About Me

एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Monday 21 May 2012

शौक से मिली पहचान


महज 8वीं तक की शिक्षा, कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं और एक कस्बे में बचपन से युवावस्था तक का समय गुजारने वाले कुलदीप तिवारी की पहचान आज एक डॉक्युमेंट्री फिल्मकार के रूप में है. विकास के मुद्दे पर कई फिल्में बना चुके हैं एवं कई देशी-विदेशी फिल्मकारों को उन्होंने फिल्म बनाने में सहयोग किया है. यह सबकुछ उन्होंने अपने विश्वास, लगन एवं शौक को पेशेवर तरीके से पूरा करने के जुनून से हासिल किया है. उनके द्वारा निर्मित, निर्देशित एवं संपादित प्रमुख फिल्मों में ‘‘यूथ फॉर एनर्जी इंपावरमेंट’’, ‘‘लैंड फर्स्ट मेला’’, ‘‘ऑन फूट फॉर राइट’’, ‘‘स्टेप टुवार्ड जनादेश’’ एवं ‘‘जनादेश 2007’’ प्रमुख हैं. केन्या की राजधानी नैरोबी एवं नेपाल की राजधानी काठमांडू में विकास के मुद्दे पर कुलदीप की फोटो प्रदर्शनी भी हुई है.

मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के जौरा कस्बे में 3 जुलाई 1979 को जन्मे कुलदीप तिवारी बचपन में ही मां के प्यार से वंचित हो गए. एक निम्नवर्गीय परिवार में विभिन्न कठिनाइयों के बीच पढ़ाई से उनका मोह भंग हो गया एवं 8वीं के बाद पढ़ाई छूट गई. इसके बाद जीवन के प्रति कोई खास लक्ष्य नहीं था एवं खाली बैठे रहने से बेहतर कुछ कमाई करने के उद्देश्य से वे विडियोग्राफी का काम करने लगे. श्री तिवारी बताते हैं, ‘‘भले ही मुझे साल भर काम नहीं मिलता था, पर उस काम में मुझे मजा आता था. मैं दिल लगाकर उस काम को किया करता था. ज्यादा काम नहीं होने से दोस्तों के साथ वक्त यूं ही बर्बाद करता था.’’

भूमि अधिकार के मुद्दे पर कार्यरत एकता परिषद को 1999 में आयोजित एक पदयात्रा की विडियोग्राफी की जरूरत महसूस हुई एवं जौर में एक स्टूडियो वाले ने कुलदीप तिवारी को इस काम के लिए भेज दिया. श्री तिवारी के लिए यह जीवन में बदलाव लेकर आया. उनके काम को देखकर एकता परिषद ने उन्हें अपने साथ जोड़ने का निर्णय लिया. एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार कहते हैं, ‘‘कुलदीप को हमने 2001 में महात्मा गांधी सेवा आश्रम के तहत संचालित संसाधन केंद्र में कार्यालय सहायक के रूप में रख लिया. वह केंद्र में निश्चिंत बैठने के बजाय अपनी हूनर को तराशने में लगा रहा एवं जब भी मौका मिला, उसने अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया.’’ एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पी.व्ही. याद करते हैं, ‘‘कुलदीप ने ‘‘जनादेश 2007’’ के दरम्यान हमारी चिंताओं को दूर किया था. उस समय मीडिया समन्वयक
के रूप में देशी-विदेशी सभी मीडियाकर्मियों का प्रबंधन तो किया ही, साथ ही यात्रा का एक बेहतरीन डॉक्युमेंट्री बनाया, जो संगठन के लिए एक अमूल्य निधि है.’’

संसाधन केंद्र के तत्कालीन प्रभारी रह चुके एकता परिषद के राष्ट्रीय सचिव अनिल गुप्ता बताते हैं, ‘‘कुलदीप एक आत्मविश्वासी युवा है. वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद फिल्म बनाने के हूनर को तराशने का काम करता था. अपने काम के प्रति समर्पण से उसने भाषागत एवं टेक्निकल बाधाओं को पार किया.’’

कुलदीप की प्रतिभा को देखते हुए संगठन ने उसे एक माह के प्रशिक्षण के लिए नासिक में ‘‘अभिव्यक्ति मीडिया फॉर डेव्हलोपमेंट’’ में भेजा. वहां उन्होंने डॉक्युमेंट्री फिल्म की कुछ बारीकियों का अध्ययन किया. बिहार में पदयात्रा के दरम्यान सहयोग कर रहे प्रसिद्ध डॉक्युमेंट्री फिल्मकार सहजो सिंह से कुलदीप ने डिजिटल कैमरा हैंडलिंग के गुर सीखे. लंदन के
विश्वविख्यात फोटोग्राफर साइमन विलियम्स जब भी एकता परिषद के कार्यक्रम में भाग लेने भारत आए, कुलदीप को उनसे फोटोग्राफी के बारे में कुछ जानने एवं समझने का मौका मिला.

