम 25-30 लोग निरन्तर इस विषय पर विचार करते रहे कि पूर्वोत्तर में शांति कायम करने के लिए क्या-क्या किया जाए. इस बात पर हमें खुशी हुई, कि जन संगठनों के साथ सरकार की वार्ता चल रही है. बोडो आन्दोलन करीब-करीब शांत हो चुका है,
उल्फा के साथ बातचीत आरम्भ हो चुकी है. भले ही ये प्रयास बहुत लोगों की जान जाने के बाद हो रहा है, तब भी इस प्रयास के लिए सरकार बधाई की पात्र हैं. आगे से इस बात का ध्यान रखा जाए, कि शांतिमय ढंग से प्रारम्भ होने वाले आन्दोलनों को हिंसक नहीं होने दिया जाए. और कहीं हिंसक हुआ तो भी जल्द ही बातचीत के दौरान समस्या का हल खोजा जाए. यह तभी सम्भव होगा जब सरकार में बैठे लोग अहिंसात्मक आन्दोलनों से बात करना सीखें.
सरकारें अपने तौर तरीकों से निरन्तर यह प्रदर्शित करते आ रहे हैं कि वे अहिंसक आन्दोलन से बात करने के लिए तैयार नहीं है. बल्कि हिंसा वालों से बात करने को तैयार हैं ये संदेश अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है, इसलिए सरकार को एक ऐसा विभाग प्रारंभ करना होगा, जो आंदोलनों से संवाद करने की कला जानता हो. उन्हें इस कार्य के लिए प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना भी सरकार की जिम्मेदारी होगी, अन्यथा इस काम में क्षमता रखने वाले कुछ संगठनों को जिम्मेदारी व संसाधन दिया जाए जिससे वे निरन्तर इस प्रयास में लगे रहें और आन्दोलनों को हिंसक होने से रोकें. नक्सली समस्या से पीडि़त प्रांतों को लेकर मैंने कई बार राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्रियों तक यह निवेदन करता रहा कि बातचीत के माध्यम से समस्या हल करने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों को आगे लायें. यह तो दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भारत में सरकारें आज भी बंदूक के शक्ति पर ही विश्वास रखते हैं, न कि बातचीत के शक्ति पर.
देश के कई गणमान्य व्यक्तियों ने मणिपुर में दस साल से अहिंसक आन्दोलन में लगे एरोम शर्मिला से बात करने के लिए सरकार से आग्रह किया लेकिन आज तक सरकार की ओर से इस दिशा में कोई पहल नहीं किया गया. कम से कम अब सरकार इस बात के लिए तैयार हो कि वे जल्दी से जल्दी बातचीत के माध्यम से मणिपुर की समस्या को हल करें ताकि सम्पूर्ण पूर्वोत्तर में शान्त का माहौल बन सके.
शांति-सम्मेलन के दौरान हम इस बात को समझ रहे थे कि पूर्वोत्तर के कई प्रान्तों के बीच में तनाव हैं, कहीं कहीं आदिवासी समूह के बीच में तनाव है कहीं-कहीं अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं बीच में तनाव है, जैसे अरुणांचल प्रदेश में चीन के दबाव के कारण, म्यानमार में हिंसक संगठनों के प्रशिक्षण के कारण और बंग्लादेश से भूमिहीनों के आगमन के कारण तथा अनेक कारणों से पूर्वोत्तर को लेकर निरंतर सोचने के लिए शांति-प्रयास में तीव्रता लाने की दृष्टि से कुछ सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी और संसाधन देना आवश्यक होगा. शांति साधना आश्रम गुवाहाटी जैसे कोई एक संगठन इसमें समन्वयन की भूमिका निभा सकते हैं.
विकास के नये सन्दर्भ को लेकर पूर्वोत्तर में काफी तनाव है. कहा जा रहा है कि ऊर्जा समस्या को हल करने के लिए बह्मपुत्र नदी में कई बांध बनाने की तैयारी के बात चल रही है. इससे विकास तो बहुत दूर लेकिन बाढ़ और अन्य विषमताओं से परेशानी में इजाफा होगा. बह्मपुत्र के साथ इतनी बड़ी छेड़छाड़ भारत के भौगोलिक परिवेश को तो नुकसान पहुंचाएगी ही साथ ही निचले क्षेत्र में स्थित बंग्लादेश को भी भारी क्षति पहुंचेगी. इस बात को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरु हो गया है. सरकार अभी से आंदोलनलनकारियों की बात सुने और समाधान की ओर बढ़े.
चाय असम की पहचान है, लेकिन साथ ही यह एक समस्या भी बनकर सामने आ रही है. लाखों एकड़ जमीन कई वर्षों के लीज पर कई बड़ी कंपनियों को दे रखी है. आम भूमिहीन लोगों के पास भोजन का अभाव है तो दूसरी तरफ चाय के नाम पर लाखों एकड़ जमीन पर कब्जा किया जा चुका है. जब आदिवासी एक पेड़ काटते हैं तो उन्हें अनेक प्रकार की सजा सुनायी जाती है, जबकि लाखों एकड़ जंगल साफ करके चाय बागानों को बढ़ावा दिया गया है.
मैं जहां चाय बागान के मजदूरों से मिला वहां उन के हालत बंधुआ मजदूरों से भी बदतर दिखायी पड़ रहा था. तीन पीढ़ी पहले उड़ीसा से झारखण्ड से और बिहार से आये हुए ये मजदूर लोग आज भी अत्यधिक गरीबी में भविष्य के प्रति बिना किसी उम्मीद के जी रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि इन मजदूरों के हालात सुधारने के लिए चाय बागानों में इन्हें सिर्फ चाय का ही नहीं, लाभ का भी भागीदार बनाने का दबाव बागान मालिकों पर बनें. पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनकर चाय बागान के मालिकों को धनी बनाने का बोझ इन मजदूरों के सिर से हटा देना चाहिए. चूंकि अनाज की तुलना में चाय कोई आवश्यक चीज नहीं है, इसलिए अब चाय बागानों के बन्द करके इन मजदूरों को खेती के लिए जमीन दिया जाना चाहिए ताकि ये लोग भी इंसान जैसा जीवन जी सके.
बह्मपुत्र नदी में दुनिया का सबसे बड़ा टापू मौजूद है, इस टापू का आधा-हिस्सा बाढ़ के कारण गायब हो चुका है, रेत से बना हुआ ये टापू कब तक टिकेगा ये कहना कठिन है. पिछले वर्षों में करीब दो लाख लोग विस्थापित होकर अन्य जगहों पर जाकर बसे हुए है हर वर्ष हजारों लोग विस्थापित हो रहे हैं. ऐसा लगा नहीं कि कहीं इस बात को लेकर कहीं गंभीर चिंतन हो रहा है या माजुली को बचाने का कोई युद्धस्तर पर योजना बन रही हो. असमिया भाषा में कहें तो लाहि-लाहि ढंग से कुछ तो हो रहा है, लेकिन जिस तेजी से होना चाहिए वो नहीं हो रहा है. माजुली कृष्ण भक्तों का तीर्थ स्थल है, सौ के करीब सत्रों में हजारों बच्चे कला और अध्ययन में लगे हुए हैं सभी धमाचार्य अपनी ओर से मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक निवेदन किये हैं पता नहीं कब सरकार जागेगी.
वन अधिकार अधिनियम के तहत वोडो आदिवासियों को जमीन देने का काम अभी भी बाकी है. 1975 से जो लोग वन भूमि पर बैठे हुए हैं उन्हें तक जमीन नहीं दिया गया हैं इतना अच्छा कानून बनने के बावजूद भी जिसे न्याय मिलना चाहिए नहीं मिल रहा है इससे ज्यादा हास्यापद क्या हो सकता है. पूरे देश में आदिवासियों को दुश्मन समझने की वन विभाग की जो वृत्ति है या हर आदिवासी को नक्सली समझने का उतावला पन है, उससे वनविभाग को मुक्ति दिलाना आज की आवश्यकता है.
इस पूरी यात्रा में शांति साधना आश्रम जैसे कई समाजसेवी संगठनों का काम नजदीक से देखने को मिला इन्हीं लोगों कि निष्ठा और कार्यशैली ने पूर्वोत्तर और भारत के अन्य इलाकों को अभी भी जोड़ रखा है. इनके अनुभव और निष्ठा पूर्वोत्तर के शांति और सही विकास प्रक्रिया में काम आ सकता है. और उन्हीं के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत के अन्य भागों से जोड़ने में सफलता मिल सकती है.
(लेखक गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य हैं)
Sunday 14 August 2011
വടക്കുകിഴക്കും വേരുറപ്പിക്കാന് മാവോവാദി ശ്രമം
ന്യൂഡല്ഹി: ഉള്ഫ തീവ്രവാദികളുടെ സഹായത്തോടെ മാവോവാദികള് വടക്കു-കിഴക്കന് സംസ്ഥാനങ്ങളില് വേരുറപ്പിക്കാന് ശ്രമിക്കുന്നു. രാജ്യമെങ്ങും പ്രവര്ത്തനം വ്യാപിപ്പിക്കുന്നതിന്റെ ഭാഗമായാണിത്. ഉള്ഫ വൈസ് പ്രസിഡന്റും അസം ബറ്റാലിയന്റെ നേതാവുമായ പ്രദീപ് ഗൊഗോയാണ് ഇതേക്കുറിച്ച് സൂചന നല്കിയത്. ഉള്ഫ മേഖലയില് സമാധാനം പുനഃസ്ഥാപിക്കാന് ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് വൈസ് പ്രസിഡന്റും മലയാളിയുമായ പി.വി.രാജഗോപാല്, ഗൊഗോയിയുമായി ചര്ച്ച നടത്തിയപ്പോഴാണ് പുതിയ മാവോവാദി ബന്ധത്തിന്റെ വെളിപ്പെടുത്തലുണ്ടായത്.
