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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Sunday 17 April 2011

मर नहीं सकती भारतीय संविधान की आत्‍मा- आरसी लोहाटी

राष्‍ट्र का निर्माण संकल्‍प और श्रद्धा से संभव है - भय्यू जी महाराज : भारतीय ज्ञानपीठ, उज्‍जैन का वार्षिक प्रतिष्‍ठा शुरू : भारतीय ज्ञानपीठ उज्जैन द्वारा पदमभूषण डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन की स्मृति में आयोजित आठवीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला का शुभारंभ 24 नवम्बर 2010 बुधवार को भारतीय ज्ञानपीठ माधवनगर रेलवे स्टेशन के सामने उज्जैन में राष्ट्रीय संत पूज्यश्री भय्यू जी महाराज संस्थापक श्री सद्गुरू आश्रम धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट इंदौर के ‘भारत के विकास पर भ्रष्टाचार का प्रभाव’ विषय उद्बोधन से हुआ। दिनांक 25 नवम्बर को देश के ख्यात न्यायविद् देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति माननीय श्री आर.सी. लाहेटी का व्याख्यान हुआ। श्री लाहोटी ने नगर के प्रबुद्ध वर्ग को भारतीय संविधान की आत्मा और आम आदमी विषय पर संबोधित किया। यह आयोजन 30 नवम्बर तक चलेगा। उज्जैन के भारतीय ज्ञानपीठ परिसर में आठ वर्षों से हो रहे सद्भावना व्याख्यानमाला में देश के प्रबुद्ध और बुद्धिजीवी वक्ताओं ने अपने ज्ञान और विचारों से श्रोताओं को बोद्धिक रूप से तृप्त किया है और उनके मन में उठ रहे सवालों, उलझनों को सुलझाने का प्रयास किया है। इस व्याख्यानमाला में देश के श्रेष्ठ विचारकों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रीयों, न्यायविदों, गांधीवादियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के विचारों का लाभ सुधि श्रोतोओं को प्राप्त होता है। व्याख्यानमाला में आये प्रबुद्ध वक्ताओं के विचारों को समेट कर एक स्मारिका के रूप में भी प्रकाशन किया जाता है। उज्जैन शहर में व्याख्यानमाला की हलचल दिखाई दे रही हैं।
30 नवम्बर तक चलने वाली व्याख्यानमाला में देश के विभिन्न क्षेत्रों के ख्यातनाम लोगों के उदबोधन होंगे, जिसमें स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, संस्थापक हिन्दू-मुस्लिम एकता समिति, लखनऊ (उ.प्र.) विषय- धार्मिक कट्टरता एवं आतंकवाद, अब्दुल रशीद शाहीन, पूर्व सांसद बारामूला (जम्मू कश्मीर) विषय- धार्मिक सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सौहार्द, श्रीमती शाहिस्ता अम्बर, लखनऊ (उ.प्र.) अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन्स पर्सनल लॉ बोर्ड, विषय- 'महिलाओं के विकास में जनआन्दोलनों की भूमिका',  डॉ. आर्यभूषण भारद्वाज, अध्यक्ष गांधी इन एक्शन (दिल्ली), विषय- 'गांधी की जरूरत क्यों?', श्री पी.वी. राजगोपाल, अध्यक्ष, एकता परिषद (दिल्ली), विषय- 'भारत के विकास में जनआंदोलनों की भूमिका', राजेश बादल, कार्यकारी निर्देशक राज्य सभा चैनल, नई दिल्ली, विषय- 'एशिया के विकास में मीडिया की भूमिका', श्री सुनील गुप्ता, उपाध्यक्ष समाजवादी जनपरिषद होशंगाबाद (म.प्र.), विषय- '21 वीं सदी का भारत' , प्रो. श्री सुदर्शन आयंगर, कुलपति, गुजरात विद्यापीठ, (अहमदाबाद), विषय - 'जनप्रतिनिधियों का आचरण एवं भारतीय लोकतंत्र का भविष्य', प्रो. धन्नजय वर्मा, पूर्व कुलपति, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, विषय- 'राजनीति का अपराधीकरण' शामिल है.