कुलदीप वर्तमान में एकता परिषद की स्वतंत्र इकाई ‘‘एकता मीडिया - विकास संचार के लिए मीडिया केंद्र’’ के समन्वयक हैं. वे विकास पर फिल्म निर्माण की प्रक्रिया से जुड़े होने के साथ ही जल, जंगल, जमीन के मुद्दे के साथ एकता परिषद के आंदोलनों पर फिल्म बनाने वाले विदेशी एवं देशी फिल्मकारों को मदद करने का काम कर रहे हैं.

हिंसा के लिए सरकार दोषी

नई दिल्ली.  देशव्यापी जनसंवाद यात्रा पर निकले जाने-माने गांधीवादी राजगोपाल पी. वी. ने सरकार पर अड़ियल और असंवेदनशील रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उसके अड़ियल रवैये के कारण ही अहिंसक आंदोलन अब हिंसक होने लगे हैं. इस वर्ष राजधानी में होने वाले जनसत्याग्रह आंदोलन की तैयारी के सिलसिले में अब तक 17 राज्यों में 47 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरा कर चुके राजगोपाल ने एक साक्षात्कार में कहा कि जनादेश यात्रा के दबाव में वन अधिकार अधिनियम बनवाने में सफलता मिली और उसे लागू करने की दिशा में कुछ प्रयास भी हुए. इनमें लगभग 20-30 प्रतिशत ऐसे लोग होंगे, जिन्हें बहुत कम मात्रा में जमीन मिली, इसीलिए इस अधिनियम को ईमानदारी से लागू करने की बात अभी भी उठाने की जरूरत है. भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर पुनर्विचार के लिये सरकार बाध्य हुई है और पुनर्वास को लेकर एक विधेयक पास किया गया है. राजगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार छोटे-बड़े सभी आंदोलनों को कुचलने की कोशिश में है. सरकार के अड़ियल रवैये से ही तमाम अहिंसक आंदोलन हिंसक होते गए. यह एक प्रकार से सरकार की अपनी पराजय है. भूमिहीन, आदिवासी, घुमंतू जातियां और मछुआरों को जनसत्याग्रह की ताकत करार देते हुए राजगोपाल ने कहा, "भूमि अधिग्रहण और गरीबों के पक्ष में भूमि सुधार न होने से पलायन बड़ी समस्या बन गई है. शहर में जैसे-जैसे झुग्गी झोपड़ियों की संख्या बढ़ेगी वैसे-वैसे शहरवासियों की समस्याएं भी बढ़ेंगी क्योंकि भारत के किसी भी शहर में गरीबों को बसाने या उन्हें न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराने की तैयारी नहीं है." राजगोपाल ने कहा, "विकास के नाम पर हम संसाधनों के साथ जो व्यवहार कर रहे हैं उस कड़वे सच को समझने में हम जितनी देर करेंगे, उतना ही स्वयं को नुकसान पहुंचाएंगे. पूरे देश में आज आंदोलन का माहौल है. भ्रष्टाचार को लेकर हो, बांध को लेकर हो या जल, जंगल और जमीन को लेकर हो. शायद समय आ गया है कि सब लोग मिलकर दूसरी आजादी की बात जोरदार ढंग से कहें और व्यवस्था परिवर्तन के लिये माहौल बनायें." कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर की गई पद यात्रा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भूमि मुद्दे को लेकर राहुल की पद यात्रा अपने आप में इस बात को साबित करती है कि आज भूमि अहम मुद्दा है. उन्होंने कहा, "पद यात्रा के दौरान राहुल गांधी को समझ आया होगा कि किसान की क्या समस्याएं हैं. सरकार चलाने वाली पार्टी से जुड़े हुये व्यक्ति होने के कारण वह चाहें तो इस दिशा में बहुत कुछ कर सकते हैं. राहुल ने एक कदम तो उठाया है दूसरा कदम भी उठाने की जरूरत है. अपनी सरकार को किसान, आदिवासी और वंचित समाज के पक्ष में खड़ा करना उनकी सफलता मानी जायेगी और इतिहास सही कदम के लिए उन्हें याद रखेगा. अगर वह पहले कदम पर ही रुक जाते हैं तो यह उनकी नासमझी होगी." अन्ना हजारे को अपने आंदोलन से जोड़ने के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, "मैं निरंतर कोशिश में हूं कि हर आंदोलन और हर संगठन से संवाद करूं और उनको साथ लेते हुए आगे चलूं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए भी दरवाजा खुला है. जितना मेरे से बन पड़ा उतना सहयोग मैंने उन्हें दिया है, अब उन्हें तय करना है कि वे किस प्रकार आम लोगों और वंचितों के जल, जंगल और जमीन के मुद्दे से जुड़ना चाहते हैं." राजगोपाल ने कहा, "जनसत्याग्रह को लेकर सरकार क्या रुख अपनाएगी यह कहना कठिन है. आंदोलनकारी लोग संघर्ष और संवाद दोनों की तैयारी में हैं. हमने बार-बार सरकार को लिखा है कि अगर संवाद से समस्या हल करना चाहें तो हम तैयार हैं. चूंकि हमें अहिंसक आंदोलन पर पूरा भरोसा है, अत: हमारी ओर से आंदोलन पूर्णरूप से अहिंसात्मक रहेगा. मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूं कि भगवान सरकार को सद्बुद्धि देंगे और सरकार अपने अड़ियल रवैये से बाहर निकल कर देश के वंचितों के लिए सोचेगी और काम करेगी."

