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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Saturday, 16 April 2011

अवैध खनन के लिए नक्‍सली डर पैदा करने की कोशिश

कटनी ज़िले में नक्सलियों की उपस्थिति का दावा नहीं किया जा सकता है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में इस ज़िले में नक्सली अपनी धमक दे सकते हैं. हालांकि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा किए गए दावों पर भरोसा किया जाए तो कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. स्थानीय लोगों को शक़ है कि कटनी में खदानों के अवैध कारोबार से जुड़ी हुई गतिविधियों को संरक्षण देने के लिए नक्सलियों का डर पैदा किया जा रहा है और इसमें समूचा प्रशासन स्थानीय व्यापारी और कई अन्य लोग शामिल हैं. ढीमरखेड़ा, बहोरीबंद, बड़वारा और बरही जैसे ग्रामीण अंचलों में नक्सलियों की मौजूदगी की जांच के लिए जबलपुर रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक मधु कुमार ने पिछले दिनों दौरा किया. उन्होंने इस क्षेत्र में नक्सलियों की उपस्थिति को पूरी तरह नकार दिया, जबकि पिछले कई दिनों से ज़िले के कई खोजी तत्व इस बात का लगातार दावा कर रहे थे कि कटनी नक्सलवाद की चंगुल में आ चुका हैं. देश के नक्शे में मध्य प्रदेश का कटनी ज़िला एक महत्वपूर्ण खनिज उत्खनन केंद्र के रूप में उभरकर सामने आया है. यहां उपस्थित प्राकृतिक संपदा के अवैध दोहन से राज्य एवं केंद्र सरकार भलीभांति परिचित है. यह संगमरमर उद्योग व्यवसाय ज़िले के दो व्यवसायिक समूहों के मध्य आपसी खींचतान का केंद्र है. खनिज विवादों को हल करने के लिए इंडियन ब्यूरो ऑफ माईंस, कमिश्नर लैंड रिकॉर्ड, राज्य शासन के राजस्व खनिज एवं वन विभाग, लोकायुक्त आदि कई संस्थाओं ने कोशिश की परंतु विवाद हल होने का नाम ही नहीं ले रहा. करोड़ों रुपए के अवैध उत्खनन के मामले में लोकायुक्त द्वारा पूर्व कलेक्टर अंजू सिंह बघेल, खनिज निरीक्षक यू.ए. खान, नायब तहसीलदार, सी.एस. मिश्रा, राजस्व निरीक्षक, प्रभाश बागरी और पटवारी अशोक खरे के विरुद्ध जांच प्रकरण पंजीबद्ध है. ज़िले में सीमेंट कंपनी ए.सी.सी. और सरकारी क्षेत्र की स्टील अथॉर्टी ऑफ इंडिया लिमिटेड की चूना पत्थर (लाइम स्टोन) खदानों में भी कई अनियमितताओं की जांच लंबित है.
मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में असामाजिक घटनाओं के ब़ढते मामलों के मद्देनज़र मध्य प्रदेश पुलिस अब तक यह दावा करती आई है कि कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. लेकिन पुलिस का यह दावा कुछ ही व़क्त में बेपर्दा होता हुआ लग रहा है. ऐसी अप्रत्याशित घोषणा के तुरंत बाद ही दावा विवादास्पद लगने लगा है.
वर्तमान में कटनी बारूदी विस्फोटों के ज़रिए अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा केंद्र है. इस व्यवसाय के कारण ज़िले के आदिवासियों की भूमि पर अवैध क़ब्ज़े और अवैध उत्खनन की शिकायतें आम हो चुकी है. गत दिनों पुलिस प्रशासन ने ढीमरखेड़ा जंगल में नक्सली डर पैदा कर चार आदिवासियों हरवंश गौड़, सीताराम गौड़, इंद्रपाल गौड़ और बहादुर गौड़ को अवैध कटाई के एक मामले में जेल भेज दिया गया था. उपरोक्त काल्पनीक डर के कारण पैदा हो रहे अत्याचार के विरुद्ध एकता परिषद के पी. वी. राजगोपाल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को जानकारी प्रेषित की है, परंतु अभी तक इस संदर्भ में प्रशासन जागरूक नहीं हो पाया है.