ഉള്ഫയുടെ ഏഴു ബറ്റാലിയനുകളില് രണ്ടെണ്ണമൊഴികെയുള്ളവയെല്ലാം വെടിനില്ത്തല് പ്രഖ്യാപിച്ചിരിക്കുകയാണ്. കേന്ദ്രസര്ക്കാറുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് ഇടനിലക്കാരനായി അവര് രാജഗോപാലിനെ ക്ഷണിച്ചിരുന്നു. 2008 ഒക്ടോബറില് നിരുപാധിക ചര്ച്ചയ്ക്ക് തയ്യാറാണെന്ന് ഉള്ഫ മേധാവികള് അറിയിച്ചിരുന്നു. ഇക്കാര്യം കേന്ദ്ര ആഭ്യന്തര മന്ത്രാലയത്തെ അറിയിച്ചെങ്കിലും അവര് ഇതുവരെ ചര്ച്ചയ്ക്കു സന്നദ്ധരായിട്ടില്ലെന്ന് രാജഗോപാല് 'മാതൃഭൂമി'യാടു പറഞ്ഞു. സമാധാനശ്രമങ്ങളുടെ ഭാഗമായാണ് ഏപ്രിലില് ഗൊഗോയിയുമായി ചര്ച്ച നടത്തിയത്.
ഗുവാഹട്ടിയില് നിന്നും 350 കിലോമീറ്റര് അകലെയുള്ള ശിവ്സാഗര് ജില്ലയിലായിരുന്നു ഉള്ഫ നേതാക്കളുമായുള്ള ചര്ച്ച. ഉള്ഫയുടെ രാഷ്ട്രീയ ഉപദേശകന് ഭീംകാന്ത് ബര്ഗോയ്, ചെയര്പേഴ്സണ് അര്വീന്ദ് രാജ്കോവ, വിദേശകാര്യ സെക്രട്ടറി സച്ച്ദര് ചൗധരി, ധനകാര്യ സെക്രട്ടറി ചിത്രമോഹന് ഹസാരിക, സേനാ വക്താവ് രാജു ബറുവ, സാംസ്കാരിക സെക്രട്ടറി പ്രണത പൂക്കന് എന്നിവരും ചര്ച്ചയില് പങ്കെടുത്തു. ഉള്ഫ മേധാവി പരസ് ബറുവയുടെ നേതൃത്വത്തിലുള്ള ബറ്റാലിയന് മാത്രമാണ് ഇപ്പോള് സായുധസമരത്തിലുള്ളത്. ഒളിവിലിരുന്നാണ് പരസ് ബറുവയുടെ പ്രവര്ത്തനം.
ബറുവയുടെ സേനയെ ഭയന്ന് ചര്ച്ചയ്ക്കു മുതിരാതിരിക്കുന്ന കേന്ദ്ര നിലപാട് ശരിയല്ലെന്ന് രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. ഭൂരിഭാഗവും ഇപ്പോള് ചര്ച്ചയ്ക്കു തയ്യാറാണ്. ഈ അനുകൂല അന്തരീക്ഷം സര്ക്കാര് ഉപയോഗിക്കണം. ഇല്ലെങ്കില് രാജ്യത്തെ വടക്കുകിഴക്കന് മേഖല വീണ്ടും സംഘര്ഷാവസ്ഥയിലേക്കു നീങ്ങും. അവിടെ മാവോവാദികള് താവളമുറപ്പിക്കുന്ന സ്ഥിതി ഒഴിവാക്കാന് ജാഗ്രത പുലര്ത്തണമെന്നും അദ്ദേഹം ആവശ്യപ്പെട്ടു.
ദേശീയ ഭൂനയം: ഇടപെടാമെന്ന് രാഹുല്ഗാന്ധി
പ്രധാനമന്ത്രിയാണ് ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതി അധ്യക്ഷന്. ഭൂരഹിതരുടെ പ്രശ്നങ്ങള് പരിഹരിക്കുന്നതിന് ആവശ്യമായ സഹായങ്ങള് ചെയ്യാമെന്ന് രാഹുല് ഗാന്ധി ഉറപ്പു നല്കി.
കശ്മീര് ജനതയോടു സംസാരിക്കേണ്ടത് സ്നേഹത്തിന്റെ ഭാഷയില് - ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന്
അടുത്തിടെ കശ്മീര് സന്ദര്ശിച്ച സാമൂഹിക പ്രവര്ത്തകരുടെ പ്രതിനിധി സംഘത്തില് രാജഗോപാല് പങ്കാളിയായിരുന്നു. കോവ എന്ന സന്നദ്ധ സംഘടനയുടെ നേതൃത്വത്തിലാണ് ഓരോ ഘട്ടമായി സാമൂഹിക നേതാക്കളെ കശ്മീരിലെത്തിച്ച് ജനസമ്പര്ക്ക പരിപാടികള് സംഘടിപ്പിക്കുന്നത്. ഗീലാനി, യാസിന് മാലിക്ക് തുടങ്ങിയവരെയെല്ലാം തങ്ങള് കണ്ടു സംസാരിച്ചെന്ന് രാജഗോപാല് 'മാതൃഭൂമി'യോടു പറഞ്ഞു. സമാധാനമാണ് തങ്ങള് ആഗ്രഹിക്കുന്നതെന്ന് യാസിന് മാലിക്ക് കൂടിക്കാഴ്ചയില് അഭിപ്രായപ്പെട്ടു. കശ്മീരിലെ ഭൂരിഭാഗം ജനങ്ങളുടെയും ആഗ്രഹം ഇതാണ്. ഒരു ചെറിയ വിഭാഗം മാത്രമാണ് സംഘര്ഷങ്ങള്ക്കു പിന്നില്. എന്നാല് കശ്മീര് ജനതയെ ഒന്നാകെ സംശയദൃഷ്ടിയോടെ കാണുന്ന സമീപനമാണ് സര്ക്കാറിന്റേതും സേനയുടേതുമെന്നും രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു.
കശ്മീര് ജനതയുടെ ഹൃദയം നേടിയെടുക്കാന് സര്ക്കാര് ഒന്നും ചെയ്തില്ല. സ്നേഹത്തിന്റെയും സാഹോദര്യത്തിന്റെയും ഭാഷയിലാണ് അവരോടു സംസാരിക്കേണ്ടത്. വിമര്ശിക്കുന്നവരെ അടിച്ചമര്ത്തുന്ന സമീപനം മാറ്റണമെന്നും രാജഗോപാല് ആവശ്യപ്പെട്ടു. ഇന്ത്യയിലെ പല സംസ്ഥാനങ്ങളിലും കശ്മീരിലെ ജനങ്ങളെ കൊണ്ടുപോയി സംസാരിപ്പിക്കുന്നതടക്കമുള്ള പരിപാടികള് തങ്ങള് സംഘടിപ്പിക്കുമെന്നും അദ്ദേഹം അറിയിച്ചു. മറ്റു സംസ്ഥാനക്കാര്ക്ക് കശ്മീര് ജനതയെക്കുറിച്ചുള്ള തെറ്റിദ്ധാരണ മാറാനും കശ്മീരുകാര്ക്ക് ഇന്ത്യയെ മുഴുവന് അറിയാനും ഇത്തരം സംവാദങ്ങള് സഹായിക്കുമെന്ന് രാജഗോപാല് അഭിപ്രായപ്പെട്ടു. സ്വാമി അഗ്നിവേശ്, സാമൂഹിക പ്രവര്ത്തക മോഹിനിഗിരി തുടങ്ങിയ ഒട്ടേറെ നേതാക്കള് ഇതിനകം കശ്മീര് സന്ദര്ശിച്ചിരുന്നു. ഡല്ഹിയില് നടന്ന കശ്മീര് ഐക്യദാര്ഢ്യ സമ്മേളനത്തില് അദ്ദേഹം സംസാരിച്ചു.
ഉള്ഫയുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് അരങ്ങൊരുക്കിയത് മലയാളി
ന്യൂഡല്ഹി: രാജ്യത്തിന്റെ വടക്കു-കിഴക്കന് മേഖലയില് സമാധാനത്തിന് വഴിയൊരുക്കി യൂണൈറ്റഡ് ലിബറേഷന് ഫ്രണ്ട് ഓഫ് അസം (ഉള്ഫ) തീവ്രവാദികളും കേന്ദ്രസര്ക്കാറും തമ്മില് ചര്ച്ച പുരോഗമിക്കുകയാണ്. വര്ഷങ്ങള് പഴക്കമുള്ള സംഘര്ഷങ്ങള് സമാധാനത്തിലേക്ക് നീങ്ങുമ്പോള് ഗാന്ധിതത്ത്വങ്ങള് നെഞ്ചോടു ചേര്ത്ത മലയാളി നിശ്ശബ്ദമായി സന്തോഷിക്കുന്നു.
ചോര ചിന്തിയ പോരാട്ടത്തിന്റെ വീറും വാശിയുമില്ലാതെ സര്ക്കാറും തീവ്രവാദികളും ഒരു മേശയ്ക്കു ചുറ്റുമിരിക്കാന് അരങ്ങൊരുക്കിയത് കണ്ണൂര് തില്ലങ്കേരി സ്വദേശി പി.വി.രാജഗോപാല്. ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് ഉപാധ്യക്ഷനാണ് അദ്ദേഹം.
കേന്ദ്രവും ഉള്ഫയും തമ്മിലുള്ള ആദ്യഘട്ടചര്ച്ച പൂര്ത്തിയായി. എന്നാല് രാജഗോപാലും മറ്റു ഗാന്ധിയന്മാരും നടത്തിയ മധ്യസ്ഥശ്രമങ്ങള് വാര്ത്തകളില് ഇടംനേടിയില്ല. അവകാശവാദങ്ങളൊന്നുമില്ലാതെ പി.വി. രാജഗോപാല് മധ്യസ്ഥശ്രമങ്ങള് 'മാതൃഭൂമി'യുമായി പങ്കുവെച്ചു.
ഗുവാഹാട്ടിയിലെ ശാന്തി സാധന ആശ്രമത്തിലെ ഹേം ഭായിയാണ് മധ്യസ്ഥതയ്ക്കായി പേരു നിര്ദേശിച്ചത്. നിരന്തര ശ്രമങ്ങളിലൂടെ ചമ്പല്ക്കൊള്ളക്കാരെ കീഴടങ്ങാന് പ്രേരിപ്പിച്ചത് ഓര്ത്തെടുത്താണ് ഹേം ഭായി ഇതിനു തുനിഞ്ഞത്. 2008 ഒക്ടോബര് 12 ന് ഉള്ഫ 28-ാം ബറ്റാലിയന് കമാന്ഡര് മൃണാള് ഹസാരികയുമായിട്ടായിരുന്നു ഒന്നാംവട്ട ചര്ച്ച. സര്ക്കാര് സമാധാനത്തിനു മുന്കൈയെടുത്താല് സഹകരിക്കുമെന്ന് ഹസാരിക അറിയിച്ചതു പ്രതീക്ഷയായി.