पटना में प्रेस की एकतरफा रिपोर्टिंग

भारतीय प्रेष परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू की वजह से कुछ दिनों पहले ही विवाद में आई बिहार की मीडिया ने एक बार फिर गांधी वाद में विचार रखने वाले फ़्रांस के नागरिकों का नक्सल कनेक्शन निकल कर अपनी किरकिरी करवाई है. फ़्रांस से आए हुए यात्री एकता परिषद की यात्रा में शामिल होने आए थे. आयोजकों का पक्ष बिना जाने पुलिस के बयान को खबर बनाकर छाप दिया गया। ऐसा करने वाले हिन्दी-अंग्रेजी के कुछ प्रतिष्ठित अखबार भी थे। 23 अप्रैल को पटना के एक समाचार पत्र ने अपने पहले पृष्ठ पर खबर प्रकाशित की, ‘10 फ्रांसिसी नागरिकों को उनके नक्सल संबंधों के कारण पटना से वापस भेजा गया।’ इस खबर को लिखते हुए रिपोर्टर ने एक बार भी एकता परिषद के कार्यकर्ताओं से बात करने की भी जरूरत महसूस नहीं की। 

नक्सलियों का मुकाबला ठीक प्रकार से ना कर पाने की वजह से कई बार केन्द्र और राज्य की सरकारों की बौखलाहट साफ नजर आती है। नक्सली बार बार शासन को चुनौती दे रहे हैं और शासन उनका कुछ नहीं कर पा रही है। अब नक्सली बजाय रूकने के देश में बढ़ते जा रहे हैं। उनका होता विस्तार सरकार के लिए चिंता की बात है. नक्सलियों पर लगाम लगाने में असफल रही सरकारें, अपने नक्सल विरोधी अभियान के नाम पर किस प्रकार अहिंसा के साथ अपना प्रदर्शन कर रहे लोगों को परेशान कर सकती है, इसका ताजा उदाहरण बिहार में देखने को मिला। बिहार बुद्ध और गांधी की सत्याग्रह भूमि है। बिहार में आदिवासी, दलित, भूमिहीन किसानों की मांग को लेकर ‘जनसंवाद यात्रा’ के नाम से गांधी विचार में विश्वास रखने वालों की एक यात्रा पिछले दिनों ही बिहार पहुंची। बिहार पहुंचने से पहले यह यात्रा 15 राज्यों में 45000 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी थी।

जिस घटना का जिक्र आपसे करना चाहता हूं, वह 20 अप्रैल की है, जब फ्रांस के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और किसान जमुई (बिहार) में जनसंवाद यात्रा में शामिल हुए। वे बिहार में गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के काम को देखना और समझना चाहते थे। यात्रा में शामिल होने आए इन लोगों की योजना तीन जिलों में तीन आश्रम देखने की थी, श्रम भारती आश्रम (जमुई), सुखोदेवरा आश्रम (नवादा), जिसे जयप्रकाश नारायण की वजह से लोग याद करते हैं और समन्वय आश्रम (गया), जिसे विनोबाजी ने बनवाया था। वे भारत गांधी, जयप्रकाश और विनोबा ''दर्शन'' में रूचि की वजह से आए थे। वे इनके संबंध में अधिक जानकारी भारत आकर इकट्ठा करना चाहते थे। वे गांधीमार्गी सर्वोदयी कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीन पर उनका काम देखना और उन कार्यकर्ताओं से कुछ सीखने आए थे। लेकिन फ्रांस से आए अतिथियों के साथ हुआ क्या? इन्हें जांच के लिए पुलिस पहले खदिरगंज (नवादा) थाना लाई और अगले दिन इनको पटना और पटना से दिल्ली रवाना कर दिया गया। इन सभी विदेशी यात्रियों के साथ एक फ्रांस के युवक को, जो एकता परिषद की इस यात्रा में कर्मचारी की भूमिका में काम कर रहे थे, उन्हें भी दूसरे यात्रियों के साथ भेज दिया गया। इस बात से कहानी का अंदाजा लगाया जा सकता है कि विजा-पासपोर्ट की अनियमितता को देखने के नाम पर सभी युवकों को पहले पुलिस ले गई लेकिन इस मामले में पुलिस की भूमिका पर इसलिए भी सवाल उठाया जा सकता है क्योंकि उनकी दिलचस्पी बिल्कुल वीजा-पासपोर्ट में नहीं थी। यदि वे पासपोर्ट और वीजा की अनियमितता को देखने के लिए गंभीर होते तो इस प्रकरण में यात्रा के संयोजकों और आयोजकों को भी विश्वास में ले सकते थे। इससे उन्हें अपनी जांच में थोड़ी सुविधा ही होती।
लेकिन आयोजकों से बात करना भी जिला प्रशासन और पुलिस ने उचित नहीं समझा। यदि मामला वह गोपनीय रखना चाह रहे थे फिर सारी जानकारी मीडिया तक कैसे पहुंच रही
थी?

गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट एकता परिषद के लिए कहती हैं, इस संस्था का काम शहरों से अधिक वनवासी क्षेत्रों में है। एकता परिषद को देश में गांधी शांति प्रतिष्ठान से अधिक लोग जानते हैं। सुश्री भट्ट एकता परिषद के संयोजक पीवी राजगोपाल के संबंध में बताती हैं, वे अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले हैं। वे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य भी हैं। ऐसे में बिहार सरकार द्वारा उनके फ्रांसिसी मित्रों पर माओवादी होने का आरोप लगाना गंभीर है। एकता परिषद ने यात्रा में शामिल होने आए उन नौ फ्रांसिसी यात्रियों जिनपर पुलिस ने माओवादी संबंध का आरोप लगाया था, के लिए बताया कि वे फ्रांस की एक संस्था ‘पीपुल्स सोलिडायर्स’ से ताल्लुक रखते थे और पीवी राजगोपाल के मित्र
थे। इस यात्रा के माध्यम से वे गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की कर्मभूमि को देखना चाहते थे। जो बिहार की पुलिस की तानाशाही की वजह से पूरा नहीं हो पाया। जानकारों के अनुसार पीवी राजगोपाल अपनी यात्रा के साथ एक लाख गरीब, मजदूर, आदिवासी और दलितों के साथ 02 अक्टूबर को दिल्ली आ रहे हैं। इसमें भूमि सुधार की मांग है, भूमि सुधार और जंगल की जमीन पर जंगल के लोगों के हक की बात है, जिनके पास जमीन का पट्टा है, उन्हें जमीन का हक मिले जैसी बात भी है। इस तरह की मांगों से सरकारों का घबराना लाजमी है। इसलिए वह इस यात्रा में अक्टूबर आने तक कई तरह की विध्न उत्पन्न करेगी। क्या बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार से यह उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम बिहार में भूमि सुधार की प्रक्रिया लागू करें और उन लोगों को जमीन का हक दिलवाएं जो बिहार में भूमिहीन हैं और जिनके पास जमीन का पट्टा है लेकिन उन्हें अपनी ही जमीन पर कब्जा नहीं मिल रहा है।

लेखक आशीष कुमार 'अंशु' पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.

जन संवाद यात्रा : अब गांधी और मार्क्स नहीं, ज़मीन चाहिए

इस व़क्त देश में यात्राओं का दौर चल रहा है. मुद्दे तमाम हैं, भ्रष्टाचार से लेकर राजनीति तक, लेकिन इसमें समाज का वह अंतिम व्यक्ति कहां है जिसके उत्थान के लिए गांधी जी ने इस देश को एक ताबीज दिया था? जल, जंगल और ज़मीन पर वंचितों के अधिकार को लेकर शुरू की गई जन संवाद यात्रा से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर एकता परिषद के पी वी राजगोपाल से चौथी दुनिया के संवाददाता शशि शेखर ने विस्तार से बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:

यह देशव्यापी यात्रा शुरू करने के पीछे क्या मक़सद है, इससे आप क्या परिणाम निकालना चाहते हैं?

हम एक समग्र भूमि सुधार नीति चाहते हैं. भूमि सुधार का जो मामला है, वह अभी बीच में अटक गया है. तमाम भूमि कहीं सेज के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, कहीं अधिग्रहण के नाम पर बड़े-बड़े लोगों को दी जा रही है और गरीबों को भूमि देने का जो वादा है, उससे सरकार पीछे हट रही है. ग़रीबों से कहा जा रहा है कि अब भूमि नहीं है बांटने के लिए. सड़कें चौड़ी की जा रही हैं, एयरपोर्ट का विस्तार हो रहा है. हज़ारों-लाखों एकड़ ज़मीन माइनिंग कंपनियों को दी जा रही है. भूमि सुधार को लेकर सरकार जो लापरवाही बरत रही है, उससे ग़रीबी बढ़ रही है, लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं और हिंसा बढ़ रही है. यह सब समाप्त करने के लिए हम चाहते हैं कि सरकार ग़रीबों के पक्ष में समग्र रूप से एक भूमि सुधार नीति लाए.

