tag:blogger.com,1999:blog-63555128494903735432024-03-13T04:57:36.655-07:00एकता परिषदGlobal Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.comBlogger98125tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-79712576234151742382012-05-21T21:25:00.001-07:002012-05-21T21:25:30.069-07:00शौक से मिली पहचान<p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;"><br />महज 8वीं तक की शिक्षा, कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं और एक कस्बे में बचपन से युवावस्था तक का समय गुजारने वाले कुलदीप तिवारी की पहचान आज एक डॉक्युमेंट्री फिल्मकार के रूप में है. विकास के मुद्दे पर कई फिल्में बना चुके हैं एवं कई देशी-विदेशी फिल्मकारों को उन्होंने फिल्म बनाने में सहयोग किया है. यह सबकुछ उन्होंने अपने विश्वास, लगन एवं शौक को पेशेवर तरीके से पूरा करने के जुनून से हासिल किया है. उनके द्वारा निर्मित, निर्देशित एवं संपादित प्रमुख फिल्मों में ‘‘यूथ फॉर एनर्जी इंपावरमेंट’’, ‘‘लैंड फर्स्ट मेला’’, ‘‘ऑन फूट फॉर राइट’’, ‘‘स्टेप टुवार्ड जनादेश’’ एवं ‘‘जनादेश 2007’’ प्रमुख हैं. केन्या की राजधानी नैरोबी एवं नेपाल की राजधानी काठमांडू में विकास के मुद्दे पर कुलदीप की फोटो प्रदर्शनी भी हुई है.</p><p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;">मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के जौरा कस्बे में 3 जुलाई 1979 को जन्मे कुलदीप तिवारी बचपन में ही मां के प्यार से वंचित हो गए. एक निम्नवर्गीय परिवार में विभिन्न कठिनाइयों के बीच पढ़ाई से उनका मोह भंग हो गया एवं 8वीं के बाद पढ़ाई छूट गई. इसके बाद जीवन के प्रति कोई खास लक्ष्य नहीं था एवं खाली बैठे रहने से बेहतर कुछ कमाई करने के उद्देश्य से वे विडियोग्राफी का काम करने लगे. श्री तिवारी बताते हैं, ‘‘भले ही मुझे साल भर काम नहीं मिलता था, पर उस काम में मुझे मजा आता था. मैं दिल लगाकर उस काम को किया करता था. ज्यादा काम नहीं होने से दोस्तों के साथ वक्त यूं ही बर्बाद करता था.’’</p><p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;">भूमि अधिकार के मुद्दे पर कार्यरत एकता परिषद को 1999 में आयोजित एक पदयात्रा की विडियोग्राफी की जरूरत महसूस हुई एवं जौर में एक स्टूडियो वाले ने कुलदीप तिवारी को इस काम के लिए भेज दिया. श्री तिवारी के लिए यह जीवन में बदलाव लेकर आया. उनके काम को देखकर एकता परिषद ने उन्हें अपने साथ जोड़ने का निर्णय लिया. एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार कहते हैं, ‘‘कुलदीप को हमने 2001 में महात्मा गांधी सेवा आश्रम के तहत संचालित संसाधन केंद्र में कार्यालय सहायक के रूप में रख लिया. वह केंद्र में निश्चिंत बैठने के बजाय अपनी हूनर को तराशने में लगा रहा एवं जब भी मौका मिला, उसने अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया.’’ एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पी.व्ही. याद करते हैं, ‘‘कुलदीप ने ‘‘जनादेश 2007’’ के दरम्यान हमारी चिंताओं को दूर किया था. उस समय मीडिया समन्वयक<br />के रूप में देशी-विदेशी सभी मीडियाकर्मियों का प्रबंधन तो किया ही, साथ ही यात्रा का एक बेहतरीन डॉक्युमेंट्री बनाया, जो संगठन के लिए एक अमूल्य निधि है.’’</p><p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;">संसाधन केंद्र के तत्कालीन प्रभारी रह चुके एकता परिषद के राष्ट्रीय सचिव अनिल गुप्ता बताते हैं, ‘‘कुलदीप एक आत्मविश्वासी युवा है. वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद फिल्म बनाने के हूनर को तराशने का काम करता था. अपने काम के प्रति समर्पण से उसने भाषागत एवं टेक्निकल बाधाओं को पार किया.’’</p><p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;">कुलदीप की प्रतिभा को देखते हुए संगठन ने उसे एक माह के प्रशिक्षण के लिए नासिक में ‘‘अभिव्यक्ति मीडिया फॉर डेव्हलोपमेंट’’ में भेजा. वहां उन्होंने डॉक्युमेंट्री फिल्म की कुछ बारीकियों का अध्ययन किया. बिहार में पदयात्रा के दरम्यान सहयोग कर रहे प्रसिद्ध डॉक्युमेंट्री फिल्मकार सहजो सिंह से कुलदीप ने डिजिटल कैमरा हैंडलिंग के गुर सीखे. लंदन के<br />विश्वविख्यात फोटोग्राफर साइमन विलियम्स जब भी एकता परिषद के कार्यक्रम में भाग लेने भारत आए, कुलदीप को उनसे फोटोग्राफी के बारे में कुछ जानने एवं समझने का मौका मिला.</p><p style="margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; border: 0px; font-size: 12px; line-height: 16px; color: #505151; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: left; background-color: #ffffff;">कुलदीप वर्तमान में एकता परिषद की स्वतंत्र इकाई ‘‘एकता मीडिया - विकास संचार के लिए मीडिया केंद्र’’ के समन्वयक हैं. वे विकास पर फिल्म निर्माण की प्रक्रिया से जुड़े होने के साथ ही जल, जंगल, जमीन के मुद्दे के साथ एकता परिषद के आंदोलनों पर फिल्म बनाने वाले विदेशी एवं देशी फिल्मकारों को मदद करने का काम कर रहे हैं.</p>Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-90950347411294836132012-05-21T21:23:00.001-07:002012-05-21T21:23:20.206-07:00हिंसा के लिए सरकार दोषी<p><strong style="margin: 0px; padding: 0px; border: 0px; color: #333333; font-family: MangalRegular, AksharUnicodeRegular, Arial, sans-serif; line-height: 21px; background-color: #ffffff;">नई दिल्ली.</strong><span style="color: #333333; font-family: MangalRegular, AksharUnicodeRegular, Arial, sans-serif; line-height: 21px; background-color: #ffffff;"> देशव्यापी जनसंवाद यात्रा पर निकले जाने-माने गांधीवादी राजगोपाल पी. वी. ने सरकार पर अड़ियल और असंवेदनशील रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उसके अड़ियल रवैये के कारण ही अहिंसक आंदोलन अब हिंसक होने लगे हैं. इस वर्ष राजधानी में होने वाले जनसत्याग्रह आंदोलन की तैयारी के सिलसिले में अब तक 17 राज्यों में 47 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरा कर चुके राजगोपाल ने एक साक्षात्कार में कहा कि जनादेश यात्रा के दबाव में वन अधिकार अधिनियम बनवाने में सफलता मिली और उसे लागू करने की दिशा में कुछ प्रयास भी हुए. इनमें लगभग 20-30 प्रतिशत ऐसे लोग होंगे, जिन्हें बहुत कम मात्रा में जमीन मिली, इसीलिए इस अधिनियम को ईमानदारी से लागू करने की बात अभी भी उठाने की जरूरत है. भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर पुनर्विचार के लिये सरकार बाध्य हुई है और पुनर्वास को लेकर एक विधेयक पास किया गया है. राजगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार छोटे-बड़े सभी आंदोलनों को कुचलने की कोशिश में है. सरकार के अड़ियल रवैये से ही तमाम अहिंसक आंदोलन हिंसक होते गए. यह एक प्रकार से सरकार की अपनी पराजय है. भूमिहीन, आदिवासी, घुमंतू जातियां और मछुआरों को जनसत्याग्रह की ताकत करार देते हुए राजगोपाल ने कहा, "भूमि अधिग्रहण और गरीबों के पक्ष में भूमि सुधार न होने से पलायन बड़ी समस्या बन गई है. शहर में जैसे-जैसे झुग्गी झोपड़ियों की संख्या बढ़ेगी वैसे-वैसे शहरवासियों की समस्याएं भी बढ़ेंगी क्योंकि भारत के किसी भी शहर में गरीबों को बसाने या उन्हें न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराने की तैयारी नहीं है." राजगोपाल ने कहा, "विकास के नाम पर हम संसाधनों के साथ जो व्यवहार कर रहे हैं उस कड़वे सच को समझने में हम जितनी देर करेंगे, उतना ही स्वयं को नुकसान पहुंचाएंगे. पूरे देश में आज आंदोलन का माहौल है. भ्रष्टाचार को लेकर हो, बांध को लेकर हो या जल, जंगल और जमीन को लेकर हो. शायद समय आ गया है कि सब लोग मिलकर दूसरी आजादी की बात जोरदार ढंग से कहें और व्यवस्था परिवर्तन के लिये माहौल बनायें." कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर की गई पद यात्रा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भूमि मुद्दे को लेकर राहुल की पद यात्रा अपने आप में इस बात को साबित करती है कि आज भूमि अहम मुद्दा है. उन्होंने कहा, "पद यात्रा के दौरान राहुल गांधी को समझ आया होगा कि किसान की क्या समस्याएं हैं. सरकार चलाने वाली पार्टी से जुड़े हुये व्यक्ति होने के कारण वह चाहें तो इस दिशा में बहुत कुछ कर सकते हैं. राहुल ने एक कदम तो उठाया है दूसरा कदम भी उठाने की जरूरत है. अपनी सरकार को किसान, आदिवासी और वंचित समाज के पक्ष में खड़ा करना उनकी सफलता मानी जायेगी और इतिहास सही कदम के लिए उन्हें याद रखेगा. अगर वह पहले कदम पर ही रुक जाते हैं तो यह उनकी नासमझी होगी." अन्ना हजारे को अपने आंदोलन से जोड़ने के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, "मैं निरंतर कोशिश में हूं कि हर आंदोलन और हर संगठन से संवाद करूं और उनको साथ लेते हुए आगे चलूं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए भी दरवाजा खुला है. जितना मेरे से बन पड़ा उतना सहयोग मैंने उन्हें दिया है, अब उन्हें तय करना है कि वे किस प्रकार आम लोगों और वंचितों के जल, जंगल और जमीन के मुद्दे से जुड़ना चाहते हैं." राजगोपाल ने कहा, "जनसत्याग्रह को लेकर सरकार क्या रुख अपनाएगी यह कहना कठिन है. आंदोलनकारी लोग संघर्ष और संवाद दोनों की तैयारी में हैं. हमने बार-बार सरकार को लिखा है कि अगर संवाद से समस्या हल करना चाहें तो हम तैयार हैं. चूंकि हमें अहिंसक आंदोलन पर पूरा भरोसा है, अत: हमारी ओर से आंदोलन पूर्णरूप से अहिंसात्मक रहेगा. मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूं कि भगवान सरकार को सद्बुद्धि देंगे और सरकार अपने अड़ियल रवैये से बाहर निकल कर देश के वंचितों के लिए सोचेगी और काम करेगी."</span></p>Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-19416903555928800912012-05-21T21:22:00.001-07:002012-05-21T21:22:55.233-07:00पटना में प्रेस की एकतरफा रिपोर्टिंग<p><p style="margin: 0.5em 0px; padding: 0px; border: 0px; outline: 0px; vertical-align: baseline; font-size: 16px; color: #555555; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; text-align: left; background-color: #ffffff;">भारतीय प्रेष परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू की वजह से कुछ दिनों पहले ही विवाद में आई बिहार की मीडिया ने एक बार फिर गांधी वाद में विचार रखने वाले फ़्रांस के नागरिकों का नक्सल कनेक्शन निकल कर अपनी किरकिरी करवाई है. फ़्रांस से आए हुए यात्री एकता परिषद की यात्रा में शामिल होने आए थे. आयोजकों का पक्ष बिना जाने पुलिस के बयान को खबर बनाकर छाप दिया गया। ऐसा करने वाले हिन्दी-अंग्रेजी के कुछ प्रतिष्ठित अखबार भी थे। 23 अप्रैल को पटना के एक समाचार पत्र ने अपने पहले पृष्ठ पर खबर प्रकाशित की, ‘10 फ्रांसिसी नागरिकों को उनके नक्सल संबंधों के कारण पटना से वापस भेजा गया।’ इस खबर को लिखते हुए रिपोर्टर ने एक बार भी एकता परिषद के कार्यकर्ताओं से बात करने की भी जरूरत महसूस नहीं की। <br style="clear: both;" /><br style="clear: both;" />नक्सलियों का मुकाबला ठीक प्रकार से ना कर पाने की वजह से कई बार केन्द्र और राज्य की सरकारों की बौखलाहट साफ नजर आती है। नक्सली बार बार शासन को चुनौती दे रहे हैं और शासन उनका कुछ नहीं कर पा रही है। अब नक्सली बजाय रूकने के देश में बढ़ते जा रहे हैं। उनका होता विस्तार सरकार के लिए चिंता की बात है. नक्सलियों पर लगाम लगाने में असफल रही सरकारें, अपने नक्सल विरोधी अभियान के नाम पर किस प्रकार अहिंसा के साथ अपना प्रदर्शन कर रहे लोगों को परेशान कर सकती है, इसका ताजा उदाहरण बिहार में देखने को मिला। बिहार बुद्ध और गांधी की सत्याग्रह भूमि है। बिहार में आदिवासी, दलित, भूमिहीन किसानों की मांग को लेकर ‘जनसंवाद यात्रा’ के नाम से गांधी विचार में विश्वास रखने वालों की एक यात्रा पिछले दिनों ही बिहार पहुंची। बिहार पहुंचने से पहले यह यात्रा 15 राज्यों में 45000 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी थी।<br style="clear: both;" /><br style="clear: both;" />जिस घटना का जिक्र आपसे करना चाहता हूं, वह 20 अप्रैल की है, जब फ्रांस के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और किसान जमुई (बिहार) में जनसंवाद यात्रा में शामिल हुए। वे बिहार में गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के काम को देखना और समझना चाहते थे। यात्रा में शामिल होने आए इन लोगों की योजना तीन जिलों में तीन आश्रम देखने की थी, श्रम भारती आश्रम (जमुई), सुखोदेवरा आश्रम (नवादा), जिसे जयप्रकाश नारायण की वजह से लोग याद करते हैं और समन्वय आश्रम (गया), जिसे विनोबाजी ने बनवाया था। वे भारत गांधी, जयप्रकाश और विनोबा ''दर्शन'' में रूचि की वजह से आए थे। वे इनके संबंध में अधिक जानकारी भारत आकर इकट्ठा करना चाहते थे। वे गांधीमार्गी सर्वोदयी कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीन पर उनका काम देखना और उन कार्यकर्ताओं से कुछ सीखने आए थे। लेकिन फ्रांस से आए अतिथियों के साथ हुआ क्या? इन्हें जांच के लिए पुलिस पहले खदिरगंज (नवादा) थाना लाई और अगले दिन इनको पटना और पटना से दिल्ली रवाना कर दिया गया। इन सभी विदेशी यात्रियों के साथ एक फ्रांस के युवक को, जो एकता परिषद की इस यात्रा में कर्मचारी की भूमिका में काम कर रहे थे, उन्हें भी दूसरे यात्रियों के साथ भेज दिया गया। इस बात से कहानी का अंदाजा लगाया जा सकता है कि विजा-पासपोर्ट की अनियमितता को देखने के नाम पर सभी युवकों को पहले पुलिस ले गई लेकिन इस मामले में पुलिस की भूमिका पर इसलिए भी सवाल उठाया जा सकता है क्योंकि उनकी दिलचस्पी बिल्कुल वीजा-पासपोर्ट में नहीं थी। यदि वे पासपोर्ट और वीजा की अनियमितता को देखने के लिए गंभीर होते तो इस प्रकरण में यात्रा के संयोजकों और आयोजकों को भी विश्वास में ले सकते थे। इससे उन्हें अपनी जांच में थोड़ी सुविधा ही होती।