ഉള്ഫയുടെ നേതാക്കളില് പലരും ചൈനയിലും ബംഗ്ലാദേശിലുമൊക്കെ ഒളിച്ച് സുഖജീവിതം നയിക്കുന്നതും സാധാരണ പോരാളികളെ മുന്നിരയിലേക്കു തള്ളിവിടുന്നതും അവര്ക്കിടയില് മടുപ്പുണ്ടാക്കിയിരുന്നു. കേന്ദ്രസര്ക്കാറുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് തങ്ങളെ പ്രതിനിധാനം ചെയ്യാന് ഹേം ഭായിയെയും രാജഗോപാലിനെയും നിശ്ചയിച്ചതായി ഹസാരിക രേഖാമൂലമുള്ള അറിയിപ്പും നല്കി. തുടര്ന്ന് രാജഗോപാല് ആഭ്യന്തര സഹമന്ത്രിയായിരുന്ന ശ്രീ പ്രകാശ് ജയ്സ്വാളുമായി ഇക്കാര്യം ചര്ച്ച ചെയ്തു. പ്രധാനമന്ത്രിയുടെ ഓഫീസിനെയും പ്രതിരോധമന്ത്രി എ.കെ. ആന്റണിയെയുമെല്ലാം വിവരങ്ങള് അറിയിച്ചു.
ഇടയ്ക്കുവെച്ച് ഉള്ഫ നേതാക്കളായ രാജ്ഖോവ ഉള്പ്പെടെയുള്ളവരെ അറസ്റ്റു ചെയ്ത് ജയിലിലടച്ചത് സമാധാനശ്രമങ്ങളെ ബാധിക്കുമോയെന്ന് ആശങ്ക പടര്ന്നിരുന്നു. എന്നാല് 2010 ഏപ്രില് 18 ന് രാജഗോപാലും മുതിര്ന്ന ഗാന്ധിയന് സുബ്ബറാവുവും കൂടി ഗുവാഹാട്ടി സെന്ട്രല് ജയിലിലെത്തി ഉള്ഫ നേതാക്കളുമായി വീണ്ടും ചര്ച്ച നടത്തി. ഇന്ത്യന് ജനതയ്ക്കെതിരല്ലെന്ന് ഉള്ഫ നേതാക്കള് പറഞ്ഞു. എന്നാല് ഇന്ത്യയിലെ വ്യവസ്ഥാപിത അടിച്ചമര്ത്തല് നയങ്ങളെ അവര് എതിര്ത്തു. രാഷ്ട്രീയ പരിഹാരമാണ് അവര് ആവശ്യപ്പെട്ടത്. ''ഐക്യരാഷ്ട്ര സംഘടനയെയും മറ്റും മധ്യസ്ഥരാക്കി ചര്ച്ചയ്ക്ക് ശ്രമിച്ച് ഞങ്ങള് പരാജയപ്പെട്ടു. ഞങ്ങള്ക്ക് തെറ്റു പറ്റിയിട്ടുണ്ട്. അതിനെല്ലാം ശിക്ഷ അനുഭവിക്കുകയും ചെയ്യാം. എന്നാല് ഞങ്ങളെ അടിച്ചമര്ത്തി ഇല്ലാതാക്കുന്ന സര്ക്കാര് സമീപനം തിരുത്തണം. അസമിലെ സാധാരണക്കാരന്റെ പ്രശ്നങ്ങളാണ് ഞങ്ങള് ഉന്നയിക്കുന്നത്. ഇതിനകം 12,000 ത്തോളം പേര് കൊല്ലപ്പെട്ടു കഴിഞ്ഞു. ഇനിയും ഇതു തുടരണമെന്ന് ഞങ്ങള്ക്ക് ആഗ്രഹമില്ല. എന്നാല് ഞങ്ങളെ ജയിലലടച്ച് സര്ക്കാര് ചര്ച്ചയ്ക്കു വന്നാല് അതിനു തയ്യാറാവില്ല'' -ഇതായിരുന്നു ഉള്ഫ നേതാക്കള് ചര്ച്ചയില് പറഞ്ഞത്.
തുടര്ന്ന് അസം ഗവര്ണര് ജെ.ബി. പട്നായിക്കിനെയും മുഖ്യമന്ത്രി തരുണ് ഗൊഗോയിയെയും നേരില്ക്കണ്ട് രാജഗോപാല് ഇക്കാര്യങ്ങളെല്ലാം ധരിപ്പിച്ചു. സ്വതന്ത്രഭരണം എന്ന വാശി ഉള്ഫ ഉപേക്ഷിച്ചതായി അസം സര്ക്കാര് ആഭ്യന്തര മന്ത്രി പി.ചിദംബരത്തെയും അറിയിച്ചു. ഇന്ത്യന് ഭരണഘടനയ്ക്ക് അനുസൃതമായി പ്രവര്ത്തിക്കാനുള്ള ഉള്ഫയുടെ സന്നദ്ധത കേന്ദ്രസര്ക്കാറിലും താത്പര്യം ജനിപ്പിച്ചു. ആഭ്യന്തരമന്ത്രി ചിദംബരവും ആഭ്യന്തര സെക്രട്ടറി ജി.കെ. പിള്ളയും മധ്യസ്ഥ ചര്ച്ചകളില് സജീവ പങ്കാളികളായി.
തൊഴിലില്ലായ്മയും ബംഗ്ലാദേശില് നിന്നുള്ള അനധികൃത കുടിയേറ്റവുമാണ് അസമിലെ അസ്വസ്ഥതകള്ക്കു കാരണമെന്ന് രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. രാഷ്ട്രീയ ചര്ച്ചകളിലൂടെ മാത്രമേ രാജ്യത്തെ സംഘര്ഷങ്ങള്ക്ക് അറുതി വരുത്താനാവൂ. ഇതിനായി പ്രത്യേക സംഘത്തെ കേന്ദ്രസര്ക്കാര് നിയോഗിക്കണമെന്നും അദ്ദേഹം ആവശ്യപ്പെട്ടു. ഉള്ഫയുമായുള്ള ഇപ്പോഴത്തെ ചര്ച്ചകള് ഫലം കാണുമെന്ന് ശുഭാപ്തി വിശ്വാസമുണ്ടെന്നും രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു.
തൊഴിലുറപ്പുപദ്ധതിയില് നിയമലംഘനം വ്യാപകം
* അംഗങ്ങളുടെ അറിവില്ലായ്മ മുതലെടുക്കുന്നു
* 'മേറ്റുമാര്' നിഷ്ക്രിയം
സംസ്ഥാനസര്ക്കാര് രൂപവത്കരിച്ച സംസ്ഥാന സോഷ്യല് ഓഡിറ്റ് സെല്ലിന്റെ നേതൃത്വത്തില് ജില്ലയില് പുതശ്ശേരി പഞ്ചായത്തില്നടന്ന മാതൃകാ സോഷ്യല് ഓഡിറ്റിലാണ് ഇക്കാര്യങ്ങള് വെളിപ്പെട്ടത്.
എസ്റ്റിമേറ്റ് തയ്യാറാക്കുന്നതിലും പണി നടത്തിപ്പിലുമെല്ലാം ക്രമക്കേടുകള് വന്തോതിലുണ്ട്.
തൊഴിലുറപ്പുപദ്ധതിപ്രകാരം പണിയെടുത്താല് 15 ദിവസത്തിനകം വേതനം നല്കിയിരിക്കണമെന്നാണ് വ്യവസ്ഥ. വൈകുന്ന ഓരോദിവസത്തിനും നഷ്ടപരിഹാരത്തിന് അര്ഹതയുണ്ട്. മൂന്നുമാസവും ആറുമാസവുംവരെ കഴിഞ്ഞിട്ടും വേതനം കിട്ടിയിട്ടില്ലെന്ന് ഒട്ടേറെസ്ത്രീകള് ചൂണ്ടിക്കാട്ടി.
100 പണിക്ക് തയ്യാറായിട്ടും 50 പണിയേ ലഭിക്കുന്നുള്ളൂവെങ്കില് ഉത്തരവാദികളായവര് നഷ്ടപരിഹാരം നല്കാന് ബാധ്യസ്ഥരാണെന്ന കാര്യവും സ്ത്രീകള്ക്കറിയില്ല. ഇത്തരം വീഴ്ചകള്ക്ക് പഞ്ചായത്ത് ആദ്യം തനത്ഫണ്ടില്നിന്ന് നഷ്ടപരിഹാരം നല്കണം. ഇങ്ങനെ നല്കുന്ന തുക വിഴ്ചയ്ക്ക് ഉത്തരവാദികളായവരില്നിന്ന് ഈടാക്കണമെന്ന് വ്യവസ്ഥയുള്ളതായും എന്.ആര്.ഇ.ജി.എം. സംസ്ഥാന പ്രോഗ്രാം ഓഫീസര് ഡോ. എബി ജോര്ജ് പറഞ്ഞു.
പണിയെടുക്കുന്നവര് സ്വന്തം പണിയായുധങ്ങള് ഉപയോഗിച്ചാല് അതിന് വാടക ലഭിക്കാന് അര്ഹതയുണ്ടെന്ന വിവരവും തൊഴിലാളികള്ക്ക് പുതുതായിരുന്നു. തൊഴിലുപകരണങ്ങളുടെ വാടകയിനത്തില് രണ്ടുവര്ഷത്തിനിടെ കുടുംബശ്രീയുടെ അക്കൗണ്ടിലേക്ക് മാറ്റിയ 11,77,780 രൂപയെക്കുറിച്ചും അതെങ്ങനെ ചെലവഴിച്ചുവെന്നതിനെക്കുറിച്ചും ബന്ധപ്പെട്ടവര്ക്ക് ഒരുവിവരവുമില്ലെന്നും യോഗത്തില് വെളിപ്പെട്ടു.
പദ്ധതിയില്പ്പെട്ടവര്ക്ക് പണിസ്ഥലത്തുവെച്ച് അസുഖമോ അപകടമോ ഉണ്ടായാല് മുഴുവന് ചെലവും തൊഴിലുറപ്പുപദ്ധതിയില്നിന്ന് വഹിക്കണമെന്ന വ്യവസ്ഥയും പാലിക്കപ്പെടുന്നില്ല.