देश में कई लोग यात्रा शुरू कर चुके हैं और करने वाले हैं, जैसे आडवाणी, रामदेव, अन्ना हजारे. इनकी यात्रा से आपकी यात्रा किन मायनों में अलग है?

आज़ादी के समय गांधी जी ने इस देश को एक ताबीज दिया था. उसका अर्थ था कि जो कुछ भी करो, उसमें समाज के अंतिम व्यक्ति को नज़र में रखो. मुझे लगता है कि यात्राएं बहुत होंगी, बहुत सारी बातें होंगी, लेकिन हमारी यात्रा समाज के उस अंतिम व्यक्ति के लिए है, जिसे पिछले 65 सालों में अपना अधिकार नहीं मिला है, न्याय नहीं मिला है. लोगों के अंदर बहुत आक्रोश है. अभी तक मैं जहां-जहां घूमा, वहां लोग न गांधी सुनना चाहते हैं और न मार्क्स. वे कहते हैं कि इस नाम पर बात करके हमारे साथ बहुत धोखाधड़ी हुई. हमें चाहिए न्याय, हमें चाहिए ज़मीन. हमारा यह आंदोलन, यह यात्रा समाज के उसी अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए है.

यानी अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने का मुद्दा ही इस यात्रा को अन्य यात्राओं से अलग करता है…

कुर्सी और अन्य मुद्दों के लिए रैलियां और यात्राएं होती रही हैं और अब तो भ्रष्टाचार को लेकर भी आंदोलन हो रहे हैं, लेकिन समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय मिले, इसे भी लेकर आवाज़ उठनी चाहिए इस देश में. यह नहीं हो पा रहा था. मुझे पैसा (रिश्वत) न देनी पड़े, यह तो अच्छी बात है, लेकिन मैं अगर सुख-संपन्नता से जीता हूं तो दूसरों को भी, पीछे छूटे हुए लोगों को भी कुछ मिलना चाहिए. इसके लिए हमने एक आंदोलन की ज़रूरत को महसूस किया, इसीलिए हमने इसे शुरू किया.

अन्य लोग जो अपनी यात्राएं शुरू कर चुके हैं या करने वाले हैं, क्या उनमें से किसी ने आपसे संपर्क किया? इस मुद्दे पर उनसे आपकी कोई बातचीत हुई?

मैंने सभी से बात की. मैंने अन्ना को चिट्ठी लिखी कि भ्रष्टाचार के विरोध में जो लड़ाई है, उसका अगला भाग यही है. जल, जंगल और ज़मीन में आम लोगों को भी उनका हिस्सा मिलना चाहिए. उस समय अन्ना हजारे सहमत भी थे कि यह स़िर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है. ग़रीब लोगों का मुद्दा भी सक्रियता से उठाना चाहिए. इस विषय पर बाबा रामदेव से भी मेरी बात हुई. उन्होंने आर्थिक क्रांति पर जो किताब लिखी है, उसमें भी वह मानते हैं कि जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा उठना चाहिए. इस देश को राजनीतिक आज़ादी तो मिल गई है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक आजादी अभी भी नहीं मिली है. हमारा यह आंदोलन उसी सामाजिक-आर्थिक आज़ादी के लिए है.

जब अन्ना हजारे और रामदेव आपके मुद्दों का समर्थन कर रहे हैं तो क्या वे आपकी इस यात्रा में भी शामिल होंगे?

अन्ना के आंदोलन का पहला चरण खत्म होने के बाद एक चर्चा हुई थी कि भ्रष्टाचार के इस आंदोलन को और व्यापक बनाना है. इसमें जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा भी जोड़ना है. इस पर एक एग्रीमेंट हुआ था. मुझे लगता है कि थ्योरिटकली सब एक साथ हैं, लेकिन वे लोग दिसंबर तक भ्रष्टाचार (जन लोकपाल) के मुद्दे पर ही जोर देना चाहते हैं. जबकि मैं मानता हूं कि जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा इस आंदोलन की वजह से शिथिल न हो. दिसंबर में जब बिल पारित होगा, तब शायद अन्ना के पास इस आंदोलन से जुड़ने का समय होगा.

एकता परिषद के लोग कई बार दिल्ली आकर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं. क्या वजह है कि सरकार ने अब तक आपकी मांगें नहीं मानी?

