कटनी ज़िले में नक्सलियों की उपस्थिति का दावा नहीं किया जा सकता है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में इस ज़िले में नक्सली अपनी धमक दे सकते हैं. हालांकि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा किए गए दावों पर भरोसा किया जाए तो कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. स्थानीय लोगों को शक़ है कि कटनी में खदानों के अवैध कारोबार से जुड़ी हुई गतिविधियों को संरक्षण देने के लिए नक्सलियों का डर पैदा किया जा रहा है और इसमें समूचा प्रशासन स्थानीय व्यापारी और कई अन्य लोग शामिल हैं. ढीमरखेड़ा, बहोरीबंद, बड़वारा और बरही जैसे ग्रामीण अंचलों में नक्सलियों की मौजूदगी की जांच के लिए जबलपुर रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक मधु कुमार ने पिछले दिनों दौरा किया. उन्होंने इस क्षेत्र में नक्सलियों की उपस्थिति को पूरी तरह नकार दिया, जबकि पिछले कई दिनों से ज़िले के कई खोजी तत्व इस बात का लगातार दावा कर रहे थे कि कटनी नक्सलवाद की चंगुल में आ चुका हैं. देश के नक्शे में मध्य प्रदेश का कटनी ज़िला एक महत्वपूर्ण खनिज उत्खनन केंद्र के रूप में उभरकर सामने आया है. यहां उपस्थित प्राकृतिक संपदा के अवैध दोहन से राज्य एवं केंद्र सरकार भलीभांति परिचित है. यह संगमरमर उद्योग व्यवसाय ज़िले के दो व्यवसायिक समूहों के मध्य आपसी खींचतान का केंद्र है. खनिज विवादों को हल करने के लिए इंडियन ब्यूरो ऑफ माईंस, कमिश्नर लैंड रिकॉर्ड, राज्य शासन के राजस्व खनिज एवं वन विभाग, लोकायुक्त आदि कई संस्थाओं ने कोशिश की परंतु विवाद हल होने का नाम ही नहीं ले रहा. करोड़ों रुपए के अवैध उत्खनन के मामले में लोकायुक्त द्वारा पूर्व कलेक्टर अंजू सिंह बघेल, खनिज निरीक्षक यू.ए. खान, नायब तहसीलदार, सी.एस. मिश्रा, राजस्व निरीक्षक, प्रभाश बागरी और पटवारी अशोक खरे के विरुद्ध जांच प्रकरण पंजीबद्ध है. ज़िले में सीमेंट कंपनी ए.सी.सी. और सरकारी क्षेत्र की स्टील अथॉर्टी ऑफ इंडिया लिमिटेड की चूना पत्थर (लाइम स्टोन) खदानों में भी कई अनियमितताओं की जांच लंबित है.
मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में असामाजिक घटनाओं के ब़ढते मामलों के मद्देनज़र मध्य प्रदेश पुलिस अब तक यह दावा करती आई है कि कटनी नक्सलियों के लिए राज्य में पहली पसंदीदा जगह है. लेकिन पुलिस का यह दावा कुछ ही व़क्त में बेपर्दा होता हुआ लग रहा है. ऐसी अप्रत्याशित घोषणा के तुरंत बाद ही दावा विवादास्पद लगने लगा है.वर्तमान में कटनी बारूदी विस्फोटों के ज़रिए अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा केंद्र है. इस व्यवसाय के कारण ज़िले के आदिवासियों की भूमि पर अवैध क़ब्ज़े और अवैध उत्खनन की शिकायतें आम हो चुकी है. गत दिनों पुलिस प्रशासन ने ढीमरखेड़ा जंगल में नक्सली डर पैदा कर चार आदिवासियों हरवंश गौड़, सीताराम गौड़, इंद्रपाल गौड़ और बहादुर गौड़ को अवैध कटाई के एक मामले में जेल भेज दिया गया था. उपरोक्त काल्पनीक डर के कारण पैदा हो रहे अत्याचार के विरुद्ध एकता परिषद के पी. वी. राजगोपाल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को जानकारी प्रेषित की है, परंतु अभी तक इस संदर्भ में प्रशासन जागरूक नहीं हो पाया है.
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