विगत 8 वर्षों में इस व्याख्यानमाला में देश भर से कई ख्यात व्यक्तित्व शामिल हुए है। जिन्होंने अपने अनुभवों को इस व्याख्यानमाला में बांटा है। इस व्याख्यान माला में कई राज्यों के महामहिम राज्यपाल, ख्यात न्यायविद्, प्रसिद्ध समाजसेवी, गांधीवादी विचारक, विश्वविद्यालयों के कुलपति, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी शामिल हो चुके हैं। जिनमें प्रमुख रूप से न्यामूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे (राज्यपाल हिमाचल प्रदेश ), न्यायमूर्ति निसार अहमद  (म.प्र. एवं छ.ग. के विद्या लोकपाल), न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला (अध्यक्ष, मानव अधिकार आयोग, मध्यप्रदेश ), न्यायमूर्ति डी.एम. धर्माधिकारी (अध्यक्ष, मानव अधिकार आयोग, मध्यप्रदेश ), न्यायमूर्ति नारायणसिंह आजाद, न्यायमूर्ति शशिमोहन श्रीवास्तव, प्रसिद्ध एडवोकेट आनन्दमोहन माथुर, सतीश चंद्र अग्रवाल (आयकर आयुक्त उज्जैन), गांधीवादी स्व. डॉ. निर्मला देशपाण्डे, एस.एन.सुब्बाराव, तुषार गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा, समाजसेवी मेघा पाटकर, राजेन्द्र सिंह जी, जयपुर (जल क्रांति मेगासेसे पुरूस्कृत), स्वामी अग्निवेश, पी.वी. राजगोपाल, नई दिल्ली, शोभना रानाडे, पुणे, सुश्री सुभदा जहांगीरदार, मुम्बई, डॉ. सईदा हमीद ( सदस्य योजना आयोग, भारत सरकार ), डॉ. सुरेश खेरनार, मुम्बई, गोविंदाचार्य जी, रघु ठाकुर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री महावीर प्रसाद, पूर्व केन्द्रीय श्रम मंत्री डॉ. सत्यनारायण जटिया, कैलाशनारायण जी सारंग, बालकवि बैरागी, सनत भाई मेहता (पूर्व वित्त मंत्री गुजराज), पारस जैन, खाद्य मंत्री मध्यप्रदेश, एल.वी. सप्त़ऋषि (पूर्व महानिदेशक कपार्ट), साहित्यकार डॉ. महीपसिंह, प्रो. सरोजकुमार, डॉ. कमलेश दत्त त्रिपाठी, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, प्रो. चन्द्रकान्त देवताले, ध्रुव शुक्ल, प्रो. रजिया पटेल,  प्रो. इम्तिहाज एहमद, जे.एन.यू. दिल्ली, डॉ. जेड.ए. निजामी, दिल्ली, डॉ. मधुपूर्णिमा कीश्वर, हरिदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार इण्डियन एक्सप्रेस, पत्रकार रोमेश जोशी, विश्वविद्यालयों के कुलपति में डॉ. शिवकुमार श्रीवास्तव (पूर्व कुलपति सागर), डॉ. भरत छपरवाल (पूर्व कुलपति इंदौर), मोहन गुप्त (कुलपति पाणिनी विश्वविद्यालय, उज्जैन), ए.ए. अब्बासी (पूर्व कुलपति, इंदौर), वरिष्ठ पत्रकार अच्चुतानन्द मिश्र (पूर्व कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल), प्रो. रामराजेश मिश्र ( पूर्व कुलपति, उज्जैन) शामिल हैं.
इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए भय्यूजी महाराज ने कहा कि राष्ट्र का निर्माण सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं से ही संभव नहीं है, बल्कि लोहाटीराष्ट्र का वास्तविक निर्माण संकल्प और श्रद्धा के माध्यम से ही होता है। संकल्प को चुनौतियों से आगे ले जाकर संघर्षों से जीत कर उन्हें साकार करना ही सच्चा जीवन है। भारत के विकास का मार्ग भ्रष्टाचार से न होकर संवेदना से गुजरता है। भ्रष्टाचार एक आदत है जिसे छोड़ा जा सकता है, किन्तु स्वभाव को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। इस देश का स्वभाव संवेदना है। संस्कृति संस्कारों से उत्पन्न होती है। अन्न के अभाव में तो मानव की मृत्यु होती है किन्तु संस्कारों के अभाव से मानवता की ही मृत्यु हो जाती है। आज संबन्धों का आधार भी “अर्थ” हो गया है। जब समाज में ऐसा दौर आता है तो यह अनर्थ का प्रतीक होता है। समाज में वृद्धाश्रमों और अनाथालयों की बढ़ती संख्या उस छूरे को प्रदर्शित कर रही है, जो हमारे समाज की पीठ में घुसा हुआ है।
श्री भय्यूजी महाराज ने कहा कि विकास का जनक आदर्श होता है, आदर्श हमें संस्कारों से मिलते है और संस्कार माता से प्राप्त होते है। आज दोहरे चरित्र के व्यक्ति समाज को दूषित कर रहे है। हम लोग कॉमनवेल्थ घोटाले पर घंटों चर्चा कर लेते हैं, किन्तु उस घटना के प्रति हमारा ध्यान नहीं जाता जब 157 लोगों को बंधकों से छुड़वाने के लिये राष्ट्र का स्वाभिमान गिरवी रख दिया गया हो। एक दर्जन व्यक्ति को समाप्त करने के लिये भगवान जन्म लेते हैं, किन्तु कई कुरीतियों को समाप्त करने के लिये सिर्फ और सिर्फ संस्कार ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। जिस देश में महात्मा गांधी ने बेरिस्टर का कोट त्याग कर सिर्फ धोती के बल पर सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया, उसी देश में अब हम लोगों को प्रभावित करने के लिये सूट-बूट और अंग्रेजी का सहयोग लेते है।
समारोह की विशिष्ट वक्ता प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक सुश्री वेदेही पाण्डा ने 'स्त्री शक्ति जागरण- देश की महती आवश्यकता' विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि पिता आचार्य से 100 गुना अधिक बड़ा होता है एवं माता, पिता से भी 1000 गुना बड़ी होती है। नारी का अलंकार ममता, त्याग, वात्सल्य में समाहित होता है। आज यदि विवाह में पढ़े जाने वाले श्लोकों के अर्थों को भी जीवन में उतारा जाये तो जीवन सफल और सार्थक हो जाता है क्योंकि इन श्लोकों के अर्थ बहुत व्यापक होते हैं। आज समाज से अतिथि देवो भवः की भावना का लोप हो रहा है। यदि हम सच्‍चे, सफल और सुदृढ राष्ट्र का निर्माण करना चाहते है तो नारी सशक्तिकरण होना अत्यंत आवश्यक है। जिस देश की नारी शिक्षित और समाज में सम्मानित होती है वह देश निरन्तर प्रगति के पथ पर गतिमान रहता है।
इस अवसर पर देवास की महापौर रेखा वर्मा विशेष रूप से उपस्थित थी। संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल जी कुलश्रेष्ठ एवं समिति के सदस्यों द्वारा अतिथियों का शॉल व श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया। विद्यालयीन शिक्षिकाओं श्रीमती अपर्णा निरगुडकर, प्रो. नम्रता भवालकर, श्रीमती प्रिया आचार्य, श्रीमती चौरसिया ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। सद्भावना व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष भी अवंतिलाल जैन, अमृत लाल जी जैन, डॉ. पुष्पा चौरसिया, प्राचार्या श्रीमती सुनीता खोलकुटे, प्रदीप जी जैन, के.पी. सेठिया, ब्रजेन्द्र द्विवेदी, बी.के. शर्मा आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर रामचन्द्र भार्गव, पूर्व महापौर मदनलाल ललावत, आनन्दमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ, अशोक वक्त सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। प्रारंभ में इस शुभ अवसर पर सभी धर्माचार्य, शहर काजी खलिलुर्रहमान, ज्ञानी चरणसिंह गिल, पण्डित राजेन्द्र जैन, महन्त पारसनाथ, श्रीमती रोजमेरी जोसफ आदि ने सद्भावना दीप प्रज्वलित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. नीलम महाडिक ने किया तथा आभार अवन्तिलाल जी जैन ने किया।