<br style="clear: both;" />लेकिन आयोजकों से बात करना भी जिला प्रशासन और पुलिस ने उचित नहीं समझा। यदि मामला वह गोपनीय रखना चाह रहे थे फिर सारी जानकारी मीडिया तक कैसे पहुंच रही<br style="clear: both;" />थी?<br style="clear: both;" /><br style="clear: both;" />गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट एकता परिषद के लिए कहती हैं, इस संस्था का काम शहरों से अधिक वनवासी क्षेत्रों में है। एकता परिषद को देश में गांधी शांति प्रतिष्ठान से अधिक लोग जानते हैं। सुश्री भट्ट एकता परिषद के संयोजक पीवी राजगोपाल के संबंध में बताती हैं, वे अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले हैं। वे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य भी हैं। ऐसे में बिहार सरकार द्वारा उनके फ्रांसिसी मित्रों पर माओवादी होने का आरोप लगाना गंभीर है। एकता परिषद ने यात्रा में शामिल होने आए उन नौ फ्रांसिसी यात्रियों जिनपर पुलिस ने माओवादी संबंध का आरोप लगाया था, के लिए बताया कि वे फ्रांस की एक संस्था ‘पीपुल्स सोलिडायर्स’ से ताल्लुक रखते थे और पीवी राजगोपाल के मित्र<br style="clear: both;" />थे। इस यात्रा के माध्यम से वे गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की कर्मभूमि को देखना चाहते थे। जो बिहार की पुलिस की तानाशाही की वजह से पूरा नहीं हो पाया। जानकारों के अनुसार पीवी राजगोपाल अपनी यात्रा के साथ एक लाख गरीब, मजदूर, आदिवासी और दलितों के साथ 02 अक्टूबर को दिल्ली आ रहे हैं। इसमें भूमि सुधार की मांग है, भूमि सुधार और जंगल की जमीन पर जंगल के लोगों के हक की बात है, जिनके पास जमीन का पट्टा है, उन्हें जमीन का हक मिले जैसी बात भी है। इस तरह की मांगों से सरकारों का घबराना लाजमी है। इसलिए वह इस यात्रा में अक्टूबर आने तक कई तरह की विध्न उत्पन्न करेगी। क्या बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार से यह उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम बिहार में भूमि सुधार की प्रक्रिया लागू करें और उन लोगों को जमीन का हक दिलवाएं जो बिहार में भूमिहीन हैं और जिनके पास जमीन का पट्टा है लेकिन उन्हें अपनी ही जमीन पर कब्जा नहीं मिल रहा है।</p><p style="margin: 0.5em 0px; padding: 0px; border: 0px; outline: 0px; vertical-align: baseline; font-size: 16px; color: #555555; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; background-color: #ffffff; text-align: right;"><strong style="margin: 0px; padding: 0px; border: 0px; outline: 0px; vertical-align: baseline;">लेखक आशीष कुमार 'अंशु' पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.</strong></p></p>Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-71764376781831637732012-05-21T21:18:00.001-07:002012-05-21T21:18:29.020-07:00जन संवाद यात्रा : अब गांधी और मार्क्स नहीं, ज़मीन चाहिए<p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">इस व़क्त देश में यात्राओं का दौर चल रहा है. मुद्दे तमाम हैं, भ्रष्टाचार से लेकर राजनीति तक, लेकिन इसमें समाज का वह अंतिम व्यक्ति कहां है जिसके उत्थान के लिए गांधी जी ने इस देश को एक ताबीज दिया था? जल, जंगल और ज़मीन पर वंचितों के अधिकार को लेकर शुरू की गई जन संवाद यात्रा से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर एकता परिषद के पी वी राजगोपाल से चौथी दुनिया के संवाददाता शशि शेखर ने विस्तार से बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>यह देशव्यापी यात्रा शुरू करने के पीछे क्या मक़सद है, इससे आप क्या परिणाम निकालना चाहते हैं?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">हम एक समग्र भूमि सुधार नीति चाहते हैं. भूमि सुधार का जो मामला है, वह अभी बीच में अटक गया है. तमाम भूमि कहीं सेज के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, कहीं अधिग्रहण के नाम पर बड़े-बड़े लोगों को दी जा रही है और गरीबों को भूमि देने का जो वादा है, उससे सरकार पीछे हट रही है. ग़रीबों से कहा जा रहा है कि अब भूमि नहीं है बांटने के लिए. सड़कें चौड़ी की जा रही हैं, एयरपोर्ट का विस्तार हो रहा है. हज़ारों-लाखों एकड़ ज़मीन माइनिंग कंपनियों को दी जा रही है. भूमि सुधार को लेकर सरकार जो लापरवाही बरत रही है, उससे ग़रीबी बढ़ रही है, लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं और हिंसा बढ़ रही है. यह सब समाप्त करने के लिए हम चाहते हैं कि सरकार ग़रीबों के पक्ष में समग्र रूप से एक भूमि सुधार नीति लाए.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>देश में कई लोग यात्रा शुरू कर चुके हैं और करने वाले हैं, जैसे आडवाणी, रामदेव, अन्ना हजारे. इनकी यात्रा से आपकी यात्रा किन मायनों में अलग है?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">आज़ादी के समय गांधी जी ने इस देश को एक ताबीज दिया था. उसका अर्थ था कि जो कुछ भी करो, उसमें समाज के अंतिम व्यक्ति को नज़र में रखो. मुझे लगता है कि यात्राएं बहुत होंगी, बहुत सारी बातें होंगी, लेकिन हमारी यात्रा समाज के उस अंतिम व्यक्ति के लिए है, जिसे पिछले 65 सालों में अपना अधिकार नहीं मिला है, न्याय नहीं मिला है. लोगों के अंदर बहुत आक्रोश है. अभी तक मैं जहां-जहां घूमा, वहां लोग न गांधी सुनना चाहते हैं और न मार्क्स. वे कहते हैं कि इस नाम पर बात करके हमारे साथ बहुत धोखाधड़ी हुई. हमें चाहिए न्याय, हमें चाहिए ज़मीन. हमारा यह आंदोलन, यह यात्रा समाज के उसी अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए है.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>यानी अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने का मुद्दा ही इस यात्रा को अन्य यात्राओं से अलग करता है…</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">कुर्सी और अन्य मुद्दों के लिए रैलियां और यात्राएं होती रही हैं और अब तो भ्रष्टाचार को लेकर भी आंदोलन हो रहे हैं, लेकिन समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय मिले, इसे भी लेकर आवाज़ उठनी चाहिए इस देश में. यह नहीं हो पा रहा था. मुझे पैसा (रिश्वत) न देनी पड़े, यह तो अच्छी बात है, लेकिन मैं अगर सुख-संपन्नता से जीता हूं तो दूसरों को भी, पीछे छूटे हुए लोगों को भी कुछ मिलना चाहिए. इसके लिए हमने एक आंदोलन की ज़रूरत को महसूस किया, इसीलिए हमने इसे शुरू किया.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>अन्य लोग जो अपनी यात्राएं शुरू कर चुके हैं या करने वाले हैं, क्या उनमें से किसी ने आपसे संपर्क किया? इस मुद्दे पर उनसे आपकी कोई बातचीत हुई?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">मैंने सभी से बात की. मैंने अन्ना को चिट्ठी लिखी कि भ्रष्टाचार के विरोध में जो लड़ाई है, उसका अगला भाग यही है. जल, जंगल और ज़मीन में आम लोगों को भी उनका हिस्सा मिलना चाहिए. उस समय अन्ना हजारे सहमत भी थे कि यह स़िर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है. ग़रीब लोगों का मुद्दा भी सक्रियता से उठाना चाहिए. इस विषय पर बाबा रामदेव से भी मेरी बात हुई. उन्होंने आर्थिक क्रांति पर जो किताब लिखी है, उसमें भी वह मानते हैं कि जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा उठना चाहिए. इस देश को राजनीतिक आज़ादी तो मिल गई है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक आजादी अभी भी नहीं मिली है. हमारा यह आंदोलन उसी सामाजिक-आर्थिक आज़ादी के लिए है.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>जब अन्ना हजारे और रामदेव आपके मुद्दों का समर्थन कर रहे हैं तो क्या वे आपकी इस यात्रा में भी शामिल होंगे?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">अन्ना के आंदोलन का पहला चरण खत्म होने के बाद एक चर्चा हुई थी कि भ्रष्टाचार के इस आंदोलन को और व्यापक बनाना है. इसमें जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा भी जोड़ना है. इस पर एक एग्रीमेंट हुआ था. मुझे लगता है कि थ्योरिटकली सब एक साथ हैं, लेकिन वे लोग दिसंबर तक भ्रष्टाचार (जन लोकपाल) के मुद्दे पर ही जोर देना चाहते हैं. जबकि मैं मानता हूं कि जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा इस आंदोलन की वजह से शिथिल न हो. दिसंबर में जब बिल पारित होगा, तब शायद अन्ना के पास इस आंदोलन से जुड़ने का समय होगा.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>एकता परिषद के लोग कई बार दिल्ली आकर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं. क्या वजह है कि सरकार ने अब तक आपकी मांगें नहीं मानी?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">अभी जैसे ही हमने 2 अक्टूबर को अपनी यात्रा शुरू की, वैसे ही प्रधानमंत्री कार्यालय से चिट्ठी आ गई कि 28 अक्टूबर को नेशनल लैंड रिफॉर्म्स काउंसिल की बैठक बुलाई जा रही है. मुझे लगता है कि जो प्रधानमंत्री कार्यालय तीन साल से सोया हुआ था, वह एक लाख लोगों के साथ दिल्ली आने की हमारी घोषणा पर अमल होते देखकर जाग गया है. मार्च में जब मैं अन्ना हजारे के साथ प्रधानमंत्री से मिला था तो मैंने उन्हें याद दिलाया था कि अगर आप नेशनल लैंड रिफॉर्म्स काउंसिल की बैठक नहीं बुलाएंगे तो हमारे पास आंदोलन तेज़ करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा. हालांकि उसके बाद एंटी करप्शन मूवमेंट (अन्ना आंदोलन) ने पूरे माहौल को अपने हाथ में ले लिया था. मुझे लगता है कि अब वह जल्दी-जल्दी कुछ करेंगे.</p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;"><span style="color: #800000;"><strong>इस यात्रा के ज़रिए आप सरकार को क्या संदेश देना चाहते हैं?</strong></span></p><p style="padding: 0px; margin: 2px 0px 0px; font-family: verdana; font-size: 13px; line-height: 26px; text-align: left; background-color: #ffffff;">हमें एक कंप्रेहेंसिव लैंड रिफॉर्म्स पॉलिसी तो चाहिए ही चाहिए. आप यह कहकर टाल नहीं सकते कि ज़मीन स्टेट का सब्जेक्ट है, क्योंकि भूमि अधिग्रहण क़ानून और सेज क़ानून आपके हैं. केंद्रीय क़ानूनों से आप ज़मीनें हड़प रहे हैं. हम कह रहे हैं कि आप एक पॉलिसी बनाओ. यह मालूम करो कि कितनी ज़मीन है, किस विभाग को कितनी ज़मीन देनी है और ग़रीबी उन्मूलन के लिए कितनी ज़मीन उपलब्ध कराई जाए. सरकार ताक़तवर लोगों को ज़मीन देने और उनकी ज़मीन बचाने में जो ताक़त लगा रही है, उसमें से अगर वह दस प्रतिशत भी ताक़त इधर लगा दे तो ग़रीबों को ज़मीन मिल सकती है.</p></p>Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-22770208263955039302011-11-03T08:04:00.001-07:002011-11-03T08:04:39.764-07:00ഭൂമിക്കായി ജനസത്യഗ്രഹംഏകതാ പരിഷത്ത് ഡല്ഹിയില് ഭൂമി സമരത്തിന് ഒരുങ്ങുന്നു <br />
കെ സുനില് കുമാര് | Issue Dated: നവംബര് 29, 2011 അണ്ണാ ഹസാരെയുടെയും ബാബാ രാംദേവിന്റെയും അഴിമതി വിരുദ്ധ സത്യഗ്രഹങ്ങള്ക്ക് പിന്നാലെ ഡല്ഹിയില് ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള ഒരു സത്യഗ്രഹ സമരത്തിന് വേദിയൊരുങ്ങുന്നു. അണ്ണായുടെ ടീമിലെ പ്രധാനിയും പിന്നീട് അദ്ദേഹത്തിന്റെ പോ ക്കിനെതിരെ വിമര്ശനം ഉന്നയിച്ച് സംഘം വിടുകയും ചെയ്ത മലയാളിയായ പി വി രാജഗോപാലാണ് ഈ സമരത്തിന് നേതൃത്വം നല്കുന്നത്. 2012 ഒക്ടോബര് രണ്ടിന് ഡല്ഹിയില് ലക്ഷം പേര് പങ്കെടുക്കുന്ന ജനസത്യഗ്രഹത്തിനാണ് രാജഗോപാല് നേതൃത്വം നല്കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്ത് തയ്യാറെടുക്കുന്നത്.<br />
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ഭൂമി ഇന്ഡ്യയില് എക്കാലത്തും പ്രശ്നമേഖലയാണ്. വിപ്ലവകരമായ ഭൂപരിഷ്കരണം നടപ്പാക്കിയെന്ന് അവകാശപ്പെടുന്ന കേരളത്തില് പോലും ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങള് സംഘര്ഷങ്ങള് സൃഷ്ടിച്ചുകൊണ്ടിരിക്കുന്നു. മുത്തങ്ങയിലെ ആദിവാസി സമരവും ചെങ്ങറയിലെ ദലിത് ഭൂമി സമരവും ഒടുവിലത്തെ ഉദാഹരണങ്ങള് മാത്രം. മറ്റ് സംസ്ഥാനങ്ങളിലാകട്ടെ ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങളും ഭൂവുടമകളും ഭൂരഹിതരും തമ്മിലുളള സംഘര്ഷങ്ങളും ദശാബ്ദങ്ങളായി ചോരപ്പുഴകള് തന്നെ ഒഴുക്കിയിട്ടുണ്ട്. ഏകതാ പരിഷത്തിന്റെ ജനസത്യഗ്രഹവും ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങളുടെ ഗാന്ധിയന് രീതിയിലുളള തുടര്ച്ചയാണ്. ഭൂമിക്കും സുസ്ഥിരമായ ഉപജീവനമാര്ഗത്തിനും മാത്രമേ യഥാര്ത്ഥ ദാരിദ്ര്യ ലഘൂകരണം സാധ്യമാകൂ എന്നാണ് ഏകതാ പരിഷത്തിന്റെ നിലപാട്. ഇതു വരെ നടപ്പാക്കപ്പെട്ട ദരിദ്ര ജനതക്ക് അനുകൂലമല്ലെന്നും സമ്പത്തില് നിന്ന് കൂടുതല് സമ്പത്തുണ്ടാക്കാന് കഴിയുന്നവര്ക്കാണെന്നും അവര് ചൂണ്ടിക്കാണിക്കുന്നു. <br />
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ഏകതാ പരിഷത്ത് 2007ല് ഗ്വാളിയോറില് നിന്ന് ഡെല്ഹിയിലേക്ക് നടത്തിയ ജനാദേശ് യാത്രയുടെ അനുഭവത്തിന്റെ കൂടി പിന്ബലത്തോടെയാണ് 2012ലെ സത്യഗ്രഹം. ജനാദേശ് യാത്രയുടെ തുടര്ച്ചയായി ഡല്ഹിയില് നടന്ന സത്യഗ്രഹത്തിന്റെ ഫലമായി ഭൂപരിഷ്കരണ നയം തയ്യാറാക്കാന് തയ്യാറാണെന്ന് കേന്ദ്ര സര്ക്കാര് വാഗ്ദാനം ചെയ്തു. പ്രധാനമന്ത്രിയുടെ നേതൃത്വത്തില് ഒരു ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതി നിലവില് വരുകയും ചെയ്തു. എന്നാല് വാചകമടികള്ക്കപ്പുറം ഇത് നടപ്പാക്കാന് ഒരു ശ്രമവും നടക്കാത്ത സാഹചര്യത്തിലാണ് ദേശവ്യാപക പ്രചാരണത്തിനു ശേഷം 2012 ഒക്ടോബറില് ജനസത്യഗ്രഹം നടത്താന് ഏകതാ പരിഷത്ത് തീരുമാനിച്ചത്. <br />
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സെപ്തംബര് 30ന് കന്യാകുമാരിയില് നിന്നാണ് ഒരു വര്ഷം നീളുന്ന രാജ്യവ്യാപകമായ ജനസംവാദ യാത്രക്ക് തുടക്കം കുറിച്ചത്. തമിഴ്നാട്ടിലെ കൂടംകുളത്ത് ആണവ നിലയത്തിനെതിരായ സമരം മുതല് കേരളത്തിലെ വിവിധ സമരഭൂമികളിലൂടെയാണ് യാത്ര കടന്നു പോയത്. 2012 സെപ്തംബര് 30ന് ജാഥ സംവാദയാത്ര അവസാനിച്ച ശേഷം ഒക്ടോബര് രണ്ടു മുതല് ഡല്ഹിയില് ജന സത്യഗ്രഹം തുടങ്ങും. അഴിമതി വിരുദ്ധ സത്യഗ്രഹം പോലെ ജന സത്യഗ്രഹവും രാജ്യത്തെയും ജനങ്ങളെയും ഇളക്കി മറിച്ചേക്കാമെന്നാണ് പ്രതീക്ഷിക്കുന്നത്. കാരണം ഇത് ജനങ്ങളുടെ അടിസ്ഥാനാവശ്യമാണല്ലോ.Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-35886315968619497562011-11-03T08:03:00.001-07:002011-11-03T08:03:57.470-07:00കരിമണല് ഖനനത്തിനെതിരെ ജയറാം രമേശിന് പരാതിന്യൂഡല്ഹി: കൊല്ലം ജില്ലയില് ഇന്ത്യന് റെയര് എര്ത്ത് ലിമിറ്റഡി(ഐ.ആര്.ഇ)ന്റെ കരിമണല് ഖനന പദ്ധതിക്കെതിരെ കേന്ദ്ര ഗ്രാമവികസനമന്ത്രി ജയറാം രമേശിന് പരാതി. <br />