തൊഴില്കാര്ഡുകള് മേറ്റുമാര് സ്ഥിരമായി കൈവശംവെക്കുന്നതിനെതിരെ ഉദ്യോഗസ്ഥര് മുന്നറിയിപ്പുനല്കി. കാര്ഡില് വിശദവിവരങ്ങളൊന്നും രേഖപ്പെടുത്താതിരിക്കുന്നതിനെക്കുറിച്ചും വിമര്ശനമുണ്ടായി.
പുതശ്ശേരി പഞ്ചായത്തില് തൊഴിലുറപ്പുപദ്ധതിയുടെ ഭാഗമായി നടത്തിയ ശ്മശാനനിര്മാണം ഉള്പ്പെടെ പലപദ്ധതികളിലും പണിയുടെ അളവുകള് പെരുപ്പിച്ച് ലക്ഷങ്ങളുടെ ക്രമക്കേട് നടന്നതായി പ്രാഥമിക പരിശോധനയില് വ്യക്തമായതായും സോഷ്യല് ഓഡിറ്റിങ്ങില് വെളിപ്പെടുത്തി. ഇത്തരം പദ്ധതികളില് വിശദമായ പരിശോധനയ്ക്ക് തീരുമാനിച്ചിട്ടുണ്ടെന്നും ക്രമക്കേടിനുത്തരവാദികളായവര് മറുപടി പറയേണ്ടിവരുമെന്നും പ്രോഗ്രാം ഓഫീസര് പറഞ്ഞു.
പുതുശ്ശേരി പഞ്ചായത്ത് പ്രസിഡന്റ് കെ.എന്. ശ്രീദേവി അധ്യക്ഷയായി. ജനനീതി ഡയറക്ടര് ഫാ. ജോര്ജ് പുലിക്കുത്തി, സര്വോദയമണ്ഡലം സംസ്ഥാന സെക്രട്ടറി പുതുശ്ശേരി ശ്രീനിവാസന്, സോഷ്യല്ഓഡിറ്റ് കണ്സള്ട്ടന്റ് സേതു നസീര്, പഞ്ചായത്തംഗങ്ങളായ എന്. മുരളീധരന്, രജിത ശിവദാസ്, പി. രാജന്, റിസോഴ്സ്പേഴ്സണ് ഗിരീന് കടുന്തുരുത്തി തുടങ്ങിയവരും പങ്കെടുത്തു.
ഗാന്ധിമാര്ഗത്തിലൂടെ ഒരാള്
നേരമായ് നേരമായ് പുത്തന് പുലരിതന്
തേരിരുള് പക്ഷികള് കേള്ക്കയായ്
ഉള്ളവനില്ലാത്തവനെന്നഭേദത്തെ-
യില്ലാതെയാക്കും ദിനം വരുന്നു.
ഗാന്ധിദര്ശനങ്ങളിലൂടെ ഇന്ത്യയിലെ പാവപ്പെട്ടവര്ക്കും അശരണര്ക്കും വേണ്ടി പൊരുതാന് കണ്ണൂരിന്റെ മണ്ണില്നിന്നൊരു കര്മയോഗി. മട്ടന്നൂര് തില്ലങ്കേരി ഗ്രാമത്തില് സ്വാതന്ത്ര സമരസേനാനി പുത്തന്വീട്ടില് ചാത്തുകുട്ടി നമ്പ്യാരുടേയും മാധവിയമ്മയുടേയും നാലാമത്തെ മകന് പി.വി. രാജഗോപാല്. വാക്കിലും നോക്കിലും അടിയുറച്ച ഗാന്ധിയന്. എളിമയും വിനയവും മുഖമുദ്ര.
ചിലര്ക്കു ചില നിയോഗങ്ങളുണ്ട്; ജീവിതത്തെ എങ്ങനെയൊക്കെ ആക്കിത്തീര്ക്കണമെന്ന്. അതൊരു സ്വാഭാവിക പരിണാമപ്രക്രിയയാണ്. വളരെ ചെറുപ്പത്തില്ത്തന്നെ ഗാന്ധിയന് തത്വങ്ങള് ഹൃദയത്തെ കീഴടക്കിയ ഈ മനുഷ്യന് അറുപത്തിമൂന്നാം വയസിന്റെ നിറവിലും തളരാതെ ദരിദ്രരുടെ ഉന്നമനത്തിനായി ഇന്ത്യയിലെ ഗ്രാമങ്ങളിലൂടെ ഓടിനടക്കുകയാണ്. എല്ലായിടത്തും അദ്ദേഹം കേള്ക്കുന്നതു പാവപ്പെട്ടവരുടേയും ആദിവാസിജനതയുടേയും നിലവിളികളാണ്. ജനാധിപത്യത്തിന്റെ മൂല്യച്യുതികളില് വേദനിക്കുന്ന അദ്ദേഹം ഭരണവര്ഗത്തോടു ചോദിക്കുന്നത് ഇതാണ്: ''നിങ്ങള് ഗാന്ധിയന് വേഷവും തലയില് തൊപ്പിയുംവച്ച് ഗാന്ധിയുടെ നാട്ടില് അദ്ദേഹത്തിനെതിരായി പ്രവര്ത്തിക്കുന്നതെന്തുകൊണ്ടാണ്?''
സൂര്യന് അസ്തമിക്കാത്ത ബ്രിട്ടീഷ് സ്വേഛാധിപത്യത്തോട് മാറുമറയ്ക്കാതെ അരയില് ഒറ്റമുണ്ടും കൈയില് കുത്തുവടിയുമായി ഒരു മനുഷ്യന് പട്ടിണി സമരത്തിലൂടെ നേടിയ സ്വാതന്ത്യം ഇന്നു മണ്ണില് പണിയെടുക്കുന്നവര്ക്കും പാര്ശ്വവല്ക്കരിക്കപ്പെട്ട ആദിവാസിജനതയ്ക്കും ലഭിക്കാത്തതില് മനംനൊന്ത് മറ്റൊരു സ്വാതന്ത്ര പുലരി സ്വപ്നംകണ്ട് ഒരു ജനതയെ സമരസജ്ജമാക്കുകയാണ് രാജാജി എന്ന പി.വി. രാജഗോപാല്. അദ്ദേഹം ബാരിസ്റ്ററല്ല. ഇന്ത്യയിലെ നിസ്വവര്ഗത്തിന്റെ പിന്തുണയേ അദ്ദേഹത്തിനുള്ളൂ. ജനാധിപത്യത്തിന്റെ മൂല്യച്യുതികള്ക്കെതിരേ 'ജയ് ജഗത്... ജയ് ജഗത് പുഗാരുജാ' എന്ന മുദ്രാവാക്യം മുഴക്കി ഭരണവര്ഗത്തിന്റെ ഉറക്കം കെടുത്തുന്ന സമരപരമ്പര ഒരുക്കുകയാണ് ഇന്നീ മലയാളി. അതിനുവേണ്ടി അദ്ദേഹം ഇന്ത്യന് ഗ്രാമങ്ങളിലൂടെ വര്ഷങ്ങളോളം നടന്ന് ആയിരക്കണക്കിനു യുവാക്കളെയാണ് പ്രബുദ്ധരാക്കി 'ഞങ്ങള്ക്കു ഭൂമി തരൂ, ജലം തരൂ, വിദ്യതരൂ' എന്ന ജീവിതാവകാശം പഠിപ്പിച്ചത്.
വിപ്ലവസമരത്തിന്റെ മണ്ണില്നിന്നു ചോരചിന്താത്ത സന്ദേശവുമായി ഒരു മനുഷ്യന് ഇതാ ഇറങ്ങിവരുന്നു. രണ്ടാം ലോകമഹായുദ്ധകാലത്ത് ജന്മിമാര് വീടിന്റെ അറകളില് ഒളിപ്പിച്ചുവച്ച നെല്ലുസംഭരണികള് കുത്തിത്തുറന്നു പാവപ്പെട്ടവര്ക്കു വിതരണംചെയ്ത വിപ്ലവസമരത്തിന്റെ തീജ്വാലയില്നിന്ന് എങ്ങനെയാണ് ഗാന്ധിമാര്ഗത്തില് ഒരാള് ജനിക്കുന്നത്? കയ്യൂരും കരിവള്ളൂരും കാവുമ്പായിയും സര്ദാര് ചന്ദ്രോത്തും സഖാവ് കൃഷ്ണപിള്ളയുമെല്ലാം അദ്ദേഹത്തിന്റെ മനസില് ഇന്നും നിറഞ്ഞ ഓര്മകളാണ്.
അദ്ദേഹം പറയുന്നു. ''എന്റെ കുട്ടിക്കാലത്ത് കമ്യൂണിസ്റ്റ് പ്രസ്ഥാനത്തിന്റെ വലിയ മുന്നേറ്റം നടക്കുന്ന സ്ഥലമായിരുന്നു തില്ലങ്കേരി. അന്ന് ജന്മിമാരുടെ നെല്ലറ തേടി വിപ്ലവകാരികളൊക്കെ പോകുന്നതു കണ്ടിട്ടുണ്ട്. തില്ലങ്കേരിയിലും രക്തസാക്ഷികളുണ്ടായിട്ടുണ്ട്. എന്റെ ഒരമ്മാവന് അനന്തന് നമ്പ്യാര് അന്നു പാര്ട്ടി പാര്ലമെന്റില് അംഗമായിരുന്നു. ഒരുവശത്ത് കമ്യൂണിസ്റ്റ് പ്രസ്ഥാനം ശക്തമാകുമ്പോള് മറുവശത്ത് അഹിംസയുടെ തത്വം പഠിപ്പിച്ച് ഗാന്ധിയന്മാരും സജീവമായിരുന്നു അച്ഛനോടൊപ്പം. പിന്നീടാണ് ഭൂദാന പ്രസ്ഥാനമൊക്കെ വേരുപിടിച്ചത്. വിനോബാ ഭാവെജിയൊക്കെ കേരളത്തില്വന്നു ഭൂമിയൊക്കെ പാവപ്പെട്ടവര്ക്കു വിതരണംചെയ്യുന്ന സമയത്ത് ഞാനുമുണ്ടായിരുന്നു. നന്നേ ചെറുപ്പത്തില്ത്തന്നെ അക്കൂട്ടത്തില് സജീവമായി.''