दूसरे दिन लोगों को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधिपति न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी ने कहा कि भारतीय संविधान की आधारशिला आम व्यक्ति पर आधारित है और उसी के प्रति समर्पित है। अतः इसके अजर और अमर रहने में कोई संदेह नही हैं, यह बात अलग है उज्‍जैनकि जिस प्रकार सभी क्षेत्रों में गिरावट आई है, इसी तरह कुछ गिरावट न्याय पालिका में भी आई है फिर भी आज की न्यायपालिका अपने कर्तव्‍य का उचित पालन कर रही है व देश की जनता न्यायपालिका के प्रति आशा भरी नजरों से देख रही है। अशिक्षा, अज्ञान और अभाव के चलते स्वतन्त्रता का मूल्य नहीं समझा जा सकता है। एक प्रकार से हमने अपने मूल्यों के साथ समझौता कर लिया है। समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आलम यह है कि भ्रष्ट देशों के सूची में 86 नम्बर पर हम पहुँच गये हैं। हमारा असीम धन स्वीस बैंकों में जमा है। अगर वह धन आता है तो हमारा देश वापस समृद्धि के शिखर पर पहुँच जाएगा। इधर इतनी बड़ी आबादी वाले इस देश में मताधिकार का प्रयोग भी 50 प्रतिशत तक ही हो पाता है। गांधीजी के द्वारा रचित मानव मूल्यों की शपथ लेकर देश के नेता उस गद्दी तक पहुँच गये है जहां जाने की चाह महात्मा गांधीजी ने कभी नही की। इस देश को सच्चे अर्थों में समझने के लिये इसके गाँवों का साक्षात्कार होना आवश्यक है। हमारा संविधान भले ही समता की चर्चा करता हो किन्तु हकीकत यह है कि गरीब और अमीर के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। यह देश के लिये घातक है ।
'भारतीयं संविधान की आत्मा एवं आम आदमी'  विषय पर श्री लाहोटी ने कहा कि एक राष्ट्र के निर्माण के लिये शताब्दियां गुजर जाती हैं, किन्तु उसका विध्वंस करने में एक क्षण ही लगता है। हमारे संविधान का प्रारूप तैयार करने में 2 वर्ष 11 माह व 17 दिन लगे थे, बहुत ही सूक्ष्मता से इसका सृजन किया गया है और इसीलिये यह विश्व का उत्कृष्ट संविधान है। भारतीय संविधान की आत्मा इस संविधान की उद्देश्यिका में बसती है, प्रत्येक व्यक्ति को इसका वाचन कर विश्लेषण करना चाहिए।
व्याख्यानमाला के विशिष्ट वक्ता मध्यप्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता आनन्द मोहन माथुर ने 'भारतीय संविधान और हमारे कर्तव्‍य' विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि कई ऐसे कर्त्तव्य हैं जिनका अनुपालन बहुत आवश्यक है। आज हमने समय का सम्मान करना छोड़ दिया है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। इसके भयावह परिणाम के बारे में हम बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहे हैं। एक माता का परम कर्तव्‍य है कि वे अपनी संतान को उचित संस्कार प्रदान करें। उसे उस योग्य बनाए कि वह अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सके। किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज शिक्षा इतनी अधिक मंहगी हो जाएगी। आवश्यकता इस बात की थी कि हम महात्मा गांधीजी के आदर्शो को जीवन में आत्मसात करें, किन्तु हमने महज उनके पुतलों पर पुष्पमाला पहनाने भर से इतिश्री कर ली।
समारोह को माननीय न्यायमूर्ति एन.के मोदी ने भी सम्बोधित किया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीश कुमार शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अतिथि स्वाग अमृतलालजी जैन, इन्टरनेशनल लॉ एसोसिएशन के सचिव सुरेश जैन, पुष्कर बाहेती, डॉ. पुष्पा चौरसिया, रशीदउद्दीन, अशोक जैन, रामकिशोर गुप्ता, आनन्द मुगल, विमल गर्ग, कवि आंनन्द,  हाजीशेख मोहम्मद ने किया। स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। इस अवसर पर सभी अतिथियों का शॉल व श्रीफल से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन एडवोकेट कैलाश विजयवर्गीय तथा आभार सद्भावना व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष अवंतिलालजी जैन ने व्‍यक्‍त किया।
उज्‍जैन से संदीप कुलश्रेष्‍ठ की रिपोर्ट

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