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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Monday 21 May 2012

पटना में प्रेस की एकतरफा रिपोर्टिंग

भारतीय प्रेष परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू की वजह से कुछ दिनों पहले ही विवाद में आई बिहार की मीडिया ने एक बार फिर गांधी वाद में विचार रखने वाले फ़्रांस के नागरिकों का नक्सल कनेक्शन निकल कर अपनी किरकिरी करवाई है. फ़्रांस से आए हुए यात्री एकता परिषद की यात्रा में शामिल होने आए थे. आयोजकों का पक्ष बिना जाने पुलिस के बयान को खबर बनाकर छाप दिया गया। ऐसा करने वाले हिन्दी-अंग्रेजी के कुछ प्रतिष्ठित अखबार भी थे। 23 अप्रैल को पटना के एक समाचार पत्र ने अपने पहले पृष्ठ पर खबर प्रकाशित की, ‘10 फ्रांसिसी नागरिकों को उनके नक्सल संबंधों के कारण पटना से वापस भेजा गया।’ इस खबर को लिखते हुए रिपोर्टर ने एक बार भी एकता परिषद के कार्यकर्ताओं से बात करने की भी जरूरत महसूस नहीं की। 

नक्सलियों का मुकाबला ठीक प्रकार से ना कर पाने की वजह से कई बार केन्द्र और राज्य की सरकारों की बौखलाहट साफ नजर आती है। नक्सली बार बार शासन को चुनौती दे रहे हैं और शासन उनका कुछ नहीं कर पा रही है। अब नक्सली बजाय रूकने के देश में बढ़ते जा रहे हैं। उनका होता विस्तार सरकार के लिए चिंता की बात है. नक्सलियों पर लगाम लगाने में असफल रही सरकारें, अपने नक्सल विरोधी अभियान के नाम पर किस प्रकार अहिंसा के साथ अपना प्रदर्शन कर रहे लोगों को परेशान कर सकती है, इसका ताजा उदाहरण बिहार में देखने को मिला। बिहार बुद्ध और गांधी की सत्याग्रह भूमि है। बिहार में आदिवासी, दलित, भूमिहीन किसानों की मांग को लेकर ‘जनसंवाद यात्रा’ के नाम से गांधी विचार में विश्वास रखने वालों की एक यात्रा पिछले दिनों ही बिहार पहुंची। बिहार पहुंचने से पहले यह यात्रा 15 राज्यों में 45000 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी थी।

जिस घटना का जिक्र आपसे करना चाहता हूं, वह 20 अप्रैल की है, जब फ्रांस के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और किसान जमुई (बिहार) में जनसंवाद यात्रा में शामिल हुए। वे बिहार में गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के काम को देखना और समझना चाहते थे। यात्रा में शामिल होने आए इन लोगों की योजना तीन जिलों में तीन आश्रम देखने की थी, श्रम भारती आश्रम (जमुई), सुखोदेवरा आश्रम (नवादा), जिसे जयप्रकाश नारायण की वजह से लोग याद करते हैं और समन्वय आश्रम (गया), जिसे विनोबाजी ने बनवाया था। वे भारत गांधी, जयप्रकाश और विनोबा ''दर्शन'' में रूचि की वजह से आए थे। वे इनके संबंध में अधिक जानकारी भारत आकर इकट्ठा करना चाहते थे। वे गांधीमार्गी सर्वोदयी कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीन पर उनका काम देखना और उन कार्यकर्ताओं से कुछ सीखने आए थे। लेकिन फ्रांस से आए अतिथियों के साथ हुआ क्या? इन्हें जांच के लिए पुलिस पहले खदिरगंज (नवादा) थाना लाई और अगले दिन इनको पटना और पटना से दिल्ली रवाना कर दिया गया। इन सभी विदेशी यात्रियों के साथ एक फ्रांस के युवक को, जो एकता परिषद की इस यात्रा में कर्मचारी की भूमिका में काम कर रहे थे, उन्हें भी दूसरे यात्रियों के साथ भेज दिया गया। इस बात से कहानी का अंदाजा लगाया जा सकता है कि विजा-पासपोर्ट की अनियमितता को देखने के नाम पर सभी युवकों को पहले पुलिस ले गई लेकिन इस मामले में पुलिस की भूमिका पर इसलिए भी सवाल उठाया जा सकता है क्योंकि उनकी दिलचस्पी बिल्कुल वीजा-पासपोर्ट में नहीं थी। यदि वे पासपोर्ट और वीजा की अनियमितता को देखने के लिए गंभीर होते तो इस प्रकरण में यात्रा के संयोजकों और आयोजकों को भी विश्वास में ले सकते थे। इससे उन्हें अपनी जांच में थोड़ी सुविधा ही होती।
लेकिन आयोजकों से बात करना भी जिला प्रशासन और पुलिस ने उचित नहीं समझा। यदि मामला वह गोपनीय रखना चाह रहे थे फिर सारी जानकारी मीडिया तक कैसे पहुंच रही
थी?

गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट एकता परिषद के लिए कहती हैं, इस संस्था का काम शहरों से अधिक वनवासी क्षेत्रों में है। एकता परिषद को देश में गांधी शांति प्रतिष्ठान से अधिक लोग जानते हैं। सुश्री भट्ट एकता परिषद के संयोजक पीवी राजगोपाल के संबंध में बताती हैं, वे अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले हैं। वे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य भी हैं। ऐसे में बिहार सरकार द्वारा उनके फ्रांसिसी मित्रों पर माओवादी होने का आरोप लगाना गंभीर है। एकता परिषद ने यात्रा में शामिल होने आए उन नौ फ्रांसिसी यात्रियों जिनपर पुलिस ने माओवादी संबंध का आरोप लगाया था, के लिए बताया कि वे फ्रांस की एक संस्था ‘पीपुल्स सोलिडायर्स’ से ताल्लुक रखते थे और पीवी राजगोपाल के मित्र
थे। इस यात्रा के माध्यम से वे गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की कर्मभूमि को देखना चाहते थे। जो बिहार की पुलिस की तानाशाही की वजह से पूरा नहीं हो पाया। जानकारों के अनुसार पीवी राजगोपाल अपनी यात्रा के साथ एक लाख गरीब, मजदूर, आदिवासी और दलितों के साथ 02 अक्टूबर को दिल्ली आ रहे हैं। इसमें भूमि सुधार की मांग है, भूमि सुधार और जंगल की जमीन पर जंगल के लोगों के हक की बात है, जिनके पास जमीन का पट्टा है, उन्हें जमीन का हक मिले जैसी बात भी है। इस तरह की मांगों से सरकारों का घबराना लाजमी है। इसलिए वह इस यात्रा में अक्टूबर आने तक कई तरह की विध्न उत्पन्न करेगी। क्या बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार से यह उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम बिहार में भूमि सुधार की प्रक्रिया लागू करें और उन लोगों को जमीन का हक दिलवाएं जो बिहार में भूमिहीन हैं और जिनके पास जमीन का पट्टा है लेकिन उन्हें अपनी ही जमीन पर कब्जा नहीं मिल रहा है।

लेखक आशीष कुमार 'अंशु' पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.

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