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പദ്ധതിക്ക് 450 ഏക്കര് ഭൂമി ഏറ്റെടുത്തത് വ്യാജ ആധാരം ചമച്ചെന്നാണ് പരാതി. ഭൂവിഷയങ്ങളില് പ്രവര്ത്തിക്കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്താണ് പദ്ധതിക്കെതിരെ പരാതി നല്കിയിട്ടുള്ളത്. പദ്ധതി പ്രദേശത്തെ ജനങ്ങളറിയാതെയാണ് ഭൂമി ഗവര്ണറുടെയും ഐ.ആര്.ഇ.യുടെയും പേരിലാക്കിയതെന്ന് ഏകതാ പരിഷത്ത് ദേശീയ പ്രസിഡന്റ് പി.വി. രാജഗോപാല് പരാതിയില് ആരോപിച്ചു. <br />
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അയണിവേലിക്കുളങ്ങര, ആലപ്പാട് ഗ്രാമങ്ങളില് നിന്നാണ് 450 ഏക്കര് ഭൂമി കരിമണല് ഖനനത്തിനായി ഏറ്റെടുത്തത്. ഈ ഗ്രാമങ്ങളില് 20, 000 കുടുംബങ്ങളിലായി ഒരു ലക്ഷത്തോളം പേര് താമസിക്കുന്നു. പദ്ധതി നടപ്പായാല് അവരെല്ലാം കുടിയൊഴിപ്പിക്കപ്പെടും. പാക്കേജുകള് സൃഷ്ടിച്ച് മൂന്നും നാലും സെന്റ് ഭൂമികളിലേക്ക് കോളനിക്കാര് പിഴുതെറിയപ്പെടും. ടി. എസ്. കനാലിനും കടലിനും ഇടയ്ക്ക് ഗ്രാമങ്ങള് ഇല്ലാതായാല് വന് ദുരന്തങ്ങള്ക്ക് കേരളം സാക്ഷ്യം വഹിക്കേണ്ടിവരും. അഷ്ടമുടി മുതല് അപ്പര്കുട്ടനാടു വരെയുള്ള കാര്ഷിക ജനവാസമേഖല സമുദ്രജലത്തിനടിയിലായാല് ലക്ഷക്കണക്കിന് ജനങ്ങളുടെ ജീവിതം ദുരിതപൂര്ണമാവും. തീരദേശഗ്രാമങ്ങള് സംരക്ഷിക്കാന് കേന്ദ്ര-സംസ്ഥാന സര്ക്കാറുകള് സമഗ്രമായ പദ്ധതികള് നടപ്പാക്കണമെന്നും ഏകതാ പരിഷത്ത് ആവശ്യപ്പെട്ടു. കരിമണല് ഖനനത്തിനെതിരെയുള്ള സമരങ്ങളെ സംഘടന പിന്തുണയ്ക്കുമെന്ന് പി.വി. രാജഗോപാലും പരിഷത്ത് കോ-ഓര്ഡിനേറ്റര് അനീഷ് തില്ലങ്കേരിയും അറിയിച്ചു.Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-70547958928994095402011-10-22T11:14:00.001-07:002011-10-22T11:14:23.138-07:00पानी के लिए राजेंद्र सिंह तो ज़मीन के लिए राजगोपाल करते रहे हैं संघर्ष<p><b>नई दिल्ली. </b>टीम अन्ना से मतभेदों के चलते अलग हुए दो मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं राजेंद्र सिंह और पीवी राजगोपाल ने समाजसेवा के काम से लंबे समय से जुड़े हुए हैं। <p>मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह को ‘जल पुरुष’ भी कहा जाता है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले राजेंद्र सिंह राजस्थान के अलवर जिले में काम करते हैं। राजेंद्र सिंह तरुण भारत संघ के नाम से एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। राजेंद्र सिंह ने जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। अफसरशाही और भ्रष्टाचार से लड़ने में भी उनके प्रयास सराहनीय रहे हैं। उन्हें साल 2001 में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। <p>वहीं, केरल में जन्मे पी. वी. राजगोपाल ने सेवा ग्राम में अध्ययन किया और 70 के दशक में मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में डकैतो के पुनर्वास का काम किया था। बाद के वर्षों में वे देश के कई राज्यों का दौरा करते रहे और आदिवासी लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश की। 1991 में राजगोपाल ने एकता परिषद नाम के संगठन की स्थापना की थी। उनकी संस्था मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से संचालित है, जिसके वे अध्यक्ष हैं। इसके अलावा राजगोपाल गांधी पीस फाउंडेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। उनका संगठन ज़मीन और जंगल पर आम आदमी के अधिकार के लिए काम करता है। राजगोपाल का दावा है कि एकता परिषद भूमि सुधार पर काम कर रहा देश का सबसे बड़ा आंदोलन है। एकता परिषद ने 2007 में ‘जनादेश’ नाम की मुहिम चलाई थी। एकता परिषद का दावा है कि यह बड़ा अहिंसक आंदोलन था, जिसमें भूमिहीन लोगों ने दिल्ली तक मार्च किया था। </p> Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-57241160884147203352011-10-22T11:13:00.001-07:002011-10-22T11:13:32.888-07:00इसको मीडिया में तवज्जो नहीं मिली<p> <hr> <p><img align="left" src="http://www.rajexpress.in/rajexpress_cms/newsimg/large63911.jpg"> <p> <p> <p> <p> <p> <p> <p> <p> <p><br> <p> <hr> <p>बेशक, इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्र है। होगी भी क्यों नहीं, आडवाणीजी को जन-समर्थन भी खूब मिल रहा है। चर्चा में उत्तरप्रदेश के भाजपा नेताओं की यात्रएं भी हैं, तो देश में और जहां-जहां यात्रएं हो रही हैं या होने वाली हैं, उनकी भी पर्याप्त चर्चा हो रही है, पर मानना यह भी पड़ेगा कि इन सभी यात्रओं का मकसद राजनीतिक है। फिर भी, इन यात्रओं का चर्चा में रहना या इन्हें जन-समर्थन मिलना कोई गलत बात नहीं है। हां, गलत यह जरूर है कि इन यात्रओं के बीच एक और यात्र कहीं गुम हो गई है, हालांकि यह यात्र जारी है। <p>तीन अक्टूबर को केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से शुरू हुई यह यात्र 30 सितंबर-2012 को यानी लगभग एक वर्ष बाद ग्वालियर पहुंचेगी और वहां से एक लाख लोगों को लेकर पैदल दिल्ली के लिए कूच करेगी, जिसमें भागीदार के तौर पर ज्यादातर वे लोग शामिल होंगे, जो हकीकत में इस देश और उसकी माटी, जल, जमीन, जंगल के असली वारिस हैं, लेकिन वे शहरी सभ्यता की तरह सुसंस्कृत नहीं हुए हैं, इसलिए उन्हें आदिवासी कहा जाता है। आदिवासी का एक और मतलब यह तो होता ही है कि वे लोग, जो सदियों से इस देश में रहते आए हैं। <p>इस जन-सत्याग्रह यात्र में वे किसान भी शामिल होंगे, जिनकी जमीनों को गैर-कृषि कार्यो के लिए पूरे देश में अधिग्रहीत किया जा रहा है और अपना वाजिब हक मांगने पर पुलिस की लाठियों और गोलियों से उनका स्वागत किया जा रहा है। प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता और भारतीय एकता परिषद के अध्यक्ष पीवी राजगोपाल एक साल की इस कठिन यात्र पर नागरिकों को जगाने और देशभर से समर्थन हासिल करने के लिए निकल चुके हैं। दो अक्टूबर को गांधीजी की समाधि से विदाई के बाद दिल्ली में उनकी वापसी अगले साल एक लाख लोगों के साथ होगी। <p>इस जन-सत्याग्रह यात्र के साथ जब वे दिल्ली की ओर कूच करेंगे, तब जाकर शायद देश भी जागेगा। पीवी राजगोपाल वर्ष-2007 में भी 25 हजार आदिवासियों और किसानों को लेकर ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल कूच कर चुके हैं। इस यात्र के दौरान हालांकि दुर्घटना और बीमारी की वजह से कुछ लोगों की मौत जरूर हो गई थी, लेकिन रास्ते में पड़ने वाला प्रशासन भी मानता है कि हाल के दिनों में ऐसा अनुशासित मार्च पहले कभी नहीं देखा गया। इस यात्र के दौरान एक भी खोमचे नहीं लूटे गए, सड़कों के किनारे के खेतों से एक भी गन्ना नहीं तोड़ा गया। यहां तक कि पौधों को नुकसान तक नहीं पहुंचाया गया और यह जनादेश यात्र 2007 में जब गांधी जयंती के दिन दिल्ली में गांधी समाधि पहुंची, तो देश की सरकार को लगा कि अब इन किसानों और आदिवासियों की आवाज अनसुनी नहीं की जा सकती और तब के ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को इन सत्याग्रहियों के पास जाना पड़ा। तब रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक सुचारू भूमि वितरण प्रणाली विकसित करने व लोगों को जमीनों का अधिकार देने की मांग को मंजूर किया था। <p>इसके साथ ही जल, जंगल और जमीन पर उनके असली हकदारों को अधिकार देने का सरकार ने वादा तो किया था, लेकिन सरकार इनमें से एक भी वादे को अभी तक पूरा नहीं कर पाई है। चार साल के लंबे इंतजार के बाद जब पीवी राजगोपाल को लगने लगा कि सरकार ऐसे नहीं सुनने वाली है, तो उन्होंने एक बार फिर वही गांधीवादी रास्ता अख्तियार किया और अलख जगाने के लिए देशव्यापी यात्र पर निकल पड़े। राष्ट्रीय एकता परिषद ने इस यात्र को जन-सत्याग्रह यात्र का नाम दिया है। राष्ट्रीय एकता परिषद जिन मांगों को लेकर देशव्यापी अलख जगाओ अभियान में जुटी हुई है, उनमें कई प्रमुख मांगों को देशभर में भूमिहीनों और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे संगठन भी स्वीकार कर चुके हैं। दरअसल, आज शहरीकरण और औद्योगीकरण के नाम पर खेती योग्य जमीनों का भी जबरिया अधिग्रहण बढ़ता जा रहा है। इससे खेती के साथ ही उस जमीन पर आधारित जनसंख्या के जीवन-यापन की समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं। <p>पूरे देश, खासतौर पर ग्रामीण और आदिवासी भारत में इसे लेकर आम सहमति है कि भूमिहीनों और गरीबों को जोत का अधिकार दिया जाना चाहिए, ताकि कोई उनसे जमीन खाली नहीं करा सके। जन-सत्याग्रह यात्र में लोगों को जागरूक बनाने के लिए यह अहम मांग ही रखी गई है। इसके साथ ही साथ तथाकथित विकास योजनाओं, जैसे राष्ट्रीय अभयारण्य, बड़े बांध, खनिज उद्योग, स्पेशल इकोनॉमिक जोन और पावर प्लांट आदि के नाम पर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण तो किया ही जा रहा है, आदिवासियों को विस्थापित करने का काम भी पूरे देश में तेजी से हो रहा है। जन-सत्याग्रह यात्र का एक मकसद इस परिपाटी को रोकना, इसको बदलना भी है। <p>वैसे तो विस्थापन आज के दौर की नियति है, लेकिन इस विस्थापन में मानवीय पहलुओं को शासन-प्रशासन कम ही तरजीह देता है। विस्थापन के बाद संस्कृति से लेकर जीवन-यापन तक की राह में कई कठिनाइयां आती हैं। अध्ययनों से साबित हो चुका है कि 1947 से लेकर 2000 तक ही पूरे देश में करीब छह करोड़ लोग अपनी जमीन और जीविका से विस्थापित हो चुके हैं। जाहिर है कि इस दौर में पीढ़ियां तक गुजर गई हैं, लेकिन विस्थापितों की हालत नहीं सुधरी। इसे लेकर पूरी दुनिया में बहस और वैकल्पिक उपायों को सुझाने की कवायद भी चल रही है, लेकिन जन-सत्याग्रह यात्र में एक अहम मकसद इस समस्या को मानवीय तरीके से हल करना भी है। <p>देश में विस्थापितों की एक जायज शिकायत यह है कि उन्हें उचित मुआवजे नहीं मिल पाए हैं। नोएडा के भट्टा पारसौल जैसी घटनाएं ऐसी ही शिकायतों की वजह से होती हैं। जन-सत्याग्रह यात्र में भी यह मांग उठ रही है कि जो लोग पहले से ही विस्थापित हो चुके हैं, उन्हें निष्पक्ष और तत्काल मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही उन्हें ठीक से पुनस्र्थापित करने की मांग भी उठ रही है। इस देश में गरीबों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि उन्हें रोजगार और जीवन-यापन के सही मौके नहीं मिल रहे हैं। यह शिकायत गलत नहीं है, सही ही है। जन-सत्याग्रह यात्र का एक मकसद इसे भी सुनिश्चित कराना है। <p>गांधी की राह पर चल रही इस जन-सत्याग्रह यात्र के ढेर सारे आयाम हैं। इसमें जिंदगी गुजारने के लिए बेहतर उपाय सुझाना भी शामिल है, तो लोगों के अंदर जिंदगी को लेकर अनुशासनबोध भरना भी। इस यात्र में आंदोलन की आंच भी है, तो समाज को बदलने का सपना भी, लेकिन रचनात्मक आधार वाली इस जन-सत्याग्रह यात्र पर इन दिनों न तो राजनीति का ध्यान है और न ही मीडिया का। पता नहीं, इसे तवज्जो क्यों नहीं दी जा रही है? 30 सितंबर -2012 को जब एक लाख लोगों का अनुशासित कारवां दिल्ली की तरफ कूच करेगा, तब शायद लोगों का ध्यान इस यात्र पर जाए। तब शायद सरकार भी जागे। <p>-- उमेश चतुर्वेदी Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-32100027123582771042011-10-17T22:51:00.001-07:002011-10-17T22:51:11.868-07:00श्रम विभाग नहीं करता मजदूरी से संबंधित मामलों का निराकरण<p>मप्र सरकार की मंशा अनुसार मजदूरी से संबंधित मामले में जब भी कोई गरीब आदिवासी, हरिजन या बेसहारा को प्रताडि़त करके उसे मजदूरी नहीं दी जाती तो ऐसे प्रकरण में श्रम विभाग के द्वारा मामले की जांच करके संबंधित मजदूर परिवार को तत्काल की गई मजदूरी के भुगतान करने का प्रावधान है। एकता परिषद के जिला समन्वयक रामप्रकाश ने शिवपुरी जिले के श्रम विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि मजदूरी से जुड़े प्रकरणों की न तो श्रम विभाग सुनवाई करता और न ही गरीब परिवारों को मजदूरी का समय पर भुगतान करता है। जबकि ऐसे प्रकरणों में सरकार की व्यवस्था तत्काल भुगतान की की गई है लेकिन श्रम विभाग की उदासीनता के चलते गरीब और बेसहारा लोग चक्कर लगाते रहते हैं।</p> Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-36959942105327387872011-10-08T08:36:00.001-07:002011-10-08T08:36:55.842-07:00सरकार नहीं मानेगी तो एक लाख सत्याग्रही ग्वालियर से पैदल चल कर दिल्ली आएंगे-राजगोपाल<p>नई दिल्ली, 26 सितंबर (जनसत्ता)। एकता परिषद की जन संवाद यात्रा इस साल 2 अक्तूबर को कन्याकुमारी से शुरू होगी। इस यात्रा के तहत परिषद के अध्यक्ष राजगोपाल पीवी के नेतृत्व में आदिवासियों, दलितों और वंचितों का एक बड़ा समूह देश के विभिन्न राज्यों का दौरा करते हुए अगले साल ग्वालियर पहुंचेगा और वहां 2 अक्तूबर 2012 को शुरू होने वाले जन सत्याग्रह में समाहित हो जाएगा। इस जन सत्याग्रह में एक लाख सत्याग्रही ग्वालियर से पैदल चल कर दिल्ली आएंगे और अपनी मांगों को लेकर बेमियादी घरना देंगे।