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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Friday 15 April 2011

शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए सामूहिक पयास जरूरी

भोपाल, (ब्यूरो मप)। बच्चों के अधिकारों एवं जरूरतों में कोई फर्क नहीं होता। उनके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, जीने का अधिकार महत्वपूर्ण हैं। देश में 6 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते। ऐसे बच्चों की समस्या शिक्षा ही नहीं बल्कि अन्य भी है, जिनके निराकरण के उपाय होना चाहिये। शिक्षा से वंचित बच्चों के लिये सामूहिक पयास की जरूरत अब महसूस की जाने लगी है। यह विचार बुधवार को भोपाल में बाल अधिकार संरक्षण विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में दिल्ली कमीशन फॉर पोटेक्शन फॉर चाईल्ड राईट्स के चेयरमेन अमोद के. कान्त ने व्यक्प किये। कार्यशाला का आयोजन आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा पशासन अकादमी एवं यूनिसेफ के सहयोग से पशासन अकादमी में किया गया था। कार्यशाला में सेवानिवृत्त जिला सत्र न्यायाधीश श्रीमती रेणु शर्मा, सेवानिवृत्त अतिरिक्प पुलिस महानिदेशक वी.बी. साहनी आदि उपस्थित थे। बच्चों के हित में विभिन्न वैधानिक कानूनों की जानकारी देते हुए श्री अमोद के. कान्त ने कहा कि परिवर्तन के इस दौर में मध्यपदेश भी लगातार बदल रहा है। ऐसे में बच्चों को पगति के पर्याप्त अवसर मिलना चाहिये। उन्होंने बताया कि आज देश के साढ़े तीन करोड़ बच्चों को संरक्षण की जरूरत है। कानून की दृष्टि में भी बच्चे की परिभाषा एक ही होना चाहिये। रेलों व रेल्वे स्टेशनों पर घूमते पाये जाने वाले बच्चों की सं या 40-45 लाख है। देश में 45 हजार बच्चे हर साल गुम हो जाते हैं। ऐसे बच्चे जिनके अभिभावक या माता-पिता नहीं हैं उनकी तलाश पहले होना चाहिये। श्री कान्त ने कहा कि बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक सुरक्षा पहले मिलना चाहिये, संयुक्प राष्ट्र भी इस बात को मानता है। पत्येक बच्चे पर एक सुरक्षा कवच हो। बच्चों को गलत कार्य में पेरित होने से बचाया जाये। बाल संरक्षण के बजट में कोई कमी नहीं होना चाहिये। उन्होंने मध्यपदेश बाल संरक्षण आयोग को सलाह दी कि वह अपनी शक्पि का इस्तेमाल बच्चों के हित में करे। बच्चों से संबंधित हर मामलों के त्रिढयान्वयन की जि मेदारी कमीशन पर है। श्री कान्त के अनुसार नई दिल्ली के उनके आयोग में लगभग 10 हजार 600 पकरण ल बत है। नई दिल्ली में ही नौ बाल न्यायालय (चाईल्ड कोर्ट) कार्यरत हैं, जिनका अपना महत्व है। उन्होंने पार्कों को बच्चों के लिये सुरक्षित रखे जाने का अनुरोध भी किया। पार्कों पर पहला अधिकार बच्चों का है। कार्यशाला को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्रीमती रेणु शर्मा ने बाल अधिकारों के संरक्षण पर व्यापक पकाश डालते हुए कहा कि बच्चों के अधिकारों को हमें मजबूत करना होगा। जो बच्चे बाल कानूनों के दायरे में आते हैं बाद में उनका सुधार भी होना चाहिये। बाल कानूनों से बच्चों को संरक्षण मिलना चाहिये। उन्होंने बताया कि आई.पी.सी. (भा.द.सं.) कानून के अंतर्गत अनेक ऐसे पावधान हैं जो बच्चों के हित में हैं। श्रीमती शर्मा ने कहा कि बाल विवाह, बच्चों के साथ यौन अपराध आदि पकरण दर्ज कर उन पर कार्यवाही होना चाहिये। श्रीमती शर्मा ने मध्यपदेश में चिल्ड्रन कोर्ट की आवश्यकता भी बताई। बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण पर चिन्ता व्यक्प करते हुए उन्होंने इसकी रोकथाम के लिये जन-जागरूकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों से संबंधित अपराधों की बेहतर सुनवाई हो। इसके लिये पुलिस और कानून का इन्फास्ट्रक्पर भी बेहतर हो। जिलों में गठित महिला एवं बाल संरक्षण यूनिट की गतिविधियां भी अच्छे ढंग से संचालित हों, तभी हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। कार्यशाला को श्री वी.बी. साहनी, यूनिसेफ की अधिकारी श्रीमती वीणा बंदोपाध्याय आदि ने संबोधित किया। पारंभ में कार्यशाला समन्वयक डॉ. पतिभा राजगोपाल ने अतिथियों का स्वागत कर कार्यशाला के उद्देश्यों पर पकाश डाला। कार्यशाला का शुभारंभ अमोद के. कान्त ने दीप पज्जवलित कर किया। कार्यशाला में महिला एवं बाल विकास विभाग, बाल संरक्षण आयोग व यूनिसेफ के अधिकारी तथा शैक्षिक संगठनों के पतिनिधि उपस्थित थे।

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