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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Friday 15 April 2011

तीन साल से नहीं हुई भूमि सुधार परिषद की बैठक

नई दिल्ली। आम आदमी के हित की बात करते रहने वाली डा. मनमोहन सिंह की सरकार ग्रामीण इलाकों में सुधआरों को लागू करने के प्रति कितनी गंभीर है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगता है कि गठन के बाद से आजतक राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की कोई बैठक ही नहीं हुई है।
भूमि सुधार-जैसे महत्वपूर्ण विषय पर कुछ करने के लिए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एक परिषद का गठन तो किया, लेकिन इसके गठन के बाद से ही वह इसकी बैठक बुलाना भूल गए। प्रधानमंत्री की बनाई इस राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक तीन साल से नहीं हुई।
परिषद के सदस्य जब-जब भी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से इस बारे में पूछते हैं तो उन्हें हर बार यही जवाब मिलता है कि प्रधानमंत्री को भूमि सुधार परिषद की बैठक बुलाने के लिए फुरसत नहीं मिल रही। इस परिषद को जनवरी 2008 में बनाया गया था।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षतावाली भूमि सुधार परिषद का यह हाल तब है जब दस मुख्यमंत्री और पांच केंद्रीय मंत्री इसके सदस्य हैं। मुख्यमंत्रियों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप्र. की मुख्यमंत्री मायावती, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, ओडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस परिषद में शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री जो इसके सदस्य हैं, वे भी सरकार में खासा दबदबा रखते हैं।
कम से कम कृषि मंत्री शरद पवार और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को तो सरकार के ऐसे मंत्रियों में गिना जा सकता है। विशेषज्ञ सदस्यों की बात करें तो एक सदस्य पूर्व आईएएस अधिकारी एसआर शंकरण तो इसकी बैठक देखे बिना ही दुनिया से कूच कर गए। परिषद की सदस्य और इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ की डा. वीना अग्रवाल का कहना है कि मुझे नहीं मालूम कि भूमि सुधार परिषद की बैठक क्यों नहीं बुलाई जा रही है। उन्होंने कहा कि वह इतना जानती हैं कि ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षतावाली एक समिति भी इसके साथ-साथ बनी थी और उसने अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी है, आगे सरकार क्या करेगी वह नहीं जानतीं। वहीं, इसके एक और सदस्य पीवी.राजगोपाल कहते हैं कि उन्हें और इसके बाकी सदस्यों को परिषद की ओर से इसमें रखे जाने का तीन साल पहले पत्र भर मिला था उसके बाद कभी कोई संवाद तक नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि ज्यादा खराब बात तो यह है कि इस विषय में बात करने पर ग्रामीण विकास मंत्री हमेशा मिलने तक से बचते रहे। उनका इशारा पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी की तरफ था। राजगोपाल ने कहा कि देश का इससे ज्यादा दुर्भाग्य और क्या होगा कि अपराधों की एक बड़ी वजह और रोजगार से जुड़ा विषय होने के बावजूद भूमि सुधार को लेकर न केंद्र सरकार की दिलचस्प है और न राज्य सरकारें इसमें रुचि ले रही हैं। भूमि सुधार परिषद का विषय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आता है लिहाजा इसकी बैठक बुलाने के लिए प्रधानमंत्री को तैयार करने का काम ग्रामीण विकास मंत्री का है। दो पूर्व मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह और डा.सीपी जोशी तो इसमें कामयाब नहीं रहे, अब सबकी निगाह इस पर है कि क्या नए ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक के लिए प्रधानमंत्री को तैयार कर पाएंगे ।
शायद अभी यह कहना मुश्किल है। खबर यह है कि ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षतावाली भूमि सुधार समिति ने अपनी रिपोर्ट में जो सिफारिशें की थीं उन्हें जब योजना आयोग के पास भेजा गया तो उसने तमाम सिफारिशों को अव्यवहारिक बताकर खारिज कर दिया। सरकार इस बात को जाहिर करके यह नहीं दिखना चाहती कि वह भूमिहीनों की पक्षधर नहीं है, क्योंकि वह तो अपने ऊपर हर समय आम आदमी का लेबल लगाए रहती है। दरअसल इस समिति ने विशेष आर्थिक क्षेत्र(सेज) और विशेष पर्यटन क्षेत्र (एसटीजेड) दोनों के लिए भूमि देने की स्पष्ट मनाही की है। इसका मतलब साफ है कि भूमि सुधार समिति की रिपोर्ट उद्योगपतियों के खिलाफ है। समिति की एक अहम सिफारिश यह भी है कि भूमिहीन गरीब की परिभाषा को बदला जाए यानी जो किसी भूमि का स्वामी नहीं है वो ही भूमिहीन माना जाए। भूमि सुधार समिति की सिफारिशों को अमली जाम पहनाने के लिए ही परिषद की बैठक होनी है।

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