अभी जैसे ही हमने 2 अक्टूबर को अपनी यात्रा शुरू की, वैसे ही प्रधानमंत्री कार्यालय से चिट्ठी आ गई कि 28 अक्टूबर को नेशनल लैंड रिफॉर्म्स काउंसिल की बैठक बुलाई जा रही है. मुझे लगता है कि जो प्रधानमंत्री कार्यालय तीन साल से सोया हुआ था, वह एक लाख लोगों के साथ दिल्ली आने की हमारी घोषणा पर अमल होते देखकर जाग गया है. मार्च में जब मैं अन्ना हजारे के साथ प्रधानमंत्री से मिला था तो मैंने उन्हें याद दिलाया था कि अगर आप नेशनल लैंड रिफॉर्म्स काउंसिल की बैठक नहीं बुलाएंगे तो हमारे पास आंदोलन तेज़ करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा. हालांकि उसके बाद एंटी करप्शन मूवमेंट (अन्ना आंदोलन) ने पूरे माहौल को अपने हाथ में ले लिया था. मुझे लगता है कि अब वह जल्दी-जल्दी कुछ करेंगे.

इस यात्रा के ज़रिए आप सरकार को क्या संदेश देना चाहते हैं?

हमें एक कंप्रेहेंसिव लैंड रिफॉर्म्स पॉलिसी तो चाहिए ही चाहिए. आप यह कहकर टाल नहीं सकते कि ज़मीन स्टेट का सब्जेक्ट है, क्योंकि भूमि अधिग्रहण क़ानून और सेज क़ानून आपके हैं. केंद्रीय क़ानूनों से आप ज़मीनें हड़प रहे हैं. हम कह रहे हैं कि आप एक पॉलिसी बनाओ. यह मालूम करो कि कितनी ज़मीन है, किस विभाग को कितनी ज़मीन देनी है और ग़रीबी उन्मूलन के लिए कितनी ज़मीन उपलब्ध कराई जाए. सरकार ताक़तवर लोगों को ज़मीन देने और उनकी ज़मीन बचाने में जो ताक़त लगा रही है, उसमें से अगर वह दस प्रतिशत भी ताक़त इधर लगा दे तो ग़रीबों को ज़मीन मिल सकती है.

Thursday 3 November 2011

ഭൂമിക്കായി ജനസത്യഗ്രഹം

ഏകതാ പരിഷത്ത് ഡല്‍ഹിയില്‍ ഭൂമി സമരത്തിന് ഒരുങ്ങുന്നു
കെ സുനില്‍ കുമാര്‍ | Issue Dated: നവംബര് 29, 2011 അണ്ണാ ഹസാരെയുടെയും ബാബാ രാംദേവിന്‍റെയും അഴിമതി വിരുദ്ധ സത്യഗ്രഹങ്ങള്‍ക്ക് പിന്നാലെ ഡല്‍ഹിയില്‍ ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള ഒരു സത്യഗ്രഹ സമരത്തിന് വേദിയൊരുങ്ങുന്നു. അണ്ണായുടെ ടീമിലെ പ്രധാനിയും പിന്നീട് അദ്ദേഹത്തിന്‍റെ പോ ക്കിനെതിരെ വിമര്‍ശനം ഉന്നയിച്ച് സംഘം വിടുകയും ചെയ്ത മലയാളിയായ പി വി രാജഗോപാലാണ് ഈ സമരത്തിന് നേതൃത്വം നല്‍കുന്നത്. 2012 ഒക്ടോബര്‍ രണ്ടിന് ഡല്‍ഹിയില്‍ ലക്ഷം പേര്‍ പങ്കെടുക്കുന്ന ജനസത്യഗ്രഹത്തിനാണ് രാജഗോപാല്‍ നേതൃത്വം നല്‍കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്ത് തയ്യാറെടുക്കുന്നത്.

ഭൂമി ഇന്‍ഡ്യയില്‍ എക്കാലത്തും പ്രശ്നമേഖലയാണ്. വിപ്ലവകരമായ ഭൂപരിഷ്കരണം നടപ്പാക്കിയെന്ന് അവകാശപ്പെടുന്ന കേരളത്തില്‍ പോലും ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങള്‍ സംഘര്‍ഷങ്ങള്‍ സൃഷ്ടിച്ചുകൊണ്ടിരിക്കുന്നു. മുത്തങ്ങയിലെ ആദിവാസി സമരവും ചെങ്ങറയിലെ ദലിത് ഭൂമി സമരവും ഒടുവിലത്തെ ഉദാഹരണങ്ങള്‍ മാത്രം. മറ്റ് സംസ്ഥാനങ്ങളിലാകട്ടെ ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങളും ഭൂവുടമകളും ഭൂരഹിതരും തമ്മിലുളള സംഘര്‍ഷങ്ങളും ദശാബ്ദങ്ങളായി ചോരപ്പുഴകള്‍ തന്നെ ഒഴുക്കിയിട്ടുണ്ട്. ഏകതാ പരിഷത്തിന്‍റെ ജനസത്യഗ്രഹവും ഭൂമിക്ക് വേണ്ടിയുളള സമരങ്ങളുടെ ഗാന്ധിയന്‍ രീതിയിലുളള തുടര്‍ച്ചയാണ്. ഭൂമിക്കും സുസ്ഥിരമായ ഉപജീവനമാര്‍ഗത്തിനും മാത്രമേ യഥാര്‍ത്ഥ ദാരിദ്ര്യ ലഘൂകരണം സാധ്യമാകൂ എന്നാണ് ഏകതാ പരിഷത്തിന്‍റെ നിലപാട്. ഇതു വരെ നടപ്പാക്കപ്പെട്ട ദരിദ്ര ജനതക്ക് അനുകൂലമല്ലെന്നും സമ്പത്തില്‍ നിന്ന് കൂടുതല്‍ സമ്പത്തുണ്ടാക്കാന്‍ കഴിയുന്നവര്‍ക്കാണെന്നും അവര്‍ ചൂണ്ടിക്കാണിക്കുന്നു.