രാമാനാട്ടുകരയിലെ സ്കൂള്
രാജാജിയുടെ അച്ഛന് സ്വാതന്ത്ര്യസമര പ്രസ്ഥാനങ്ങളില് സജീവമായിരുന്നു. വീടിനുചുറ്റും കൊല്ലും കൊലയും നടക്കുമ്പോള് മകനെ മടിയിലിരുത്തി അച്ഛന് വന്ദേമാതരം ചൊല്ലിക്കേള്പ്പിക്കുമായിരുന്നു. കുട്ടിക്കാലത്ത് തില്ലങ്കേരിത്തോട്ടില് കുളിച്ചതും കുന്നും കുലദൈവങ്ങളുമെല്ലാമുള്ള നാട്ടിലെ പഴയ തറവാട്ടുവീട്ടിലെ ഓര്മകളുമെല്ലാം അദ്ദേഹം ചികഞ്ഞെടുത്തു പങ്കുവച്ചു.
അച്ഛന്റെ നിര്ദേശപ്രകാരമാണ് രാജഗോപാല് ഗാന്ധിയന് തത്വങ്ങള് പഠിക്കാന് രാമാനാട്ടുകരയിലെ സേവാമന്ദിരത്തിലേക്കു പോയത്. അന്നു രാധാകൃഷ്ണ മേനോനായിരുന്നു സ്കൂള് മാനേജര്. കഥകളിയോടായിരുന്നു കൂടുതല് കമ്പം. കുറച്ചുകാലം കലാമണ്ഡലത്തില് പോയി. ഗാന്ധിദര്ശനങ്ങളില് ആകൃഷ്ടനായി അവിടെനിന്നു നേരേ മഹാരാഷ്ട്രയിലെ സേവാഗ്രാമിലേക്ക്.
അവിടെ ചര്ക്ക തിരിക്കലും നൂല്നൂല്പ്പുമൊക്കെയായി വര്ഷങ്ങള് കടന്നുപോയി. അന്നൊക്കെ വിദ്യ ജീവനുവേണ്ടിയാണ്, ജോലിക്കുവേണ്ടിയല്ല. ഗ്രാമങ്ങള്ക്കുവേണ്ടി, സമൂഹത്തിനുവേണ്ടി, വിദ്യനേടുക എന്നതായിരുന്നു സിദ്ധാന്തം. അക്കാലത്ത് ദരിദ്രരെ സഹായിക്കണമെന്ന നീതിബോധമായിരുന്നു മനസുനിറയെ.
എങ്കിലും അന്നു സേവാഗ്രാമില്നിന്നു തിരിച്ചുവരാമെന്നുള്ള ചിന്തയിലായിരുന്നു പോയത്. പക്ഷേ, അതുണ്ടായില്ല. കാരണം,1969-ല് ഗാന്ധിയുടെ നൂറാം ജന്മദിനം; മോഹന് എന്ന പയ്യന് എങ്ങനെ മഹാത്മാവായി എന്ന കഥ രാജ്യമെങ്ങും പ്രചരിപ്പിക്കാന് നിയോഗിക്കപ്പെട്ടത് രാജഗോപാലനെന്ന പയ്യനെ ആയിരുന്നു. അതൊരു കടമയായി അദ്ദേഹം ഏറ്റെടുത്തു. പിന്നീട് 'ഗാന്ധിദര്ശന്' എന്ന പത്തു കമ്പാര്ട്ടുമെന്റുകളുള്ള തീവണ്ടിയില് ഗാന്ധിസ്മരണകളുടെ പുസ്തകങ്ങളും ചരിത്രവസ്തുക്കളുമായി ഇന്ത്യയിലുടനീളം പ്രദര്ശനയാത്ര. രാത്രി മുഴുവന് തീവണ്ടി ഓടും. പകല് ഏതെങ്കിലും പട്ടണത്തില് എക്സിബിഷന്. ഒരു വര്ഷത്തോളം രാജാജി ഇങ്ങനെ ഇന്ത്യ മുഴുവന് കറങ്ങി. അങ്ങനെ ഇന്ത്യയെ കൂടുതല് അറിയാന് സാധിച്ചു. ഗ്രാമങ്ങളിലായിരുന്നു സത്യത്തില് ഗാന്ധിസം പഠിപ്പിക്കേണ്ടതെന്നു തിരിച്ചറിഞ്ഞ അദ്ദേഹവും സംഘവും പിന്നീട് ചമ്പല് ഗ്രാമങ്ങളിലേക്കാണു പോയത്. ഗാന്ധിയന്മാര് 'അഹിംസ അഹിംസ' എന്നു പറഞ്ഞുനടന്നിട്ടു കാര്യമില്ല. ആ ബോധം ജനങ്ങളിലെത്തിക്കുകയാണു വേണ്ടത്. അതിനായിരുന്നു ചമ്പലിലേക്കുള്ള യാത്ര. ഗാന്ധിമാര്ഗം യഥാര്ഥ ഗ്രാമസേവനമാണെന്നു പ്രചരിപ്പിക്കുകയായിരുന്നു ഉദ്ദേശ്യം. പുതുതലമുറ ഗാന്ധിദര്ശനങ്ങളില് വിമുഖരാകുന്നതില് അദ്ദേഹം അന്നും ഇന്നും ദുഃഖിക്കുകയാണ്.
ചമ്പല്കൊള്ളക്കാര്മൂലം ജീവിക്കാന്പറ്റാത്ത എഴുപതുകള്. ഇക്കാലത്താണു രാജാജിയും സംഘവും ചമ്പല് ഗാട്ടി(താഴ്വാരം)യിലെത്തുന്നത്. ജീവന് പണയംവച്ചുള്ള ഗാന്ധിമാര്ഗം പ്രചരിപ്പിക്കല് അന്ന് ആവേശമായിരുന്നു. ചമ്പല്കൊള്ളക്കാരുടെ ആക്രമണം രൂക്ഷമായ മൊറാന ജില്ലയിലെ ജ്വാരാ ഗ്രാമത്തിലേക്കാണ് ആദ്യം പോയത്. ഗ്രാമങ്ങളില് അന്നു സ്കൂള് നടത്താനും ബസോടിക്കാനും കച്ചവടം നടത്താനും കഴിയാത്ത അവസ്ഥയായിരുന്നു. ഇരുപതോളം ജില്ലകളുള്ള ചമ്പല് ഗാട്ടിയിലെ നദിക്കരയിലാണ് അവര് ആദ്യമായി ആശ്രമം പണിതത്. എവിടെയും കൊള്ളയും കൊലയും തട്ടിക്കൊണ്ടുപോകലും നിറഞ്ഞുനില്ക്കുന്ന സമയം. സന്ധ്യയായാല് ഗ്രാമീണര് വാതിലുകളടച്ചു കുറ്റിയിട്ട് വീടിനുള്ളില്ത്തന്നെ കൂടും.
രാജാജിയുടെ സംഘത്തോടു ഗ്രാമവാസികള് പറഞ്ഞു. 'കൊള്ളക്കാരറിഞ്ഞാല് വച്ചേക്കില്ല. വേഗം ഗ്രാമം വിട്ടുപൊയ്ക്കൊള്ളൂ' എന്നൊക്കെ. ഗ്രാമീണര്ക്കായിരുന്നു യുവാക്കളെ മരണത്തിനു വിട്ടുകൊടുക്കുന്നതില് കൂടുതല് വിഷമം. അന്നു കൊള്ളക്കാര് മണ്റോഡിലൂടെ കുതിരപ്പുറത്തും മോട്ടോര് സൈക്കിളിലുമൊക്കെ തോളത്തു തോക്കും അരയില് വെടിയുണ്ട ബെല്റ്റുമൊക്കെയിട്ടു പോകുന്നതു കാണാമായിരുന്നു. അതുകാണുമ്പോഴേക്കും ആളുകള്വീടിനുള്ളില് ഒളിക്കുമെന്നു രാജാജി ഓര്മിക്കുന്നു.
''എനിക്കന്നു നന്നായി ഹിന്ദി പറയാന് പോലുമറിയില്ല. 22 വയസ്. എന്നിട്ടും ഞങ്ങള് തിരിച്ചുപോകാന് കൂട്ടാക്കിയില്ല. ചമ്പല്നദിക്കരയില് ആശ്രമംകെട്ടി ഗാന്ധിസം പഠിപ്പിക്കാന് തുടങ്ങി. കുറച്ചുനാളുകള് കഴിഞ്ഞപ്പോഴേക്കും ഞങ്ങളെത്തേടി കൊള്ളക്കാരെത്തി. അവര് അടിച്ചും തൊഴിച്ചും ഞങ്ങളുടെ കൈ പുറകോട്ടു കെട്ടി വായില് തുണി തിരുകി. തോക്ക് നെഞ്ചിലേക്കുവച്ച് വേഗം ഗ്രാമം വിടണമെന്നു ഭീഷണിപ്പെടുത്തി. ഞങ്ങള് വിവരം പറഞ്ഞു. ഗാന്ധിയന്മാരാണന്നും ഗ്രാമീണര്ക്കു സേവനം ചെയ്യാന് വന്നതാണന്നും.അതുകൊണ്ടവര് ഞങ്ങളെ കൊന്നില്ല. പക്ഷേ, എത്രയും വേഗം സ്ഥലംവിടാന് കല്പ്പിച്ചു. എന്നിട്ട് ഞങ്ങളുടെ പശുവിനേയും ടോര്ച്ചും സൈക്കിളുമെല്ലാം കൊണ്ടുപോയി.
എന്നിട്ടും പിന്തിരിയാതിരുന്ന ഞങ്ങള് ഗ്രാമീണരുടെ പ്രിയപ്പെട്ടവരായി. ആ സംഭവം ഞങ്ങള് അവരുടെ സംരക്ഷകരാണെന്ന ബോധം അവരില് വളര്ത്താന് സഹായിച്ചു. വിവരമറിഞ്ഞ് ജയപ്രകാശ് നാരായണ്ജി എത്തിയതോടെ എല്ലാവര്ക്കും ധൈര്യമായി. കൊള്ളക്കാരെ കീഴടക്കണമെന്ന ചിന്ത അങ്ങനെ എല്ലാവരിലും ശക്തമായി. അതിനു ഗ്രാമീണരുടെ പിന്തുണ കിട്ടി. എല്ലാ തരത്തിലും ആശ്രമത്തിലുള്ളവരെ ഗ്രാമീണര് സഹായിച്ചു. ഭക്ഷണവും അരിയും ഗോതമ്പുമൊക്കെയായി ഓരോ വീട്ടുകാരും ആകുന്ന സംഭാവന നല്കി. അതോടെ ഗ്രാമീണരെ സംരക്ഷിക്കാന് ആള്ക്കാരുവന്നുവെന്ന് എല്ലായിടത്തും പ്രചരിച്ചു. പക്ഷേ, കൊള്ളക്കാരെ മാപ്പുപറയിക്കല് യാഥാര്ഥ്യമായപ്പോഴാണ് ഗാന്ധിമാര്ഗത്തിന്റെ പ്രസക്തിയും ശക്തിയും ശരിക്ക് അനുഭവിച്ചത്.'' രാജാജി പറഞ്ഞു.
