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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Friday 15 April 2011

बंद करो नदियों से खिलवाड नहीं तो उगलेंगी जहर


          दुनिया भर में बढ़ रही पानी की किल्लत के बीच जल स्त्रोतों में बढ़ते प्रदूषण के कारण विशेषज्ञों को इस बात का भारी अंदेशा है कि कही हमारी नदियां जहरीली न हो जाएं। उनकी राय में जल प्रबंधन में पारंपरिक विवेक और तकनीक तथा जन सहयोग जोड़े बिना कुछ ठोस हासिल नहीं किया जा सकता।
        जाने-माने गांधीवादी और जल, जंगल और जमीन मुद्दे पर आंदोलन चला रहे राजगोपाल पी.वी. ने कहा कि हमें नदियों और पानी के साथ खिलवाड़ तुरंत बंद करना होगा अन्यथा हमारी नदियां जो अभी तक हमें पानी के रूप में जीवन प्रदान कर रही हैं, भविष्य में जहर उगलना शुरू कर देंगी। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया नदियों और पानी के मामले में काफी समृद्ध क्षेत्र माना जाता है लेकिन यहां पानी को लेकर इतनी हायतौबा क्यों है, यह एक विचारणीय विषय है।
        राजगोपाल ने कहा कि पानी पर सरकार के एकाधिकार को खत्म करना होगा। पानी के क्षेत्र में निजी कंपनियों ने स्थिति को और बिगाड़ा है क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जमीन के नीचे उपलब्ध जल का अंधाधुंध इस्तेमाल शुरु कर दिया है। राजगोपाल ने कहा कि अगर जल से जुड़े मुद्दे को सही ढंग से नही सुलझाया गया तो विशेषज्ञों के मुताबिक अगला विश्वयुद्ध पेट्रोल के लिए नहीं पानी के लिए होगा। गांधीजी कहा करते थे कि प्रकृति को समझो, उसके साथ चलो और उसे गुलाम बनाने की कोशिश मत करो।
        राजगोपाल ने सुझाव दिया कि हमें पानी के प्रबंधन के लिए राजस्थान जैसे क्षेत्रों और देश के अन्य स्थानों में इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक विवेक और तकनीक को अपनाना होगा। पानी की कमी का समाधान कोई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ नहीं दे सकते। इस मामले में हमें जन सहयोग और जनभागीदारी बढ़ानी होगी।
        जल मामलों के विशेषज्ञ और साउथ एशिया नेटवर्क आन डेम, रिवर्स एंड पीपुल्स संस्था से संबद्ध हिमांशु ठक्कर ने कहा कि जल एक ऐसी चीज है, जो लोगों को जोड़ती है लेकिन आज जल विवाद का विषय बन गया है। उन्होंने सवाल किया कि हमारे देश में जब नदी का पानी एक गांव से दूसरे गांव में जाता है या एक शहर से दूसरे शहर जाता है तो कोई विवाद नही होता। लेकिन यही नदी जल जब एक राज्य से दूसरे राज्य या एक देश की सीमा से दूसरे की सीमा में जाता है तो विवाद क्यों शुरू हो जाता है ?
        ठक्कर ने कहा कि जल पर सरकार का एकाधिकार इसका सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि नदी जल बंटवारा, बांध, सिंचाई जैसे जल से जुड़े मुद्दों पर हर जगह सरकार ही पहल करती है और जन भागीदारी इनसे बिल्कुल कट गई है। सरकार लोगों को पानी से अलग कर रही है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि अगर हमारे देश में पानी के मामले में पारंपरिक विवेक और जनभागीदारी को प्रोत्साहन दिया जाए तो जल संबंधी समस्याएं काफी हद तक सुलझ सकती हैं।
        नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में पूछने पर ठक्कर ने कहा कि इस मामले में देखना होगा कि क्या इसका वैज्ञानिक आधार है। नदियों को जोड़ने के बारे में प्रमुख तर्क यह है कि कुछ में सरप्लस पानी होता है और कुछ में कम। उन्होंने कहा कि इस तर्क में अधिक दम नहीं है क्योंकि सरप्लस जल की नदियों वाले क्षेत्र में भी सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता और सूखा पड़ता है जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार। इसके विपरीत कावेरी जैसी कम पानी वाली नदियों के कुछ क्षेत्र में अधिक पानी की फसल यानी धान की दो बार पैदावार होती है।
        जल मामलों के विशेषज्ञ और नर्मदा नदी की समस्याओं पर पुस्तकें लिख चुके अमृतलाल वेगड़ ने कहा कि पानी की समस्या के मामले में सबसे उपयुक्त कहावत है कि एक अनार सौ बीमार। आज हर आदमी को पानी की आवश्यकता है लेकिन पानी की मात्रा लगातार घट रही है। उन्होंने कहा कि आजादी के समय की तुलना में हमारी आबादी लगभग चार गुना बढ़ी है। इस हिसाब से अगर आजादी के समय देश में 50 इंच वर्षा होती थी तो आज 200 इंच वर्षा होनी चाहिए। लेकिन आज तो 50 इंच से भी कम वर्षा होती है। वेगड़ ने कहा कि वर्षा की समस्या दूर करने के लिए सबसे जरूरी है जंगल की कटाई रोकना।

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