ഏകതാ പരിഷത്ത് 2007ല്‍ ഗ്വാളിയോറില്‍ നിന്ന് ഡെല്‍ഹിയിലേക്ക് നടത്തിയ ജനാദേശ് യാത്രയുടെ അനുഭവത്തിന്‍റെ കൂടി പിന്‍ബലത്തോടെയാണ് 2012ലെ സത്യഗ്രഹം. ജനാദേശ് യാത്രയുടെ തുടര്‍ച്ചയായി ഡല്‍ഹിയില്‍ നടന്ന സത്യഗ്രഹത്തിന്‍റെ ഫലമായി ഭൂപരിഷ്കരണ നയം തയ്യാറാക്കാന്‍ തയ്യാറാണെന്ന് കേന്ദ്ര സര്‍ക്കാര്‍ വാഗ്ദാനം ചെയ്തു. പ്രധാനമന്ത്രിയുടെ നേതൃത്വത്തില്‍ ഒരു ഭൂപരിഷ്കരണ സമിതി നിലവില്‍ വരുകയും ചെയ്തു. എന്നാല്‍ വാചകമടികള്‍ക്കപ്പുറം ഇത് നടപ്പാക്കാന്‍ ഒരു ശ്രമവും നടക്കാത്ത സാഹചര്യത്തിലാണ് ദേശവ്യാപക പ്രചാരണത്തിനു ശേഷം 2012 ഒക്ടോബറില്‍ ജനസത്യഗ്രഹം നടത്താന്‍ ഏകതാ പരിഷത്ത് തീരുമാനിച്ചത്.

സെപ്തംബര്‍ 30ന് കന്യാകുമാരിയില്‍ നിന്നാണ് ഒരു വര്‍ഷം നീളുന്ന രാജ്യവ്യാപകമായ ജനസംവാദ യാത്രക്ക് തുടക്കം കുറിച്ചത്. തമിഴ്നാട്ടിലെ കൂടംകുളത്ത് ആണവ നിലയത്തിനെതിരായ സമരം മുതല്‍ കേരളത്തിലെ വിവിധ സമരഭൂമികളിലൂടെയാണ് യാത്ര കടന്നു പോയത്. 2012 സെപ്തംബര്‍ 30ന് ജാഥ സംവാദയാത്ര അവസാനിച്ച ശേഷം ഒക്ടോബര്‍ രണ്ടു മുതല്‍ ഡല്‍ഹിയില്‍ ജന സത്യഗ്രഹം തുടങ്ങും. അഴിമതി വിരുദ്ധ സത്യഗ്രഹം പോലെ ജന സത്യഗ്രഹവും രാജ്യത്തെയും ജനങ്ങളെയും ഇളക്കി മറിച്ചേക്കാമെന്നാണ് പ്രതീക്ഷിക്കുന്നത്. കാരണം ഇത് ജനങ്ങളുടെ അടിസ്ഥാനാവശ്യമാണല്ലോ.

കരിമണല്‍ ഖനനത്തിനെതിരെ ജയറാം രമേശിന് പരാതി

ന്യൂഡല്‍ഹി: കൊല്ലം ജില്ലയില്‍ ഇന്ത്യന്‍ റെയര്‍ എര്‍ത്ത് ലിമിറ്റഡി(ഐ.ആര്‍.ഇ)ന്റെ കരിമണല്‍ ഖനന പദ്ധതിക്കെതിരെ കേന്ദ്ര ഗ്രാമവികസനമന്ത്രി ജയറാം രമേശിന് പരാതി.