അന്ന് കൊള്ളത്തലവന്മാരായ മാധവ് സിംഗിനും മോര്സിംഗിനും തലയ്ക്കു പത്തുലക്ഷം രൂപ വിലയുണ്ടായിരുന്നു. കീഴടങ്ങുന്നവരെ ശിക്ഷിക്കില്ലെന്നും നല്ലനടപ്പിനു വിടുമെന്നും പുനരധിവാസിപ്പിക്കുമെന്നുമൊക്കെ മധ്യപ്രദേശ് സര്ക്കാരിനെക്കൊണ്ടു പ്രഖ്യാപിപ്പിച്ചിരുന്നു. അതിനുശേഷമാണ് ഗാന്ധിയന്മാര് അഹിംസാ സിദ്ധാന്തങ്ങളുമായി കാടുകേറിയത്.
1972 ഏപ്രില് 12നാണ് കുറച്ചുകൊള്ളക്കാര് ആശ്രമത്തില് ആദ്യമായി വന്നു കീഴടങ്ങിയത്. അതറിഞ്ഞു പതിനായിരക്കണക്കിനു ജനമാണു തടിച്ചുകൂടിയത്. മുന്നൂറു പേരെ കൊന്നവര്വരെ അക്കൂട്ടത്തിലുണ്ടായിരുന്നു. കീഴടങ്ങിയവരുടെ കുടുംബങ്ങളുടെ രക്ഷയ്ക്കായി രാജാജിയും സംഘവും പിന്നീട് നെട്ടോട്ടം. അവരുടെ മക്കളുടെ പഠിത്തം ശ്രദ്ധിക്കണം, ഉപജീവന മാര്ഗങ്ങള് നിര്ദേശിക്കണം... അങ്ങനെ കുറേകാര്യങ്ങള്.
തുടര്ന്ന് നൂറുകണക്കിനു ഗ്രാമങ്ങളിലൂടെ സഞ്ചരിച്ച് യുവാക്കളെ ഗാന്ധിസം പഠിപ്പിച്ചു. ഒപ്പം രാമായണവും ഗീതയും ശീലിപ്പിച്ചു. അതിന് എസ്.എന്. സുബ്ബറാവുവും ജയപ്രകാശ് നാരാണ്ജിയും സഹായിച്ചു. അതോടെ ഗ്രാമങ്ങളിലെല്ലാം ഗാന്ധിയന് തത്വങ്ങളുടെ പ്രസക്തി വര്ധിച്ചു. ചമ്പല്കൊള്ളക്കാരെ സൃഷ്ടിച്ചത് ജന്മിവര്ഗത്തിന്റെ ഭൂമിപിടുത്തവും ഗ്രാമീണര്ക്കുമേലുള്ള കുതിരകയറ്റവുമായിരുന്നു.അതില് സഹികെട്ടായിരുന്നു കുറച്ചുപേര് കാടുകേറി കൊള്ളക്കാരായത്. ഫൂലന്ദേവിയൊക്കെ പിന്നീടാണു വന്നതെന്നു രാജാജി പറഞ്ഞു. അര്ജുന് സിംഗിന്റെ കാലത്താണത്. അന്നൊക്കെ ഭൂമിവിറ്റാണ് എല്ലാവരും തോക്കുവാങ്ങി തോളിലിട്ടു നടന്നിരുന്നത്. അതവര്ക്ക് അഭിമാനത്തിന്റയും ആഡംബരത്തിന്റെയും അടയാളമായിരുന്നു.അന്നു ചോദിക്കുന്നവര്ക്കൊക്കെ സര്ക്കാര് ലൈസന്സ് കൊടുക്കുമായിരുന്നു. കൊള്ളക്കാരില്നിന്നു സര്ക്കാര് ജനങ്ങളെ മോചിപ്പിച്ചിരുന്നത് ഇങ്ങനെയായിരുന്നെന്നു രാജാജി ചിരിയോടെ പറഞ്ഞു.
ഈ സംസ്കാരം പിന്നീടു പാവപ്പെട്ടവരെ ചൂഷണംചെയ്യുന്ന സ്ഥിതിയിലേക്കുമാറി. ഈ രീതിയില് തോക്കുകാട്ടി മോറിയായിലും ശിവപ്പൂരിലും ഗ്വാളിയോറിലും ഗ്രാമീണരുടെ ഭൂമിതട്ടിയെടുക്കുന്ന പരിപാടിയുണ്ടായിരുന്നു. സഹരിയാ ആദിവാസികളുടെ ഭൂമിയാണിങ്ങനെ നഷ്ടപ്പെട്ടത്. ഇങ്ങനെയാണു നഷ്ടപ്പെട്ട ഭൂമി ആദിവാസി ജനത തിരിച്ചുപിടിക്കുന്നതിലേക്കു കാര്യങ്ങള് പോയതെന്നു രാജാജി പറയുന്നു.
ഭൂപരിഷ്കരണത്തിനുവേണ്ടിയുള്ള വാദം
ഭൂപരിഷ്കരണത്തിലൂടെ ഭൂമി വിതരണം നീതിയുക്തമാക്കാനുള്ള സമരപരിപാടിയിലാണ് ഏക്താ പരിഷത്തെന്നു രാജാജി പറഞ്ഞു. കാശ്മീരിലും പാകിസ്താനിലും അഫ്ഗാനിസ്ഥാനിലും മാത്രമല്ല നമ്മുടെ വീടിനുചുറ്റുമാണ് വയലന്സുള്ളത്. നമ്മുടെ സ്ത്രീകളോടും കുട്ടികളോടും ആദിവാസികളോടും. ഇന്ത്യന് ഗ്രാമങ്ങളില് മനുഷ്യരെ കൊന്നൊടുക്കുന്നതും വയലന്സാണ്. രാജാജി ഇന്ത്യയുടെ പുതിയ മുഖത്തെക്കുറിച്ചു ദുഃഖിതനാകുന്നു.
''രോഗമറിഞ്ഞു ചികിത്സിച്ചാലേ രോഗം മാറൂ. ഇല്ലെങ്കില് നക്സലുകളും മാവോവാദികളും ഇന്ത്യയുടെ ശാപമായി മാറും. ചൂഷണവും അന്യായവുമുള്ള ഒരു സമൂഹത്തില് എങ്ങനെയാണ് അഹിംസ കെട്ടിപ്പടുക്കുക?''
എങ്കിലും ഗാന്ധിമാര്ഗത്തിലൂടെ ഈ കര്മധീരന് രാജ്യമെമ്പാടും ഓടി നടക്കുന്നു, പാവപ്പെട്ടവര്ക്കുവേണ്ടി. നാഗാലാന്ഡിലും ഒറീസയിലും ബീഹാറിലും ഛത്തീസ്ഗഡിലുമെല്ലാം രാജാജിയുടെ നേതൃത്വത്തില് യുവജനമുന്നേറ്റങ്ങള് ശക്തമാകുകയാണ്. കേരളത്തിലും കുറവല്ല. തുടക്കത്തില് ഇന്ത്യന്ഗ്രാമങ്ങളില് സേവാഗ്രാമങ്ങള് പണിതു യുവാക്കളെ പ്രബുദ്ധരാക്കിയിരുന്നു ഏക്താ പരിഷത്. പിന്നീട് ഇതൊക്കെ സര്ക്കാരുകള്ക്കു വലിയ തലവേദനയായിമാറിയപ്പോള് രാജാജിയെ ഓടിക്കാനുള്ള ശ്രമങ്ങളുമുണ്ടായി പല സര്ക്കാരിന്റെയും ഭാഗത്തുനിന്ന്. പക്ഷേ, അക്കാലത്ത് സുപ്രീംകോടതി ചീഫ് ജസ്റ്റിസ് ഭഗവതി നിയമിച്ച അടിമത്തൊഴിലാളികളെ വിടുവിക്കുന്ന കമ്മിഷനായിരുന്നു രാജാജി. അതുകൊണ്ട് ഗ്രാമങ്ങളില്ത്തന്നെ അദ്ദേഹത്തിനു നില്ക്കാന് കഴിഞ്ഞു. ഇന്നു മൂവായിരത്തിലധികം അടിമത്തൊഴിലാളികളെ സ്വതന്ത്രരാക്കിയിട്ടുണ്ട് അദ്ദേഹം. ആയിരക്കണക്കിനു യുവാക്കള് ഇന്ന് അദ്ദേഹത്തിന്റെ കീഴില് അണിനിരന്നു ഭൂമിക്കു വേണ്ടിയുള്ള അവകാശസമരത്തിലാണ്. ജലം, മണ്ണ്, വായു ഇതെല്ലാം എല്ലാവര്ക്കും അവകാശപ്പെട്ടതാണ്. ഇതിനുവേണ്ടി ലോകത്തുള്ളവരെല്ലാം ഒന്നിക്കണമെന്നാണ് ഏക്താ പരിഷത് മുന്നോട്ടുവയ്ക്കുന്ന സിദ്ധാന്തം. ഇന്നു ലാറ്റിന് അമേരിക്കയിലും ജര്മ്മനിയിലും ന്യൂസിലന്ഡിലും അറിയപ്പെടുന്ന സംഘടനയാണ് ഏക്താ പരിഷത്. 95-ല്ത്തന്നെ ഏക്താ പരിഷത് രാജ്യാന്തരതലത്തില് എത്തിയിരുന്നു. കഴിഞ്ഞ വര്ഷം ഗ്വാളിയാറില്നിന്ന് 25000പേരാണ് ദില്ലിയുടെ ഭരണമുഖത്തേക്കു പദയാത്ര നടത്തിയത്. ഇത് ദില്ലി ഭരണാധികാരികളെ നടുക്കിയിരുന്നു. അതിന്റെ ഫലമായി ഭൂപരിഷ്കരണ നിയമങ്ങള് നടപ്പാക്കാനുള്ള പുതിയ കമ്മിറ്റിയുണ്ടാക്കി. പക്ഷേ, പിന്നീട് ഒന്നും നടപ്പായില്ല. അതുകൊണ്ട് മറ്റൊരു രാജ്യാന്തര പദയാത്രയ്ക്ക് ഏക്താ പരിഷത് തയാറെടുക്കുകയാണ്.
