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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Tuesday 9 August 2011

क्या यही है लोकतंत्र ?

अन्नपूर्णा मित्तल


शांतचित माहौल छोड़कर गांव से महानगर आने वाले शख्स को पता ही नहीं चलता है कि महानगरों में नगरवास करते समय पल- पल पर तरह तरह की समस्याओं से दो-चार करते रहना पड़ेगा. यहां तक कि उनको अस्वस्थकर वातावरण में जिल्लत भरी जिंदगी बसर करनी पड़ेगी. गांव से पलायन होकर दीघा नहर तटबंध पर 29 साल से रहना. निवासियों को मजबूर करके दीघा नहर तटबंध पर से हटाना, गांधी, विनोबा, जयप्रकाश और पी वी राजगोपाल के बताये मार्ग पर चलने वाली जन संगठन एकता परिषद, बिहार के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन चलाते हुए 10 वर्ष गुजारना. माननीय पटना उच्च न्यायालय के द्वारा 19 अप्रैल 2010 को गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वालों के पक्ष में निर्णय करना. इसके आलोक में केन्द्र सरकार के महकम्मा, बिहार सरकार के विभाग, पूर्व मध्य रेलवे के डीआरएम, हाजीपुर को चार माह का समय हलफनामा देने का समय देना. 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून -2008 ' को लागू न करना.


जी हां, यहीं वास्तविकता है कि जिसके पास ग्रामीण क्षेत्र में कोई ठौर न ठिकाना है, तो जाएगे कहां ? हां, वही हाल बेरोजगारी का भी है वहां तो रोजगार का पर्याप्त साधन भी नहीं है. इसके अलावा शहर की तरह बच्चों को अध्ययन कराने योग्य पाठशाला भी तो नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विपरित गांव बन गया है. खैर, कल्याणकारी सरकार के द्वारा ऐसी ही व्यवस्था बनायी जा रही है. हां, अरबन एरिया की तरह रूरल एरिया में भविष्य नहीं है. अरबन एरिया को गुलजार बनाया जा रहा है. गांव के साथ सौतेला व्यवहार करने के कारण ही हरेक दिन रूरल एरिया के लोग रेलवे बॉगी से भर भरकर महानगरों की ओर मुखातिर हो रहे हैं. अस्वस्थकर वातावरण में जिल्लतभरी जिंदगी बसर करनी पड़ेगी. इन महानगरों में पटना भी शुमार है. राजधानी में आने वाले गांव के तकदीर के मारे लोग यहां तो सड़क, नदी, पोखरा, तटबंध, नहर, नाला आदि के किनारे ठौर बसाने को मजबूर होते हैं. वोट के जुगाड़ में रहने वाले गण प्रतिनिधि और गण प्रतिनिधि से बनी सरकार के द्वारा गांव से आये आबादी से हित साधने का प्रयास शुरू कर दिया जाता है. उनके कल्याण, विकास, सुरक्षा आदि के ख्यालयात में बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताओं की सुविधाओं की पूर्ति शुरू कर दी जाती है. इसी तरह की सुविधा सरकार के द्वारा दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच रहने वालों को भी दी गयी है.


वर्ष 1982 में दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच में रहने वालों ने कदम रखे थे. तब से भूमिहीन और गृह विहिन दलित/अति पिछड़ा/ पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब और लाचार लोग रहते आ रहे हैं. यहां के सभी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं. यहां के लोगों ने अपने ठौर स्थान का नामकरण सामाजिक कार्यकर्ता स्व.टेशलाल वर्मा के नाम टेशलाल वर्मा नगर रख रखा है. यहां पर 29 साल से वंचित समुदाय रहते हैं. गांव से पलायन होकर आने वाले झोपड़ी बनाकर रहने लगे. अभी कोई 274 परिवारों से अधिक ही लोग रहते हैं. इनको सरकार के द्वारा वोटर आई कार्ड, बीपीएल कार्ड, एपीएल कार्ड, राशन कार्ड, चापाकल, आंगनबाड़ी, पाठशाला आदि की न्यूनतम सुविधा उपलब्ध करायी गयी है. यहां की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह भी बना रखी है. ठीक तरह से कहने से सरकार ने अपने नागरिकों की तरह व्यवहार कर रही है. यह एक पहलू है तो दूसरा पहलू यह है कि टेशलाल वर्मा नगर के लोगों पर सरकारी तलवार लटक रही है. उनको विस्थापन का दंश सताने लगा है. एक दिन दीघा नहर तटबंध विरान हो जाएगा. बच्चों की किलकारी के बदले रेलवे चालन की छुकछुक की आवाज आती जाती सुनाई देगी. कुछ इसी तरह का होने वाला है.


