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एकता परिषद भू अधिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसात्मक जन आंदोलन है. लोगों की आवाज सुनी जाए इसके लिए एक बड़े पैमाने की राष्ट्री अभियान की नींव रखी गयी थी, जिसे जनादेश 2007 कहा गया, जिसके माध्यम से 25 हजार लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच कर अपनी आवाज बुलंद की.

Saturday 16 April 2011

शांति के मसीहा के साथ हो रहा बुरा बर्ताव-राजगोपाल

 

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पटना. जन संगठन एकता परिषद के तत्वाधान में रविवार को गांधी संग्रहालय, पटना में राज्य स्तरीय विमर्श का आयोजन किया गया. इस विमर्श की विषयवस्तु विकास और भूमि सुधार- बिहार के संदर्भ में रहा. इसका संचालन एकता परिषद के राज्य समन्वयक प्रदीप प्रियदर्शी ने किया.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य पी वी राजगोपाल ने कहा कि पहले अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले जन संगठन और संस्थाओ की कद्र होती थी. सरकार और उनके अधिकारी इज्जद-आबरू देते थे. लेकिन अब ‘बंदूक नहीं कुदाल चाहिए हर हाथ को काम चाहिए‘ नारा लगाने वाले नारा ही लगाते रह जा रहे हैं. उससे पूछने वाला कोई नहीं हैं. वहीं बंदूक की गर्जना करने वालों के संग जोरशोर से वार्ता की जाती है.
उन्होंने कहा कि देश को आजाद करवाने वाले महात्मा गाँधी, भूदान आंदोलन के प्रार्णेता विनोबा भावे और संपूर्ण क्रांति के बिगुल फूकने वाले जयप्रकाश नारायण के मार्ग चलने वाले लोग हताश हो रहे हैं. राजगोपाल ने कहा कि देश और प्रदेश की सरकार के द्वारा अहिंसात्मक आंदोलन चलाने वालों को कुचल दिया जाता है उनको अपमानित किया जाता है. सत्य और अहिंसा के हितैशी स्वामी अग्निवेश के ऊपर कातिलाना हमला हो रहा है. सरकार के संग शांति वार्ता करने जाने वाले नक्सली और एक पत्रकार को मार गिराया गया. जो इस बात की ओर इंगित करता है कि वर्तमान समय में शांति के मसीहा के साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा है जो मानवाधिकार हनन है.
सरकार की एक मात्र नीति है कि सिर्फ ‘गन’ से गर्जना करने वालों के साथ ही सरकार वार्ता करें. अभी सरकार सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वालों के साथ वार्ता न करके उल्फा, बोडो, नक्सलवादी आदि के नेताओं से वार्ता करना चाहती है, जो अराजकता की स्थिति है. जो सड़क जाम किया करते हैं उनसे बातचीत करने के लिए अधिकारी आ जाते है. हिंसक वारदात करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए विभाग और मंत्रालय खोल दिया गया है मगर अहिंसक आंदोलन चलाने वाले के लिए ऐसा नहीं किया गया है.
उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि आजादी के 63 साल के अंदर सरकार और उनके अधिकारियों के द्वारा ‘इंडिया’ के लोगों को सारी सुविधाएं पहुंचा दी जा रही है. वहीं भारत के यानी गांधी जी के अंतिम व्यक्तियों की सुधि नहीं ली जा रही है. उनकी स्थिति काफी खराब होती चली जा रही है. ‘हां‘ सरकार के द्वारा समाज के हाशिये पर रहने वालों के लिए कल्याणकारी योजनाएं जीवन से लेकर मरण तक के लिए कर दी गयी है. ऐसे लोगों के लिए इंदिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन, लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन, निशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन की तरह अन्य योजना की बाढ़ लगा दी गयी. इसी में वंचित समुदाय उलझकर रह गये हैं. ऐसे लोगों को राष्ट्र के मुख्यधारा और राजनीति की कुर्सी से काफी दूर कर दिया जाता है.
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्य रमेश शर्मा ने कहा कि एकता परिषद के द्वारा वर्ष 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा की गई. इसमें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनायी गयी थी. इस समिति ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष को उक्त नीति को सौंप दी है. मगर उसे कानून का रूप नहीं दी जा सका है.
इसके आलोक में 19 अक्तूबर 2008 में एक निर्णायक जन आंदोलन जन सत्याग्रह 2012 का ऐलान किया गया है. जो 2 अक्तूबर 2012 से सत्याग्रह पदयात्रा आरंभ होगी. इसके पहले राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य पी वी राजगोपाल जनादेश संदेश यात्रा 360 दिनों का करेंगे. उन्होंने कहा कि पहली बार विश्व बैंक ने जमीन के मुद्दे को लेकर रिर्पोट तैयार की है. इस रिर्पोट में दर्शाया गया कि 140 देश ने 34 बिलियन की राशी से जमीन की खरीद फरोख्त पर व्यय किये है. दूसरी ओर वंचित समुदाय के लिए जमीन के लिए कुछ नहीं किया गया है. सरकार मानती है कि जनसंख्या की 24 फीसदी लोग भूमिहीन हैं, वहीं 32 फीसदी आवासीय भूमिहीन हैं. इनके लिए सरकार के पास ठोस योजना ही नहीं है. राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति में ऐसे वंचित समुदाय के हित में कानून बनाने के लिए अनुशंषा की गयी है जो सरकार के गले नहीं उतर रहा है.
इस अवसर पर सीपीआई के राज्यकारिणी समिति के सदस्य अर्जुन प्रसाद ने भूदान यज्ञ कमेटी पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि कुल 6 लाख, 48 हजार 476 एकड़ जमीन में से 2 लाख 78 हजार 320 एकड़ जमीन वितरण योग्य नहीं है. उसके बारे में कमेटी को जानकारी नहीं है. यहां पर पहाड़, झील, नदी, जंगल आदि है, तो वहां का मुनाफा किसके पास जाता है. उसका फायदा कौन उठा रहा है. इसकी जांच करवाने पर बल दिया. यह कमेटी का घोटाला साबित होगा.
पूर्व सांसद डॉ रामजी सिंह ने कहा कि हमारे जन प्रतिनिधियों ने कभी भी भूमि सुधार सदृष्य संवेदनशील मुद्दा को संसद का हिस्सा नहीं बनाया है. इसके कारण भूमि सुधार का परिणाम अधर में लटक गया है. भूदान यक्ष कमेटी के अध्यक्ष शुभमूर्ति ने कहा कि गांधी जी ने अंतिम लोगों का ख्याल किया था. उसमें विनोबा भावे भी शामिल थे. उन्होंने दानवीरों को भूदान कराकर भूमि को भूमिहीनों के बीच में वितरण करने का अभियान चलाया था. उन्होंने अब ग्रामदान करने पर बल दिया.
एआईटीयूसी, बिहार के उप महासचिव गजनफर नवाब, सामाजिक चिंतक प्रमोद कुमार, सारंगधर जी, पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो नवल किशोर चौधरी आदि ने भूमि सुधार आयोग को गठन करने एवं उसके अध्यक्ष के द्वारा अनुशंषाओं को न लागू करने का गंभीर मामला बताया.

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