2012 ഒക്ടോബറില് ഒരുലക്ഷം പേരെ പങ്കെടുപ്പിച്ചുകൊണ്ടുള്ള പദയാത്ര കന്യാകുമാരിയില് തുടങ്ങാനാണ് ഉദ്ദേശിക്കുന്നത്. ഗാന്ധിയന് സമരത്തിനു കീര്ത്തികേട്ട നാട്ടില് അതേ സമരമുറയിലൂടെ ആദിവാസികള്ക്കു സ്വതന്ത്രമായി ജീവിക്കാനുള്ള സാഹചര്യം ഉണ്ടാക്കുകയാണു പദയാത്രയുടെ ലക്ഷ്യം. ഒരേക്കര് മുതല് ഒരു ഹെക്ടര് വരെയെങ്കിലും ഓരോരുത്തര്ക്കും ഭൂമി വേണമെന്ന നിയമം ബാധകമാക്കണം. ഭൂമി അടിസ്ഥാനമാക്കി ദാരിദ്ര്യരേഖ നിശ്ചയിക്കണം. ആദിവാസിയെ കൈയേറ്റത്തിനു പ്രേരിപ്പിക്കുന്ന നിയമം മാറ്റി എല്ലാവര്ക്കും ഭൂമിയെന്ന അവകാശം സൃഷ്ടിക്കുക കൂടിയാണ് 2012-ലെ പദയാത്രകൊണ്ട് ഉദേശിക്കുന്നത്.
സ്വാമി അഗ്നിവേശും അണ്ണാ ഹസാരെയുംബിനായക് സെന്നും വിവിധ രാജ്യാന്തര സംഘടനകളും ഏക്താ പരിഷത്തിനു പിന്തുണ നല്കുന്നുണ്ട്. നമ്മുടെ ജലവും മണ്ണും ഉപയോഗിച്ച് ദാരിദ്ര്യം മാറ്റാന് സര്ക്കാര് തയാറാകണം. അതിനു ഗ്രാമസഭകള്ക്ക് അവകാശം കൊടുക്കണമെന്നാണ് ഏക്താ പരിഷത്തിന്റെ വാദം.
പുരസ്കാരസ്വീകരണങ്ങളില്നിന്ന് ഏറെ അകലം സൂക്ഷിക്കുന്ന, ഇന്ത്യന് മാധ്യമങ്ങള് അധികം ശ്രദ്ധ കൊടുക്കാത്ത ഈ ഗാന്ധിയനെ കാത്തിരിക്കുന്നത് ഒരുപക്ഷേ, നോബല് സമ്മാനത്തിനു തുല്യമായ നോര്വേ സര്ക്കാരിന്റെ റൈറ്റ് ലിവിലി ഹുഡ് പുരസ്കാരമാകട്ടെ എന്നു നമുക്കു പ്രത്യാശിക്കാം. കാരണം, ഇന്ത്യയില്നിന്നു നാമനിര്ദേശം ചെയ്യപ്പെട്ടവരില് അദ്ദേഹത്തിന്റെ പേരാണു മുന്നില്.
ജോസ് പാഴൂക്കാരന്
Tuesday 9 August 2011
क्या यही है लोकतंत्र ?
शांतचित माहौल छोड़कर गांव से महानगर आने वाले शख्स को पता ही नहीं चलता है कि महानगरों में नगरवास करते समय पल- पल पर तरह तरह की समस्याओं से दो-चार करते रहना पड़ेगा. यहां तक कि उनको अस्वस्थकर वातावरण में जिल्लत भरी जिंदगी बसर करनी पड़ेगी. गांव से पलायन होकर दीघा नहर तटबंध पर 29 साल से रहना. निवासियों को मजबूर करके दीघा नहर तटबंध पर से हटाना, गांधी, विनोबा, जयप्रकाश और पी वी राजगोपाल के बताये मार्ग पर चलने वाली जन संगठन एकता परिषद, बिहार के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन चलाते हुए 10 वर्ष गुजारना. माननीय पटना उच्च न्यायालय के द्वारा 19 अप्रैल 2010 को गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वालों के पक्ष में निर्णय करना. इसके आलोक में केन्द्र सरकार के महकम्मा, बिहार सरकार के विभाग, पूर्व मध्य रेलवे के डीआरएम, हाजीपुर को चार माह का समय हलफनामा देने का समय देना. 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून -2008 ' को लागू न करना.
जी हां, यहीं वास्तविकता है कि जिसके पास ग्रामीण क्षेत्र में कोई ठौर न ठिकाना है, तो जाएगे कहां ? हां, वही हाल बेरोजगारी का भी है वहां तो रोजगार का पर्याप्त साधन भी नहीं है. इसके अलावा शहर की तरह बच्चों को अध्ययन कराने योग्य पाठशाला भी तो नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विपरित गांव बन गया है. खैर, कल्याणकारी सरकार के द्वारा ऐसी ही व्यवस्था बनायी जा रही है. हां, अरबन एरिया की तरह रूरल एरिया में भविष्य नहीं है. अरबन एरिया को गुलजार बनाया जा रहा है. गांव के साथ सौतेला व्यवहार करने के कारण ही हरेक दिन रूरल एरिया के लोग रेलवे बॉगी से भर भरकर महानगरों की ओर मुखातिर हो रहे हैं. अस्वस्थकर वातावरण में जिल्लतभरी जिंदगी बसर करनी पड़ेगी. इन महानगरों में पटना भी शुमार है. राजधानी में आने वाले गांव के तकदीर के मारे लोग यहां तो सड़क, नदी, पोखरा, तटबंध, नहर, नाला आदि के किनारे ठौर बसाने को मजबूर होते हैं. वोट के जुगाड़ में रहने वाले गण प्रतिनिधि और गण प्रतिनिधि से बनी सरकार के द्वारा गांव से आये आबादी से हित साधने का प्रयास शुरू कर दिया जाता है. उनके कल्याण, विकास, सुरक्षा आदि के ख्यालयात में बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताओं की सुविधाओं की पूर्ति शुरू कर दी जाती है. इसी तरह की सुविधा सरकार के द्वारा दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच रहने वालों को भी दी गयी है.
वर्ष 1982 में दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच में रहने वालों ने कदम रखे थे. तब से भूमिहीन और गृह विहिन दलित/अति पिछड़ा/ पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब और लाचार लोग रहते आ रहे हैं. यहां के सभी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं. यहां के लोगों ने अपने ठौर स्थान का नामकरण सामाजिक कार्यकर्ता स्व.टेशलाल वर्मा के नाम टेशलाल वर्मा नगर रख रखा है. यहां पर 29 साल से वंचित समुदाय रहते हैं. गांव से पलायन होकर आने वाले झोपड़ी बनाकर रहने लगे. अभी कोई 274 परिवारों से अधिक ही लोग रहते हैं. इनको सरकार के द्वारा वोटर आई कार्ड, बीपीएल कार्ड, एपीएल कार्ड, राशन कार्ड, चापाकल, आंगनबाड़ी, पाठशाला आदि की न्यूनतम सुविधा उपलब्ध करायी गयी है. यहां की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह भी बना रखी है. ठीक तरह से कहने से सरकार ने अपने नागरिकों की तरह व्यवहार कर रही है. यह एक पहलू है तो दूसरा पहलू यह है कि टेशलाल वर्मा नगर के लोगों पर सरकारी तलवार लटक रही है. उनको विस्थापन का दंश सताने लगा है. एक दिन दीघा नहर तटबंध विरान हो जाएगा. बच्चों की किलकारी के बदले रेलवे चालन की छुकछुक की आवाज आती जाती सुनाई देगी. कुछ इसी तरह का होने वाला है.
संपूर्ण वाकया यह है कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नीतीश कुमार रेल मंत्री थे उन्हीं के कार्यकाल में गंगा नदी में पटना से सोनपुर तक रेलवे सेतु बनना तय हुआ. पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा दीघा से सोनपुर तक गंगा नदी पर सड़क और रेल सेतु बन रहा है. सेतु निर्माण करने की परियोजना लागू की गयी. अभी पाटलिपुत्र स्टेशन तैयार हो रहा है. इसके पहले उस स्थल पर सैकड़ों परिवार झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रहते थे. इस परियोजना के तहत अव्वल भूमि अधिग्रहण की गयी. परियोजना के घेरे में आने वालों रैयती जमीन के मालिकों को सरकार ने भरपूर मुआवजा देकर मुंह बंद कर दिया. वहीं दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच में रहने वालों को पूर्व मध्य रेलवे के कर्ताधर्ताओं ने नहर के तटबंध के किनारे जाकर रहने को कह दिया. उनके बात को अमल कर दीघा नहर तटबंध के किनारे जाकर बस गये. अब तो दीघा नहर के किनारे के पास से भी हटाने का प्रयास हो रहा है. इसी के साथ वंचित समुदाय ने वर्ष 2001 से ही जमीन की जंग आरंभ कर दी. सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जानकारी है फिर भी विस्थापितों को बसाने का प्रयास नहीं हो रहा है.
विस्थापित टेशलाल वर्मा नगर के वंचित समुदाय के लोगों ने पुनर्वास करने की मांग को लेकर एकता परिषद, बिहार की दानापुर के नेतृत्व में दानापुर अंचल कार्यालय परिसर में लगातार नौ महीने बेमियादी धरना कार्यक्रम किया. बेमियादी धरने के दरम्यान 18 फरवरी 2007 को सत्याग्रही तेतरी देवी शहीद हो गयी. तब जाकर नौ महीने तक लगातार सत्याग्रह किया गया. इस बीच दानापुर अनुमंडल पदाधिकारी ने सत्याग्रहियों के मनोबल तोड़ने के लिए दो दर्जन नेताओं पर भारतीय दण्ड विधान के तहत धारा 107 कर परेशान करना प्रारंभ कर दिया. सत्याग्रह का परिणाम यह निकला कि पटना के जिलाधिकारी और दानापुर अनुमंडल के अनुमंडल पदाधिकारी ने मौजा रूकनपुरा, थाना नम्बर-18, खाता नम्बर- 171, खेसरा नम्बर- 105 रकवा 1.99 एकड़ भूमि पर नेहरू आवास योजना के तहत मकान बनाकर विस्थापितों एवं भूमिहीनों को देने का आदेश दिया, जो फाइल कार्यपालक पदाधिकारी ,नूतन अंचल, पटना नगर निगम के दफ्तर में लालफीताशाही के शिकार हो गया है. अब वह सत्याग्रहियों को लॉलीपॉप थमाने वाला साबित हो रहा है.
पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा गंगा रेल सेतु निर्माण कराया जा रहा है. इस निर्माण से दीघा बिन्द टोली के सैकड़ों परिवार के लोग विस्थापित हो रहे हैं. बिहार के दो महारथी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री बने थे. मगर पूर्व मध्य रेलवे परियोजना से विस्थापित होने वालों की सुधि नहीं ली और न ही सरकारी कानून 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून 2008' के तहत ही किसी तरह का प्रावधान करवाये. फिलवक्त सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं उनके द्वारा भी विस्थापितों को पुनर्वास करवाने के लिए किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. केवल कोरा आश्वाशन दिया जा रहा है.
विस्थापन का दंश झेलने वालों ने गांधी, विनोबा, जयप्रकाश और पी वी राजगोपाल के बताये मार्ग पर चलने वाली जन संगठन एकता परिषद, बिहार से सहयोग लेना शुरू कर दिया है. इन्हीं के नेतृत्व में करीब 100 बार धरना और प्रदर्शन किया गया. यह अहिंसक कार्यक्रम मुख्यमंत्री, आयुक्त, जिलाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी और अंचल पदाधिकारी के समक्ष कर चुके हैं. कोई 10 बार मुख्यमंत्री के जनता दरबार में जाकर फरियाद कर चुके हैं. अगर जनता दरबार में जाने के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है तो जनता दरबार पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. वहीं सूबे में एक अगस्त माह से काम का अधिकार कानून लागू होने जा रहा है. उस लिहाज से खुद मुख्यमंत्री के दफ्तर भी घेरे में आ जाएगा.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है कि सरकार आंदोलन के नेतृत्व करने वाले नेता और सत्याग्रहियों के समाज में व्यापक तस्वीर और उनके प्रभावशाली शक्ति के अवलोकन के बाद ही कदम उठा रही है. इससे समझा जा सकता है कि अव्वल यूपीए-एक की सरकार के कार्याकाल में वर्ष 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा, अब दूसरी बार यूपीए- दो की सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2011 में लोकपाल विधेयक और तीसरी बार इसी वर्ष 2011 में काला धन और भ्रष्टाचार समाप्त करने को लेकर जनांदोलन किया गया. तीनों नागरिक समाज के द्वारा केन्द्र सरकार के विरूद्ध और उनके सामने ही किया गया. तीनों के साथ केन्द्र सरकार ने अलग-अलग रणनीति व कदम उठाया. जनादेश 2007 के तहत 25 हजार सत्याग्रही ग्वालियर से दिल्ली तक सत्याग्रह पदयात्रा किया. सत्याग्रह पदयात्रा के समापन पर पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंष प्रसाद सिंह ने रामलीला मैदान के महती जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद' और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति' नामक दो उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की घोषणा करके जनादेश 2007 के महानायक पी.व्ही. राजगोपाल को झुनझुना थमा रखा है. प्रधानमंत्री 4 साल से ध्यान नहीं दे रहे हैं. ध्यान देने से जनता के हित में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति' बन जाती जो हो नहीं सका. वहीं केन्द्र सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ अलग सलूक किया. तत्काल लोकपाल विधेयक मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी बना डाली. बैठकर मसौदा तैयार की गयी. भले ही अन्ना हजारे की टीम को सख्त मसौदा तैयार करने की मांग को लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत करनी पड रह़ी है. सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री को लोकपाल के घेरे में लाने पर आम सहमति नहीं बन पायी. इसके अलावा सख्त लोकपाल मसौदा को लोक सभा में पेश नहीं करने से 16 अगस्त से जंतर-मंतर पर अनशन करने की चेतावनी दे दी गयी है. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ऐलान करते चल रहे हैं. मगर केन्द्र सरकार ने योगगुरू रामदेव के साथ बहुत ही बुरा सलूक किया. रामलीला मैदान तो रावण लीला में तब्दील हो गया. रात्रि के समय जब दिल्ली की पुलिस वहशीपन पर उतर गयी. पुलिस ने घटिया कला कौशल का प्रदर्शन किया. अब तो योगगुरू की मांग को सरकार ने हवा-हवा कर दिया है. तब यह सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में तो सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को ही पटना में आकर अनशन करना पडे़गा ? तब जाकर बीपीएल वाले लोगों के जीवन बसर पर असर पड़ेगा ओर उनके साथ न्याय किया जाएगा.
हां, यहीं है कल्याणकारी सरकार के मुखौटा व उसकी कार्यपद्धति. दोहरी नीति अपनाने वाली सरकार से संवाद और संघर्ष का प्रतिफल का आलम है. सरकार किस तरह से मुट्ठी बांधकर पुनर्वास संबंधी आंदोलन करने वाले सत्याग्रिहों के साथ व्यवहार करती हैं वह तो एक बानगी, मिसाल और हकीकत ही है. सरकार नहीं चाहती कि दीघा नहर तटबंध से विस्थापित होने वालों को पुनर्वास करे, प्रभावितों को विवश करती है कि खुद कष्ट और परेशान होकर तटबंध से मोहभंग कर अन्यत्र चले जाए. आखिरकार दीघा नहर तटबंध के किनारे रहने वाले सत्याग्रही सरकार से क्या चाहते है ? सरकार से चाहते हैं कि 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून -2008 ' के तहत अथवा आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन वास करने के लिए दी जाए. सरकार की कुर्सी पर नजर नहीं है. मगर सरकार और उनके नौकरशाहों के द्वारा अहिंसा के पाठ पढ़ने वाले सत्याग्रहियों के साथ टालू नीति अख्तियार कर रखी है. सरकार की नीति इसी तरह की रही तो सत्याग्रहियों के मनोस्थिति पर क्या असर पडे़गा ? आखिर कब और कहां तक सरकार लगातार इस तरह के कोरा आश्वाशन और टालू नीति को अपनाती रहेगी. भगवान न करे कि सत्याग्रहियों के कदम डगमगा कर कहीं किसी ओर राह पर.
गण प्रतिनिधियों एवं नौकरशाहों के रवैये से आजीज होकर टेशलाल वर्मा नगर के विस्थापितों ने पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दी. सी.डब्ल्यू.जे.सी. नम्बर 1350 ऑफ 2010 के तहत केन्द्रीय सरकार के नगर विकास एवं गरीबी निवारण के सचिव, नगर विकास एवं गरीबी निवारण के सचिव, बिहार सरकार के मुख्य सचिव, पुराना सचिवालय, मुख्य सचिव, पुराना सचिवालय, राजस्व एवं भू सुधार के प्रधान सचिव, नगर विकास और आवास विभाग के प्रधान सचिव, जिलाधिकारी, पटना,आयुक्त सह मुख्य कार्यापालक पदाधिकारी, डीआरएम, पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर और डीआरएम, मध्य पूर्व रेलवे, हाजीपुर के नाम से 19 अप्रैल 2010 को कहा गया कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों को पुनर्वास करने का प्रबंध किया जाए. इसके बाद दस्तावेज पहुचने के चार माह के अंदर किये गये कार्यों से माननीय उच्च न्यायालय, पटना को जानकारी देनी है. जनहित याचिका दायर करने वालों में विद्धान अधिवक्ता एम.पी. गुप्ता, डा. मायानंद झा और कौशल कुमार झा थे. माननीय न्यायालय ने चार माह का समय दिया है कि बाबत अंतिम निर्णय लेकर न्यायालय में हलफनामा दायर करें. मगर गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की समस्या स्थिर है.
पी.वी. राजगोपाल को पतंजली क्रषि गौरव
पतंजली योग पीठ ने हर बार क़ी तरह इस बार भी पतंजली आयुर्वेद गौरव और पतंजली क्रषि गौरव के सम्मन से चार लोगों को समानित किया | जिसमे मुम्बई के विट्ठल राव रोड़े और पी.वी. राजगोपाल को पतंजली क्रषि गौरव के सम्मन से नवाजा गया जबकि वैध रामकुमार विन्दल और पी.आर.कर्षण कुमार को पतंजली आयुर्वेद गौरव क़ी उपाधि से नवाजा गया है इस सम्मन मे एक एक लाख क़ी धन राशि प्रधान क़ी गई |
हिंसा-प्रतिहिंसा में पिस रहे आदिवासी
कहा गया कि विश्व आदिवासी दिवस व अगस्त क्रांति के मौके पर उपरोक्त संदर्भ में हम समान उद्देश्य वाले संगठनों और आंदोलनों के साथ मिलकर लोकतांत्रिक दायरे में संघर्ष, रचना एवं संवाद की रणनीति बनाकर सामना करेंगे। वंचित समात के हित में बनाए गए कानूनों, नियमों व नीतियों को अपनाकर पूरी गंभीरता व प्रतिबद्धता के साथ लागू करवाएंगे। राज्य पोषित हिंसा को समाप्त करने और अहिंसात्मक समाज की रचना के लिए संगठनात्मक ढांचा तैयार करेंगे। आदिवासी क्षेत्रों में आपरेशन ग्रीन हंट, सलवा जुडुम, एसपीओ जैसी सरकारी तथा अन्य चरमपंथी समूहों की हिंसात्मक कार्रवाइयों से लोग त्रस्त हैं, इन्हें तत्काल बंद किया जाए। चरमपंथी समूह हथियार छोड़ दें और इनको देशद्रोही की जगह राजनीतिक कार्यकर्ता का दर्जा देकर संवाद स्थापित किया जाए। डॉ. रोज केरकेट्टा की अध्यक्षता में उक्त निर्णय लिया गया। इस मौके पर प्रसून लतांत, पीवी राजगोपाल, एससी बेहर, बीरेंद्र कुमार, रेजन गुड़िया, घनश्याम, मोहनभाई महाराष्ट्री्र अशोक चौधरी, बाबूलाल जी आदि लोगों ने भाग लिया।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_6266167.html