<br>यह जानकारी देते हुए परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीवी ने कहा कि हम इस यात्रा को अंजाम देने के लिए इसलिए हम विवश हुए हैं कि केंद्र सरकार ने चार साल पहले जनादेश यात्रियों से जो वादे किए थे उसे उसने अमल में नहीं लाया। उन्होंने कहा कि 2007 में जब जनादेश यात्री ग्वालियर से पैदल चल कर रामलीला मैदान पहुंचे थे तब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भू सुधार परिषद और राष्ट्रीय भू सुधार समिति का गठन किया था, लेकिन चार साल के दौरान दर्जनों पत्र लिखने और कई प्रदर्शन करने के बावजूद परिषद और समिति के जरिए केंद्र सरकार ने भू सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया। सरकार ने यह वायदा जनादेश यात्रा में शामिल उन वंचितों से किया था, जिनके पास आज भी कोई जमीन नहीं है और उनकी आजीविका के साधन तेजी से छीने जा रहे हैं। <br>सोमवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में राजगोपाल ने कहा कि अब समग्र भूमि नीति के लिए एकता परिषद जन सत्याग्रह छेड़ेगी, क्योंकि किश्तों और टुकड़ों में समाधान के उपायों से मूल मसले हल नहीं होंगे और गरीबों, भूमिहीनों, दलितों और आदिवासियों को कोई फायदा नहीं होने वाला है। उन्होंने समग्र भू सुधार नीति की जरूरत बताते हुए कहा कि खनन, वन्यजीव और भू अघिग्रहण और सेज जैसे कानूनों में देश के <p><ins><ins></ins></ins> <p>गरीब लोगों के पक्ष में बदलाव लाने की कोशिश करनी होगी। साथ ही पेशा, भूमि सीलिंग और वनाघिकार कानूनों के जरिए भूमिहीनों के बीच जमीन वितरण के काम को अंजाम देने के लिए सरकार पर दबाव बनाना होगा। तभी गांधी, विनोबा, जेपी के साथ डा आंबेडकर के स्वप्न पूरे हो सकेंगे। राजगोपाल ने कहा कि वे गांधी जी के उस कथन में यकीन करते हैं कि जब राज्य शक्ति का उपयोग देश के गरीब लोगों के हित में नहीं करे तो उसे नियंत्रित करने की क्षमता पैदा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूमि के मुद्दे पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ उनकी वार्ता लगातार चल रही है। उन्होंने फिर से सत्याग्रह छेड़ने के सवाल पर कहा कि सरकार उनकी मांगों पर अमल कर रही होती तो उन्हें सत्याग्रह छेड़ने की जरूरत नहीं होती।<br>उन्होंने बताया कि उनके नेतृत्व में कार्यकर्ताओं का एक बड़ा दल जन संवाद यात्रा के दौरान देश के विभिन्न राज्यों के करीब साढ़े तीन सौ जिलों में अस्सी हजार किलोमीटर क्षेत्रों का दौरा करेगा। दौरे के दौरान इन राज्यों में जमीन सहित खनन, जंगल, जल, खनन, मछली मारने के अधिकार, बांध निर्माण और विस्थापन आदि मुद्दों पर चल रहे पांच सौ से अधिक जन आंदोलनों को अगले साल ग्वालियर से शुरू होने वाले एक लाख लोगों के सत्याग्रह से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कन्याकुमारी से अगले महीने गांधी जयंती के दिन शुरू होने वाले जन संवाद यात्रा के पहले समग्र भूमि नीति को लागू करवाने के मुद्दे पर तीन दिन का सम्मेलन होगा। इस सम्मेलन में सर्व सेवा संघ की अध्यक्ष राधा भट्ट, राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक एसएन सुब्बाराव, जल बिरादरी के राजेंद्र सिंह, फोरेस्ट वर्कस फोरम के अशोक चौधरी और रोमा सहित संजय राय, स्वामी सच्चिदानंद, मंजुनाथ, सुभाष लोम्हटे, ललित बाबर, अमर सिंह चौधरी, प्रतिभा शिंदे,यशोदा, नाहित, विष्णु प्रिया, गुमान सिंह, हेम भाई और लालजी भाई जैसे समाजसेवियों के साथ अनेक लोग शामिल होंगे।</p> Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-43149834111105712922011-10-08T08:34:00.001-07:002011-10-08T08:34:01.885-07:00नौकरशाहों के हाथों में हिंडौला खाती राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति<p>Posted by <strong><a href="http://hindi.lokmanch.com/author/anupurnamittal/">अन्नपूर्णा मित्तल</a></strong> on September 27th, 2011 <p><img title="IMG_2561" alt="IMG_2561" src="http://hindi.lokmanch.com/wp-content/uploads/2011/09/IMG_2561.jpg" width="225" height="169"> <p>पटना। जन संवाद यात्रा की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। सिर्फ 5 दिन शेष हैं। इस रविवार से जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा को लेकर जन संवाद यात्रा शुरू किया जा रहा है। इस यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया जाएगा। केरल प्रदेश के माटी के पुत्र विख्यात गांधीवादी व जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी व्ही राजगोपाल जन संवाद यात्रा पर निकलने वाले हैं।<br>सनद रहे कि ऐतिहासिक जनादेश 2007 के बाद दूसरी ऐतिहासिक जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा है। जन सत्याग्रह 2012 को लेकर जन संवाद यात्रा किया जा रहा है। जन संवाद यात्रा की शुरूआत केरल प्रदेश के कन्याकुमारी से हो रही है। उद्घाटन समारोह 2 अक्टूबर 2011 को कन्याकुमारी में होगा। इसके अगले दिन यात्रा 3 अक्टूबर को त्रिवेन्द्रम पहुंचेगी। 15 दिनों तक 15 जिलों का भ्रमण करके जन संवाद यात्रा 18 अक्टूबर को तमिलनाडू के कोयम्बाटूर पहुंचेगी। इसी तरह से आगे बढ़ते हुए 24 राज्य, 339 जिले और 358 दिन तय करके 24 सितंबर 2012 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में पहुंच जाएंगे।<br>राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य श्री राजगोपाल लगातार 358 दिनों तक यात्रा पर रहेंगे। इस दौरान आम आदमी से मुलकात करेंगे। उनकी समस्याओं का आकलन व उनके आवेदनों का संग्रह भी किया जाएगा। यात्रा के दौरान राह में जन सुनवाई, नुक्कड़ सभा, पत्रकारों से मुलाकात करते हुए 354 दिनों में 24 राज्यों के 339 जिलों में यात्रा कर सकेंगे। इस यात्रा का मकसद है कि केन्द्रीय सरकार ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप देने का वादा कर भूल गयी है। इसके अलावा जल, जंगल, जमीन और आजीविका की सुविधाओं से वंचित समुदाय को लाभान्वित कराना।<br>सर्वविदित है कि जन संगठन एकता परिषद और उसके समान विचारधारा रखने वाले जन संगठनों ने वर्ष 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा आयोजित की थी। मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 2 अक्टूबर को शुरू हुआ थी ऐतिहासिक सत्याग्रह पदयात्रा। किसी तरह की शिकायत किये बिना ही देश-प्रदेश-विदेश के 25 हजार वंचित समुदाय जल, जंगल, जमीन और आजीविका के सवाल पर पदयात्रा करने निकल पड़े थे। दो वक्त भोजन करने वाले राह में आने वाली मुसीबतों को सहते चले गये। सत्याग्रह के दौरान सात साथियों पर वाहन चढ़ा देने की दासता को सह लिया। इन शहीदों को नमन और भगवान इनकी आत्मा को स्वर्गलोक में जगह दें। सत्याग्रही 28 अक्टूबर को ठहराव के लिए रामलीला मैदान, नयी दिल्ली पहुंचे। अगले दिन 29 तारीख को संसद तक कूच करना था। मगर पुलिस प्रशासन ने ऐसा करने नहीं दिया और सत्याग्रहियों को रामलीला मैदान में फील्ड एरेस्ट कर लिया। पुलिस प्रशासन और सत्याग्रहियों के बीच का गतिरोध समाप्त करने हेतु प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने पहल की। उन्होंने तब के केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को राजदूत के रूप में रामलीला मैदान भेजा। डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह बिहारी अंदाज में सत्याग्रहियों का स्वागत करते हुए सभी मांगों को स्वीकार करने की बात करने लगे। उसके बाद प्रधानमंत्री की ओर से राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनाने की घोषणा की। परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और समिति के अध्यक्ष केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को बनाया गया। इसके बाद जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा इतिहास के पन्ने में समा गया।<br>वादे के अनुसार राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को सुपुर्द कर दिया। इसमें 300 अनुशंसाएं की गयी है। एक बार ही प्रधानमंत्री सह राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष डॉ मनमोहन सिंह ने परिषद की बैठक बुलाकर बैठक ही बुलाना भूल गये। जो चार साल के बाद भी राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप नहीं दिया जा सका। इससे लोगों में आक्रोश व्याप्त है।<br>इसको आधार बनाकर जन सत्याग्रह 2012 का शंखनाद किया गया है। जनादेश 2007 की संख्या 25 हजार में इसबार जन सत्याग्रह 2012 में चार गुणा इजाफा करके एक लाख कर दिया गया है। आम आदमी को जगाने के लिए जन संवाद यात्रा की जा रही है। गौरतलब है कि इसमें मीडिया का सहयोग नहीं मिल रहा है। जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश कुमार सिंह, भाजपाई लाल कृष्ण आडवाणी, जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सदृश्य राजनीतिज्ञों की यात्राओं को लेकर इलेक्ट्रोनिक्स व प्रिंट मीडिया वालों का फोकस मिल जाता है। वहीं महात्मा गांधी के अस्त्र से वार करने वाले गैर राजनीतिकज्ञ समाजसेवी अन्ना हजारे और रामदेव बाबा को आमरण अनशन करने पर मीडिया वालों ने जमकर उनके मुद्दों को उछाला। उस लिहाज से जन संगठन एकता परिषद के ऐतिहासिक सत्याग्रह पदयात्रा को मीडिया वाले तवज्जों नहीं देते और न ही फोकस ही डालते हैं। वहीं आमरण अनशन करने वाले एकता परिषद, बिहार के प्रांतीय संयोजक प्रदीप प्रियदर्शी के नेतृत्व में जन सत्याग्रह 2012 के शिविर नायकों का एक जत्था कन्याकुमारी जाने वाली है। इस जत्थे में मगध प्रक्षेत्र के शिविर नायक शत्रुध्न कुमार, उत्तरी प्रक्षेत्र के वशिष्ठ कुमार सिंह, कोसी प्रक्षेत्र के विजय गौरेया, पटना प्रक्षेत्र से उमेश कुमार, मंजू डुंगडुंग और सिंधु सिन्हा हैं।<br>उल्लेखनीय है कि चार साल से मसला केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास है। इसमें पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह औ पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास डॉ सीपी जोशी का सहयोग राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप देने में हिस्सादारी ना के बराबर ही रहा। इसी के कारण राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का परिणाम नौकरशाहों के हाथों में हिंडौला खा रहा है। अब समय आ गया है कि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश अपने मंत्रालय के नाकामयाब कारनामे पर पर्दा डालने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को कानून का रूप प्रदान करें और शेष मांगों पर सकारात्मक पहल कर समस्याओं का समाधान निकाले। Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-39647702876934935372011-10-08T08:32:00.001-07:002011-10-08T08:32:33.037-07:00एकता परिषद की जन संवाद यात्रा<p>Posted by <strong><a href="http://hindi.lokmanch.com/author/anupurnamittal/">अन्नपूर्णा मित्तल</a></strong> on October 1st, 2011 <p><img title="IMG_0505" alt="IMG_0505" src="http://hindi.lokmanch.com/wp-content/uploads/2011/10/IMG_0505.jpg" width="225" height="169"> <p>ऐतिहासिक जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा के समापन सत्र के दौरान रामलीला मैदान, नई दिल्ली में उपस्तिथ 25 हजार आदिवासी व भूमिहीनों के सामने डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह, पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने ऐलान किया कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति गठन की गई है।<br>इस ऐलान के 71 दिनों के बाद 9 जनवरी 2008 को भारत के राजपत्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने असाधारण भाग एक और खंड एक प्रकाशित किया। प्रकाशित राजपत्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय (भूमि संसाधन विभाग) के संकल्प संख्या 231013/4/2007. एल. आर. डी. राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनाई गई। इसमें 20 सदस्य मनोनीत किए गए। इस समिति के प्रमुख सदस्य मिलाकर राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाई और 300 तक की सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दी।<br>इस पर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा के महानायक व जन संगठन एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी० व्ही० राजगोपाल कहते हैं कि राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने 2009 में अपनी सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दी। पर सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया है। तब तो यूपीए एक और यूपीए दो की सरकार पर असफल होने तथा अभूतपूर्व सत्याग्रह पदयात्रा जनादेश 2007 की अनदेखी करने का आरोप मजे से लगाया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर हाल के दिनों में जो सत्याग्रह का स्वरुप निकल कर सामने आया है उस पर भी चर्चा करनी जरुरी है। इन दिनों महात्मा गाँधी जी के बताए हुए राह पर चलकर आंदोलन करने वाले लोगों की मांग पूरी नहीं की जाती है। इस पर गांधीवादी राजगोपाल उर्फ़ राजा जी ने कहा कि ग्वालियर से नई दिल्ली तक 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन सत्याग्रियों ने पदयात्रा की। तब भी केंद्रीय सरकार सत्याग्रह पदयात्रा को तब्बजो नहीं दे रही है। वही समाजसेवी अन्ना हजारे ने आमरण अनशन किया तो उनकी मांगों को सरकार ने मान लिया। समाजसेवी अन्ना हजारे का 13 दिनों का यह आंदोलन भारत के इतिहास की एक अभूतपूर्व और युगांतरकारी घटना के रूप में रेखांकित किया जाएगा।<br>सनद रहे कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सदस्य पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह जनादेश 2007 के समय सत्ता में बैठे रहे। वे 2 साल तक यूनियन कैबिनेट मंत्री बने रहे। पर वे देश के 75 फीसदी लोग जो जमीन व जंगल से जुड़े हैं, उसके हक में न ही संसद ने सड़क पर कोई सवाल खड़ा किया। इस तरह एक बार फिर यह साबित हो गया कि यह चरित्र सत्ता का ही शोषक था। भले ही 2009 के लोकसभा का चुनाव जीत गए हैं। अब तो मंत्री भी नहीं रहे, अभी संसद में हैं और सड़क पर भी, केवल दिल्ली वालों की तरह दिल चाहिए।<br>हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए<br><em>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए<br>आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,<br>शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए<br>हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर,<br>हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए<br>सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br>सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए<br>मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग,<br>लेकिन आग जलनी चाहिए।