പദ്ധതിക്ക് 450 ഏക്കര്‍ ഭൂമി ഏറ്റെടുത്തത് വ്യാജ ആധാരം ചമച്ചെന്നാണ് പരാതി. ഭൂവിഷയങ്ങളില്‍ പ്രവര്‍ത്തിക്കുന്ന ഏകതാ പരിഷത്താണ് പദ്ധതിക്കെതിരെ പരാതി നല്‍കിയിട്ടുള്ളത്. പദ്ധതി പ്രദേശത്തെ ജനങ്ങളറിയാതെയാണ് ഭൂമി ഗവര്‍ണറുടെയും ഐ.ആര്‍.ഇ.യുടെയും പേരിലാക്കിയതെന്ന് ഏകതാ പരിഷത്ത് ദേശീയ പ്രസിഡന്റ് പി.വി. രാജഗോപാല്‍ പരാതിയില്‍ ആരോപിച്ചു.

അയണിവേലിക്കുളങ്ങര, ആലപ്പാട് ഗ്രാമങ്ങളില്‍ നിന്നാണ് 450 ഏക്കര്‍ ഭൂമി കരിമണല്‍ ഖനനത്തിനായി ഏറ്റെടുത്തത്. ഈ ഗ്രാമങ്ങളില്‍ 20, 000 കുടുംബങ്ങളിലായി ഒരു ലക്ഷത്തോളം പേര്‍ താമസിക്കുന്നു. പദ്ധതി നടപ്പായാല്‍ അവരെല്ലാം കുടിയൊഴിപ്പിക്കപ്പെടും. പാക്കേജുകള്‍ സൃഷ്ടിച്ച് മൂന്നും നാലും സെന്റ് ഭൂമികളിലേക്ക് കോളനിക്കാര്‍ പിഴുതെറിയപ്പെടും. ടി. എസ്. കനാലിനും കടലിനും ഇടയ്ക്ക് ഗ്രാമങ്ങള്‍ ഇല്ലാതായാല്‍ വന്‍ ദുരന്തങ്ങള്‍ക്ക് കേരളം സാക്ഷ്യം വഹിക്കേണ്ടിവരും. അഷ്ടമുടി മുതല്‍ അപ്പര്‍കുട്ടനാടു വരെയുള്ള കാര്‍ഷിക ജനവാസമേഖല സമുദ്രജലത്തിനടിയിലായാല്‍ ലക്ഷക്കണക്കിന് ജനങ്ങളുടെ ജീവിതം ദുരിതപൂര്‍ണമാവും. തീരദേശഗ്രാമങ്ങള്‍ സംരക്ഷിക്കാന്‍ കേന്ദ്ര-സംസ്ഥാന സര്‍ക്കാറുകള്‍ സമഗ്രമായ പദ്ധതികള്‍ നടപ്പാക്കണമെന്നും ഏകതാ പരിഷത്ത് ആവശ്യപ്പെട്ടു. കരിമണല്‍ ഖനനത്തിനെതിരെയുള്ള സമരങ്ങളെ സംഘടന പിന്തുണയ്ക്കുമെന്ന് പി.വി. രാജഗോപാലും പരിഷത്ത് കോ-ഓര്‍ഡിനേറ്റര്‍ അനീഷ് തില്ലങ്കേരിയും അറിയിച്ചു.

Saturday 22 October 2011

पानी के लिए राजेंद्र सिंह तो ज़मीन के लिए राजगोपाल करते रहे हैं संघर्ष

नई दिल्ली. टीम अन्ना से मतभेदों के चलते अलग हुए दो मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं राजेंद्र सिंह और पीवी राजगोपाल ने समाजसेवा के काम से लंबे समय से जुड़े हुए हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह को ‘जल पुरुष’ भी कहा जाता है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले राजेंद्र सिंह राजस्थान के अलवर जिले में काम करते हैं। राजेंद्र सिंह तरुण भारत संघ के नाम से एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। राजेंद्र सिंह ने जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। अफसरशाही और भ्रष्टाचार से लड़ने में भी उनके प्रयास सराहनीय रहे हैं। उन्हें साल 2001 में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

वहीं, केरल में जन्मे पी. वी. राजगोपाल ने सेवा ग्राम में अध्ययन किया और 70 के दशक में मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में डकैतो के पुनर्वास का काम किया था। बाद के वर्षों में वे देश के कई राज्यों का दौरा करते रहे और आदिवासी लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश की। 1991 में राजगोपाल ने एकता परिषद नाम के संगठन की स्थापना की थी। उनकी संस्था मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से संचालित है, जिसके वे अध्यक्ष हैं। इसके अलावा राजगोपाल गांधी पीस फाउंडेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। उनका संगठन ज़मीन और जंगल पर आम आदमी के अधिकार के लिए काम करता है। राजगोपाल का दावा है कि एकता परिषद भूमि सुधार पर काम कर रहा देश का सबसे बड़ा आंदोलन है। एकता परिषद ने 2007 में ‘जनादेश’ नाम की मुहिम चलाई थी। एकता परिषद का दावा है कि यह बड़ा अहिंसक आंदोलन था, जिसमें भूमिहीन लोगों ने दिल्ली तक मार्च किया था।