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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

एकता परिषद

भारत में भूमि एवं जीविकोपार्जन के साधनों तक पहुंच बनाने का संघर्ष बहुत लम्बा है और यह हमेशा से हुआ है कि परिवर्तन के लिए राजनीतिक संवाद की प्रक्रिया में सबसे पिछड़े समुदाय छूटते जाते हैं. भूमि एवं जीविकोपार्जन के संसाधनों पर नियंत्रण राज्य के हाथों में रहा है. पूर्व के छिटपुट एवं अप्रभावी अभियानों से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है कि सही अर्थो में ग्राम स्तरीय प्रजातंत्र की स्थापना हो, जिससे भूमिहीनों की जरूरतों को राजनीतिक एजेंडा में शीर्ष पर लाया जा सके. वर्षों की संघर्ष यात्रा में एकता परिषद ने इन समुदायों के साथ मिलकर जरूरी परिवर्तन लाने में मदद की है, ताकि गरीबों की भूमि हड़पने की प्रक्रिया बंद हो तथा समान भू-वितरण को सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही गरीबों की प्राकृतिक जीविकोपार्जन के साधनों तक पहुंच को बनाया रखा जा सकें.
मध्य एवं पूर्वी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में 5 संस्थाओं की स्थापना हुई, ताकि युवा लोगों को अहिंसात्मक संघर्ष का प्रशिक्षण दिया जा सके. इसके साथ ही भूमि सुधार के व्यापक मुद्दे पर संघर्ष करने के लिए लोग संगठित होने लगे. पूरे देश के अंदर गरीब लोगों की संगठित एवं शक्तिशाली ताकत विकसित करने के दृष्टिकोण से जो प्रवास आगे बढ़ा उसे ही आज एकता परिषद के नाम से जाना जाता है. यह नेटवर्क आज एक बड़ा सामाजिक संगठन है, जिसकी पहुंच 12 से भी अधिक राज्यों तक है.
एकता परिषद की औपचारिक स्थापना 1991 में हुई. पहले वृहद स्तरीय कार्यक्रम के रूप में एकता परिषद द्वारा एक जय जगत जीप यात्रा का आयोजन किया गया था, जो तब के अविभाजित मध्यप्रदेष में एक महीने तक चली थी. सामूहिक यात्रा द्वारा भूमिहीन लोगों में जागरूकता पैदा करना, जनवकालत का एक प्रमुख हथियार  रहा है, जिसे विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण जी ने भी राजनीतिक सत्ता के दुरूपयोग के खिलाफ युवाओं में उर्जा भरने के लिए किया था. इन्हीं शांतिदूतों की परंपरा का अनुसरण करते हुए पी वी राजगोपाल ने भी लोगों को जागृत करने के लिए यात्रा का उपयोग किया. इस माध्यम का प्रयोग अगले 14 सालों के दौरान भी व्यापक तौर पर होता रहा.
भारत के भूमिहीन लोगों को उत्प्रेरित करने के प्रारंभिक दौर में पी.व्ही. राजगोपाल ने मध्यप्रदेश, बिहार और उड़ीसा से इसकी शुरूआत की. उन्होंने ग्रामीणों के साथ काम करना शुरू किया, ताकि भू स्वामित्व एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के जटिल मुद्दे को समझा जा सके. उनका संदेश था कि जल, जंगल और जमीन जैसी जीविकोपार्जन के संसाधनों पर लोगों का नियंत्रण हो. जन आंदोलन के प्रारंभिक दौर में चूकि वे आदिवासी समुदायों के साथ कार्य कर रहे थे, अतः जंगल के संसाधनों पर पहुंच बनाना मुख्य मुद्दा था. इसके साथ ही विस्थापन, जंगल से खदेड़ा जाना, सूदखोरी, शराब, व्यापार तथा निस्तार के अधिकार ऐसे मुद्दे थे जिस पर भी काम चल रहा था. धीरे-धीरे एकता परिषद के समुदायों को इस प्रकार से प्रेरित करने की क्षमता विकसित की ताकि वे स्वयं अपने मुद्दे उठा सकें. एकता परिषद ने भूमि एवं जीविकोपार्जन संबंधी अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में बड़े संघर्षों के लिए अपनी बुनियाद को मजबूत किया, ताकि भविष्य में इन पुख्ता कामों को किया जा सके.
आज एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन बन गया है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.
एकता महिला मंच ने 2006 में अपनी एक मूल्यांकन बैठक आयोजित की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभियानों के एजेंडा में महिलाओं की जरूरतों तथा भू स्वामित्व में उनके अधिकारों को प्रमुखता से स्थान मिले. लगभग इसी समय एकता परिषद ने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर समान सोच के साथियों के साथ गठबंधन विकसित करना शुरू किया. ‘लैंड फर्स्ट इंटरनेशनल ‘ (एलएफआई) एक ऐसा तरीका था जिससे सभी विकासशील देशों में भू अधिकारों के मुद्दों पर दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोगी नेटवर्क एक साझा मंच इकट्ठा हो सके. एलएफआई की शुरूआत 2004 में मुम्बई में सम्पन्न विश्व सामाजिक मंच के आयोजन के दौरान हुई तथा इसके बाद के विश्व सामाजिक मंच (ब्राजील, पाकिस्तान, माली, नैरोबी) के आयोजनो के दौरान तथा ग्लोबल लैंड कंसलटेशन (थाईलैंड2006) एवं विश्व व्यापार संगठन विरोधी अभियानों के दौरान भी यह विकसित होता रहा. इन प्रयासों की रूपरेखा इस प्रकार बनायी गयी थी कि वैश्विक स्तर पर गरीबोन्मुखी नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं पर दबाव बनाया जा सके.
एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के नेटवर्क के सहयोगियों को साथ लेकर साऊथ सोलीडारिटी को मजबूती प्रदान करना भी प्राथमिकता में था. आज एकता परिषद के साथ दुनिया भर के संस्थाओं का सहयोग है, जिनमें प्रमुख हैं- एमएसटी (ब्राजील), लॉ विया कंपेसिना (फ्रांस), एकता यूरोप(स्वीटजरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी,फ्रांस और यूके), क्यूकर्स इंटरनेशनल (इंग्लैंड), अफ्रीका लैंड एलायंस (साऊथ अफ्रीका), कीनिया लैंड एलायंस(कीनिया) असेंबली ऑफ द पूअर (थाइलैंड), एन्गोक(फींलीपिंस), समता (बंगलादेश), पीलर(पाकिस्तान), सीएसआरसी(नेपाल), पॉम (श्रीलंका) इत्यादि. राजनीतिज्ञों के साथ लॉबी (संवाद) निर्मित करने का प्रयास 2004.2005 के दौरान लगातार चलते रहे और 24 दिसंबर 2005 को प्रधानमंत्री एवं एकता परिषद के प्रतिनिधियों के बीच एक बैठक हुई जिसमें उनके समक्ष भूमि सुधार का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया. हालाँकि कुछ सफलताएं मिली, जैसे भूमि सुधारों के ऊपर एक उप समिति की स्थापना (भारत के योजना आयोग द्वारा) हुई, जिसकी 2006 की रिर्पोट में सीलिंग, बटाईदारी , भू अधिग्रहण एवं पुनर्वास की नीतियों एवं कानून में परिवर्तन की बात की गयी पर यह स्पष्ट था कि सरकार भू संबंधी मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रही थी. जुलाई 2006 में ग्रामीण विकास मंत्रालय और  योजना आयोग को एक रिर्पोट सौंपी गयी, जिसमें भूमिहीन समुदायों के कल्याण के लिए कदम उठाने की अनुशंसा की गयी थी. सरकार की ओर से इसका जवाब नहीं आया और 2 अक्तूबर 2006 को 500 आदिवासी और दलित नेताओं ने ग्वालियर से दिल्ली की और पैदल मार्च शुरू कर दिया ताकि अपनी मांगों को संसद की नजरों के सामने ला सके. यह पदयात्रा भूमिहीनों के संकल्प का प्रतीक था, ताकि भूमि के ऊपर तथा जीविकोपार्जन के मूलभूत संसाधनों के ऊपर उनकी पहुंच बन सके. यह सरकार को चेतावनी देने के लिए की गयी एक यात्रा थी, जिससे सरकार को यह याद रहे कि उन्हीं रास्तों पर और उन्हीं मांगों के लिए अब 25 हजार लोग एक साथ दिल्ली पहुंचने वाले हैं. इस चेतावनी यात्रा के बाद भी सरकार की ओर से औपचारिक जवाब नहीं आया.
2 अक्तूबर 2007 को भारत भर से विभिन्न समुदायों के लगभग 25 हजार लोग ग्वालियर में इकट्ठा हो गए और शुरू हो गया एक ऐसा अभियान जो देश के इतिहास में भू- सुधार के लिए आजतक का सबसे बड़ा अहिंसात्मक आंदोलन साबित हुआ. यह उस दिन शुरू हुआ जिस दिन महात्मा गांधी का जन्म दिन था और अहिंसा का संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय दिवस भी. अंहिसात्मक नागरिक अवज्ञा के प्रदर्शन के लिए एकजूट खड़े लोगों को देखकर महात्मा गांधी के सत्याग्रहों की याद ताजी हो गई जिसने दुनिया भर के नागरिक अधिकार आंदोलन को प्रेरणा प्रदान किया है. इस अभियान में दुनिया के कोने-कोने से सहयोग हासिल हुआ तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के 250 से ज्यादा सत्याग्रहियों ने कदम से कदम मिलाकर एकजुटता प्रदर्षित की. संसद के 100 से ज्यादा सदस्यों ने भी जनादेश का समर्थन किया तथा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भूमि आयोग की स्थापना तथा प्रदेश में भूमिहीन समुदायों के लोगों में जमीन के पुनर्वितरण की अपनी मंशा की घोषणा की. मीडिया ने सत्याग्रहियों की आवाज को संपूर्ण देश में पहुंचाने में लगातार अपनी भूमिका का निर्वहन किया तथा देश भर के समाज कर्मियों ने जनादेश के सत्याग्रहियों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की.
29 अक्तूबर 2007 को, भारत सरकार ने यह उद्घोषित किया कि एक राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति तथा एक राष्ट्रीय भूमि सुधार कौंसिल स्थापित करेगी, जिसमें 50 प्रतिशत सदस्य वे होंगे तो भूमि अधिकार के आंदोलनों से जुड़ी सामाजिक एवं नागरिक संस्थाओं से संबंध रखते हैं. अंहिसात्मक संघर्ष के इस ऐतिहासिक आयोजन की सफलता हमें खुश होने का अवसर तो देती है. 29 अक्तूबर को सरकार ने जो वायदे किए हैं उन पर लगातार निगाह रखने की जरूरत होगी तथा लोगों को न्याय दिलाने के इस संघर्ष को अनवरत जारी रखने के लिए तैयार रहना होगा.