</em><br>जनादेश 2007 से ही बापू के तीन बंदर की भूमिका में रहने वाले तीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सत्तामद में चूर रहे। यूपीए एक के समय में पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह और यूपीए दो के समय डॉ सीपी जोशी केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने। अब पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी हैं और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं।<br>जब तक केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी रहे तब तक राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति को अहमियत नहीं दी। इसके आलोक में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी व्ही राजगोपाल और बिहार के जन सत्याग्रह 2012 के लीडरशिप करने वाले प्रदीप जी सत्तामद में चूर हो गए। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी जोशी से मुलाकात कर जनादेश 2007 के बारे में जानकारी दी। यह भी बताया कि अभी भी सत्याग्रही उम्मीद में बैठे हैं कि सरकार कब 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन लोगों को जल, जंगल, जमीन और आजीविका मुद्दे पर क़ानून से राहत व लाभ दिला पाएगी? इसके साथ ही कब आम जनता को राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर उपहार देगी? और कब एक ऐसी काली रात की एक नयी सुबह होगी।<br>मगर आम जनता की आवाज सत्ता में टिकी रहे डॉ सीपी जोशी ने इसे अनसुनी कर दी। इस अनसुनी से गांधीवादी आहत हो गए। तब जाकर जन संगठन एकता परिषद और उसके समान संगठन ने मिल कर जन सत्याग्रह 2012 का शंखनाद कर दिया। जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 डॉ सीपी जोशी की ही देन है।<br>उल्लेखनीय है कि एक नेक मकसद के लिए जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 किया जा रहा है। इसलिए आम से खास तक के लोग जन संगठन एकता परिषद के साथ शामिल हैं। तब तो यह कहते हैं हम एकता परिषद के साथ हैं। तब यह भी कहते हैं, कि जनादेश 2007 में 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन पैदल आए थे, इस बार पूरे 1 लाख आम से खास लोग सत्याग्रह में साथ साथ आने को तैयार हैं। अब एक बार फिर जन सत्याग्रह 2012 के महानायक राजगोपाल के साथ चलने को तैयार हैं।<br>एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पी०व्ही० राजगोपाल ने बापू की समाधि राजघाट में जाकर बापू को नमन कर कलश में मिट्टी भरकर कन्याकुमारी रवाना हो गए। बताते चलें कि पी०व्ही० राजगोपाल केरल के ही रहने वाले हैं। केरल के कन्याकुमारी से 2 अक्टूबर 2011 से जन संवाद यात्रा शुरू होगी। देश के 24 राज्यों, 339 जिले और 358 दिन में 80 हजार किलोमीटर का सफर पूरा करते हुए अगले साल 5 नवंबर 2012 को यात्रा दिल्ली में समाप्त होगी। इस यात्रा का नेतृत्व भूमिहीनों के अधिकारों के लिए संघर्षरत जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष पी०व्ही० राजगोपाल करेंगे।<br>बिहार में वर्ष 2008 में कोसी नदी के पूर्वी अफ़लक्स बांध के टूट जाने का करण राज्य के पांच जिलों सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और पूर्णिया महाप्रलय के शिकार हो गये थे। इसमें हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसमें हुई भारी जान-माल की क्षति को देखते हुए सुपौल से सहरसा तक राजगोपाल जी ने पदयात्रा की थी।<br>उल्लेखनीय है कि इसके पहले मंगलवार 27 सितम्बर को राजगोपाल बापू की समाधि राजघाट में जाकर कलश में मिट्टी को लेकर दोपहर में हिमगिरी एक्सप्रेस से कन्याकुमारी रवाना हुए थे। शुरुआत में पी०व्ही०राजगोपाल यह यात्रा वाहन से करेंगे। 2 अक्टूबर 2011 को कन्याकुमारी से शुरू होने के बाद चारों दक्षिणी राज्यों में होते हुए महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूवरेत्तर राज्यों से गुजरते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दोबारा से उत्तर प्रदेश होते हुए मध्य प्रदेश के ग्वालियर तक अगले साल 2 अक्टूबर, 2012 को पहुंचेगी। ग्वालियर से जन संगठन से जुड़े एक लाख आदिवासी व भूमिहीन किसानों का विशाल समूह करीब एक महीने की यात्रा करते हुए 5 नवंबर को दिल्ली पहुंचेगा।<br>जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी०व्ही०राजगोपाल ने बताया कि राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने 2009 में अपनी सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को दे दीं पर सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया। बताते चलें कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गठन राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की केवल एक बार ही बैठक बुलाई गई। इसके बाद प्रधानमंत्री बैठक ही बुलाना भूल गए। राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पी०व्ही०राजगोपाल आदि हैं। तब भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। जब जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 का दबाव सरकार आ गया तब जाकर अब सरकार गंभीर हुई।<br>अब जब जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 का एलान किया गया है तो ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक बुलाई है और अब जाकर वे बता रहे हैं कि राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री भी की एक हफ्ते के भीतर ही बैठक बुलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “मैंने दोनों बैठकों का एजेंडा देखा है, सरकार ने कागजी तैयारी पूरी कर रखी है पर हमें इस बार अमल पर लाने वाली व्यवस्था चाहिए। हमें सरकारी खानापूरी नहीं चाहिए।” वे कहते हैं कि सरकार ने जनादेश यात्रा का आदेश नहीं माना इसलिए जन संवाद यात्रा 2011 की नौबत आई। इस यात्रा के जरिए वे देशभर में भूमि कानून व नीतियों पर जागरुकता व जनमत तैयार करेंगे और मुद्दे पर एक माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। लोगों को पता होना चाहिए कि इस देश में परमाणु नीति है, विदेश नीति है, उद्योग नीति है पर देश के 75 फीसदी लोग जो जमीन व जंगल से जुड़े हैं, उनके लिए कोई भूमि नीति नहीं है। उन्होंने कहा कि भूमि की समस्या हल किए बिना देश में भ्रष्टाचार का पूर्ण समाधान नहीं हो सकता। गरीबी, नक्सल समस्याए पलायन हर समस्या की जड़ तो जमीन है।<br>एक अक्टूबर को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कन्याकुमारी जाकर एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी०व्ही०राजगोपाल से मुलाकात करेंगे। सनद रहे कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक बुलाई थी। इस बैठक की जानकारी राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को जाकर दे दी गई है। राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कहने पर ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कन्याकुमारी जाकर एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी०व्ही०राजगोपाल से मुलाकात करेंगे। राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति की बैठक और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मुलाकात करने की जानकारी के बारे में अवगत कराएंगे। Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-79974336846806608522011-10-08T08:31:00.001-07:002011-10-08T08:31:19.153-07:00जन संवाद यात्रा को लेकर लोगों में उत्साह<p>Posted by <strong><a href="http://hindi.lokmanch.com/author/anupurnamittal/">अन्नपूर्णा मित्तल</a></strong> on October 6th, 2011 <p><img title="MA17CITY-P_V_RAJAGO_359106e" alt="MA17CITY-P_V_RAJAGO_359106e" src="http://hindi.lokmanch.com/wp-content/uploads/2011/10/MA17CITY-P_V_RAJAGO_359106e.jpg" width="153" height="225"> <p>पटना। यूपीए-एक और यूपीए-दो की सरकार में अबतक तीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने हैं। वर्ष 2004 के आम चुनाव के बाद केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह बने। वर्ष 2009 के आम चुनाव में यूपीए और राजद के बीच पूर्व चुनाव समझौता नहीं होने के कारण ही डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह, पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये। उनके बदले में 2009 में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह बने। बेहतर रिजल्ट नहीं देने के कारण डॉ सीपी सिंह भी पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये। अब केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं। इस तरह जनादेश 2007 के बाद तीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बन गये मगर इन मंत्रियों ने एकता परिषद का एक कार्य भी कार्य नहीं किया। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश पर भरोसा है कि शीतकालीन सत्र के दौरान अवश्य ही राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति निर्माण करा दें। इसके अलावा जन एकता परिषद की जितनी भी मांग है उसे पूरा कर दें नहीं तो एक लाख लोग दिल्ली में प्रवेश कर दिल्ली महानगर को जाम कर देंगे।<br>जन सत्याग्रह 2012 के मुद्दों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से एकता परिषद के द्वारा जन संवाद यात्रा 2011 का आयोजन किया है। इसके तहत 24 राज्यों का वाहन से भ्रमण किया जाएगा। गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्तूबर को कन्याकुमारी से जन संवाद यात्रा शुरू कर दी गयी है। इस अवसर पर देश के दो महान विभूति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भूदान आंदोलन के प्रार्णेता विनोबा भावे के साथ कार्य करने के परम अवसर प्राप्त बाल विजय भाई, युवातुर्क व्यक्तित्व के धनी एसएन सुब्बाराव, मैंग्नेसले अवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह, कई पदयात्राओं में शिरकत करने वालीं गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट, आशिफ मोहम्मद खान, बालकृष्ण रेन्के, एससी बेहर, डा केबी सक्सेना, स्वामी सच्चिदानंद, ईपी मेनन के अलावा भारी संख्या में एकता परिषद की जंग को समर्थन करने वाले उपस्थित थे।<br>बताते चले कि एकता परिषद ने वर्ष 2007 में 25 हजार की संख्या निर्धारित कर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा आयोजित की थी। एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष सह सत्याग्रह पदयात्रा के महानायक पीव्ही राजगोपाल के नेतृत्व में 2 अक्तूबर 2007 को ग्वालियर से आरंभ होकर 28 अक्तूबर को रामलीला मैदान में पहुंची थी। इसके अगले दिन 29 अक्तूबर को सत्याग्रहियों को संसद कूच करना था। मगर दिल्ली प्रशासन ने इजादत नहीं दी। दिल्ली प्रशासन और सत्याग्रहियों के नेतृत्वकर्ताओं के बीच में गतिरोध पैदा हो गया। इस गतिरोध को दूर करने के लिए यूपीए-एक की सरकार के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने उस समय के केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह को रामलीला मैदान भेजा। बिहार के मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने आते ही महती जनसभा को संबोधित करते हुए बिहारी स्टाइल में कहा कि आप लोगों की सभी मांगों को माननीय प्रधानमंत्री ने एकसिरे मान ली है। इसके साथ आपलोगों को दो तोहफे भी दिये हैं। खुद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति निर्माण की जाएगी। दोनों के बन जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भूमि सुधार संबंधी कानून बन जाएगा। राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्य राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाएंगे। इस तरह की लुभावनी संभाषण से गदगद होकर एकता परिषद के सत्याग्रही रामलीला मैदान से राम-राम कहकर रवाना हो गये।<br>राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्यों ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का ड्राफ्टकोपी को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद को वर्ष 2009 में सौंप दिया है। इसमें करीब 300 अनुशंसाएं की गयी है।<br>इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में विजयी होने के बाद एकबार फिर यूपीए-दो की सरकार सत्तासीन हो गयी। यूपीए- दो की सरकार से राजद के साथ तालमेल नहीं होने के कारण डॉ सीपी सिंह को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के मंत्री बनाया गया। नवनियुक्त केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह से शिष्टाचार के नेता एकता परिषद के अध्यक्ष पी व्ही राजगोपल और एकता परिषद, बिहार के प्रांतीय संयोजक प्रदीप प्रियदर्शी ने मुलाकात की। दोनों ने जनादेश 2005 के बारे में जिक्र किया और आशा व्यक्त की कि यथाशीघ्र राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बना दी जाए। सारी जानकारी लेने के बाद केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह ने दो टूक जवाब दिया कि आपलोग 25 हजार लोगों के साथ जनादेश 2007 किए हैं। हम लोग एक करोड़ की संख्या वाले देश का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। पहले उनका ही हित और ख्याल किया जाएगा। इसको सुनने के बाद दोनों का होश फाख्ता हो गया।<br>केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ सीपी सिंह को चुनौती देने के लिए जन सत्याग्रह 2012 का एलान किया गया है। इसमें एक लाख लोग हिस्सा लेंगे। डाल दो चाहे सलाखों में अबकी बार लाखों में नारा गूंजने लगा है। प्रधानमंत्री और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की उदासीनता के कारण जन संवाद यात्रा 2012 शुरू की गयी है। इस यात्रा के माध्यम से एकता परिषद के अध्यक्ष पी व्ही राजगोपाल जनता से संपर्क करेंगे। एक साल तक यात्रा चलेगी। 24 राज्य और 339 जिलों का भ्रमण करेंगे। 80 हजार किलोमीटर की दूरी है।<br>यात्री कोडुनकुलम पहुंची। यहां के लोग न्यूकियर प्लांट से विस्थापित और परेशान हैं। इस प्लांट से भूमि और आजीविका पर सीधे हमला हो रहा है। इससे निपटने के लिए गांधीजी के मार्ग को अपना रखा है। उसी मार्ग पर लोगों का विश्वास है। Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-38231703893421169482011-09-19T22:09:00.001-07:002011-09-19T22:09:05.477-07:00ഭൂമിക്കുവേണ്ടി ഡല്ഹിയിലേക്ക് ലക്ഷം പേരുടെ പ്രകടനം: Mangalam Daily- 20/09/2011<p>ന്യൂഡല്ഹി: ഭൂമി ആവശ്യപ്പെട്ട് ഒരു ലക്ഷത്തില്പരം ദളിതരും ആദിവാസികളും ഡല്ഹിയിലേക്കു പ്രകടനം നടത്താന് തയാറെടുക്കുന്നു. അണ്ണാ ഹസാരെയുടെ സമരത്തിന്റെ അലയൊലികള് അടങ്ങുംമുമ്പാണ് കേന്ദ്ര സര്ക്കാരിനു വീണ്ടും തലവേദന സൃഷ്ടിച്ചുകൊണ്ടു പിന്നാക്ക വിഭാഗങ്ങളുടെ സമരമെത്തുന്നത്. കന്യാകുമാരിയില് നിന്ന് ഒരു വര്ഷത്തോളം നീണ്ടുനില്ക്കുന്ന യാത്രയ്ക്കൊടുവില് ഡല്ഹിയിലേക്കെത്തുന്ന മാര്ച്ചിനു ഹസാരെയുടെ പിന്തുണയുമുണ്ട്.<br>ഉത്തരേന്ത്യയിലെ ആദിവാസി മേഖലയില് വിശാല വേരോട്ടമുള്ള ഏക്താ പരിഷത്ത് എന്ന സംഘടനയാണ് ലക്ഷം പേരെ അണിനിരത്തി ഭൂസമരത്തിന്റെ പുതിയ അധ്യായത്തിനു തുടക്കം കുറിക്കുന്നത്. മലയാളിയായ പി.വി. രാജഗോപാലാണ് ഏക്താ പരിഷത്തിനു നേതൃത്വം നല്കുന്നത്.<br>നാലു വര്ഷം മുമ്പ് ഏക്താ പരിഷത്ത് കാല് ലക്ഷം പേരെ പങ്കെടുപ്പിച്ചു നടത്തിയ കാല്നടയാത്രയെ തുടര്ന്നാണ് കേന്ദ്രസര്ക്കാര് ദേശീയ ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതിക്കു രൂപം നല്കിയത്. 2007ല് ഏക്താ പരിഷത്തിന്റെ നേതൃത്വത്തില് കാല് ലക്ഷം പേര് മധ്യപ്രദേശിലെ ഗ്വാളിയോറില് നിന്നു ഡല്ഹിയിലേക്കു പ്രകടനം നടത്തിയിരുന്നു. ഭൂമി ആവശ്യപ്പെട്ടുകൊണ്ട് ഇവര് രാംലീലാ മൈതാനത്തു സമ്മേളിച്ചതിനു വന് പ്രചാരമാണു കിട്ടിയത്. വിദേശ മാധ്യമങ്ങളില് വരെ വാര്ത്തകള് വന്നതോടെ പ്രധാനമന്ത്രി ഇടപെട്ട് ദേശീയ ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതിക്കു രൂപം നല്കുകയായിരുന്നു. എന്നാല് ഏക്താ പരിഷത്ത് നിരവധി തവണ ആവശ്യപ്പെട്ടെങ്കിലും സമിതിയുടെ പ്രവര്ത്തനം കടലാസിലൊതുങ്ങി. ഈ സാഹചര്യത്തില് ഒരു ലക്ഷം പേരെ അണിനിരത്തി സര്ക്കാരിന്റെ കണ്ണു തുറപ്പിക്കുകയാണു സംഘടനയുടെ ലക്ഷ്യം.<br>ഒക്ടോബര് രണ്ടിനു കന്യാകുമാരിയില്നിന്നു തുടങ്ങുന്ന മാര്ച്ച് രാജ്യത്തെ 350 ജില്ലകളിലുള്ള ഭൂസമരവേദികളിലൂടെ കടന്ന് 2012 ഒക്ടോബര് 12ന് ഗ്വാളിയോറില് എത്തും.<br>അവിടെനിന്നു കാല്നടയായി 35 ദിവസം കൊണ്ട് ഡല്ഹിയില് എത്തുന്ന തരത്തിലാണു പ്രകടനം നിശ്ചയിച്ചിരിക്കുന്നത്. ഖനനം, വ്യവസായവത്കരണം, മറ്റു വികസന പദ്ധതികള് എന്നിവയ്ക്കുവേണ്ടി കൃഷിഭൂമിയും ആദിവാസി/ദളിതരുടെ ഭൂമിയും സര്ക്കാര് പിടിച്ചെടുക്കുന്നതിന് അറുതി വരുത്തുകയാണു മാര്ച്ചിന്റെ ലക്ഷ്യമെന്നു പി.വി. രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു.<br>അണ്ണാ ഹസാരെയുടെ അഴിമതി വിരുദ്ധ സമരത്തിന് ഏക്താ പരിഷത്ത് പിന്തുണയും സഹായവും നല്കിയിരുന്നു. ഒരു ലക്ഷത്തിലധികം പേര് രാംലീലയില് എത്തുന്നതോടെ ഹസാരെ ഉയര്ത്തിയതിനേക്കാള് കടുത്ത വെല്ലുവിളിയാകും കേന്ദ്ര സര്ക്കാരിനു നേരിടേണ്ടിവരിക.<br>-കെ.എന്. അശോക്</p> Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-61060498403756074562011-09-19T21:49:00.001-07:002011-09-19T21:49:34.802-07:00കേന്ദ്രത്തിനെതിരെ 'ജനസത്യാഗ്രഹ' പദയാത്ര തുടങ്ങുന്നു<p>ന്യൂഡല്ഹി: അദ്വാനിയുടെയും അണ്ണ ഹസാരെയുടെയും പ്രക്ഷോഭയാത്രകള്ക്കു മുന്പേ കേന്ദ്രസര്ക്കാറിനെതിരെ ഒരു ഗാന്ധിയന് സമരം തുടങ്ങുന്നു. ഭൂരഹിതര്ക്കുവേണ്ടി പ്രവര്ത്തിക്കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്തിന്റെ ദേശീയ പ്രസിഡന്റും മലയാളിയുമായ പി.വി. രാജഗോപാലിന്റെ നേതൃത്വത്തിലാണ് ഗാന്ധിജയന്തി ദിനത്തില് പ്രക്ഷോഭം തുടങ്ങുന്നത്. <br>കന്യാകുമാരിയിലെ വിവേകാനന്ദാശ്രമത്തില് തുടങ്ങുന്ന പദയാത്ര കേരളമടക്കം വിവിധ സംസ്ഥാനങ്ങളില് സഞ്ചരിച്ച് അടുത്ത വര്ഷം ഗാന്ധിജയന്തി ദിനത്തില് ഗ്വാളിയോറിലെത്തും. തുടര്ന്ന് ദളിതരും ആദിവാസികളുമടക്കം ഭൂരഹിതരായ ഒരു ലക്ഷം പേരടങ്ങുന്ന സമരക്കാര് പാര്ലമെന്റിലേക്ക് പദയാത്ര നടത്തും. <br>രാജ്യത്തെ ഭൂരഹിതരുടെ പ്രശ്നങ്ങള് തീര്ക്കാന് സമഗ്രമായ ഭൂപരിഷ്കരണനയം രൂപവല്ക്കരിക്കണമെന്ന് ആവശ്യപ്പെട്ടാണ് 'ജനസത്യാഗ്രഹം' എന്ന പദയാത്രയെന്ന് ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് മുന് ഉപാധ്യക്ഷന്കൂടിയായ രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. ''രാജ്യത്ത് എട്ട് കോടിയിലേറെ ആദിവാസികളുണ്ട്. ദളിതരും പിന്നാക്കവിഭാഗങ്ങളുമടക്കം 40 ശതമാനത്തോളം പേര്ക്ക് സ്വന്തമായി ഒരു തുണ്ടു ഭൂമിയില്ല. സമ്പന്നര്ക്ക് അനുകൂലമായാണ് സര്ക്കാറിന്റെ നയം. കൃഷിഭൂമി വന്വ്യവസായങ്ങള്ക്കായി ഒരു മടിയുമില്ലാതെ പതിച്ചുനല്കുന്നു. എന്നാല് മണ്ണില് അധ്വാനിച്ചുജീവിക്കുന്ന സാധാരണക്കാര്ക്ക് ഒരു തുണ്ടു ഭൂമി നല്കാന് സര്ക്കാര് നടപടിയെടുക്കുന്നില്ല. 2007-ല് ഏകതാ പരിഷത്ത് നടത്തിയ കാല്ലക്ഷം പേരുടെ പദയാത്രയ്ക്കൊടുവില് ദേശീയ ഭൂപരിഷ്കരണ കൗണ്സില് രൂപവത്കരിക്കാന് കേന്ദ്രസര്ക്കാര് തയ്യാറായി. പ്രധാനമന്ത്രി അധ്യക്ഷനായുള്ളതാണ് ഈ കൗണ്സില്. എന്നാല് ഇതുവരെയും ആ സമിതി വിളിച്ചുചേര്ത്തിട്ടില്ല. കൗണ്സില് അംഗമായ താന് പത്ത് തവണയെങ്കിലും പ്രധാനമന്ത്രി മന്മോഹന് സിങ്ങിന് ഇക്കാര്യത്തില് കത്തയച്ചെങ്കിലും മറുപടിയുണ്ടായില്ലെന്ന് രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു.<br>''ഭൂമി വില്ക്കാന് ജനങ്ങളെ പ്രേരിപ്പിക്കുന്നതാണ് ദേശീയ ഭൂമിയേറ്റെടുക്കല് ബില്. ഭൂപരിഷ്കരണനയം നടപ്പാക്കുമെന്നുള്ള സര്ക്കാര് വാഗ്ദാനം പാലിക്കപ്പെട്ടില്ല. ദേശീയ ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതി മുന്നൂറിലേറെ നിര്ദേശങ്ങള് മുന്നോട്ടുവെച്ചെങ്കിലും സര്ക്കാര് നടപടിയെടുത്തില്ല. അഞ്ച് കമ്മീഷന് റിപ്പോര്ട്ടുകളുണ്ടായിട്ടും ഭൂമിപ്രശ്നത്തില് സര്ക്കാര് അനങ്ങിയില്ല''- അദ്ദേഹം ആരോപിച്ചു.<br>രാജ്യത്തെമ്പാടും ഭൂമി പ്രശ്നത്തില് നടക്കുന്ന സമരങ്ങളെയെല്ലാം ജനസത്യാഗ്രഹത്തിലൂടെ കോര്ത്തിണക്കും. വിവിധ സംസ്ഥാനങ്ങളിലെ ഭൂമിപ്രശ്നങ്ങളും തര്ക്കങ്ങളും കൈകാര്യം ചെയ്യാന് ദേശീയതലത്തില് ഭൂമി കമ്മിഷനും ഭൂമി ട്രൈബ്യൂണലും രൂപത്കരിക്കണം. അടിസ്ഥാനവിഭാഗങ്ങളെ സംഘടിപ്പിച്ചുള്ള പദയാത്രയ്ക്കു പുറമെ സര്ക്കാറുമായുള്ള ചര്ച്ചകള്ക്കായി വിദഗ്ധരെയും സാമൂഹികപ്രവര്ത്തകരെയും ഉള്പ്പെടുത്തി ജനകീയ കമ്മിഷന് രൂപവത്കരിക്കുമെന്നും രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. ഏകതാ പരിഷത്ത് ദേശീയ കോ- ഓര്ഡിനേറ്റര് അനീഷ് തില്ലങ്കേരിയും വാര്ത്താസമ്മേളനത്തില് പങ്കെടുത്തു. <p><a title="http://www.mathrubhumi.com/story.php?id=216092" href="http://www.mathrubhumi.com/story.php?id=216092">http://www.mathrubhumi.com/story.php?id=216092</a></p> Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-86944853331249113072011-09-05T12:27:00.001-07:002011-09-05T12:27:43.066-07:00भूमि समस्या को लेकर आंदोलन जरूरी*गांधी आश्रम में बैठक आयोजित* श्योपुर। महात्मा गांधी सेवा आश्रम पाली रोड़ पर सोमवार को भूमि समस्या को लेकर एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें इस समस्या को लेकर आंदोलन की तैयारी पर विचार-विमर्श किया गया, इस अवसर पर जन सत्याग्रहण 2012 के दल नायक भरत सरियाम ने कहा कि श्योपुर जिले की सैकड़ो बीघा जमीन दबंगो के कब्जो में फंसी है तथा जमीन का मालिक आदिवासी उनके खेतो पर काम करने को मजबूर है। इस संबंध में एकता परिषद ने व्यापक रूप से रैली व धरना प्रदर्शन का आयोजन भी किया लेकिन प्रशासन द्वारा समस्या के निराकरण की दिशा में विशेष कदम नहीं उठाया जा रहा है, मप्र शासन ने धारा 170 क व ख के अंतर्गत कब्जे की भूमि वापस करने के लिए कार्यवाही भी की। जिसके चलते कई लोगों को एसडीएम कोर्ट से नोटिस भी जारी किया गया, परन्तु दबंगो ने प्रशासन के आला अधिकारियों से सांठ-गांठ कर मामला खारिज करवा लिया। कुछ आदिवासियों के पक्ष में कार्यवाही भी हुई उसमें अभी तक सीमांकन के लिए कोई दल गठित नहीं किया गया, इसको लेकर सोमवार को दो सैकड़ा महिला-पुरूषों ने महात्मा गांधी सेवा आश्रम में उपस्थित होकर आंदोलन की रूपरेखा पर विचार किया। इस अवसर पर एकता परिषद के जिलाध्यक्ष गंगाराम आदिवासी, गुलाबबाई आदिवासी बगवाज, जानकीबाई, पूर्व सरपंच मयापुर वैशक्या एवं मुखिया हरदेव, आवदा से सुरजा, रामपुरा से रामचरण, बर्धा से सुरजा सहित आदिवासी समाज के मुखिया मौजूद थे।Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-34544167003614216622011-09-05T12:22:00.001-07:002011-09-05T12:22:43.635-07:00यमुना खादर बचाना है तो अन्ना बन जाएं किसाननई दिल्ली.यमुना खादर के प्राकृत को बचाने के लिए अब आम किसान ही अन्ना हजारे बनेगा। मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने किसानों को ललकारते हुए कहा कि आपमें से कौन बनेगा अन्ना! यह लड़ाई अन्ना से कठिन है, लेकिन यहां अन्ना से भी अधिक मजबूत इरादे और संघर्षशील लोग हैं। <br />
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राजेन्द्र सिंह ने कहा कि किसानों की लड़ाई सरलता व सादगी से लड़ी जाती है, इसलिए कभी हार नहीं होती है। बस, इसके लिए साधना की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अपने हक की लड़ाई के लिए प्राणों की आहुति से कम कुछ भी नहीं चलने वाला। <br />
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उनके इस आह्वान के साथ ही किसानों की भीड़ से अनेक हाथ अन्ना बनने के लिए उठ गए। उन्होंने कहा कि यमुना खादर की जमीन हर प्रकार की खेती के योग्य है, ऐसे में यहां पर किसी तरह का निर्माण करना उचित नहीं है। <br />
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इस मौके पर कहा गया कि यमुना की उपयोगिता के बारे में दिल्ली तथा केन्द्र सरकार को समझाने की कोशिश की जाएगी। दिल्ली के लिए यमुना जरूरी है और उसका भविष्य भी यमुना पर ही निर्भर करता है। <br />
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इस अवसर पर एकता परिषद के अध्यक्ष राजगोपाल ने कहा कि किसान को बर्बाद कर देश का निर्माण नहीं किया जा सकता है। अनाज की कमी से देश गुलामी की ओर अग्रसर होगा। खेती की जमीन को अन्य कार्यों में नहीं देना चाहिए। <br />
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यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्र ने कहा कि यमुना की वजह से दिल्ली है, न कि दिल्ली की वजह से यमुना। उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि यमुना को यमुना और किसानों को किसान रहने दो। <br />
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उन्होंने दावा किया कि दुनिया में दिल्ली एकमात्र ऐसा शहर है, जहां पर यमुना खादर जैसा प्राकृतिक स्थल है और पूरी दिल्ली यमुना खादर पर निर्भर है। यमुना हमें पानी और अच्छी मिट्टी देती है।<br />
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साथ ही, दिल्ली की जीवनदायनी भी यमुना है, इसलिए यमुना खादर को ज्यों का त्यों रहने दिया जाना चाहिए। इस मौके पर अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी अपील करते हुए कहा कि डीडीए का प्रस्तावित बायोडायवर्सिटी पार्क पथरीला है, इसलिए इस भूमि पर केवल खेती और बागवानी को ही बढ़ावा देना उचित होगा।Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-73761373218010732332011-09-05T12:21:00.001-07:002011-09-05T12:21:23.888-07:00जमीन के सीमांकन की मांग एकता परिषद ने सौंपा ज्ञापनश्योपुर । एकता परिषद के जिला समन्वयक बाबूलाल वैष्णव के नेतृत्व में ग्राम मयापुर व बगवाज के आदिवासियों ने जिलाधीश को एक ज्ञापन देकर उनकी जमीन का सीमांकन कराये जाने की मांग की है। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि मप्र शासन द्वारा धारा 170 क, ख के अंतर्गत विशेष भूमि अभियान चलाकर आदिवासियों की जमीन वापिसी के संबंध में कार्यवाही प्रारंभ की गई थी, जिसके तहत श्योपुर जिले में भी एसडीएम श्योपुर ने भूमि अभियान चलाकर कब्जा धारियों को नोटिस जारी किया था तथा 155 लोगों को उनकी जमीन पर काबिज होने के आदेश जारी किये लेकिन अभी तक सीमांकन हेतु टीम का गठन नहीं किया गया है। जिसके कारण खेती का महत्वपूर्ण समय निकला जा रहा है, ज्ञापन में शीघ्र टीम का गठन कर भूमि का सीमांकन कराये जाने की मांग की गई है। ताकि वे समय पर अपने खेतो की बुआई कर सकें, ज्ञापन देने वालो में मयापुर व बगवाज के ग्रामवासियों सहित एकता परिषद के ब्लॉक समन्वयक भरत सरियाम, मयापुर के पूर्व सरपंच वैशक्या सहित एकता परिषद के कार्यकर्ता शामिल रहे।<br />
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http://newsvision.biz/Madhyapradesh/index.php?id=212&page=sivpur&nws=1341Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-52763368682105642842011-09-05T12:20:00.001-07:002011-09-05T12:20:39.673-07:00भू-अधिकार को दिल्ली कूच करेंगे एक लाखशिमला — हिमालय नीति अभियान एकता परिषद भू-अधिकार व वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन करेगी। दो अक्तूबर से सितंबर 2012 तक चलने वाले इस आंदोलन में देश भर से एक लाख लोग जन सत्याग्रह वाहन यात्रा में दिल्ली के लिए कूच करेंगे। भू-अधिकार को लेकर चलाए जाने वाले इस अभियान के तहत शिमला में हिमालय नीति अभियान एकता परिषद व राष्ट्रीय वन जन श्रम जीवी मंच द्वारा सामूहिक तौर पर कृषि सहकारी समिति के प्रशिक्षण संस्थान में दो दिवसीय परिसंवाद किया गया। इस परिसंवाद में पांच राज्य उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब व हिमाचल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एकता परिषद से आए रमेश शर्मा ने शिमला में प्रेस वार्ता के दौरान भूमि के सवाल में देश भर में चलाई जाने वाली जन सत्याग्रह की वाहन यात्रा और पद यात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। यह यात्रा कन्याकुमारी से दो अक्तूबर 2011 से शुरू होगी, जिसमें पूरे देश से सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह यात्रा सितंबर 2012 में ग्वालियर में एकत्रित होकर वहां से पद यात्रा के रूप में तबदील की जाएगी, जिसमें एक लाख लोग दिल्ली तक मार्च करेंगे। यह यात्रा देश के विभिन्न कोनों से शुरू होगी। हिमाचल प्रदेश में चल रहे आंदोलनों की समीक्षा की गई व चिंता जताई गई कि जो प्रोजेक्ट रुके हुए हैं उन्हें सरकार फिर से शुरू कर सकती है। इसी तरह अन्य प्रोजेक्ट रेणुका, लूरी आदि जगहों में भी आंदोलन तेज है। पहले दिन के परिसंवाद की शुरुआत करते हुए एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति के विषय में देश भर में अक्तूबर 2011 से 2102 तक जन सत्याग्रह के तहत होने वाली पद यात्रा के बारे में बताया। इस दौरान महिलाओं को भूमि सुधार के एजेंडे से जोड़ने की बात की व इस बात पर जोर दिया कि भूमि अधिकारों के सत्याग्रह में महिलाएं ही निजीकरण कंपनियों द्वारा की जा रही लूट को रोकने में कामयाब हो रही हैं। हिमाचल में वन अधिनियम कानून को लागू नहीं किया जा रहा है। जो सही नहीं है।<br />