बहरा है प्रशासन

यह घटना साल भर पुरानी है, जबकि इसी ढीमरखेड़ा अंचल के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में स्थित पूर्णतया गौंड़ आदिवासियों की आबादी वाले ग्राम मुखास एवं छीतापाल में एक के बाद एक आधा दर्जन से भी अधिक मासूम बच्चे मौत के शिकार हो चुके थे. इन बच्चों की कुपोषण के चलते दो बच्चों की मौतों को लेकर इस क्षेत्र में काम कर रही सामाजिक संस्था जय भारती शिक्षा केंद्र, मझगवां, तहसील सिहोरा के भरत नामदेव द्वारा ढीमरखेड़ा के बीएमओ तथा एसडीएम को इसकी जानकारी देते हुये इस विषय में आवश्यक कदम उठाये जाने कई-कई बार आग्रह किया जा चुका था. लेकिन इस दिशा में कोई प्रशासनिक पहल नहीं की गई. तत्पश्‍चात कई बच्चों की मौत के और उन पर उठी आवाज़ों के बाद जब अधिकारियों को होश आया भी तो उनकी ओर से राहत संबंधी कोई कदम उठाने के बजाये उनको समय रहते कार्यवाही करने की बात कहने वाले आक्रोशित ग्रामीणों तथा संस्था के भरत नामदेव सहित एक महिला कार्यकर्ता कीर्ति दुबे एवं अन्य आदिवासी ग्रामीणों को नक्सली समर्थक कहते हुए उन्हें विभिन्न धाराओं में जेल भेज दिया गया. इस मामले में कई और संस्थाओं तथा कुछ गिने-चुने पत्रकारों ने एक बार फिर न केवल प्रशासनिक कार्यवाही का विरोध किया, बल्कि जनसंगठन एकता परिषद प्रमुख पीव्ही राजगोपाल तक भी सारा वाकया पहुंचाते हुए उनसे सहयोग का आग्रह किया. राजगोपाल जी ने इसी क्रम में यह मामला 2009 में मुख्यमंत्री से अपनी मुलाकात के दौरान उठाया तब मुख्यमंत्री ने अगले दिनों में अपनी कटनी यात्रा के दौरान ग्राम मुखास के पीड़ितों की देखरेख हेतु नीरज वशिष्ठ तथा एक अन्य करीबी डॉ. अजय मेहता को नियक्त किया.  लेकिन अगले दिनों में मुख्यमंत्री जब कटनी पहुंचे तो मुखास के ग्रामीण, जय भारती शिक्षा केंद्र तथा एकता परिषद के कार्यकर्ता और पीडि़त उनसे मिलने की कोशिश करते मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल के आसपास भटकते रहे और वापस लौट गये. इसके बाद भी मामले पर एक स्थानीय नागरिक जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर एक बार पुन: राजगोपाल के मार्फत मुख्यमंत्री तक पहुंचाई जिसमें निर्दोष ग्रामीणों पर नाहक थोपे गए अपराधिक मुकदमों को वापस लिये जाने का अनुरोध किया गया था, लेकिन सब कुछ अभी भी उसी तरह अधर में लटका हुआ है और इस क्षेत्र में प्रशासन अनदेखियों के साथ बच्चों के मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. विधायक व पूर्वमंत्री मोती कश्यप द्वारा जिनके इस आदिवासी क्षेत्र का विधायक होने की योग्यता पर ही गंभीर प्रश्न चिंह लगा हुआ है, मामला न्यायालय में विवादित है. इस अंचल के अन्य गांवों बिचुआ, खैरानी, सिंघनपुरी, सलैया में अपनी पुश्तैती ज़मीन से की गई बेद़खली के खिला़फ पुन: अपनी ज़मीनों की वापसी व वहां खेती करने के अधिकार की मांग कर रहे आदिवासियों को कभी गोंडवाना मुक्ति सेना तो कभी नक्सली समर्थक बताकर उनके विरुद्ध कार्यवाही के लिये प्रशासन को उकसाया जा रहा है, चूंकि उनका मानना है कि क्षेत्र के आदिवासियों की यह एकजुटता और अपनी ज़मीनों के लिये किया जा रहा संघर्ष उनके पहले से ही कमज़ोर जनाधार को और अधिक कमज़ोर कर सकता है.

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