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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Friday 15 April 2011

हिम्मत नहीं हारे ग्रामीण

गिरिडीह जिला के प्रखण्ड बगोदर के अन्तगर्त वाले गैडाही गांव में पहुंचने वाला रास्ता अत्यन्त दुर्गम है. इस गांव के लोग जमुनिया नदी के ऊपर सुरंगनुमा बने नाहर से गांव में प्रवेश करते हैं. नदी और जंगलों से घिरा होने के कारण इस गांव में सरकारी अधिकारियों के परछाई तक नजर नहीं आती है. इस गांव में संताल समुदाय के करीब ३२ घर है. २०० जनसंख्या वाले इस गांव में लगभग अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं. ग्रामीणों के लिए शिक्षा, चिकित्सा का नितांत अभाव देखने को मिलता है. यदि शिक्षा की बात करें तो इस गांव में १५ वर्ष से ऊपर एक भी व्यक्ति पढा-लिखा नहीं है. यदि चिकित्सा की ओर गौर करें तो यहां एकमात्र उपाय जडी-बुटी ही है, जिसके कारण यहां मृत्यु दर भी ज्यादा है.
इस गांव के ४५ वर्षीय सीताराम मांझी बताते हैं कि गांव में पहले चौरी-डकैती की शिकायतें आम थी. उसके लिए प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को पहरा देने के लिए कहा गया. जिसके बदले ५०० रूपये प्रति माह देने की बात की गयी. एक बार रात्रि में चोर को दौडाने के क्रम में पहरेदार को कांटा गड गया. जिसका न तो इलाज किया गया और न ही पारिश्रमिक दिया गया. इसके बाद गिरिडीह के स्थानीय स्वयंसेवी संस्था नया सवेरा एकता परिषद से संफ किया गया, जिन्होंने काफी उत्साह से ग्रामीणों का साथ दिया. एकता परिषद के राज्य समन्वयक बिरेन्द्र कुमार बताते हैं कि पैक्स कार्यक्रम के सहयोग से इस गांव में सबसे पहले एक स्कूल खोला गया. २००१ से शिक्षक आनन्द कुमार ने कई समस्याओं का सामना करते हुए प्रतिदिन दो घंटा बच्चों को पढाते रहे. इसके बाद २००४ में सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल दिया गया. जिसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि अब गांव के सभी अभिभावक बच्चों को पढने के लिए स्कूल भेजते हैं. इसके बाद लोगों की मुख्य समस्या थी लोगों की दो वक्त की रोटी. इसके लिए ग्रामीणों ने खतियान में दर्ज २४ एकड २९ डिसमिल जमीन पर सामुहिक रूप से जोत-कोड करना शुरू किये. उस गांव के आसपास के उच्च वर्ग के लोग आपत्ति जताने लगे. उनका कहना था कि यह जमीन हमलोगों का है और यह जमीन जमींदार ने हमलोगों को दिया है. ग्रामीणों ने कहा कि यह जमीन हमारे पूर्वजों के नाम पर है तो जमींदार आपलोगों को जमीन कैसे दिये ? जब उन्हें यह एहसास होने लगा कि गांव वाले अकेले नहीं है, बल्कि संस्था के लोग साथ दे रहे हैं. तब उनलोगों ने कहा कि एक माह के अंदर रसीद कटवा लो, तब समझेगें कि यह जमीन आपलोग का है. जमीन का रसीद कटने के लिए प्रखण्ड में आवेदन दिया गया. प्रखण्ड से उस आवेदन को उप-समाहर्त्ता के पास भेज दिया गया. उसके बाद से आज तक केस चल रहा है. तब ग्रामीणों ने अपने खतियानी खेत में धान, अरहर, मकई, मडुआ इत्यादि की बुवाई किये. जिससे ग्रामीणों को दो वक्त का भोजन मिलने लगा. लेकिन यह खुशी उच्च वर्ग से सहा नहीं गया और ग्रामीणों पर चोरी-डकैती का केस कर दिया. यह बयान दिया गया कि गांव वाले हमलोगों का फसल चोरी कर ले गये. जिसमें १५ व्यक्ति को जेल भेज दिया गया. गांव वाले सामुहिक चंदे से सात हजार रूपये खर्च करने के बाद उनलोगों का बेल करवायें. उसके बाद गैडाही ग्रामवासी हिम्मत नहीं हारे और फिर उस जमीन पर खेती कर रहे हैं.
मन में सपने संजाये हरी मुर्मू कहते हैं कि इतने बडे भू-भाग पर खेती होने से पलायन में बहुत हद तक कमी आयी है. पहले लोग छोटे-छोटे खेत में खेती कर तुरन्त पंजाब, हरियाणा चले जाते थे, लेकिन आज इतने बडे भू-भाग पर खेती करने में समय लगने की वजह से शायद ही पलायन करते हैं. जिस दिन इस जमीन का केस पूर्णतया समाप्त हो जाएगा उस दिन इस गांव के आदिवासी समुदाय के लिए सबसे बडी खुशी का दिन होगा

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