संपूर्ण वाकया यह है कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नीतीश कुमार रेल मंत्री थे उन्हीं के कार्यकाल में गंगा नदी में पटना से सोनपुर तक रेलवे सेतु बनना तय हुआ. पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा दीघा से सोनपुर तक गंगा नदी पर सड़क और रेल सेतु बन रहा है. सेतु निर्माण करने की परियोजना लागू की गयी. अभी पाटलिपुत्र स्टेशन तैयार हो रहा है. इसके पहले उस स्थल पर सैकड़ों परिवार झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रहते थे. इस परियोजना के तहत अव्वल भूमि अधिग्रहण की गयी. परियोजना के घेरे में आने वालों रैयती जमीन के मालिकों को सरकार ने भरपूर मुआवजा देकर मुंह बंद कर दिया. वहीं दीघा नहर तटबंध के बीचोबीच में रहने वालों को पूर्व मध्य रेलवे के कर्ताधर्ताओं ने नहर के तटबंध के किनारे जाकर रहने को कह दिया. उनके बात को अमल कर दीघा नहर तटबंध के किनारे जाकर बस गये. अब तो दीघा नहर के किनारे के पास से भी हटाने का प्रयास हो रहा है. इसी के साथ वंचित समुदाय ने वर्ष 2001 से ही जमीन की जंग आरंभ कर दी. सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जानकारी है फिर भी विस्थापितों को बसाने का प्रयास नहीं हो रहा है.


विस्थापित टेशलाल वर्मा नगर के वंचित समुदाय के लोगों ने पुनर्वास करने की मांग को लेकर एकता परिषद, बिहार की दानापुर के नेतृत्व में दानापुर अंचल कार्यालय परिसर में लगातार नौ महीने बेमियादी धरना कार्यक्रम किया. बेमियादी धरने के दरम्यान 18 फरवरी 2007 को सत्याग्रही तेतरी देवी शहीद हो गयी. तब जाकर नौ महीने तक लगातार सत्याग्रह किया गया. इस बीच दानापुर अनुमंडल पदाधिकारी ने सत्याग्रहियों के मनोबल तोड़ने के लिए दो दर्जन नेताओं पर भारतीय दण्ड विधान के तहत धारा 107 कर परेशान करना प्रारंभ कर दिया. सत्याग्रह का परिणाम यह निकला कि पटना के जिलाधिकारी और दानापुर अनुमंडल के अनुमंडल पदाधिकारी ने मौजा रूकनपुरा, थाना नम्बर-18, खाता नम्बर- 171, खेसरा नम्बर- 105 रकवा 1.99 एकड़ भूमि पर नेहरू आवास योजना के तहत मकान बनाकर विस्थापितों एवं भूमिहीनों को देने का आदेश दिया, जो फाइल कार्यपालक पदाधिकारी ,नूतन अंचल, पटना नगर निगम के दफ्तर में लालफीताशाही के शिकार हो गया है. अब वह सत्याग्रहियों को लॉलीपॉप थमाने वाला साबित हो रहा है.


पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा गंगा रेल सेतु निर्माण कराया जा रहा है. इस निर्माण से दीघा बिन्द टोली के सैकड़ों परिवार के लोग विस्थापित हो रहे हैं. बिहार के दो महारथी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री बने थे. मगर पूर्व मध्य रेलवे परियोजना से विस्थापित होने वालों की सुधि नहीं ली और न ही सरकारी कानून 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून 2008' के तहत ही किसी तरह का प्रावधान करवाये. फिलवक्त सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं उनके द्वारा भी विस्थापितों को पुनर्वास करवाने के लिए किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. केवल कोरा आश्वाशन दिया जा रहा है.


विस्थापन का दंश झेलने वालों ने गांधी, विनोबा, जयप्रकाश और पी वी राजगोपाल के बताये मार्ग पर चलने वाली जन संगठन एकता परिषद, बिहार से सहयोग लेना शुरू कर दिया है. इन्हीं के नेतृत्व में करीब 100 बार धरना और प्रदर्शन किया गया. यह अहिंसक कार्यक्रम मुख्यमंत्री, आयुक्त, जिलाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी और अंचल पदाधिकारी के समक्ष कर चुके हैं. कोई 10 बार मुख्यमंत्री के जनता दरबार में जाकर फरियाद कर चुके हैं. अगर जनता दरबार में जाने के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है तो जनता दरबार पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. वहीं सूबे में एक अगस्त माह से काम का अधिकार कानून लागू होने जा रहा है. उस लिहाज से खुद मुख्यमंत्री के दफ्तर भी घेरे में आ जाएगा.


वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है कि सरकार आंदोलन के नेतृत्व करने वाले नेता और सत्याग्रहियों के समाज में व्यापक तस्वीर और उनके प्रभावशाली शक्ति के अवलोकन के बाद ही कदम उठा रही है. इससे समझा जा सकता है कि अव्वल यूपीए-एक की सरकार के कार्याकाल में वर्ष 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा, अब दूसरी बार यूपीए- दो की सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2011 में लोकपाल विधेयक और तीसरी बार इसी वर्ष 2011 में काला धन और भ्रष्टाचार समाप्त करने को लेकर जनांदोलन किया गया. तीनों नागरिक समाज के द्वारा केन्द्र सरकार के विरूद्ध और उनके सामने ही किया गया. तीनों के साथ केन्द्र सरकार ने अलग-अलग रणनीति व कदम उठाया. जनादेश 2007 के तहत 25 हजार सत्याग्रही ग्वालियर से दिल्ली तक सत्याग्रह पदयात्रा किया. सत्याग्रह पदयात्रा के समापन पर पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंष प्रसाद सिंह ने रामलीला मैदान के महती जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद' और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति' नामक दो उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की घोषणा करके जनादेश 2007 के महानायक पी.व्ही. राजगोपाल को झुनझुना थमा रखा है. प्रधानमंत्री 4 साल से ध्यान नहीं दे रहे हैं. ध्यान देने से जनता के हित में 'राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति' बन जाती जो हो नहीं सका. वहीं केन्द्र सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ अलग सलूक किया. तत्काल लोकपाल विधेयक मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी बना डाली. बैठकर मसौदा तैयार की गयी. भले ही अन्ना हजारे की टीम को सख्त मसौदा तैयार करने की मांग को लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत करनी पड रह़ी है. सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री को लोकपाल के घेरे में लाने पर आम सहमति नहीं बन पायी. इसके अलावा सख्त लोकपाल मसौदा को लोक सभा में पेश नहीं करने से 16 अगस्त से जंतर-मंतर पर अनशन करने की चेतावनी दे दी गयी है. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ऐलान करते चल रहे हैं. मगर केन्द्र सरकार ने योगगुरू रामदेव के साथ बहुत ही बुरा सलूक किया. रामलीला मैदान तो रावण लीला में तब्दील हो गया. रात्रि के समय जब दिल्ली की पुलिस वहशीपन पर उतर गयी. पुलिस ने घटिया कला कौशल का प्रदर्शन किया. अब तो योगगुरू की मांग को सरकार ने हवा-हवा कर दिया है. तब यह सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में तो सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को ही पटना में आकर अनशन करना पडे़गा ? तब जाकर बीपीएल वाले लोगों के जीवन बसर पर असर पड़ेगा ओर उनके साथ न्याय किया जाएगा.


हां, यहीं है कल्याणकारी सरकार के मुखौटा व उसकी कार्यपद्धति. दोहरी नीति अपनाने वाली सरकार से संवाद और संघर्ष का प्रतिफल का आलम है. सरकार किस तरह से मुट्ठी बांधकर पुनर्वास संबंधी आंदोलन करने वाले सत्याग्रिहों के साथ व्यवहार करती हैं वह तो एक बानगी, मिसाल और हकीकत ही है. सरकार नहीं चाहती कि दीघा नहर तटबंध से विस्थापित होने वालों को पुनर्वास करे, प्रभावितों को विवश करती है कि खुद कष्ट और परेशान होकर तटबंध से मोहभंग कर अन्यत्र चले जाए. आखिरकार दीघा नहर तटबंध के किनारे रहने वाले सत्याग्रही सरकार से क्या चाहते है ? सरकार से चाहते हैं कि 'पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून -2008 ' के तहत अथवा आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन वास करने के लिए दी जाए. सरकार की कुर्सी पर नजर नहीं है. मगर सरकार और उनके नौकरशाहों के द्वारा अहिंसा के पाठ पढ़ने वाले सत्याग्रहियों के साथ टालू नीति अख्तियार कर रखी है. सरकार की नीति इसी तरह की रही तो सत्याग्रहियों के मनोस्थिति पर क्या असर पडे़गा ? आखिर कब और कहां तक सरकार लगातार इस तरह के कोरा आश्वाशन और टालू नीति को अपनाती रहेगी. भगवान न करे कि सत्याग्रहियों के कदम डगमगा कर कहीं किसी ओर राह पर.


गण प्रतिनिधियों एवं नौकरशाहों के रवैये से आजीज होकर टेशलाल वर्मा नगर के विस्थापितों ने पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दी. सी.डब्ल्यू.जे.सी. नम्बर 1350 ऑफ 2010 के तहत केन्द्रीय सरकार के नगर विकास एवं गरीबी निवारण के सचिव, नगर विकास एवं गरीबी निवारण के सचिव, बिहार सरकार के मुख्य सचिव, पुराना सचिवालय, मुख्य सचिव, पुराना सचिवालय, राजस्व एवं भू सुधार के प्रधान सचिव, नगर विकास और आवास विभाग के प्रधान सचिव, जिलाधिकारी, पटना,आयुक्त सह मुख्य कार्यापालक पदाधिकारी, डीआरएम, पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर और डीआरएम, मध्य पूर्व रेलवे, हाजीपुर के नाम से 19 अप्रैल 2010 को कहा गया कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों को पुनर्वास करने का प्रबंध किया जाए. इसके बाद दस्तावेज पहुचने के चार माह के अंदर किये गये कार्यों से माननीय उच्च न्यायालय, पटना को जानकारी देनी है. जनहित याचिका दायर करने वालों में विद्धान अधिवक्ता एम.पी. गुप्ता, डा. मायानंद झा और कौशल कुमार झा थे. माननीय न्यायालय ने चार माह का समय दिया है कि बाबत अंतिम निर्णय लेकर न्यायालय में हलफनामा दायर करें. मगर गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की समस्या स्थिर है.

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