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Sunday 17 April 2011

आदिवासी समाज के विकास के लिए शिक्षा के साथ कौशल विकास की जरूरत : श्री दत्त

आदिवासी समाज का विकास : अवसर और चुनौतियां' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन

रायपुर, 1 दिसम्बर 2010
 
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री शेखर दत्त आज यहां रायपुर जिले के तिल्दा में एकता परिषद तथा भारत शासन के योजना आयोग के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित 'आदिवासी समाज का विकास : अवसर और चुनौतियां' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों के विकास के लिए उन्हें शिक्षित करने के साथ-साथ उनमें कौशल बढ़ाने की जरूरत है, जिससे वे अपनी रचनात्मकता और सामर्थ्य को बढ़ाकर अपने संसाधनों को विस्तार दे सकें। इसके लिए आदिवासी क्षेत्रों में खनिज, वनोपज, वनौषधियों तथा कृषि जैसे संसाधनों के वैल्यू एडीशन बढ़ाने की जरूरत है, जिससे उत्पादित होने वाले उपजों का मूल्य बढ़ाया जा सकें, उनका बेहतर तरीके से उपयोग कर अधिक मूल्यवान उत्पाद बनाया जा सकें और उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सके। 
    इस अवसर पर योजना आयोग के सदस्यगण डॉ. सईदा हामिद और श्री नरेन्द्र जाधव के साथ-साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोग भी उपस्थित थे। राज्यपाल ने आगे कहा कि हमें ऐसे विकास की जरूरत है जिसमें सभी वर्गों का विकास हो और सभी का हित हो सके। किसी की हार और किसी की जीत की भावना नहीं हो तथा जो सभी के 'जीत-जीत' के परिणाम के रूप में सामने आये। उन्होंने कहा व्यक्तियों के हितों और स्वार्थों के बीच संघर्ष होता है, लेकिन सामान्य रूप से एक और सब काला और दूसरी ओर सब सफेद जैसी स्थिति नहीं होती। सच्चाई सामान्यत: इनके बीच में होती है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि कौन सी स्थिति या बात सभी के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
    राज्यपाल ने कहा कि जिस तरह पश्चिमी देशों ने 'बार्बी डाल' बनाकर पूरी दुनिया के बच्चों के बाजार में उसे प्रस्तुत किया है। उसी तरह हमारे क्षेत्रों में भी वनोपज और वनौषधियां अनेक विशिष्ट विशेषता लिए हुए हैं उन पर खोज करते हुए उनकी गुणों और विशेषताओं की जानकारी से सभी लोगों को अवगत कराने की जरूरत है जिससे यहां के उत्पाद को अच्छा मूल्य तथा बाजार मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि वातावरण और प्रकृति के अनुसार औषधीय पौधों के गुणों का विकास होता है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां उत्पादित होने वाली अनेक कृषि उपजों जैसे कट्हल, टमाटर, चिरौंजी, शहद को फूड प्रोसेसिंग आदि माध्यमों से उन्हें आदिवासियों और किसानों के हित में अधिक मूल्यवान बनाया जा सकता है। इस कार्य में जागरूकता लाने तथा लोगों को शिक्षित तथा कौशल बढ़ाने के लिए शासन के साथ-साथ स्वयंसेवी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    राज्यपाल ने यह भी कहा कि प्राथमिक क्षेत्र के बाद द्वितीयक क्षेत्र के रूप में औद्योगिक निर्माण और औद्योगिक सामग्रियों का स्थान आता है। अगर हम अपने जीवन और अपने समीप में उपयोग किए जा रहे सामग्रियों को देखें तो पाते हैं कि इनमें से अधिकांश सामग्री मशीनों से बनाई जाती है, लेकिन इनमें से अधिकांश ऐसी सामग्री हैं जो हमारे तिल्दा, रायपुर और छत्तीसगढ़ में भी आसानी से बनाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा जीवन में उद्योगों का भी अपना भी एक महत्व है और समग्र रूप से उद्योगों का विरोध करके पूरे समाज को अभिशाप नहीं दिया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने यहां लोगों को सामग्री उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित करें इससे क्षेत्र के विकास के साथ-साथ लोगों की आय भी बढ़ सकेंगे।
राज्यपाल ने कहा विकास के लिए अच्छे से अच्छे योजना बनाने, समस्याओं पर बेहतर तरीके से अपनी समझ बढ़ाने और समस्याओं को दूर करने की चाहत बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि वंचित लोगों के उत्थान और विकास को सोचकर जब कार्य किया जाता है तो उनके विकास के रास्ते अपने आप निकल आते हैं। उन्होंने कहा वंचितों और विकास की धारा में पीछे रहे लोगों को भाग्य भरोसे नहीं छोड़ जा सकता है बल्कि उनका भाग्य नये सिरे से लिखकर उनकी स्थिति को बेहतर बनाने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा देश के विकास के इस दौर में हर स्तर पर संवाद, संचार एवं सूचना को बनाए रखना भी जरूरी है। उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस सम्मेलन से जो निष्कर्ष आयेंगे, वे काफी सार्थक सिध्द होंगे।
इस अवसर पर श्री राजगोपाल ने कहा कि आदिवासी विकास के लिए उनके व्यापक हितों को ध्यान में रखकर योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हर समाज विशेष की अपनी-अपनी मुख्य धारा है। आदिवासी समाज को उनकी गरिमा एवं संस्कृति को ध्यान में रखकर उनके विकास की योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। एकता परिषद के श्री अमिताभ ने इस सम्मेलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके माध्यम से बारहवीं पंचवर्षीय योजना में जनजातीय लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप योजनाएं तैयार करने के सुझाव दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए आगामी पंचवर्षीय योजना के एप्रोज पेपर के लिए सम्मेलन में अनेक मुद्दे, विश्लेषण और सलाह पर चर्चा हुई है। उन्होंने विभिन्न विषयों पर हुई चर्चा का भी संक्षिप्त विवरण दिया। कार्यक्रम में झारखण्ड के प्रतिनिधि श्री घनश्याम ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास में शांतिपूर्ण वातावरण्ा का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए जरूरी है कि आदिवासियों के हितों एवं जरूरतों को ध्यान में रखकर राष्ट्र हित से जुड़े विकास के कार्यों से महत्व दें। उन्होंने समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति के विकास पर विशेष जोर दिया और कहा कि भारत सरकार के योजना आयोग द्वारा तैयार की जा रही योजनाओं के केन्द्र में आदिवासियों के विकास को विशेष तरजीह दी जानी चाहिए। इस अवसर पर श्री रमेश शर्मा ने भी अपनी बात रखी।

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