Posted by अनुपूर्णा मित्तल on March 24th, 2011

इसके बावजूद भी वनवासी पूर्ण मुस्तैदी से डट कर आज भी सरकार से फर्जी मुकदमा वापस लो और वन भूमि का पट्टा दो, की मांग करते रहते हैं. इसको लेकर जमुई में एकता परिषद के बैनर तले बेमियादी धरना भी दिया गया. धरनार्थियों को प्रलोभन में देकर डीएफओ धरना तोड़वाने में सफल हो गये. मगर समस्याओं का समाधान नहीं कर सके.
वन विभाग के द्वारा 113 परिवारों पर मुकदमा किया गया है. इस मुकदमे को वापस करने की मांग को लेकर बेमियादी धरना दिया गया था. इस धरने से जमुई में हड़कंप मच गया गया था. पटना से लगातार जमुई के जिलाधिकारी और डीएफओ को तलब किया जा रहा था कि किसी तरह से धरना समाप्त कर दिया जाए. मगर धरने में बैठे लोगों ने लगातार मुख्य मंत्री नीतीश कुमार एवं उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी से आग्रह करते रहे कि पहले मुकदमा वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए तब जाकर हम लोग मुकदमा वापस करेंगे. इस बीच डीएफओ ने 113 परिवारों के ऊपर से कुल 284 ठोका गया मुकदमा वापस लेने की बात कर दी. इस प्रलोभन में पड़कर धरना समाप्त कर दिया.
एकता परिषद के खैरा प्रखंड के समन्वयक प्रदीप यादव ने कहा कि वन अधिकार कानून लागू होने के बाद भी आदिवासियों एवं गैर दलितों पर वन विभाग के अधिकारियों के द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. जमुई जिले के खैरा प्रखंड के दो पंचायत हडखार और गरही के भोले वाले 113 घर के आदिवासियों पर 284 मुकदमा वन विभाग ने ठोक दिया है. अकेले गड़ही पंचायत के 58 परिवारों पर कुल 229 केस ठोका गया है. हड़कार पंचायत के 55 घर के आदिवासियों पर 55 केस ठोंका गया है. वन विभाग के अधिकारी इतने तानाशाह बन गये कि मासूम बच्चों को भी नहीं बक्षा उन पर भी मुकदमा ठोक दिया है.
इस समस्या को लेकर एकता परिषद, जमुई के समन्वयक प्रदीप यादव के हस्ताक्षर से ग्रामीणों का आवेदन पत्रांक 06/05 दिनांक 22- 07-05 को जिलाधिकारी और वन प्रमण्डल पदाधिकारी को दिया गया. इसके बाद दिनांक 12 नवम्वर 09 को खैरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी को वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर अंधाधुध ठोके गये मुकदमे को वापस लेने के लिए आवेदन दिया गया है. अवैध ढंग से जंगल की कटाई को छोड़कर आदिवासियों ने कृषि योग्य जमीन पर भी फसल लगाने के कार्यों में ध्यान केन्द्रित किया है. वन अधिकार कानून के 13 दिसंबर, 2005 तक जिसके कब्जा में जमीन है उक्त जमीन का मालिकाना हक वन विभाग के द्वारा दिया जाएगा. ऐसा न करके वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है.
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