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http://www.divyahimachal.com/2011/08/31/Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-74799865806218479892011-08-30T06:42:00.000-07:002011-08-30T06:42:15.372-07:00अभी भी है मौका सुधरने कापी. व्ही. राजगोपाल | अगस्त 22, 2011 11:08 <br />
वर्ष 2007 में 25 हजार आदिवासियों, दलित एवं भूमिहीन लोग लम्बी पदयात्रा करके भारत सरकार को चुनौती देने के लिए दिल्ली पहुंचे. आजादी के 60 साल बाद भी जीवन जीने के संसाधनो से वंचित इन आंदोलनकारियों के सामने सरकार को झुकना पड़ा. भूमिहीनता मिटाने की दृष्टि से और भूमि सुधार की अधूरे कार्यक्रम पूरा करने की उद्देश्य से भूमि सुधार परिषद का गठन किया गया.<br />
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इससे पूर्व वर्ष 2003 से ही भूमि सुधार के एजेण्डे को लेकर केन्द्रीय सरकार के साथ वार्ता आंरभ हो चुका था. एकता परिषद जैसे जन संगठन पदयात्राओं के माध्यम से अलग-अलग प्रांतीय सरकारों को भी भूमि सुधार के विषय में काम करने के लिए निरंतर बाध्य करते रहे हैं. लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी भूमि एवं जीवन जीने के अन्य संसाधनों के बारे में सरकार का रवैया वही बना रहा जो पहले था. उनकी मान्यता है कि जल, जंगल, जमीन का दोहन कंपनियों के मार्फत होनी चाहिए. यह भी मान्यता है कि देश के हित में ओद्यौगिकरण जरूरी है और ओद्यौगिकरण के लिए संसाधनो के दोहन भी जरूरी है. इसलिए आदिवासी, दलित एवं गरीबो को जमीन देने के विषय में सरकार की कभी रुचि रही नहीं.<br />
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आज देश के अलग-अलग हिस्से में चाहे सिंगूर में हो, पलाचीमाड़ा में हो, जैतापुर मे हो या भट्टा-परसौल हो हर जगह भूमि बचाने के लिए किसान आंदोलित है. दुसरी तरफ आदिवासी एवं दलित एक-एक इंच भूमि के लिए संघर्षरत है. केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के व्यवहार से यह साफ है कि वह गरीबों, भूमिहीनों को जमीन देना तो दूर भू-स्वमियो को भी अब किसान नहीं रहने देगी. तमाम जमीन किसानों से लेकर बडी़-बड़ी कम्पनियो को देने की दिशा में पूरी व्यवस्था एकजुट होकर लगी हुई है. इस प्रक्रिया में किसानों को झूठे मुकदमों में फंसाना, कम्पनियों के गुडों से किसानो को पिटवाना, जबरन भूमि हथियाना ऐसी कई प्रक्रियाएं चल रही हैं. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. ऐसे मौके पर सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक क्यों नहीं बुलाई जा रही?<br />
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देश भर के कई विद्वानों ने पूरा एक साल अध्ययन करने के बाद करीब 300 सुझाव सरकार के सामने रखे हैं जिस पर अगर ईमानदारी से काम किया जाए तो भूमि से जुड़े कई सवालों को हल किया जा सकता है. आज जब किसानो का आंदोलन हिंसक होने लगा तब सरकार भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर पुर्नःविचार करने को तैयार हो गई है. जब नक्सलवाद सिर चढ़कर बोलने लगा तब आदिवासियों के हित में वन-अधिकार कानून बनाने के लिए तैयार हो गए. किसी भी देश के सरकार के लिए यह हास्यास्पद बात है कि वह तभी काम करेगी जब उन पर दबाव पड़ेगा. स्वाभाविक रूप से गांव के हित में, किसानो के हित में और गरीबों के हित में काम करने का संस्कार जिन लोगो में नहीं है उन्हे न सरकार बनानी चाहिए और न ही सरकार में रहना चाहिए. सामंती व्यवस्था से पीडि़त इस देश की मानसिकता इतनी खराब हो गई है कि जब तक कहीं से दबाव न पड़े तब तक आम जनता के हित में कुछ भी काम करने को तैयार नहीं है. जब अन्ना हजारे एवं रामदेव का दबाव बढ़ा तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पर काम करने के लिए तैयार हो गये. बिना दबाव के या बिना डंडे के काम नहीं करना है, ऐसा सोचने वाले राजनेता एवं सरकारी कर्मचारियों से यह देश पीडि़त है और इस पीड़ा को लेकर जनता चारों ओर आक्रोशित है.<br />
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सही सोच रखने वाले देश के प्रधानमंत्री होते तो इस समय भूमि सुधार परिषद के माध्यम से भूमि से जुड़े तमाम मुद्दों को समझने एवं हल करने की कोशिश करते. सत्ता मे बैठे हुए दलों के पास आप जनता के पक्ष में काम करने की रुचि होती तो इस समय किसानों की आत्म-हत्या, किसानों का आंदोलन एवं आदिवासी क्षेत्रों के हिंसा आदि मुद्दों को लेकर एक व्यापक बहस चलाकर उन समस्याओं के निराकरण को लेकर सरकार एवं सामाजिक संगठनो का संयुक्त अभियान चला दिया होता.<br />
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मैने कई बार सरकार से निवेदन किया कि वो भूमि सुधार के संबंध मे क्रांतिकारी कदम न उठाना चाहे, तो भी छोटे-छोटे कदम तो उठाये. पहला कदम है भूमि अधिग्रहण को बंद करना और सार्वजनिक हित मेंयदि भूमि की जरूरत हो तो उसे जन भागीदारी के माध्यम से प्राप्त करना, दूसरा कदम है भूमि और कृषि पर बाजारीकरण को रोकना और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देना, तीसरा कदम है कि जिन गरीब लोगों के जमीन पर दबंग लोगों ने कब्जा किया है या कंपनियों ने मलबा डाला है या वन विभाग ने पेड़ लगाया है उसे इमानदारी से उन किसानों को वापस दिलाना और आक्रमणकारियों को सजा देना. अगला कदम है कि नाले एवं कूड़े के किनारे बसे शहर के झुग्गी झोपडि़यों में पशुवत जिदंगी जीने वाले को अपनी झोपड़ी तैयार करने के लिए पर्याप्त जमीन देना. ऐसा कोई न रहे जिनके पास आवासीय जमीन न हो. यह एक लम्बी सूची है लेकिन यह सूची उनके लिए काम आएगी जिनके अंदर कुछ करने की तमन्ना हो. राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष से यह हो पायेगा ऐसा लगता नहीं है. वे सिर्फ आम आदमी के हित में भाषण दे सकते हैं, लेकिन आम आदमी के हित में काम नहीं कर सकते.<br />
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इसी प्रकार किसानों की समस्या हल करने के लिए एकल खिड़की एवं त्वरित गति से काम करने वाले न्यायालय की बात हुई थी. पिछले कई वर्षों से इन सभी सुझावों को आम लोगों से दूर नौकरी करने वोले कुछ सरकारी कर्मचारियों से हाथ का खेल बन कर रह गया है. काम न करने के लिए सौ बहाने हैं. सरकारी अफसरो के चक्कर में न फंसकर आम जनता के हित में काम करना चाहे तो उनके पास अब भी मौका है अगर किसी सरकार ने ठान लिया हो कि हमें देश को बर्बाद कर ही छोड़ना है, चंद पूंजीपतियों के हित में आम जनता को बेकार एवं बेरोजगार रखना ही है तब ऐसे सरकार को समझाना कठिन है. धीरे-धीरे सभी लोग ऐसा महसूस करने लगे हैं कि व्यापक जन संगठन एवं जन आंदोलन के बिना इस देश के सरकार से कुछ भी उम्मीद करना बेमानी है. <br />
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इस धारणा को अगर बदलने की दिशा में ईमानदारी से कुछ करना चाहे तो केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के सामने अभी भी वक्त है. समय की पुकार सुनना ही सही समझदारी मानी जायेगी.<br />
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(लेखक गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य हैं.)<br />
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Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-37710937028067185992011-08-30T06:41:00.003-07:002011-08-30T06:41:24.723-07:00पूर्वोत्तर की त्रासदी: समाधान की संभावनाएंपी. व्ही. राजगोपाल | नई दिल्ली, अगस्त 18, 2011 17:16 <br />
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असम और अरुणांचल प्रदेश की लम्बी यात्रा पूरा करके अभी-अभी उत्तर प्रदेश से वापस आया हूँ. पूर्वोत्तर के बारे में कहना हो तो, बहुत कुछ है मैं कोशिश कर रहा हूँ, कि कुछ बातें संक्षिप्त में कहूँ.<br />
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इस बार की यात्रा एक शांति-सम्मेलन के साथ प्रारम्भ हुई. हम 25-30 लोग निरन्तर इस विषय पर विचार करते रहे कि पूर्वोत्तर में शांति कायम करने के लिए क्या-क्या किया जाए. इस बात पर हमें खुशी हुई, कि जन संगठनों के साथ सरकार की वार्ता चल रही है. बोडो आन्दोलन करीब-करीब शांत हो चुका है,<br />
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उल्फा के साथ बातचीत आरम्भ हो चुकी है. भले ही ये प्रयास बहुत लोगों की जान जाने के बाद हो रहा है, तब भी इस प्रयास के लिए सरकार बधाई की पात्र हैं. आगे से इस बात का ध्यान रखा जाए, कि शांतिमय ढंग से प्रारम्भ होने वाले आन्दोलनों को हिंसक नहीं होने दिया जाए. और कहीं हिंसक हुआ तो भी जल्द ही बातचीत के दौरान समस्या का हल खोजा जाए. यह तभी सम्भव होगा जब सरकार में बैठे लोग अहिंसात्मक आन्दोलनों से बात करना सीखें.<br />
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सरकारें अपने तौर तरीकों से निरन्तर यह प्रदर्शित करते आ रहे हैं कि वे अहिंसक आन्दोलन से बात करने के लिए तैयार नहीं है. बल्कि हिंसा वालों से बात करने को तैयार हैं ये संदेश अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है, इसलिए सरकार को एक ऐसा विभाग प्रारंभ करना होगा, जो आंदोलनों से संवाद करने की कला जानता हो. उन्हें इस कार्य के लिए प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना भी सरकार की जिम्मेदारी होगी, अन्यथा इस काम में क्षमता रखने वाले कुछ संगठनों को जिम्मेदारी व संसाधन दिया जाए जिससे वे निरन्तर इस प्रयास में लगे रहें और आन्दोलनों को हिंसक होने से रोकें. नक्सली समस्या से पीडि़त प्रांतों को लेकर मैंने कई बार राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्रियों तक यह निवेदन करता रहा कि बातचीत के माध्यम से समस्या हल करने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों को आगे लायें. यह तो दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भारत में सरकारें आज भी बंदूक के शक्ति पर ही विश्वास रखते हैं, न कि बातचीत के शक्ति पर.<br />
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देश के कई गणमान्य व्यक्तियों ने मणिपुर में दस साल से अहिंसक आन्दोलन में लगे एरोम शर्मिला से बात करने के लिए सरकार से आग्रह किया लेकिन आज तक सरकार की ओर से इस दिशा में कोई पहल नहीं किया गया. कम से कम अब सरकार इस बात के लिए तैयार हो कि वे जल्दी से जल्दी बातचीत के माध्यम से मणिपुर की समस्या को हल करें ताकि सम्पूर्ण पूर्वोत्तर में शान्त का माहौल बन सके.<br />
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शांति-सम्मेलन के दौरान हम इस बात को समझ रहे थे कि पूर्वोत्तर के कई प्रान्तों के बीच में तनाव हैं, कहीं कहीं आदिवासी समूह के बीच में तनाव है कहीं-कहीं अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं बीच में तनाव है, जैसे अरुणांचल प्रदेश में चीन के दबाव के कारण, म्यानमार में हिंसक संगठनों के प्रशिक्षण के कारण और बंग्लादेश से भूमिहीनों के आगमन के कारण तथा अनेक कारणों से पूर्वोत्तर को लेकर निरंतर सोचने के लिए शांति-प्रयास में तीव्रता लाने की दृष्टि से कुछ सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी और संसाधन देना आवश्यक होगा. शांति साधना आश्रम गुवाहाटी जैसे कोई एक संगठन इसमें समन्वयन की भूमिका निभा सकते हैं.<br />
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विकास के नये सन्दर्भ को लेकर पूर्वोत्तर में काफी तनाव है. कहा जा रहा है कि ऊर्जा समस्या को हल करने के लिए बह्मपुत्र नदी में कई बांध बनाने की तैयारी के बात चल रही है. इससे विकास तो बहुत दूर लेकिन बाढ़ और अन्य विषमताओं से परेशानी में इजाफा होगा. बह्मपुत्र के साथ इतनी बड़ी छेड़छाड़ भारत के भौगोलिक परिवेश को तो नुकसान पहुंचाएगी ही साथ ही निचले क्षेत्र में स्थित बंग्लादेश को भी भारी क्षति पहुंचेगी. इस बात को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरु हो गया है. सरकार अभी से आंदोलनलनकारियों की बात सुने और समाधान की ओर बढ़े.<br />
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चाय असम की पहचान है, लेकिन साथ ही यह एक समस्या भी बनकर सामने आ रही है. लाखों एकड़ जमीन कई वर्षों के लीज पर कई बड़ी कंपनियों को दे रखी है. आम भूमिहीन लोगों के पास भोजन का अभाव है तो दूसरी तरफ चाय के नाम पर लाखों एकड़ जमीन पर कब्जा किया जा चुका है. जब आदिवासी एक पेड़ काटते हैं तो उन्हें अनेक प्रकार की सजा सुनायी जाती है, जबकि लाखों एकड़ जंगल साफ करके चाय बागानों को बढ़ावा दिया गया है.<br />
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मैं जहां चाय बागान के मजदूरों से मिला वहां उन के हालत बंधुआ मजदूरों से भी बदतर दिखायी पड़ रहा था. तीन पीढ़ी पहले उड़ीसा से झारखण्ड से और बिहार से आये हुए ये मजदूर लोग आज भी अत्यधिक गरीबी में भविष्य के प्रति बिना किसी उम्मीद के जी रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि इन मजदूरों के हालात सुधारने के लिए चाय बागानों में इन्हें सिर्फ चाय का ही नहीं, लाभ का भी भागीदार बनाने का दबाव बागान मालिकों पर बनें. पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनकर चाय बागान के मालिकों को धनी बनाने का बोझ इन मजदूरों के सिर से हटा देना चाहिए. चूंकि अनाज की तुलना में चाय कोई आवश्यक चीज नहीं है, इसलिए अब चाय बागानों के बन्द करके इन मजदूरों को खेती के लिए जमीन दिया जाना चाहिए ताकि ये लोग भी इंसान जैसा जीवन जी सके.<br />
