शकुन्ती देवी ने गाँव की सूरत बदली
Posted by अनुपूर्णा मित्तल on April 11th, 2011
पटना. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में ही चरवाहा विद्यालय बनाया गया था. उसी काल में यह नारा जोर पकड़ा, ‘ओ सूअर चराने वाले पढ़ना लिखना सीखों, ‘ बकरी हम चरायेंगे फिर भी स्कूल जायेंगे, ‘आधी रोटी खाएंगे फिर भी स्कूल जायेंगे, यह नारा अभी भी सातवें आसमान में गूंजता ही रहता है. इस नारे को साकार करने की हिम्मत की हैं पिपलावां गांव में रहने वाली शकुन्ती देवी ने. परिवार की माली हालत खराब होने के कारण नियमित विद्यालय के द्वार तक नहीं पहुची.
इसी श्रेणी में अन्य मुसहर समुदाय भी थे जिनकी स्थिति काफी खराब थी. ऐसे लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे थे. सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद भी वे हिम्मत नहीं हारे. शकुन्ती देवी तो रात्रि पहर के स्कूल में पढ़कर साक्षर हुई. साक्षर बनी तो शिक्षा के महत्व को व्यापक तौर से समझ सकी. उसके बाद अपने बच्चों को पढ़ाने में सफल हो गई. वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नारी सशक्तीकरण की ओर कदम उठाये हैं. इस कारण ऐसी अनेकों महिलाएं है जो अपने बुरे हाल को नजर अंदाज करके समाज में मिशाल कायम करने में सफल हो पा रही है.
नौबतपुर थाना अन्तर्गत पिपलावा गांव में करीब 70 घर है. यहां पर समाज के किनारे रह गये मुसहर जाति के लोग रहते हैं. प्रारंभ मुसहरों की माली हालत बहुत ही दयनीय थी. शकुन्ती देवी की तरह अन्य महिलाओं ने अपने जीवन में बहुत ही संघर्ष किए. शकुन्ती देवी और उनके पति राजेन्द्र मांझी बंधुआ मजदूर भी बन गये. बंधुआ मजदूर की दासता झेलकर कुछ रकम कमाने के बाद अपने घर में ही महुंआ का शराब बना कर बेचने लगी. आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मुसहर समुदाय के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने में असमर्थ हो रहे थे.
उसी समय उम्मीद का दीपक सामने आया. काम करने लायक क्षेत्र का चुनाव करते-करते इधर – उधर से भटक कर प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सदस्य पिपलावां गांव में वर्ष 1986 में पहुचे. समिति के सदस्यों ने इस मुसहरी में कार्य करना शुरू किया. सबसे पहले सदस्यों ने मुसहरों के बीच में जन जागरण पैदा करने का काम शुरू किया. जब सदस्यों को गांव वालों से अपेक्षित सहयोग मिलने लगा तो सदस्यों भी जी जान से मन लगा कर अच्छा काम करने लगे. इसके बावजूद भी मुसहर समुदाय के लोग बैठक में भाग नहीं लेते थे. मुसहर समुदाय के जागरूक लोग हिम्मत नहीं हारें. दर दर भटकने वालों के साथ बहुत ही प्रयास करने के बाद बैठक में बैठाया जा सका. इसमें शकुन्ती देवी की अहम भूमिका रही. उनको समाज सेवा करने में आनंद आने लगा.
फिर शकुन्ती देवी अपने 3 पुत्री एवं 2 पुत्र को स्कूल भेजने लगी. पहले सभी मुसहर लोग बन्धुआ मजदूर की तरह कार्य करते थे. आज पूर्णत स्वतंत्र होकर किसानों से पट्टा पर खेत लेकर किसानी कार्य करते है. पट्टा का मतलब है कि कुछ रूपए दिया जाता है. वह एक साल के लिए पांच से सात हजार में बीस कट्टा खेत लेकर स्वयं किसानी का कार्य करते हैं. इस पर एक साल में दो फसल लगाते हैं। एक रबी एक धनखेती करते हैं. ऐसा कार्य करने से शकुन्ती देवी ने अपनी दो बेटी को मैट्रिक, एक बेटा को आई.ए. , एक बेटे को बी ए एवं छोटी बेटी को 6ठी कक्षा तक पढ़ा पा रही है.
प्रारंभ में गांव में दबंगों का वर्चस्व रहा करता था. उसके विरूद्ध मुसहरों ने संघर्ष किये. गांव के लोगों को दबंगों से मुक्ति मिली. अब तो गांव में किसी तरह की समस्या होती है तो गांव के दहलीज पर बैठ कर समटा दिया जाता है. चाहे वो महिलाओं की समस्या हो, साधारण एवं घातक बीमारी हो, भूमि अधिकार की समस्या आदि. यदि किसी को गंभीर बीमारी हो जाती है तो तत्काल सामूहिक चन्दा एकत्र करके स्थानीय चिकित्सकों से परामर्श और दवा दिलायी जाती है. महिला उत्पीड़न के केस को लेकर अन्य क्षेत्र में जाकर केस का निपटारा भी करती है. शकुन्ती देवी अपना पूर्ण योगदान संगठन के सहयोग से कर रही है. जनादेश 2007 में भी इनका पूर्ण योगदान रहा है.
आज शकुन्ती देवी एकता परिषद पिपलावॉ गांव की नेतृत्वकर्ता है एवं ग्राम ईकाई के अध्यक्ष पद पर है. जनसत्याग्रह 2012 में उन्हें जत्थानायक का कार्यभार सौपा गया है. खुब लड़ी मैदानी वह तो झांसी वाली रानी की तरह गांवघर में शराब बन्द करने के लिए संघर्ष किया. उसने सभी लोगों को प्रेरित कर शराबबन्दी करवाने में सफलता पाई. इस से प्रोत्साहित होकर मुसहर समुदाय के लोगों ने अपने गांव में शिक्षा का दीप जलाने की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी ली. इसके फलस्वरूप आज गांवघर में 10 लड़कियां इन्टरमीडियट एवं 12 लड़के बी.ए. उर्त्तीण हुए. सभी बच्चों को निकटवर्ती राजकीय अम्बेडकर आवासीय उच्च विघालय में जाकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया.
अब तो मुसहर समुदाय के लोग सरकारी योजनाओं से लाभ भी लेने लगे. झोपड़ी में रहने वालों के झोपड़ी को हटाकर इन्दिरा आवास योजना के द्वारा 70 परिवारों को मकान बना दिया गया. सभी परिवार इन्द्रिरा आवास योजना से निर्मित मकान में रहने का आनंद उठा रहे हैं. यहां की गंदगी को हटाने के लिए साफ- सफाई पर ध्यान दिया जाता है और सभी लोगों को इसके लिए प्रेरित भी किया जाता है. आज की तारीख में गांवघर की सूरत और मूरत बदल गयी है.
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