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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Monday 18 April 2011

गरीबों के विकास से देश का विकास

वनवासियों और आदिवासियों को वन अधिकार कानून के तहत दिए जाने वाले पट्टों के महज कागज सत्तारूढ़ पार्टियों के कार्यक्रमों में दिए जाते हैं। लेकिन, हकीकत में उन्हें जमीन मिल ही नहीं पाती है। वनवासियों का यह दर्द कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी ने रविवार को व्यक्त किया। वे एकता परिषद की ओर से अप्सरा रेस्टोरेंट में आयोजित "जनसत्याग्रह 2012 : रणनीतिक संवाद" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि देश में खेती-किसानी संकट में है। किसानों को उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, ऎसे में परिवर्तन की बात प्रासंगिक है। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगोपाल पीवी ने कहा कि विकास के नाम पर कुछ लोगों की जेब भरी जा रही हैं। गरीब भूखे पेट सोने को मजबूर है। गरीबों को न्याय दिलाए बिना देश का विकास संभव नहीं है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने आदिवासियों की जमीन को दूसरे हाथों में जाने से बचाने की बात पर जोर दिया। प्रो. एसएन चौधरी ने कहा कि वैश्वीकरण के बाद मध्यम वर्ग का विकास तेजी से हुआ है। पूर्व विधायक केके सिंह ने कहा कि गांव की आवाज नीति निर्माताओं तक नहीं पहुंच रही है। पूर्व विधायक मुकेश नायक ने आदिवासियों के प्रति चिंता व्यक्त की और दलितों को भूमि नहीं मिलने की बात कही। पूर्व डीजीपी सुभाषचंद्र त्रिपाठी ने स्थानीय स्तर पर आंदोलन करने की जरूरत बताई। एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार ने बताया कि 2 अक्टूबर 2012 में होने वाले जनसत्याग्रह में अन्याय से त्रस्त लोग न्याय की आस में दिल्ली कूच करेंगे। इस दौरान कार्यक्रम में मौजूद अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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