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बह्मपुत्र नदी में दुनिया का सबसे बड़ा टापू मौजूद है, इस टापू का आधा-हिस्सा बाढ़ के कारण गायब हो चुका है, रेत से बना हुआ ये टापू कब तक टिकेगा ये कहना कठिन है. पिछले वर्षों में करीब दो लाख लोग विस्थापित होकर अन्य जगहों पर जाकर बसे हुए है हर वर्ष हजारों लोग विस्थापित हो रहे हैं. ऐसा लगा नहीं कि कहीं इस बात को लेकर कहीं गंभीर चिंतन हो रहा है या माजुली को बचाने का कोई युद्धस्तर पर योजना बन रही हो. असमिया भाषा में कहें तो लाहि-लाहि ढंग से कुछ तो हो रहा है, लेकिन जिस तेजी से होना चाहिए वो नहीं हो रहा है. माजुली कृष्ण भक्तों का तीर्थ स्थल है, सौ के करीब सत्रों में हजारों बच्चे कला और अध्ययन में लगे हुए हैं सभी धमाचार्य अपनी ओर से मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक निवेदन किये हैं पता नहीं कब सरकार जागेगी.<br />
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वन अधिकार अधिनियम के तहत वोडो आदिवासियों को जमीन देने का काम अभी भी बाकी है. 1975 से जो लोग वन भूमि पर बैठे हुए हैं उन्हें तक जमीन नहीं दिया गया हैं इतना अच्छा कानून बनने के बावजूद भी जिसे न्याय मिलना चाहिए नहीं मिल रहा है इससे ज्यादा हास्यापद क्या हो सकता है. पूरे देश में आदिवासियों को दुश्मन समझने की वन विभाग की जो वृत्ति है या हर आदिवासी को नक्सली समझने का उतावला पन है, उससे वनविभाग को मुक्ति दिलाना आज की आवश्यकता है.<br />
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इस पूरी यात्रा में शांति साधना आश्रम जैसे कई समाजसेवी संगठनों का काम नजदीक से देखने को मिला इन्हीं लोगों कि निष्ठा और कार्यशैली ने पूर्वोत्तर और भारत के अन्य इलाकों को अभी भी जोड़ रखा है. इनके अनुभव और निष्ठा पूर्वोत्तर के शांति और सही विकास प्रक्रिया में काम आ सकता है. और उन्हीं के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत के अन्य भागों से जोड़ने में सफलता मिल सकती है.<br />
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(लेखक गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य हैं)<br />
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Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-69168829388172191782011-08-14T05:29:00.004-07:002011-08-14T05:29:57.996-07:00വടക്കുകിഴക്കും വേരുറപ്പിക്കാന് മാവോവാദി ശ്രമംപി.കെ. മണികണ്ഠന് <br />
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ന്യൂഡല്ഹി: ഉള്ഫ തീവ്രവാദികളുടെ സഹായത്തോടെ മാവോവാദികള് വടക്കു-കിഴക്കന് സംസ്ഥാനങ്ങളില് വേരുറപ്പിക്കാന് ശ്രമിക്കുന്നു. രാജ്യമെങ്ങും പ്രവര്ത്തനം വ്യാപിപ്പിക്കുന്നതിന്റെ ഭാഗമായാണിത്. ഉള്ഫ വൈസ് പ്രസിഡന്റും അസം ബറ്റാലിയന്റെ നേതാവുമായ പ്രദീപ് ഗൊഗോയാണ് ഇതേക്കുറിച്ച് സൂചന നല്കിയത്. ഉള്ഫ മേഖലയില് സമാധാനം പുനഃസ്ഥാപിക്കാന് ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് വൈസ് പ്രസിഡന്റും മലയാളിയുമായ പി.വി.രാജഗോപാല്, ഗൊഗോയിയുമായി ചര്ച്ച നടത്തിയപ്പോഴാണ് പുതിയ മാവോവാദി ബന്ധത്തിന്റെ വെളിപ്പെടുത്തലുണ്ടായത്. <br />
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ഉള്ഫയുടെ ഏഴു ബറ്റാലിയനുകളില് രണ്ടെണ്ണമൊഴികെയുള്ളവയെല്ലാം വെടിനില്ത്തല് പ്രഖ്യാപിച്ചിരിക്കുകയാണ്. കേന്ദ്രസര്ക്കാറുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് ഇടനിലക്കാരനായി അവര് രാജഗോപാലിനെ ക്ഷണിച്ചിരുന്നു. 2008 ഒക്ടോബറില് നിരുപാധിക ചര്ച്ചയ്ക്ക് തയ്യാറാണെന്ന് ഉള്ഫ മേധാവികള് അറിയിച്ചിരുന്നു. ഇക്കാര്യം കേന്ദ്ര ആഭ്യന്തര മന്ത്രാലയത്തെ അറിയിച്ചെങ്കിലും അവര് ഇതുവരെ ചര്ച്ചയ്ക്കു സന്നദ്ധരായിട്ടില്ലെന്ന് രാജഗോപാല് 'മാതൃഭൂമി'യാടു പറഞ്ഞു. സമാധാനശ്രമങ്ങളുടെ ഭാഗമായാണ് ഏപ്രിലില് ഗൊഗോയിയുമായി ചര്ച്ച നടത്തിയത്. <br />
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ഗുവാഹട്ടിയില് നിന്നും 350 കിലോമീറ്റര് അകലെയുള്ള ശിവ്സാഗര് ജില്ലയിലായിരുന്നു ഉള്ഫ നേതാക്കളുമായുള്ള ചര്ച്ച. ഉള്ഫയുടെ രാഷ്ട്രീയ ഉപദേശകന് ഭീംകാന്ത് ബര്ഗോയ്, ചെയര്പേഴ്സണ് അര്വീന്ദ് രാജ്കോവ, വിദേശകാര്യ സെക്രട്ടറി സച്ച്ദര് ചൗധരി, ധനകാര്യ സെക്രട്ടറി ചിത്രമോഹന് ഹസാരിക, സേനാ വക്താവ് രാജു ബറുവ, സാംസ്കാരിക സെക്രട്ടറി പ്രണത പൂക്കന് എന്നിവരും ചര്ച്ചയില് പങ്കെടുത്തു. ഉള്ഫ മേധാവി പരസ് ബറുവയുടെ നേതൃത്വത്തിലുള്ള ബറ്റാലിയന് മാത്രമാണ് ഇപ്പോള് സായുധസമരത്തിലുള്ളത്. ഒളിവിലിരുന്നാണ് പരസ് ബറുവയുടെ പ്രവര്ത്തനം. <br />
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ബറുവയുടെ സേനയെ ഭയന്ന് ചര്ച്ചയ്ക്കു മുതിരാതിരിക്കുന്ന കേന്ദ്ര നിലപാട് ശരിയല്ലെന്ന് രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. ഭൂരിഭാഗവും ഇപ്പോള് ചര്ച്ചയ്ക്കു തയ്യാറാണ്. ഈ അനുകൂല അന്തരീക്ഷം സര്ക്കാര് ഉപയോഗിക്കണം. ഇല്ലെങ്കില് രാജ്യത്തെ വടക്കുകിഴക്കന് മേഖല വീണ്ടും സംഘര്ഷാവസ്ഥയിലേക്കു നീങ്ങും. അവിടെ മാവോവാദികള് താവളമുറപ്പിക്കുന്ന സ്ഥിതി ഒഴിവാക്കാന് ജാഗ്രത പുലര്ത്തണമെന്നും അദ്ദേഹം ആവശ്യപ്പെട്ടു. Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-11405063097198688352011-08-14T05:29:00.002-07:002011-08-14T05:29:33.494-07:00ദേശീയ ഭൂനയം: ഇടപെടാമെന്ന് രാഹുല്ഗാന്ധിന്യൂഡല്ഹി:ദേശീയ ഭൂപരിഷ്കരണ നയം നടപ്പാക്കാനായി കേന്ദ്രസര്ക്കാരില് സമ്മര്ദ്ദം ചെലുത്താമെന്ന് എ.ഐ.സി.സി. സെക്രട്ടറി രാഹുല് ഗാന്ധിയുടെ ഉറപ്പ്. ഭൂരഹിതര്ക്കു വേണ്ടി പ്രവര്ത്തിക്കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്ത് സംഘടനയുടെ നേതാക്കളെയാണ് അദ്ദേഹം ഇക്കാര്യം അറിയിച്ചത്. ഭൂപരിഷ്കരണ നയം തയ്യാറാക്കാനായി കേന്ദ്രം രൂപവത്കരിച്ച ഭൂപരിഷ്കരണ കൗണ്സില് ഇതുവരെ യോഗം ചേര്ന്നിട്ടില്ലെന്ന് ഏകതാ പരിഷത്ത് കോ-ഓഡിനേറ്റര് അനീഷ് തില്ലങ്കേരിയുടെ നേതൃത്വത്തിലുള്ള പ്രതിനിധി സംഘം രാഹുല് ഗാന്ധിയെ അറിയിച്ചു. ഭൂപരിഷ്കരണ നയത്തിന്റെ കരടു രൂപം തയ്യാറായിട്ടുണ്ടെന്നും നേതാക്കള് പറഞ്ഞു. <br />
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പ്രധാനമന്ത്രിയാണ് ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതി അധ്യക്ഷന്. ഭൂരഹിതരുടെ പ്രശ്നങ്ങള് പരിഹരിക്കുന്നതിന് ആവശ്യമായ സഹായങ്ങള് ചെയ്യാമെന്ന് രാഹുല് ഗാന്ധി ഉറപ്പു നല്കി. Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-60537814328476862502011-08-14T05:29:00.000-07:002011-08-14T05:29:09.346-07:00കശ്മീര് ജനതയോടു സംസാരിക്കേണ്ടത് സ്നേഹത്തിന്റെ ഭാഷയില് - ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന്ന്യൂഡല്ഹി: കശ്മീര് ജനതയോട് സ്നേഹത്തിന്റെ ഭാഷയിലാണ് പെരുമാറേണ്ടതെന്ന് ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് ഉപാധ്യക്ഷന് പി.വി. രാജഗോപാല് ആവശ്യപ്പെട്ടു. കശ്മീര് പ്രശ്ന പരിഹാരത്തിനായി കേന്ദ്രസര്ക്കാര് ഗാന്ധിയന്മാരുടെ സഹായം തേടാത്തത് നിര്ഭാഗ്യകരമാണെന്നും അദ്ദേഹം പറഞ്ഞു. ചമ്പല്ക്കാടുകളിലെ കൊള്ളശല്യം അവസാനിപ്പിക്കാനും മറ്റും കേന്ദ്രസര്ക്കാര് നേരത്തേ ഗാന്ധിയന്മാരെ സമീപിച്ചിരുന്നു. എന്നാല് കഴിഞ്ഞ 15 വര്ഷമായി ഗാന്ധിയന്മാരെ ആരെയും കേന്ദ്രസര്ക്കാര് സമാധാനശ്രമങ്ങളില് സഹകരിപ്പിക്കുന്നില്ല. <br />
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അടുത്തിടെ കശ്മീര് സന്ദര്ശിച്ച സാമൂഹിക പ്രവര്ത്തകരുടെ പ്രതിനിധി സംഘത്തില് രാജഗോപാല് പങ്കാളിയായിരുന്നു. കോവ എന്ന സന്നദ്ധ സംഘടനയുടെ നേതൃത്വത്തിലാണ് ഓരോ ഘട്ടമായി സാമൂഹിക നേതാക്കളെ കശ്മീരിലെത്തിച്ച് ജനസമ്പര്ക്ക പരിപാടികള് സംഘടിപ്പിക്കുന്നത്. ഗീലാനി, യാസിന് മാലിക്ക് തുടങ്ങിയവരെയെല്ലാം തങ്ങള് കണ്ടു സംസാരിച്ചെന്ന് രാജഗോപാല് 'മാതൃഭൂമി'യോടു പറഞ്ഞു. സമാധാനമാണ് തങ്ങള് ആഗ്രഹിക്കുന്നതെന്ന് യാസിന് മാലിക്ക് കൂടിക്കാഴ്ചയില് അഭിപ്രായപ്പെട്ടു. കശ്മീരിലെ ഭൂരിഭാഗം ജനങ്ങളുടെയും ആഗ്രഹം ഇതാണ്. ഒരു ചെറിയ വിഭാഗം മാത്രമാണ് സംഘര്ഷങ്ങള്ക്കു പിന്നില്. എന്നാല് കശ്മീര് ജനതയെ ഒന്നാകെ സംശയദൃഷ്ടിയോടെ കാണുന്ന സമീപനമാണ് സര്ക്കാറിന്റേതും സേനയുടേതുമെന്നും രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. <br />
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കശ്മീര് ജനതയുടെ ഹൃദയം നേടിയെടുക്കാന് സര്ക്കാര് ഒന്നും ചെയ്തില്ല. സ്നേഹത്തിന്റെയും സാഹോദര്യത്തിന്റെയും ഭാഷയിലാണ് അവരോടു സംസാരിക്കേണ്ടത്. വിമര്ശിക്കുന്നവരെ അടിച്ചമര്ത്തുന്ന സമീപനം മാറ്റണമെന്നും രാജഗോപാല് ആവശ്യപ്പെട്ടു. ഇന്ത്യയിലെ പല സംസ്ഥാനങ്ങളിലും കശ്മീരിലെ ജനങ്ങളെ കൊണ്ടുപോയി സംസാരിപ്പിക്കുന്നതടക്കമുള്ള പരിപാടികള് തങ്ങള് സംഘടിപ്പിക്കുമെന്നും അദ്ദേഹം അറിയിച്ചു. മറ്റു സംസ്ഥാനക്കാര്ക്ക് കശ്മീര് ജനതയെക്കുറിച്ചുള്ള തെറ്റിദ്ധാരണ മാറാനും കശ്മീരുകാര്ക്ക് ഇന്ത്യയെ മുഴുവന് അറിയാനും ഇത്തരം സംവാദങ്ങള് സഹായിക്കുമെന്ന് രാജഗോപാല് അഭിപ്രായപ്പെട്ടു. സ്വാമി അഗ്നിവേശ്, സാമൂഹിക പ്രവര്ത്തക മോഹിനിഗിരി തുടങ്ങിയ ഒട്ടേറെ നേതാക്കള് ഇതിനകം കശ്മീര് സന്ദര്ശിച്ചിരുന്നു. ഡല്ഹിയില് നടന്ന കശ്മീര് ഐക്യദാര്ഢ്യ സമ്മേളനത്തില് അദ്ദേഹം സംസാരിച്ചു. Global Action 2012http://www.blogger.com/profile/13022480371637081126noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6355512849490373543.post-21469101250145525212011-08-14T05:26:00.001-07:002011-08-14T05:26:54.435-07:00ഉള്ഫയുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് അരങ്ങൊരുക്കിയത് മലയാളിപി.കെ. മണികണ്ഠന് <br />
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ന്യൂഡല്ഹി: രാജ്യത്തിന്റെ വടക്കു-കിഴക്കന് മേഖലയില് സമാധാനത്തിന് വഴിയൊരുക്കി യൂണൈറ്റഡ് ലിബറേഷന് ഫ്രണ്ട് ഓഫ് അസം (ഉള്ഫ) തീവ്രവാദികളും കേന്ദ്രസര്ക്കാറും തമ്മില് ചര്ച്ച പുരോഗമിക്കുകയാണ്. വര്ഷങ്ങള് പഴക്കമുള്ള സംഘര്ഷങ്ങള് സമാധാനത്തിലേക്ക് നീങ്ങുമ്പോള് ഗാന്ധിതത്ത്വങ്ങള് നെഞ്ചോടു ചേര്ത്ത മലയാളി നിശ്ശബ്ദമായി സന്തോഷിക്കുന്നു.<br />
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ചോര ചിന്തിയ പോരാട്ടത്തിന്റെ വീറും വാശിയുമില്ലാതെ സര്ക്കാറും തീവ്രവാദികളും ഒരു മേശയ്ക്കു ചുറ്റുമിരിക്കാന് അരങ്ങൊരുക്കിയത് കണ്ണൂര് തില്ലങ്കേരി സ്വദേശി പി.വി.രാജഗോപാല്. ഗാന്ധി പീസ് ഫൗണ്ടേഷന് ഉപാധ്യക്ഷനാണ് അദ്ദേഹം.<br />
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കേന്ദ്രവും ഉള്ഫയും തമ്മിലുള്ള ആദ്യഘട്ടചര്ച്ച പൂര്ത്തിയായി. എന്നാല് രാജഗോപാലും മറ്റു ഗാന്ധിയന്മാരും നടത്തിയ മധ്യസ്ഥശ്രമങ്ങള് വാര്ത്തകളില് ഇടംനേടിയില്ല. അവകാശവാദങ്ങളൊന്നുമില്ലാതെ പി.വി. രാജഗോപാല് മധ്യസ്ഥശ്രമങ്ങള് 'മാതൃഭൂമി'യുമായി പങ്കുവെച്ചു.<br />
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ഗുവാഹാട്ടിയിലെ ശാന്തി സാധന ആശ്രമത്തിലെ ഹേം ഭായിയാണ് മധ്യസ്ഥതയ്ക്കായി പേരു നിര്ദേശിച്ചത്. നിരന്തര ശ്രമങ്ങളിലൂടെ ചമ്പല്ക്കൊള്ളക്കാരെ കീഴടങ്ങാന് പ്രേരിപ്പിച്ചത് ഓര്ത്തെടുത്താണ് ഹേം ഭായി ഇതിനു തുനിഞ്ഞത്. 2008 ഒക്ടോബര് 12 ന് ഉള്ഫ 28-ാം ബറ്റാലിയന് കമാന്ഡര് മൃണാള് ഹസാരികയുമായിട്ടായിരുന്നു ഒന്നാംവട്ട ചര്ച്ച. സര്ക്കാര് സമാധാനത്തിനു മുന്കൈയെടുത്താല് സഹകരിക്കുമെന്ന് ഹസാരിക അറിയിച്ചതു പ്രതീക്ഷയായി. <br />
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ഉള്ഫയുടെ നേതാക്കളില് പലരും ചൈനയിലും ബംഗ്ലാദേശിലുമൊക്കെ ഒളിച്ച് സുഖജീവിതം നയിക്കുന്നതും സാധാരണ പോരാളികളെ മുന്നിരയിലേക്കു തള്ളിവിടുന്നതും അവര്ക്കിടയില് മടുപ്പുണ്ടാക്കിയിരുന്നു. കേന്ദ്രസര്ക്കാറുമായുള്ള ചര്ച്ചയ്ക്ക് തങ്ങളെ പ്രതിനിധാനം ചെയ്യാന് ഹേം ഭായിയെയും രാജഗോപാലിനെയും നിശ്ചയിച്ചതായി ഹസാരിക രേഖാമൂലമുള്ള അറിയിപ്പും നല്കി. തുടര്ന്ന് രാജഗോപാല് ആഭ്യന്തര സഹമന്ത്രിയായിരുന്ന ശ്രീ പ്രകാശ് ജയ്സ്വാളുമായി ഇക്കാര്യം ചര്ച്ച ചെയ്തു. പ്രധാനമന്ത്രിയുടെ ഓഫീസിനെയും പ്രതിരോധമന്ത്രി എ.കെ. ആന്റണിയെയുമെല്ലാം വിവരങ്ങള് അറിയിച്ചു.<br />
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ഇടയ്ക്കുവെച്ച് ഉള്ഫ നേതാക്കളായ രാജ്ഖോവ ഉള്പ്പെടെയുള്ളവരെ അറസ്റ്റു ചെയ്ത് ജയിലിലടച്ചത് സമാധാനശ്രമങ്ങളെ ബാധിക്കുമോയെന്ന് ആശങ്ക പടര്ന്നിരുന്നു. എന്നാല് 2010 ഏപ്രില് 18 ന് രാജഗോപാലും മുതിര്ന്ന ഗാന്ധിയന് സുബ്ബറാവുവും കൂടി ഗുവാഹാട്ടി സെന്ട്രല് ജയിലിലെത്തി ഉള്ഫ നേതാക്കളുമായി വീണ്ടും ചര്ച്ച നടത്തി. ഇന്ത്യന് ജനതയ്ക്കെതിരല്ലെന്ന് ഉള്ഫ നേതാക്കള് പറഞ്ഞു. എന്നാല് ഇന്ത്യയിലെ വ്യവസ്ഥാപിത അടിച്ചമര്ത്തല് നയങ്ങളെ അവര് എതിര്ത്തു. രാഷ്ട്രീയ പരിഹാരമാണ് അവര് ആവശ്യപ്പെട്ടത്. ''ഐക്യരാഷ്ട്ര സംഘടനയെയും മറ്റും മധ്യസ്ഥരാക്കി ചര്ച്ചയ്ക്ക് ശ്രമിച്ച് ഞങ്ങള് പരാജയപ്പെട്ടു. ഞങ്ങള്ക്ക് തെറ്റു പറ്റിയിട്ടുണ്ട്. അതിനെല്ലാം ശിക്ഷ അനുഭവിക്കുകയും ചെയ്യാം. എന്നാല് ഞങ്ങളെ അടിച്ചമര്ത്തി ഇല്ലാതാക്കുന്ന സര്ക്കാര് സമീപനം തിരുത്തണം. അസമിലെ സാധാരണക്കാരന്റെ പ്രശ്നങ്ങളാണ് ഞങ്ങള് ഉന്നയിക്കുന്നത്. ഇതിനകം 12,000 ത്തോളം പേര് കൊല്ലപ്പെട്ടു കഴിഞ്ഞു. ഇനിയും ഇതു തുടരണമെന്ന് ഞങ്ങള്ക്ക് ആഗ്രഹമില്ല. എന്നാല് ഞങ്ങളെ ജയിലലടച്ച് സര്ക്കാര് ചര്ച്ചയ്ക്കു വന്നാല് അതിനു തയ്യാറാവില്ല'' -ഇതായിരുന്നു ഉള്ഫ നേതാക്കള് ചര്ച്ചയില് പറഞ്ഞത്.<br />
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തുടര്ന്ന് അസം ഗവര്ണര് ജെ.ബി. പട്നായിക്കിനെയും മുഖ്യമന്ത്രി തരുണ് ഗൊഗോയിയെയും നേരില്ക്കണ്ട് രാജഗോപാല് ഇക്കാര്യങ്ങളെല്ലാം ധരിപ്പിച്ചു. സ്വതന്ത്രഭരണം എന്ന വാശി ഉള്ഫ ഉപേക്ഷിച്ചതായി അസം സര്ക്കാര് ആഭ്യന്തര മന്ത്രി പി.ചിദംബരത്തെയും അറിയിച്ചു. ഇന്ത്യന് ഭരണഘടനയ്ക്ക് അനുസൃതമായി പ്രവര്ത്തിക്കാനുള്ള ഉള്ഫയുടെ സന്നദ്ധത കേന്ദ്രസര്ക്കാറിലും താത്പര്യം ജനിപ്പിച്ചു. ആഭ്യന്തരമന്ത്രി ചിദംബരവും ആഭ്യന്തര സെക്രട്ടറി ജി.കെ. പിള്ളയും മധ്യസ്ഥ ചര്ച്ചകളില് സജീവ പങ്കാളികളായി.<br />
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തൊഴിലില്ലായ്മയും ബംഗ്ലാദേശില് നിന്നുള്ള അനധികൃത കുടിയേറ്റവുമാണ് അസമിലെ അസ്വസ്ഥതകള്ക്കു കാരണമെന്ന് രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു. രാഷ്ട്രീയ ചര്ച്ചകളിലൂടെ മാത്രമേ രാജ്യത്തെ സംഘര്ഷങ്ങള്ക്ക് അറുതി വരുത്താനാവൂ. ഇതിനായി പ്രത്യേക സംഘത്തെ കേന്ദ്രസര്ക്കാര് നിയോഗിക്കണമെന്നും അദ്ദേഹം ആവശ്യപ്പെട്ടു. ഉള്ഫയുമായുള്ള ഇപ്പോഴത്തെ ചര്ച്ചകള് ഫലം കാണുമെന്ന് ശുഭാപ്തി വിശ്വാസമുണ്ടെന്നും രാജഗോപാല് പറഞ്ഞു.<br />
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